Home » द्रष्टीकोण » ऊपर वाले की नहीं, सबसे ऊपर वाले की चिंता करें

ऊपर वाले की नहीं, सबसे ऊपर वाले की चिंता करें

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:27 April 2019 3:18 PM GMT
Share Post

नब्बे के दशक में शासकीय सेवा के दौरान सफाई कर्मचारी को कई मर्तबा अनुनय, आग्रह, प्यार, पुचकार, पलोभन, आदेश, क्रोध, धमकी आदि सभी तरीकों से समझाने का यत्न किया कि मेंरे ऑफिस पहुंचने से पहले मेरे कमरे, टेबल, चेयर आदि की सफाई हो जाए, मेरे आने के बाद हर्गिज नहीं। किंतु उसने कुछ और ही "ान रखी थी; एक नहीं सुनी, हालांकि मैं तीन अनुभागों का इंचार्ज था और वह दिहाड़ी वाला। जब वह ताड़ जाता कि मेरी निगाहें उसकी ओर हैं तो वह आदतन ढिलाई छोड़कर काम ज्यादा ही मुस्तैदी, सफाई और बारीकी से करता। उसके दिखावटी मिजाज और ढी"पन पर पहले मुझे गुस्सा आता था, फिर भारी कोफ्त होने लगी। जैसे-तैसे उस शख्स से पिंड छूटा।

दूसरे न देखें तो कुछ भी उलट कर डालने के संदर्भ में दशकों पुरानी उस राजा की कहानी बरबस याद आती है जो एक नवनिर्मित तालाब को दूध से लबालब भरवाना चाहता था। पजा में ऐलान करा दिया गया, कल सुबह पत्येक घर से एक लोटा दूध उस खाली तालाब में डाला जाए। कार्य होने के बाद राजा ने देखा, समूचा तालाब पानी से भरा था, दूध का नामोंनिशान नहीं। हर किसी ने सोचा था, वह तड़के चुपके से दूध के बदले पानी डाल दे, किसी को क्या पता चलेगा। दिखावटी संस्कृति के पक्षधर का एक नमूना रिश्तेदारी के एक सज्जन का है। उनकी मेजबानी यों होतीöमेहमान खाना शुरू करने को होते तो घी का डिब्बा लिए इंतजार में रहते कि कब मेहमान थाली की ओर मुखातिब हों और वे इस डायलॉग के साथ, `आपके लिए खास देसी घी पेश है' भरा चम्मच दाल में उढेलें। उनकी अटूट आस्था थी कि सामने वाले को दिखाए-जताए बगैर नेकी करना बेवकूफी है। सभ्यता का तकाजा है कि सभी भले काम सामने वाले को दिखा कर किए जाने हैं। इस मुद्रा में फोटो हो जाए तो और अच्छा, ताकि सनद रहे। दाल में पहले से "ाrक-"ाक घी डाल देने जैसी फितरत वाले मेजबानों को वे मूर्ख कहते थे।

बगैर दूसरों को जताए, स्वेच्छा से चुपचाप कार्य करते रहने वालों की जमात तेजी से लुप्त हो रही है। दूसरे के लिए चाहे रत्तीभर काम करें, ऐलान फुल वॉल्यूम होगा। एक रिवाज-सा बन गया लगता है, मास्टर के आते ही छात्रों की आंखें किताबों पर गड़ जानी हैं, ऑफिसों में बांस के पकट होते ही अधीनस्थ कर्मी कागज, फाइलें खोलकर सक्रिय, व्यस्त नजर आएंगे। सबसे बड़े अधिकारी के पधारने का कार्यक्रम होगा तो समूचे ऑफिस में एडवांस में ऐलान कर देंगे, फलां दिन तैयार रहना, कर्मचारियों को छुट्टी नहीं मिलेगी, पहले ही स्वीकृत हो गई हो तो रद्द हो सकती है। मंत्री का आगमन हो तो बरसों-दशकों से दरकती मैली दर्राती दीवारें और लटकती खिड़कियां दुरस्त हो कर लिप-पुत जाएंगी। आनन-फानन में लाखों-करोड़ों खर्च कर दिए जाएंगे। खर्च पर महाकंजूसी बरतते लेखा परीक्षा अधिकारी दिल खोलकर पैसा रिलीज कर देंगे। कम वक्त में काम कराने वाले "sकेदारों और काम सौंपने वाले अधिकारियों, दोनों की बल्ले-बल्ले।

पिछले दिनों बहुत से शिक्षकों की ड्यूटी सीबीएससी बोर्ड की कॉपियां जांचने में लगाई गई। बोर्ड की इतनी सख्ती कि कांपी जांचकर्ता दल का कोई भी मेडिकल या अन्य आधार पर बहानेबाजी की जुर्रत नहीं कर सकता थाöबीमार हों तो सीधे बोर्ड कार्यालय स्वयं जा कर उन्हें संतुष्ट करें। नतीजन परीक्षकों ने सारे काम नियत समय में निबटाए। बोर्ड का डंडा काम कर गया।

माहौल कुछ ऐसा बन गया है, डंडे बगैर हम बाज नहीं आना चाहते। बल्कि अनुशासन तोड़ने का डंका बजाएंगे। पुलिसकर्मी बाजू में खड़ा होगा तभी बैंक या रेल आरक्षण काउंटर में लाइन से खड़े होंगे। लाल बत्ती की अनुपालना तभी होगी जब इर्दगिर्द वर्दीधारी हों; नियम पर तभी चलना है जब दंड की पूरी संभावना हो! नहीं तो गाड़ी फर्राटे से दौड़ाई जाएगी। डंडे के अलावा दूसरी भाशा हमारे सर के ऊपर से निकल जाती लगती है। सरकारें और अन्य बड़ी एजेंसियां भी यह समझती हैं। दिल्ली की सड़कों में कुछ माह पूर्व तक टंगे बड़े-बड़े बोर्ड आपने देखे होंगे, `ऊपर वाला सब देख रहा है'।

मनोयोग से, या बरई नाम?öकोई भी कार्य आप दूसरों की संतुष्टि के लिए करते हैं, इस सोच से कि अन्यथा `लोग क्या कहेंगे' या स्वेच्छा और विवेक से। कोई देख रहा है इसलिए या इसलिए कि आपको आदतन कार्य में आनंद आता है। अलग-अलग तासीर होती है दोनों तरीकों से सम्पन्न कार्य की। वैसे ही जैसे धुआं तो धुआं है, चाहे मंदिर से आ रहा हो या श्मशान घाट से।

जिंदगी में बेहतरीन नतीजे तब मिलते हैं जब चित्त लगाकर कार्य किया जाता है, रस्म अदायगी के तौर पर नहीं। कहते हैं खाना तब जानदार बनता है जब पकाने वाला उसमें अपनी आत्मा का एक अंश डालता है। जिंदगी के असल लुत्फ उनके लिए सुरक्षित हैं जो अन्यों की रजामंदी या नाराजगी की परवाह किए बिना, कार्यरत हैं और इससे तुष्टि ग्रहण करते हैं। वाहवाही लूटने या दूसरों को गिराने के किए कार्य की परिणति सुखदाई नहीं हो सकती! डंडा पकड़े कोई खड़ा है, यह दूर की बात हुई, कार्य का सुफल तभी मिलेगा जब कर्ता अपने कार्य में इतना तल्लीन होगा कि उसे पता ही नहीं चलेगा होगा कि देखने वाला कोई है। स्वतः, स्वभाव से सम्पन्न कार्य का सुफल दैविक आनंद देता है। चूंकि विरले ही पूर्ण मनोयोग से कार्य करते हैं, अतः अधिकांश व्यक्ति इस आनंद से जीवनपर्यंत वंचित रहते हैं। अन्यथा बस जैसे तैसे घसीटने वाली बात होगी। याद रहे, सबसे ऊपर वाला तो आपके जेहन की भी पढ़ लेता है, उससे कुछ नहीं छिप सकता। इसीलिए कहा गया, दुनिया की सबसे बड़ी अदालत हमारे भीतर होती है, इसे सबूत नहीं चाहिए होते। आपने जो भी कर्म करते हैं, उसी अनुसार आपको सबसे ऊपर वाला फल देगा। बाहरी दुनिया दुष्कर्म के लिए आपको निर्दोष करार दे किंतु अपने जमीर और सबसे ऊपर वाले से नहीं बचेंगे।

मनोयोग से कार्य करने का अर्थ है ंआप सबसे ऊपर वाले यानि परमशक्ति के विधान की अनुपालना। ऐसे में लोग क्या कहेंगे, सोचेंगे, यह भय आपके दिलोदिमाग से जाता रहता है और आप अदम्य गर्मजोशी से जीते हैं चूंकि आप विश्वस्त रहते हैं आप परमशक्ति के पतिनिधि बतौर कार्य कर रहे हैं। जिंदगी का सबसे बड़ा सच यह है कि क"िनाई या दुविधा के क्षणों में आपके परमशक्ति आपके साथ खड़ी हो जाती है। और फिर आपको कोई परास्त नहीं कर सकेगा।

Share it
Top