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डिप्लोमेसी की कुछ अनकही बातें

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:22 Feb 2019 4:14 PM GMT
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शाहिद ए. चौधरी

डिप्लोमेसी की दुनिया में कुछ चीजों को अनकहा छोड़ना ही बेहतर होता है। यह बात सऊदी अरब के क्राउन फ्रिंस (उत्तराधिकारी) मोहम्मद बिन सलमान की (एमबीएस) एक दिवसीय भारत यात्रा पर पूर्णतया लागू होती है। यह घोषित करते हुए कि भारत सऊदी अरब के डीएनए में है, एमबीएस ने भारत के फ्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ संयुक्त वक्तव्य में कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया। दोनों नेताओं ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद व अतिवाद उनकी साझी चिंतों हैं, आतंकवाद का किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जाएगा और उन देशों पर दबाव डाला जाएगा जो आतंकवाद का समर्थन करते हैं कि वह ऐसा करना बंद कर दें। यह इस्लामाबाद को स्पष्ट संदेश था।

इस समय एमबीएस की भारत यात्रा कई कारणों से महत्वपूर्ण थी। एक, यह यात्रा पुलवामा के आतंकी हमले के बाद हुई, जिसके तार सीधे पाकिस्तान स्थित आतंकी गुट जैश से जुड़े हुए हैं। दूसरा यह कि जिस समय भारत पाकिस्तान को डिप्लोमेटिकली अलग-थलग करने का फ्रयास कर रहा है तो उस समय एमबीएस भारत आने से पहले पाकिस्तान की यात्रा करते हैं बल्कि वह इस्लामाबाद को 20 बिलियन डॉलर निवेश करने का ऑफर भी देते हैं ताकि वह अपने आर्थिक संकट से उभर सके।

सऊदी अरब व पाकिस्तान के बीच संबंध का एक इतिहास है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह भी सत्य है कि एक देश जो चीन से अधिक पाकिस्तान पर फ्रभाव रखता है वह सऊदी अरब है और सऊदी अरब की दिलचस्पी भारत को चीन की तरह `नियंत्रित' करने में नहीं है। इसलिए नई दिल्ली को यह तो आशा ही नहीं थी कि एमबीएस पाकिस्तान का नाम लेकर उसकी आलोचना या निंदा करेंगे। लेकिन इस पृष्"भूमि में सऊदी अरब को अपने पक्ष में करने की नई दिल्ली के समक्ष बड़ी चुनौती थी, जिसमें वह सफल भी रही, विशेषकर इसलिए कि एमबीएस के नेतृत्व में रियाद भी अपने स्ट्रेटेजिक संबंधों में विविधता लाने का फ्रयास कर रहा है और वह नई दिल्ली को भरोसेमंद पार्टनर के रूप में देखता है।

भारत के लिए बेहतर स्थिति यही थी कि रियाद पाकिस्तान की सार्वजनिक आलोचना से बचा रहे, लेकिन फ्राइवेटली इस्लामाबाद पर आतंक को छोड़ने का दबाव बनाए और साथ ही नई दिल्ली के साथ अन्य मोर्चों पर द्विपक्षीय संबंधों को गति फ्रदान करे। इसलिए यह स्वागतयोग्य है कि एमबीएस की यात्रा के दौरान नई दिल्ली व रियाद ने पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिनमें नेशनल इंवेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड में सऊदी निवेश, पर्यटन सहयोग और ब्राडकास्टिंग के मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग शामिल हैं। सऊदी अरब भारतीय अर्थव्यवस्था में 100 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा। गौरतलब है कि सऊदी अरब ने भारत का हज कोटा भी 1.20 लाख यात्रियों से बढ़ाकर 2 लाख कर दिया है।

लेकिन इन समझौतों में से एक महत्वपूर्ण डील नदारद रही। रत्नागिरी, महाराष्ट्र में एक रिफाइनरी स्थापित की जानीं थी। इस 44 बिलियन डॉलर के फ्रोजेक्ट में सऊदी अरब व अबु धाबी नेशनल ऑयल कंपनी को संयुक्त रूप से 50 फ्रतिशत की भागीदारी करनी थी। लेकिन इस फ्रोजेक्ट के खिलाफ किसानों व राजनीतिक दलों के फ्रदर्शन हो रहे हैं, जिन्होंने महाराष्ट्र सरकार को लोकेशन शिफ्ट करने के लिए मजबूर कर दिया है। तथ्य यह है कि भूमि अधिग्रहण का मुद्दा अनेक विदेशी निवेशों को रोके हुए है। भूमि अधिग्रहण की फ्रक्रिया को सरल बनाना व उसका सही फ्रबंधन करना भारत की आर्थिक योजना का हिस्सा होना चाहिए। जितनी मजबूत भारत की अर्थव्यवस्था होगी उतना ही अधिक अन्य देशों का स्टेक उसमें होगा और उतना ही ज्यादा विदेशी नेता भारत की चिंताओं को संज्ञान में लेंगे।

बहरहाल एमबीएस की भारत यात्रा का सबसे सकारात्मक पहलू यह रहा कि रियाद ने न सिर्प नई दिल्ली से आतंकवाद से लड़ने में सहयोग करने का वादा किया बल्कि भारत के साथ इंटेलिजेंस शेयर करने पर भी सहमति व्यक्त की और उन देशों (पढ़े पाकिस्तान) पर भी दबाव डालने की आवश्यकता पर बल दिया जो आतंकवाद का समर्थन कर रहे हैं ताकि आतंक इंफ्रास्ट्रक्चर को नष्ट किया जाए और आतंकी गुटों को सजा दी जाए ताकि युवा हथियार उ"ाने के लिए फ्रेरित न हो सकें। इससे भी महत्वपूर्ण यह रहा कि सऊदी अरब भारत की इस बात से सहमत है कि आतंकवादी संयुक्त राष्ट्र फ्रतिबंधों के अधीन आने चाहिए।

दूसरे शब्दों में भारत ने सऊदी अरब को अपने इस फ्रयास के समर्थन में कर लिया है कि जैश का सरगना मसूद अजहर, जिसे चीन अपने वीटो अधिकार से अब तक बचाता रहा है, संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित किया जाए। भारत की यह सफलता इस लिहाज से अधिक महत्वपूर्ण है कि इससे एक दिन पहले ही सऊदी अरब व पाकिस्तान ने अपने संयुक्त वक्तव्य में कहा था कि आतंकी सूची का `राजनीतिकरण' नहीं होना चाहिए। गौरतलब है कि सऊदी अरब के विदेश राज्य मंत्री अदल अल-जुबैर ने एक भारतीय चैनल से स्पष्ट किया था कि सऊदी-पाकिस्तान के संयुक्त वक्तव्य को जैश सरगना मसूद अजहर के संदर्भ में न देखा जाए। अल-जुबैर के अनुसार सूचीबद्ध करने में हमारी नीति एकदम साफ है, अगर कोई आतंकवाद में लिप्त है, अगर कोई ऐसे आतंकी संग"न से जुड़ा हुआ है जो लोगों की हत्याओं के लिए जिम्मेदार है और आप उसे गिरफ्तार न कर सकें, तो उसे सूचीबद्ध करना होगा ताकि वह दुनिया में खुला न घूम सके।

यह भी दिलचस्प है कि भारत की यात्रा के बाद एमबीएस अपने एशियाई दौरे के आखिरी चरण में चीन के लिए रवाना हुए। पुलवामा की घटना के तुरंत बाद जो दक्षिण एशिया में तनाव के बादल छाये हैं, उनकी पृष्"भूमि में एमबीएस का पाकिस्तान, भारत व चीन दौरा मात्र संयोग नहीं हो सकता। एमबीएस के दौरे के बाद से ही पाकिस्तान दूसरे सुर में बोलने लगा है, भारत ने भी अपना अंतर्राष्ट्रीय फोकस पाकिस्तान से अधिक आतंकवाद पर किया है, फिर अमेरिका का पाकिस्तान व चीन से यह कहना कि वह आतंकियों को शरण व सहयोग न दें, जिससे यही फ्रतीत होता है कि एमबीएस की कवायद आशंकित परमाणु युद्ध को टालने की थी।

बहरहाल एमबीएस की यात्रा से भारत व सऊदी अरब के बीच सुरक्षा, व्यापार व निवेश के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है। सऊदी अरब उन आ" देशों में से एक है जिनसे भारत स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप का इच्छुक है, इसलिए फ्रधानमंत्री मोदी स्वयं एमबीएस का स्वागत करने के लिए हवाई अजs पर गए और उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि (सऊदी अरब से) ऊर्जा संबंधों को स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप में बदला जाए।

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