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बुआ, बबुआ और नमो की टेंशन बनेंगी पियंका

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:8 Feb 2019 4:08 PM GMT
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पेम शर्मा

लगभग बुरे दौर से धीरे-धीरे उबर रही कांग्रेस को मध्यपदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली जीत के बाद पियंका की ताजपोशी ने करंट देने का काम किया है। बेसुध हो चुके कार्यकर्ता और कांग्रेसी नेताओं में पियंका के पदाधिकारी बनते ही उत्साह का संचार हुआ है। उत्तर पदेश में बसपा और समाजवादी पार्टी से तिरस्कार पाने के कांग्रेस का यह कदम बहुजन समाज पार्टी की `बुआ', समाजवादी पार्टी के `बबुआ' के साथ ही भारतीय जनता पार्टी के `नमो' के लिए टेंशन देने वाला साबित होगा। उत्तर पदेश की लगभग एक तिहाई सीटों के साथ पियंका गांधी का चेहरा इंदिरा की परछाई की तरह मध्यपदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार सहित कम से कम एक दर्जन से अधिक राज्यों में कांग्रेस के लिए संजीव साबित होने संकेत दे रहा है।

आगामी लोकसभा चुनाव में फ्रियंका गांधी कांग्रेस के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती हैं। उत्तर फ्रदेश में जहां सपा-बसपा ने आपस में ग"बंधन कर कांग्रेस को बेसहारा छोड़ दिया था, ऐसे में फ्रियंका की पार्टी में एंट्री कांग्रेस के लिए बड़ा सहारा बन सकती है। पार्टी उनके करिश्माई अंदाज के दम पर मोदी के जादू को फीका करने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि राजनीति में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार जहां उत्तर फ्रदेश में पार्टी के पुराने बोट बैंक बीएमडी (ब्राताण, मुस्लिम व दलित) को फिर से कांग्रेस की झोली में लाने की कोशिश करेंगी, वहीं पूरे देश में वह अपनी दादी इंदिरा गांधी की छवि को भुनाने का फ्रयास करेंगी। जिस तरह से फ्रियंका को पूर्वी उत्तर फ्रदेश का फ्रभार सौंपा गया है, वह कम चौंकाने वाला नहीं है। इस पूर्वी उत्तर फ्रदेश से पिछले लोकसभा चुनाव में फ्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के कई बड़े नेता चुनावी समर में उतरे थे। कांग्रेस की रणनीति यह है कि फ्रियंका के जादू के बूते फ्रधानमंत्री मोदी को वाराणसी में घेरा जाए या फिर उन्हें सीट बदलने पर मजबूर किया जाए। यदि ऐसा होता है, तो मनोवैज्ञानिक तौर पर चुनावी समर का पहला चरण कांग्रेस के खाते में जाएगा। फ्रियंका को उतारकर कांग्रेस ने सपा-बसपा जैसी पार्टियों को भी यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसे कमतर समझना दोनों दलों की भारी राजनीतिक भूल थी। लोगों को याद होगा कि 16 साल की फ्रियंका का यह पहला सार्वजनिक भाषण था। इस भाषण के 31 साल बाद तक कांग्रेस समर्थक पार्टी को उबारने के लिए जिस संजीवनी की मांग करते रहे हैं, वो अब पूरी हो गई है। फ्रियंका गांधी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण हो चुका है। उन्हें पूर्वी उत्तर फ्रदेश का महासचिव बनाकर पार्टी ने तुरुप का इक्का चल दिया है।लोकसभा चुनाव से ऐन पहले उन्हें उत्तर फ्रदेश के उन इलाकों की जिम्मेदारी मिली हैं, जहां फ्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र पड़ते हैं और कांग्रेस यहां मृतफ्राय है। ऐसे में फ्रियंका के लिए सब कुछ बहुत आसान नहीं रहने वाला है, लेकिन इंदिरा गांधी के करिश्माई व्यक्तित्व को लेकर जब उनकी तुलना होने लगती है तो सारी चुनौतियां छोटी पड़ने लगती है और उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने-समझने की इच्छा होती है। कांग्रेस का यह दांव क्या गुल खिलाएगा यह तो चुनाव बाद पता चलेगा, लेकिन इतना साफ है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी की लिए बड़ी संभावनाएं सोचकर चल रहे हैं और मोदी सरकार को सत्ता से बाहर रखने के लिए उन्होंने अपने तुरुप के इक्के को चल दिया है। एक बात साफ नजर आ रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पहली कोशिश उत्तर फ्रदेश में कांग्रेस के सारे कार्यकर्ता को जगाने की है और इस काम में फ्रियंका के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। कांग्रेसियों को फ्रियंका में इंदिरा गांधी का अक्स नजर आता है और यही फ्रियंका की सबसे बड़ी ताकत है। पूर्वी उत्तर फ्रदेश में दो दर्जन से ज्यादा सीटें हैं और इनमें से ज्यादातर पर कभी कांग्रेस का एकछत्र राज्य हुआ करता था। फ्रियंका के सहारे कांग्रेस यहां अपनी खोई जमीन वापस लाने की तैयारी में है। पूर्वी उत्तर फ्रदेश में फ्रमुख लोकसभा सीटों में अमे"ाr, रायबरेली, अंबेडकर नगर, आजमगढ़, बलिया, बलरामपुर, बहराइच, बस्ती, भदोही, चंदौली, देवरिया, गाजीपुर, गोरखपुर, गोंडा, जौनपुर, कुशीनगर, महाराजगंज, मऊ, मिर्जापुर, संत कबीर नगर, सुल्तानपुर, सोनभद्र, वाराणसी, डुमरियागंज, श्रावस्ती हैं। इस क्षेत्र में विधानसभा की 150 सीटें आती हैं। जातिगत समीकरण को देखें तो पूर्वी उत्तर फ्रदेश में 20 से 24 फ्रतिशत दलित, 8 से 15 फ्रतिशत ब्राताण और 10 से 27 फ्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं। फ्रियंका के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक की वापस पार्टी की झोली में डालने की है। फ्रियंका का अंदाज, हाजिरजवाबी और आम आदमी से संबंध बनाने की कला बिल्कुल इंदिरा जैसी है। उनका करिश्माई अंदाज कांग्रेस में न केवल नए सिरे से जान फूंक सकता है, बल्कि मोदी-शाह की जोड़ी के लिए निर्णायक चुनौती भी पेश कर सकता है। फ्रदेश के कांग्रेसी फ्रियंका में पूर्व फ्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी का अक्स देख रहे हैं। उनका मानना है कि फ्रियंका के आने के बाद यूपी में कांग्रेस की राजनीति गरमाएगी और इसका खास असर दिखेगा। उनका भरोसा है कि फ्रदेश में हाशिये पर पहुंच चुकी कांग्रेस में नई जान आ जाएगी और लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को अब उम्मीद से ज्यादा सीटों पर सफलता मिलेगी। केंद्र की सत्ता के साथ ही उत्तर फ्रदेश में हाशिये पर पहुंच चुकी कांग्रेस ने अब गांधी परिवार की एक और सदस्य फ्रियंका को भी आखिरकार राजनीति में उतार ही दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने यह फैसला ऐसे समय लिया है, जब फ्रदेश में सपा और बसपा ने अफ्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव को मिलकर लड़ने का निर्णय लिया है। दोनों दलों ने कांग्रेस को अकेला छोड़ दिया, जबकि कांग्रेस सहित अधिकतर विपक्षी दल फ्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को हराने के लिए महाग"बंधन की बात कर रहे हैं। हालांकि उत्तर फ्रदेश में लगभग तीस वर्षों से सत्ता से दूर बै"ाr कांग्रेस के नेता फ्रियंका को राजनीति में उतारने की मांग काफी पहले से करते आ रहे थे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को मिली जबरदस्त हार के बाद यह चर्चा होने लगी थी कि कांग्रेस को अब इस स्थिति से फ्रियंका ही उबार सकती हैं। कांग्रेसी पूर्व फ्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की छवि पियंका में देखते हैं और यह मानते हैं कि उनके आने के बाद कांग्रेस में एक बार फिर इंदिरा गांधी के जमाने की याद ताजा हो जाएगी।

फ्रियंका को सक्रिय भूमिका देने की लंबे समय से मांग कर रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में श्री गांधी के इस फैसले से निश्चित रूप से उत्साह और जोश बढ़ेगा और उनकी सक्रियता बढ़ेगी, लेकिन पार्टी से छिटक गए मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने के लिए उन्हें और पार्टी को कड़ी मशक्कत करनी होगी। बीते चुनावों में पूर्वी उत्तर फ्रदेश में कांग्रेस का फ्रदर्शन काफी कमजोर रहा है और फ्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा फ्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चुनाव क्षेत्र इसी हिस्से में है। इस तरह फ्रियंका को उन दोनों की चुनौतियों के साथ-साथ सपा-बसपा का सामना भी करना होगा। कांग्रेस ने राज्य में पिछला विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन इस ग"बंधन को भारी पराजय का सामना करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के फ्रदर्शन की बात की जाए, तो 1984 के बाद से उसका ग्राफ लगातार नीचे गिरता रहा है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने राज्य की 85 में से 83 सीटें जीती थीं तथा उसे 51 फ्रतिशत से अधिक मत मिले थे। उसके बाद से उसकी स्थिति लगातार खराब होती रही है। न केवल उसकी सीटें घटती गईं बल्कि उसे मिलने वाले मतों में भी भारी गिरावट आई। पांच चुनावों में तो उसकी सीटों की संख्या दो अंकों तक में नहीं पहुंच सकी। पार्टी 1998 के आम चुनाव में राज्य में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी अपनी सीटें बचा पाने में सफल हुए थे। पिछले तीन दशक में पार्टी को सबसे अधिक 21 सीटें 2009 के लोकसभा चुनाव में मिली थीं। भले ही पहली बार फ्रियंका को पार्टी में कोई पद मिला है, लेकिन वह अपनी मां एवं कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली और अपने भाई राहुल के चुनाव क्षेत्र अमे"ाr में चुनाव फ्रचार में सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं। फ्रियंका के कांग्रेस में सक्रिय भूमिका में आने के बाद फ्रदेश के राजनीतिक माहौल में निश्चित रूप से बड़ा बदलाव आएगा। लेकिन इसके लिए पार्टी के कार्यकर्ता से ज्यादा आलसी नेताओं को सक्रिय होना पड़ेगा।

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