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नेहरू-गांधी के बाद अब वाड्रा

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:31 Jan 2019 5:49 PM GMT
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राजनाथ सिंह `सूर्य'

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में पशासनिक व्यवस्था के लिए अपनाई गई गणतांत्रिक शासन पद्धति की 70वीं वर्षगां" के दो दिन पूर्व लोकतंत्र की सर्वाधिक पुरानी संस्था होने का दावा करने वाली कांग्रेस ने परिवार के ही एक अन्य सदस्य पियंका गांधी को राजनीतिक अखाड़े में उतार दिया है। कांग्रेस का दावा है कि उसके इस दांव से विरोधी खासकर भाजपा चारों खाने चित्त हो जाएगी। क्योंकि पियंका वाड्रा की आकर्षक छवि के सामने पधानमंत्री मोदी की छवि धूमिल पड़ जाएगी। इसी आकलन के कारण संभवतः उन्हें पूर्वी उत्तर पदेश का पभार सौंपा गया है। क्योंकि मोदी का निर्वाचन क्षेत्र भी उसी में आता है। नेपथ्य में रहकर कांग्रेस की राजनीति में पभावी दखलंदाज के रूप में पियंका वाड्रा तब उभरी जब उन्होंने राजस्थान और मध्यपदेश का मुख्यमंत्री चयन के लिए राहुल की पसंद को नाकाम कर पुराने लोगों पर ही भरोसा जताने में सफलता पाप्त की। जहां पियंका वाड्रा के मैदान में उतरने की चर्चा से कांग्रेसी उत्साहित हैं वहीं आलोचकों का मानना है कि भले ही पिछले महीनों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अच्छी सफलता पाप्त हुई हो लेकिन लोकसभा चुनाव में मोदी के मुकाबले राहुल को अक्षम मानकर पियंका वाड्रा को मैदान में उतारा गया है।

बेंगलुरु में अनेक दलों के साथ मंचीय एकता में भाग लेने के बाद उसने सोनिया और राहुल को बाध्य कर दिया कि कोलकाता में ममता बनर्जी द्वारा आयोजित शो के मंच से अंतरध्यान रहें। ममता बनर्जी और कुछ उन लोगों से जिनमें बसपा मुखिया मायावती भी शामिल हैं इस मंचीय पदर्शन का नेतृत्व पाप्त करने की अनुकूलता न होने से निराश होकर राहुल गांधी कांग्रेस के अकेले दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा करते हुए ग"बंधन की राजनीति की नई शुरुआत करते हुए आंध्र के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू के साथ मिलकर तेलंगाना विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए जो समझौता किया था उसे भी तोड़ दिया है इस पकार महाराष्ट्र को छोड़कर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ कई साल से समझौता चला आ रहा है। अब कांग्रेस के लिए किसी अन्य राज्य में ग"बंधन या सीट समझौते की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है। उसकी इस असहाय स्थिति का लाभ न केवल उत्तर पदेश में सपा-बसपा ने दो सीटें छोड़ी है वहीं बिहार में ग"बंधन में वांछित सीटें पाने की संभावना क्षीण होने के आसार दिखाई पड़ने लगे हैं। जो कांग्रेसी पियंका वाड्रा के पत्यक्ष राजनीति में उतरने की अपेक्षा से पफुल्लित हैं उन्हें पियंका की इंदिरा गांधी की मिलती-जुलती छवि के कारण यह भरोसा हो रहा है ऐसी पतिक्रिया भी उभरकर सामने आई है लेकिन क्या पियंका जिनके बारे में यह भी चर्चा है कि क्या वह अपनी अस्वस्थ मां के निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगी आकृतीय छवि से अधिक अपनी दादी के समान पभावी पभाव डाल सकेंगी।

यों तो कांगेस नेहरू-गांधी की छत्रछाया में लोकतांत्रिक मार्ग से कभी आगे नहीं बढ़ी उसे मनोनयन या संरक्षण से ही आगे बढ़ने का मौका मिला और जब भी उसके असफल होने पर भीतर से असंतोष पकट हुआ उन्होंने बड़े तिकड़म से अपनी सल्तनत बचाने का काम किया। चीनी हमले के बाद जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व के पति उभरे असंतोष के बाद उन्होंने बड़ी चतुराई से कामराज योजना लागू कर देशभर के कांग्रेसी नेताओं को पैदल कर दिया और अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को नागरिक परिषद का अध्यक्ष बनाकर देशभर में ख्याति पाप्त करने का अवसर दिया। स्वयं जवाहर लाल नेहरू अपने पिता मोती लाल नेहरू के महात्मा गांधी के पभाव के दबदबे से कांग्रेस अध्यक्ष बने और महात्मा गांधी के दबाव से ही 14 में से एक भी कांग्रेस कमेटियों का समर्थन न होने के बावजूद पधानमंत्री का पद पाप्त किया। कामराज योजना से कांग्रेस में बड़ी अंतरकलह में ईमानदारी के पति मोरारजी भाई का रास्ता रोकने के लिए सिंडीकेटöकामराज, संजीव रेड्डी और एसके पाटिल की तिकड़ी ने `गूंगी गुड़िया' `इंदिरा गांधी' को पधानमंत्री पद पर आसीन कराया। जिन्होंने सत्ता पाते ही सिंडीकेट को चलता किया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय से लोकसभा के लिए निर्वाचन रद्द होने के बावजूद इमरजेंसी लगाकर सत्ता में बने रहने का काम किया।

उनकी निर्मम हत्या के बाद इमरजेंसी के समय बनी पारिवारिक तिकड़ी ने राजीव गांधी को बिना पूरी औपचारिकता के पधानमंत्री बना दिया। जो अनिच्छापूर्वक अपने अनुज संजय गांधी की दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर मां द्वारा राजनीतिक पदों के लिए उपयुक्त माने गए थे। राजीव गांधी की हत्या के बाद कुछ वर्षों तक परदे के पीछे रहने वाली सोनिया गांधी ने 18 वर्षों तक कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहने का रिकॉर्ड कायम किया और फिर अपने पुत्र राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया।

नेहरू से गांधी होने वाली कांग्रेस में जिस गांधी का योगदान रहा है उनको इस पारिवारिक परंपरा में कोई स्थान नहीं मिला है। वे थे इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी। जिन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऐसा अभियान चलाया कि उनके श्वसुर पधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को अपने वित्तमंत्री को अपने मंत्रिमंडल से निकालना पड़ा। इसी पकार इंदिरा गांधी के पधानमंत्रित्वकाल में तमाम ऐसे कांड हुए जिसके कारण कांग्रेस भ्रष्टाचार की पर्याय बन गई और इसके विरुद्ध जनाक्रोश को जय पकाश नारायण ने जो नेतृत्व पदान किया उससे भयभीत इंदिरा गांधी ने सत्ता में बने रहने का असफल पयास किया।

सोनिया गांधी के नियंत्रण में चलने वाली मनमोहन सरकार तो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे होने के कारण 2014 में अपदस्थ हुई। इस सबके बीच एक तथ्य अपनी निरंतरता बनाए हुए है वह यह कि जन मुद्दों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं उसका लाभ इस परिवार ने उ"ाया है। पकारांतर से लगाए गए इन आरोपों के लंबित रहने के बीच उनके पत्यक्ष भ्रष्टाचार के आरोप उभरकर सामने आए हैं जिसके कारण सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अदालत से जमानत लेनी पड़ी है। इन पत्यक्ष आरोपों के उभरने के साथ-साथ पियंका वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा के विरुद्ध सत्ता के दुरुपयोग से लाभान्वित होने के कई मामले उभरकर सामने आए हैं।

जहां कांग्रेस में परिवार की उत्तराधिकार परंपरा को स्थायित्व पाप्त हो चुका है वहीं नेहरू से गांधी और गांधी से वाड्रा तक की कांग्रेस में भ्रष्टाचार और सत्ता में निजी लाभ के दुरुपयोग के आरोप की निरंतरता भी बनी हुई है। क्या इस निरंतरता के बने रहते पियंका की आकर्षक छवि कांग्रेस को उबारने में सफल हो सकेगी। क्योंकि जो राजनीतिक परिदृश्य उभर रहा है उसमें एकाध दल को छोड़कर कोई विपक्षी पार्टी राहुल गांधी को मोदी विरोधी मोर्चें का नेतृत्व सौंपने के लिए तैयार नहीं है। ममता बनर्जी और मायावती तो स्वयं ही उस मोर्चे का नेतृत्व अर्थात पधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में अपने को स्थापित करना शुरू कर दिया है। दोनों ने ही पियंका वाड्रा को राजनीति के मैदान में उतारने पर कोई टिप्पणी नहीं की है। कांग्रेस में परिवारवाद की स्वाभाविक पक्रिया का चलन उसे लोकतांत्रिक मान्यताओं से निरंतर दूर करती गई है। संभवतः उसका अनुकरण करने के कारण ही पायः पत्येक राजनीतिक दल में पारिवारिक उत्तराधिकार का चलन हावी हो गया है। लोकतंत्र में आस्था के लिए सबसे अधिक जरूरत है आंतरिक लोकतंत्र अर्थात पार्टी पदाधिकारियों के चयन में सामान्य कार्यकर्ताओं की भागीदारी। आंतरिक लोकतंत्र के लिए निर्धारित मानक की कागजी आपूर्ति सामान्य बात हो गई है। जिस भी क्षेत्रीय दल का नाम लीजिए उसका मुखिया अपने पुत्र या पुत्री को उत्तराधिकार पदान कर रहा है। यह "ाrक है कि इस आरोप से अलग छवि रखने वाली भारतीय जनता पार्टी है लेकिन उसमें भी नेतृत्व चयन की पक्रिया में आम कार्यकर्ताओं या सदस्यों की भागीदारी क्षीण होती जा रही है। इसलिए गणतंत्र की 70वीं वर्षगां" के बाद जो लोकसभा का चुनाव होने जा रहा है उसमें सैद्धांतिक मुद्दों से अधिक महत्व पारिवारिक छवि को बनाया जा रहा है। अगले चुनाव तक यही परिस्थिति बनी रहने के कारण यह पश्न जरूर किया जा सकता है कि क्या हमारी गणतांत्रिक व्यवस्था जिसका संघात्मक स्वरूप है। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण परिवारवाद की अधिकता से लोकतांत्रिक व्यवस्था के विलुप्त हो जाने की ओर तो नहीं बढ़ रही है।

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)

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