व्यर्थ न जाने पाए वीर जवानों का बलिदान
योगेश कुमार गोयल
14 फरवरी की शाम जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में अवंतिपुरा इलाके में सुरक्षा बलों पर किए अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 30 जवान शहीद हो गए तथा कई गंभीर रूप से घायल हुए हैं। सीआरपीएफ के जिस काफिले पर यह हमला हुआ, उसमें 78 वाहन शामिल थे और सीआरपीएफ की 54वीं बटालियन के इस काफिले में 2500 से अधिक जवान थे। यह काफिला जम्मू से श्रीनगर जा रहा था और काफिले की एक गाड़ी आतंकियों के निशाने पर थी। एक आईडी ब्लास्ट के जरिये सीआरपीएफ के काफिले पर किया गया यह आतंकी हमला इतना भयावह था कि काफिले में शामिल कई गाडियों के तो परखच्चे उड़ गए। विस्फोटकों से भरी स्कॉर्पियो कार लेकर आए जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती आतंकी आदिल अहमद डार ने सीआरपीएफ जवानों के काफिले की जिस बस को निशाना बनाया, उसमें 39 जवान सवार थे। बताया जाता है कि आदिल वर्ष 2018 में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद में शामिल हुआ था। आदिल पुलवामा के काकापोरा इलाके का रहने वाला है।
हालांकि सितम्बर 2016 में उरी में हुए आतंकी हमले के बाद कश्मीर में सुरक्षा बलों पर यह अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है लेकिन जैश की अफजल गुरु स्क्वैड जम्मू-कश्मीर में अभी तक अनेक आतंकी वारदातों को अंजाम दे चुकी है। बीती 10 फरवरी को श्रीनगर के लाल चौक पर हुए आतंकियों के ग्रेनेड हमले में पुलिस और सीआरपीएफ के 7 जवानों सहित 11 व्यक्ति घायल हुए थे, जिसकी जिम्मेदारी भी अफजल गुरु स्क्वैड ने ही ली थी। इसके अलावा 30-31 दिसम्बर 2017 को पुलवामा में बीएसएफ के जवानों पर हुए हमले में भी अफजल गुरु स्क्वैड के शामिल होने की बात कही गई थी।
चिंता की बात है कि पिछले कुछ समय से सैन्य बल बार-बार आतंकी निशाने पर आकर शहीद हो रहे हैं और हम पाकिस्तान में सरेआम सीना तानकर घूम रहे इन दुर्दांत आतंकियों के आकाओं का बाल भी बांका नहीं कर पा रहे हैं। करीब एक साल पहले 15 फरवरी 2018 को आतंकियों ने पुलवामा के पंजगाम स्थित केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक कैंप पर हमला किया था। तब आतंकियों ने सीआरपीएफ के शिविर पर हमला कर कैंप में घुसने की कोशिश की थी लेकिन जवानों की सतर्पता के चलते वे अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सके थे। पिछले ही साल जम्मू के सुंजवां सैनिक शिविर में भी 10 फरवरी की सुबह आतंकी हमला हुआ था और उसके दो दिन बाद श्रीनगर के कर्ण नगर इलाके में भी आतंकियों ने सीआरपीएफ के शिविर पर हमले का नाकाम प्रयास किया था। अगले दिन 13 फरवरी को भी जम्मू में जम्मू-अखनूर मार्ग पर सेना के दोमाना कैंप शिविर को बाइक सवार आतंकवादियों ने निशाना बनाने का असफल प्रयास किया था। उस वक्त लंबे दौर के ऑपरेशनों के बाद सेना ने उन हमलों में शामिल आतंकियों को तो मार गिराया था किन्तु हमने अपने कुछ जांबाज जवानों और नागरिकों को भी उन हमलों में सदा के लिए खो दिया था। खुफिया जानकारियों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में सैन्य शिविरों पर हमलों के लिए जैश-ए-मोहम्मद तथा लश्कर-ए-तैयबा जैसे दो कुख्यात आतंकी संगठनों ने हाथ मिला लिया है। ऐसे में आज ऐसी ठोस रणनीति की जरूरत महसूस की जाने लगी है, जिससे इन आतंकी संगठनों की कमर तोड़ी जा सके।
दरअसल उरी हमले के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से बुरी तरह बौखलाये आतंकवादियों द्वारा प्रदेश में सैन्य शिविरों पर किए जा रहे हमले जिस तरह से तेजी से बढ़ रहे हैं, वह गहन चिंता का सबब हैं और ऐसे में पुन ऐसी ही द्विस्तरीय अथवा त्रिस्तरीय सर्जिकल स्ट्राइकों की आवश्यकता महसूस होने लगी है, जो न केवल किसी खास क्षेत्र तक सीमित रहें बल्कि पाकिस्तानी सीमा के भीतर बड़ी तादाद में आतंकी शिविरों को तबाह कर कई जगहों पर एक साथ आतंकियों की कब्रगाह बना दी जाए, जिससे पाकिस्तान के आतंकी मंसूबों को ध्वस्त किया जा सके। पाकिस्तान भारतीय सैन्य शिविरों पर लगातार हमले करा रहा है और सीजफायर का उल्लंघन कर बार-बार भारतीय सैन्य चौकियों को निशाना बना रहा है। विगत पांच वर्षों में पाकिस्तान द्वारा पांच हजार से ज्यादा बार सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जा चुका है और इस दौरान 450 से भी ज्यादा जवान जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों में शहीद हो चुके हैं।
हालांकि 2 जनवरी 2016 को पठानकोट हमले और 18 सितम्बर 2016 को हुए उरी हमले के बाद पुलवामा जिले के अवंतिपुरा इलाके में सुरक्षा बलों पर यह अभी तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है लेकिन देखा जाए तो शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो, जब हमें अपने किसी जवान के शहीद होने की खबरें न मिलती हो। पिछले तीन वर्षों में कई ऐसे आतंकी हमले भी हो चुके हैं, जब सेना को आतंकियों के खिलाफ दो से तीन दिनों तक मोर्चा संभालना पड़ा। ऐसे ही हमलों में 22 फरवरी 2016 को श्रीनगर में उद्यमिता विकास संस्थान की तीन मंजिला इमारत को आतंकियों से मुक्त कराने में सेना को पांच दिन तक मशक्कत करनी पड़ी थी। 14 सितम्बर 2016 को पुंछ में सेना मुख्यालय के समीप एक रिहायशी इमारत में छिपे आतंकियों को मार गिराने में कई घंटों का ऑपरेशन चलाना पड़ा था। 12 अक्तूबर 2016 को श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पंपोर की सरकारी इमारत में छिपे दो आंतकियों को मार गिराने में सेना को 56 घंटे लग गए थे। 5 मार्च 2017 को आतंकियों और सेना के बीच त्राल में दो दिन तक मुठभेड़ चली थी।
अगर बात करें सेना के कैंपों पर हुए कुछ प्रमुख आतंकी हमलों की तो इन हमलों की फेहरिस्त भी छोटी नहीं है। 5 फरवरी 2018 को पुलवामा में सेना कैंप पर जैश का आतंकी हमला, 7 जनवरी 2018 को पुलवामा में सीआरपीएफ कैंप पर आतंकी हमला, 31 दिसम्बर 2017 को पुलवामा जिले में सीआरपीएफ के ट्रेनिंग कैंप पर हमला, एक दिसम्बर 2017 को नगरोटा स्थित सैन्य शिविर पर आतंकी हमला, 3 अक्तूबर 2017 को बीएसएफ शिविर पर हमला, 12 अगस्त 2017 को कुपवाड़ा में सेना के कैंप पर हमला, 13 जून 2017 को पुलवामा में सीआरपीएफ कैंप पर ग्रेनेड से आतंकी हमला, 27 अप्रैल 2017 को कुपवाड़ा जिले के पंजगाम में सेना के कैंप पर हमला, 9 जनवरी 2017 को जम्मू के अखनूर सेक्टर के जीआरईएफ कैंप पर आतंकी हमला। ये सभी आतंकी हमले एक ओर जहां हमारी संप्रभुत्ता के लिए खुली चुनौती बने रहे हैं, वहीं इन हमलों में हमारे जांबाज जवान, सैन्य अधिकारी और नागरिक लगातार मारे जा रहे हैं।
सैन्य ठिकानों पर हमले कितने सुनियोजित ढ़ंग से होते हैं, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कई-कई दिनों की बड़ी सैन्य कार्रवाई के बाद मिशन सफल हो पाता है। ऐसी घटनाओं को लेकर चिंता की बात यह भी है कि इस तरह के हमलों की पूर्व सूचनाएं मिलती रही हैं और इन्हीं सूचनाओं के अनुसार हमले भी होते रहे हैं किन्तु फिर भी ऐसे हमलों को नाकाम करने में हम कई बार चूक जाते हैं। आखिर बार-बार ऐसी चूक के कारण क्या हैं? इसकी तह तक जाना होगा। सुंजवां सैनिक शिविर में तो गत वर्ष 10 फरवरी को सेना की वर्दी में आए जैश के आतंकी एके-56, असाल्ट राइफलों, रॉकेट लांचर, गोला-बारूद तथा हथगोलों से लैस थे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि अभेद समझे जाने वाले सैन्य शिविरों में भी आतंकी इतनी आसानी से भारी मात्रा में हथियारों और गोला-बारूद के साथ कैसे घुसने में सफल हो जाते हैं? निश्चित रूप से हमारे तंत्र में कुछ ऐसे बड़े छिद्र हैं, जिनसे होते हुए ये आतंकी आसानी से अपने मंसूबों में सफल हो जाते हैं।
बहरहाल जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों और उनके आकाओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा और इस जघन्य कृत्य के लिए उन्हें कभी न भूलने वाला सबक सिखाया जाएगा। बहरहाल अब जरूरत भी इसी बात की है कि आतंकियों और उनके पाक परस्त आकाओं का ऐसा कठोर सबक सिखाया जाए कि भारत में इस प्रकार की वारदात को अंजाम देना तो दूर की बात, ऐसा सोचने तक से उनकी सात पुश्तों की रूह कांप उठे।