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योगी राष्ट्रवादियों को संरक्षण दें

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:5 Feb 2019 3:59 PM GMT
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श्याम कुमार

उत्तर पदेश में सूचना विभाग एवं पत्रकार जगत का अतीत जितना स्वर्णिम रहा है, बाद का दौर उसके विपरीत हो गया। इस विपरीत दौर की शुरुआत सूचना विभाग के विभागीय निदेशक "ाकुर पसाद सिंह के समय में हुई थी, लेकिन तब उसका रूप सीमित था। उसे बहुत व्यापक रूप पदान करने का काम किया सपा सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने। उन्होंने इंदिरा गांधी के फारमूले को अपनाया। इंदिरा गांधी ने अपनी गद्दी सुरक्षित रखने के लिए फर्जी सेकुलरवाद की आड़ लेकर कम्युनिस्टों का सहारा लिया था। इंदिरा गांधी की उस नीति का परिणाम यह हुआ था कि देश के कोने-कोने में तथा पत्येक विधा में फर्जी सेकुलरवाद के नाम पर कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों की गहरी घुसपै" और कब्जा हो गया। पत्रकारिता भी उसकी बुरी तरह शिकार हुई तथा वामपंथियों की पत्रकार जगत में व्यापक घुसपै" हो गई। उस माहौल का परिणाम यह हो गया कि देशदोही तत्वों को भरपूर संरक्षण मिला और उन्होंने देशभर में अपना जाल फैला लिया। देशदोह के पति उदारता बरते जाने से पूरे देश में देशदोही तत्व निर्भय होकर देश के टुकड़े-टुकड़े किए जाने एवं `पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाने लगे। दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय देशदोह की टकसाल बन गया। नरेंद्र मोदी को पधानमंत्री बनते ही राष्ट्रविरोधी तत्वों का पूरी तरह उन्मूलन कर देना चाहिए था। किन्तु उन्होंने उदारता का रवैया अपनाया, जिसके परिणामस्वरूप देशदोही तत्व इतने मजबूत हो गए कि आज देश के लिए मुसीबत बने हुए हैं।

उत्तर पदेश में मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में नेहरू वंश की मुस्लिम-तुष्टीकरण नीति को न केवल अपनाया, बल्कि उसे इतना विस्तार दे दिया कि वह हिन्दू-विरोध में परिणत हो गई। नेहरू ने जिस हिन्दू-विरोध एवं मुस्लिम-तुष्टीकरण की नींव डाली थी, उसने हिंदुओं की हर तरह से इतनी अधिक उपेक्षा की कि वे देश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर रह गए। कट्टर मुस्लिम साम्पदायिकता सेकुलर कही जाने लगी तथा `हिंदू' शब्द साम्पदायिकता माना जाने लगा। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अपनी इसी नीति का अनुसरण पत्रकार जगत के मामले में भी किया। उनकी सरकार ने सूचना विभाग का सहारा लेकर पत्रकारों के एक बड़े वर्ग में लाखों रुपये बांटे और उन्हें अपना पिट्"t बना लिया। उर्दू अखबारों के पति कांग्रेस सरकार की चली आ रही उदारता की नीति को अधिकाधिक उदार बना दिया गया, जिसका फायदा उ"ाकर उर्दू अखबार निकालने की होड़ लग गई। मुलायम सिंह यादव जब-जब सत्ता में आए, उनका उक्त फारमूला जोरों से चला। उस समय कतिपय अखबारों ने साहस कर उन पत्रकारों की सूची पकाशित की थी, जिन्हें विपुल मात्रा में धन पाप्त हुआ था। बीच में भाजपा की सरकारें आईं, किन्तु उन्होंने पत्रकार जगत में फैली हुई विकृति को दूर करने की ओर ध्यान नहीं दिया। मायावती के शासनकाल में भी कोई सुधार नहीं हुआ। फर्जी सेकुलरवाद की भांति फर्जी पत्रकारिता पदेश में छा गई तथा जो वास्तविक पत्रकार थे, वे उपेक्षित होने लगे।

अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री बने तो शुरू में वह आदर्श मुख्यमंत्री पतीत हुए। लेकिन धीरे-धीरे सशक्त भ्रष्ट तत्व उन पर हावी हो गए तथा उनकी सरकार मायावती की सरकार की भांति भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई। मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल की तरह अखिलेश यादव के कार्यकाल में भी पत्रकारिता को भ्रष्ट किया गया। पत्रकारों का एक ऐसा वर्ग बन गया, जो अखिलेश यादव के इर्दगिर्द छा गया तथा उसने तरह-तरह से जमकर आर्थिक लाभ उ"ाया। अखिलेश सरकार ने उसके लिए उदारतापूर्वक खजाना खोल दिया। जो वास्तविक पत्रकार थे, उनकी पूरी उपेक्षा की गई। अखिलेश सरकार में दूसरे नंबर के एवं जबरदस्त ताकतवर मंत्री आजम खां भी अपना `खेल' खेलते रहे। उन्होंने तरह-तरह के दांव चलकर मुस्लिम पत्रकारों के बहुत बड़े तबके को अपना `बेहद खास' बना लिया तथा उसे मालामाल करने की कोशिश की। एक ऐसे पत्रकार थे, जो गरीबी की स्थिति में थे। एक बार ईद पर मैं उनके यहां मिलने गया तो उनका वैभव देखकर आश्चर्य में पड़ गया। लोगों ने बताया कि वह अखिलेश यादव के बहुत निकट हैं तथा अखिलेश सरकार ने उन्हें यह सम्पन्नता पदान की है। पत्रकार जगत की इस विकृति से देशदोही तत्वों को पनपने एवं मजबूत होने का खूब अवसर मिला।

उत्तर पदेश में जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो आशा उत्पन्न हुई कि पदेश में, विशेषकर राजधानी लखनऊ में पत्रकारिता में जो भीषण सड़ांध आ गई है, उसका उन्मूलन होगा तथा राष्ट्रवाद एवं वास्तविक पत्रकारों को संरक्षण मिलेगा। अवनीश कुमार अवस्थी को दिल्ली से उत्तर पदेश लाया गया और अखिलेश-सरकार में जो विभाग नवनीत सहगल को मिले हुए थे, वे सभी विभाग अवनीश कुमार अवस्थी को सौंप दिए गए। उनमें सूचना विभाग भी शामिल था। अखिलेश सरकार ने पत्रकारों के जिस बड़े वर्ग को मालामाल कर अपना खास बनाने का कृत्य किया, उसमें नवनीत सहगल का मुख्य योगदान था। इसलिए अवनीश कुमार अवस्थी के आने से यह आशा हुई कि उनके माध्यम से योगी सरकार पत्रकार जगत में व्याप्त हो गई विकृति को दूर करेगी। अवनीश कुमार अवस्थी जब दिल्ली से लखनऊ आए थे तो एक दिन मेरे पास उनका फोन आया और उन्होंने मुझसे अच्छे पत्रकारों की सूची देने को कहा। मैंने पयास कर वैसी सूची तैयार की और अवनीश कुमार अवस्थी को सौंपी। मुझे आशा थी कि अब माहौल में कांतिकारी सुधार होगा तथा पत्रकारिता का स्वर्णिम दौर लौटेगा। जब काफी समय बीत गया और कुछ नहीं हुआ तो पता करने पर मुझे लोगों ने जो कुछ बताया, उससे बड़ी निराशा हुई। विदित हुआ कि अवनीश कुमार अवस्थी को यह भ्रम हो गया है कि अखिलेश सरकार में बहुत ताकतवर हो चुके पत्रकारों को छेड़ा जाना "ाrक नहीं होगा। इसी से जिन संग"नों में वे ताकतवर पत्रकार हावी थे, उन संग"नों की वही स्थिति बनी रह गई। यह भी पता लगा कि उन पत्रकारों ने ब्राम्हणवाद का फारमूला अपनाकर अवनीश कुमार अवस्थी से निकटता बना ली है। ऐसे पत्रकार कहने भी लगे कि अवनीश कुमार अवस्थी ब्राम्हण पत्रकारों के सबसे बड़े `गार्जियन' हैं। बाद में पता लगा कि जब अवनीश कुमार अवस्थी की इस संदर्भ में बदनामी होने लगी तो वह संभल गए। किन्तु चर्चा है कि पत्रकारों के उस वर्ग ने अब मुख्य सचिव डॉ. अनूप चंद पांडेय पर ब्राम्हणवाद का फारमूला अपनाते हुए उन पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं तथा उनसे उनकी निकटता हो गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शुभचिंतकों का कहना है कि उन्हें इस दिशा में ध्यान देना चाहिए तथा अखिलेश यादव की सरकार के समय पत्रकारिता में जो सड़ांध पैदा हो गई है, उसे दूर करना चाहिए।

लोगों के मतानुसार इसके लिए योगी सरकार को राष्ट्रवादी पत्रकारिता को हर तरह से बढ़ावा देना चाहिए तथा राष्ट्रवादी पत्रकारों को संरक्षण पदान करना चाहिए। सूचना विभाग अब तक `मुहरें लुटें, कोयले पर छाप' वाले मुहावरे का अनुसरण कर उपर्युक्त कोटि वाले पत्रकारों के पति उदारता दिखाता रहा है तथा सही पत्रकारों की उसने उपेक्षा की है। सपा सरकार के समय एक माफिया को मान्यतापाप्त पत्रकार बनाकर उसे खूब लाभान्वित किया गया था। उसके आवास पर रोजा-अफ्तार के विशाल आयोजन किए गए थे, जिसके बारे में पता लगा था कि सूचना विभाग ने तरकीब निकालकर उसके सारे खर्च उ"ाए हैं। सपा सरकार के दौर में उसके चहेते पत्रकारों को सूचना विभाग उदारतापूर्वक वाहन उपलब्ध कराता था तथा अन्य अनेक सुविधाएं देता था। कुछ को तो स्थायी रूप से वाहन दे दिए जाने की चर्चा सुनने को मिलती थी। योगी सरकार में भी वे सारे पत्रकार पभावशाली बने हुए हैं, जो अखिलेश सरकार के समय चांदी काट रहे थे। वर्तमान समय में सूचना विभाग में अपर मुख्य सचिव के रूप में अवनीश कुमार अवस्थी एवं निदेशक के रूप में शिशिर, ये दो श्रेष्" अधिकारी हैं, जो सूचना विभाग का कायाकल्प कर उसे राष्ट्रवाद को संरक्षण दिए जाने का सशक्त माध्यम बना सकते हैं।

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