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भारतीय लोकतंत्र की विडंबना

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:27 April 2019 3:18 PM GMT
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इन्दर सिंह नामधारी

वर्ष 2019 के संसदीय चुनावों का सफर आधे से अधिक पूरा हो चुका है तथा 23 मई 2019 को चुनाव परिणाम भी सामने आ जाएंगे। इस बार के चुनावों में लेकिन विभिन्न दलों द्वारा किए जा रहे पचार में भारी असमानता देखने को मिल रही है। संविधान के अनुसार सभी दलों को विहित खर्चे के अंदर चुनावी पचार करने की व्यवस्था तो है लेकिन वर्तमान में हो रहे चुनावों में किया जा रहा पचार लगभग एकतरफा हो गया है। यह सही है कि सत्ताधारी दल को परंपरा के अनुसार चुनावी पचार में कुछ अधिक सुविधाएं देने का पावधान है। उदाहरण स्वरूप पधानमंत्री की सुरक्षा एवं अन्य कई मुद्दों के कारण उनको सरकारी वायुयान से भ्रमण करने, "हरने तथा सुरक्षित सभा स्थल बनाने की सुविधा पाप्त है।

लेकिन विगत सात दशकों से पत्येक पधानमंत्री उन सुविधाओं का उपयोग मर्यादा के साथ करते रहे हैं। इस बार के हो रहे चुनावों में पचार में काफी असमानता देखने को मिल रही है क्योंकि सरकारी पदाधिकारी जहां अन्य दलों के पत्याशियों के पोस्टर एवं होर्डिंग लगाने के लिए भी सरकारी आदेश का होना अनिवार्य मानते हैं वहीं पर सत्ताधारी दल जिस स्थान पर एवं जिस घर पर अपने बड़े-बड़े होर्डिंग लगाना चाहता है इसके लिए उसे पूरी छूट दे दी गई है। चुनावी खर्च का यदि आंकलन किया जाए तो विपक्षी दलों एवं सरकारी पक्ष द्वारा किए जा रहे खर्चों में जमीन-आसमान का फर्प है।

इन सब मुद्दों को यदि छोड़ भी दिया जाए तो अखबारों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिए जा रहे समाचारों में काफी असमानता देखने को मिल रही है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो सत्ताधारी दल एवं पधानमंत्री जी के यशोगाण के सिवाय और किसी दल के बारे में कुछ बोलना भी उचित नहीं समझता।

वैसे तो माननीय पधानमंत्री जी ने विगत पांच वर्षों में कोई पेस कांफ्रेंस करके पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया लेकिन वे `मन की बात' एवं गैर राजनीतिक साक्षात्कार करने से पीछे नहीं रहे। आधे संसदीय चुनाव हो जाने के बाद पधानमंत्री जी ने, सिनेमा के कलाकार अक्षय कुमार के साथ एक गैर राजनीतिक साक्षात्कार दिया है। इसी तरह का गैर राजनीतिक साक्षात्कार उन्होंने एक बार विदेश में भी दिया था। लोकतांत्रिक राजनीति के जानकार यह समझ नहीं पा रहे हैं कि इस तरह के गैर राजनीतिक साक्षात्कार देने के पीछे आखिर उनकी मानसिकता क्या है? पधानमंत्री का कार्यक्रम होने के नाते टीवी चैनलों के सभी चैनल उनके वार्तालाप के एक-एक शब्द को पसारित करना अपना धर्म समझते हैं क्योंकि यदि कोई चैनल इससे परहेज करता है तो वह सरकार का कोपभाजन बन जाता है। पधानमंत्री के कार्यक्रम भी इस तरह से तय किए जाते हैं कि दूसरे दलों के नेताओं को टीवी चैनलों पर समय ही नहीं मिल सके।

वर्तमान सप्ताह में विगत चार दिनों तक टीवी के सभी चैनल पधानमंत्री जी के पचार में इस कदर व्यस्त रहे कि दूसरे दल के किसी नेता का चेहरा देखना भी नसीब नहीं हो सका।

एक दिन पधानमंत्री जी ने गैर राजनीतिक साक्षात्कार दिया तो दिनभर टीवी के चैनल अक्षय कुमार के साथ हुई भेंट वार्ता का वर्णन करते-करते इस कदर थक गए कि दूसरे दलों के नेताओं के वक्तव्य भी पसारित नहीं हो सके। गैर राजनीतिक साक्षात्कार करने के बाद पधानमंत्री जी वाराणसी में 26 अपैल को नामांकण (नॉमिनेशन) करने के लिए एक दिन पहले ही वाराणसी पहुंच गए तथा उस शहर की सड़कों पर लगभग 8 किलोमीटर लंबा रोड शो कर दिया। रोड शो के बाद वे गंगा आरती के लिए गंगा तट पर पहुंच गए और देर रात तक उस कार्यक्रम को टीवी के चैनल पसारित करते रहे। इस पकार दो दिनों तक टीवी चैनलों पर मात्र पधानमंत्री जी का चेहरा ही दिखता रहा क्योंकि अन्य दलों के नेताओं को समय देने की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी।

26 अपैल का पूरा दिन मीडिया द्वारा पधानमंत्री जी के नामांकण के लिए समर्पित कर दिया गया क्योंकि एनडीए ग"बंधन के नेतागण एवं केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार के मंत्रिगण उस कार्यक्रम में उपस्थित थे। लगभग चार दिनों तक मात्र पधानमंत्री जी के ही कार्यक्रमों को जनता देखने के लिए बाध्य हो गई क्योंकि दूसरे नेताओं को सुनने का कोई मौका ही नहीं दिया गया।

चुनाव पहले भी होते रहे हैं लेकिन अपने पांच दशक के राजनीतिक जीवन में मैंने कभी नहीं देखा कि किसी नेता के भाषण को तब तक पसारित किया जाए जब तक वह अपने भाषण को समाप्त नहीं कर दे। टीवी चैनलों की परंपरा रही है कि वे वीआईपी नेताओं के भाषण के कुछ अंश पसारित करके अधिक से अधिक नेताओं का समावेश करने की कोशिश किया करते हैं।

डॉ. मनमोहन सिंह के समय में भी उनके भाषणों का कुछ अंश ही पसारित किया जाता था। आज के दिन पुरानी परंपराएं टूट चुकी हैं तथा पधानमंत्री जी के भाषण को अक्षरशः पसारित करने की परंपरा बन गई है। यही कारण है कि मैंने आज के दिन हो रहे संसदीय चुनावों को भारतीय लोकतंत्र की विडंबना का शीर्षक दिया है क्योंंिक एक आम आदमी भी पचार में हो रही इस कदर की असमानता को गले के नीचे नहीं उतार पा रहा। संसदीय चुनावों का यह पहला अवसर है जब सत्ता में बै"s किसी पधानमंत्री के नाम से बिना सरकारी आदेश एवं अनुज्ञप्ति के एक टीवी चैनल (नमो टीवी) को शुरू कर दिया गया हो जहां से केवल पधानमंत्री जी के ही उद्बोधन दिनरात पसारित किए जा रहे हों। जब विहित स्थान पर होर्डिंग या बैनर न लगाने पर पत्याशियों पर पाथमिकी दर्ज कर दी जाती है तो क्या कारण है कि एक बिना लाइसेंस का टीवी चैनल अहर्निश पचार में व्यस्त है लेकिन चुनाव आयोग की दृष्टि उस चैनल पर जाती ही नहीं।

भारत में लोकतंत्र को यदि पल्लवित और पुष्पित होना है तो देश की चुनावी पक्रिया सभी दलों के लिए समान रूप से लागू होनी चाहिए। संवेदनशील नागरिकों को यह सुनकर भी मानसिक कष्ट हुआ है कि पधानमंत्री जी के एक हेलीकॉप्टर की तलाशी लेने के चलते कर्नाटक के एक वरिष्ठ आईएएस अफसर मोहम्मद मोहसिन को निलंबित कर दिया गया जबकि मुख्यमंत्रियों के वाहनों की अकसर तलाशी होती ही रहती है।

आश्चर्य तो तब हुआ जब मोहम्मद मोहसिन ने खुलासा किया कि वह तो तलाशी के समय घटनास्थल पर उपस्थित ही नहीं था फिर उसे किस अपराध की सजा दी गई? पदाधिकारियों से संबंधित संस्था कैट ने यद्यपि मोहम्मद मोहसिन के निलंबन पर रोक लगा दी है लेकिन यह यक्ष प्रश्न तो उ"ता ही है कि आखिर एक इतने वरीय पदाधिकारी को बलि का बकरा क्यों बनाया गया?

बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जिन पर आज गंभीर मंथन करने की आवश्यकता है क्योंकि यदि लोकतंत्र को हमने किसी उन्माद के साथ हांकना शुरू कर दिया तो फिर देश में लोकतंत्र के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगना अनिवार्य है।

चुनाव आयोग यदि दंतहीन बनकर मूक दर्शक बना रहेगा तो भारत के लोकतंत्र की गरिमा दिनोंदिन घटती जाएगी। शायद यही कारण है कि लोकतंत्र के समर्थक पूर्व में चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त रहे `शेषन' को अब याद करने लगे हैं जिनकी कड़ाई से राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधर सहम जाया करते थे।

(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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