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मजबूत सरकार या मजबूरी का गठबंधन

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:24 Jan 2019 3:21 PM GMT
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राजनाथ सिंह `सूर्य'

कुमार स्वामी के शपथ ग्रहण के समय बेंगलुरु में मंचीय एकजुटता दिखाने के बाद कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के आह्वान पर दूसरा मंचीय एकता पदर्शन अंतर्निहित विरोधाभास को और अधिक उजागर किया है। बेंगलुरु में कुमार स्वामी के पिता एचडी देवेगौड़ा ने राहुल गांधी को पधानमंत्री पद के लिए विपक्ष की ओर से सर्वाधिक स्वीकार नेतृत्व के रूप में पस्तावित किया था और कोलकाता के पदर्शन के बाद कुमार स्वामी ने नेतृत्व के लिए ममता बनर्जी को सबसे उपयुक्त व्यक्ति बताया है। कांग्रेस और जनता दल यूनाइटेड की मिलीजुली सरकार कैसी चल रही है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री कुमार स्वामी अपने को एक क्लर्प की भांति उपयोग किए जाने का अपने समर्थकों के समक्ष विलाप कर रहे हैं।

कांग्रेस ने अपने समर्थन से जिन दलों की सरकारें बनाई हैं उन्हें मजबूरी के दौर से गुजरना पड़ा है। चाहे वह चौधरी चरण सिंह हो, चन्द्रशेखर, एचडी देवेगौड़ा या इन्द्र कुमार गुजराल रहे हों। राहुल गांधी पधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त बताने वाले डीएमके के नेता स्टालिन को शायद यह विस्मृत हो गया है कि गुजराल की सरकार में शामिल उनके मंत्रियों को न निकाले जाने पर कांग्रेस ने समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी थी। शायद यही कारण है कि कोई भी दल कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने को राजी नहीं है। उत्तर पदेश इसका ज्वलंत उदाहरण है। जहां समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी के समझौते से कांग्रेस को बाहर कर दिया गया है।

कोलकाता में प्रदर्शित मंचीय एकता का मुख्य उद्देश्य ममता बनर्जी को केंद्रबिन्दु के रूप में उभारना मात्र था। यही कारण है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मायावती के साथ वामपंथी दलों को कोई नेता जो बेंगलुरु के मंच पर था वह कोलकाता में दिखाई नहीं पड़ा। भले ही ममता बनर्जी के मोदी हटाओ नारे पर लोगों ने तालियां बजाई हों लेकिन किसे लाओ के मुद्दे पर अपने पांसे सभी छिपाए हुए हैं।

कांग्रेस के साथ समझौता कर तेलंगाना विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले चन्द्रबाबू नायडू जिन्होंने गैर भाजपाई एकजुटता का पयास शुरू किया था और सबसे पहले कांग्रेस से मिले थे शायद उनका भी मोहभंग हो गया है।

आंध्रपदेश में स्थापित रहने के लिए उन्होंने भी तीसरे मंचीय महाग"बंधन की घोषणा की है। क्योंकि कांग्रेस आंध्र विधानसभा का चुनाव नायडू के साथ मिलकर लड़ने के बजाय अकेले लड़ने की तैयारी कर रही है। इस तथाकथित महाग"बंधन की गाड़ी मंचीय एकजुटता से आगे नहीं बढ़ पाई है। पहले मंचीय पदर्शन जो बेंगलुरु में हुआ था के बाद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए जिनमें तीन छत्तीसगढ, मध्यपदेश और राजस्थान में कांग्रेस के साथ समझौता करने का सपा-बसपा का पयास असफल रहा। उत्तर पदेश में दोनों पार्टियों के पमुखों द्वारा सीटों का बंटवारा घोषित करने के बावजूद अभी तक गाड़ी आगे नहीं बढ़ी है औरे पिछले दिनों दोनों दलों द्वारा तीनों हिन्दी भाषी राज्यों में अलग-अलग चुनाव लड़ने में निहित द्वंद्व का स्वरूप उत्तर पदेश में भी पकट हो सकता है। इस आशंका का समाधान उम्मीदवारों की घोषणा के बाद हो सकेगा। जो छोटे दल उनके साथ आना चाहते थे उन्हें निराशा हाथ लगी है। इस स्थिति से स्पष्ट होता है कि जो क्षेत्रीय दल जहां मजबूत है वहां किसी अन्य दल को या कांग्रेस को पै" नहीं बनाने देना चाहती। और जहां कांग्रेस मजबूत है वहां वह अन्य दलों को घुसपै" नहीं करने देना चाहती इस विरोधाभास के चलते महाग"बंधन नामक एकजुटता की ओर से मोदी हटाओ देश बचाओ का नारा लगाने वालों में अपने अस्तित्व के लिए खड़ा संकट नजर आता है।

दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने मजबूत सरकार या मजबूर सरकार का अभियान चलाकर मोदी हटाओ अभियान की काट करना शुरू कर दिया है। यद्यपि सभी दल पत्यक्ष रूप से यह घोषणा करते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा जाएगा लेकिन भाजपा को छोड़कर कोई भी दल विकास की अवधारणा और उसके क्रियान्वयन के स्वरूप की स्थिति स्पष्ट करने के बजाय अफवाहों और अनावश्यक मुद्दों को उछालकर भाजपा सरकार की छवि धूमिल कर जनता का विश्वास जीतने के उपक्रम में लगी है। उनके अंदर मोदी के पुनः पधानमंत्री बनने पर अस्तित्व के लिए संकट का भय जहां सबसे अधिक एक मंच पर आने के लिए पेरित कर रहा है वहीं अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए मंचीय एकजुटता के पदर्शन से जनमत को पभावित करने का क्रम भी चल रहा है। इस बीच समीक्षकों ने जो अनुमान लगाना शुरू किया है और जिस पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और समाचार पत्रों में निहित उद्देश्य को लेकर अनेक पकार की बहस की जा रही है उसमें वास्तविकता की झलक नहीं मिल रही है।

गुमराह करके हमराह बनाने के अभियान में भारतीय स्वाभिमान और प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने के लिए देश ही नहीं विदेश में भी जाकर पयास किया जा रहा है। इसका एक नमूना हाल ही में लंदन में आयोजित ईवीएम मशीन द्वारा मतदान के विरुद्ध किया गया पयास है। जिसमें कांग्रेस के कानूनविद माने जाने वाले कपिल सिब्बल भी शामिल हुए थे। यद्यपि ईवीएम मशीनरी के माध्यम से चुनाव परिणामों में अनियमितता का कोई आरोप पमाणित नहीं हुआ है और इसी पद्धति से मतदान में कांग्रेस तीन राज्यों में भाजपा को सत्ताच्युत करने में सफल रही है लेकिन कांग्रेस के साथी मंचीय एकता प्रदर्शित करने वाले दल इसे दोषपूर्ण बताते हुए पुराने बैलेट पेपर से मतदान कराए जाने की मांग को लेकर निर्वाचन आयोग और राष्ट्रपति तक गुहार लगा रहे हैं। शायद इसका कारण यह भी हो सकता है कि हारने की स्थिति में बचाव के लिए अभी से एक बवंडर खड़ा कर दिया जाए।

मोदी विरोधी अभियान में एक बात और उभरकर सामने आई है कि कांगेस सहित अन्य दलों ने पाकिस्तान परस्ती को आश्रय देना शुरू कर दिया है। जम्मू-कश्मीर के एक पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने कोलकाता के मंच से और अन्य स्थलों पर विशेषकर श्रीनगर में जिस शब्दावली में भारत सरकार की नीतियों और पाकिस्तान के साथ सम्पर्प बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया है उससे देश में उन तत्वों को पोत्साहन मिला है जिनकी मानसिकता अभी भी विभाजन के पूर्व की बनी हुई है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के इस आरोप में सार्थकता दिखाई पड़ती है कि राज्य के तीनों पमुख दल कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सीमा से पार आये निर्देशों के अनुसार आचरण करते हैं। देश में सक्रिय कांग्रेस सहित अन्य दलों को देश के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाने वाले के पक्ष में खड़ा होने में गुरेज नहीं हैं। वह पाकिस्तान के विरुद्ध की गई सैनिक कार्रवाई को पाकिस्तान के समान ही संदेहास्पद करार देने के लिए इसलिए उतावले रहते हैं क्योंकि उनमें अभी भी यह धारणा काम कर रही है कि भारतीय मुसलमान पाकिस्तान परस्त हैं। इसलिए जिस पकार मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग करने का पयास किया था उसी पकार का पयास आज भी सेक्युलरजिम्म के नाम पर किया जा रहा है और मुसलमान समझकर या बिना समझे इस वोट बैंक के षड्यंत्र का शिकार होता जा रहा है।

भारतीय जनता पार्टी के नारों पर विचार करना और उसकी समक्षी करना जरूरी है कि देश को मजबूत सरकार चाहिए या फिर मजबूर सरकार चाहिए। विकास उन्मुख चाहिए या भ्रष्टाचार युक्त। परिवारवादी चाहिए या फिर राष्ट्रवादी देश की प्रतिष्ठा विश्व में स्थापित करने वाली चाहिए या फिर पिछलग्गू बनी रहने वाली चाहिए। गरीबोन्मुखी नीतियों पर अमल करने वाली चाहिए या पूंजीपतियों की संपदा बढ़ाने वाली चाहिए। यदि मतदाताओं ने जाति संप्रदाय और कुल के क्षणिक व्यामोह में आकर काम नहीं किया जिसका पयास चरम पर है तो यह मंचीय महाग"बंधन जो अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया हुआ है अपने विखंडित करने के पयास में अवश्य सफल होगा अन्यथा सब पकार से देश की प्रतिष्ठा और सम्पन्नता बढ़ाने में जुटे नरेंद्र मोदी अजेय रहेंगे।

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)

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