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हिमालय में हिम मानव

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:3 May 2019 3:38 PM GMT
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अमन सिंह

येति या हिममानव एक बार फिर सुर्खियों में है। भारतीय सेना ने दावा किया है कि उसकी पर्वतारोही टीम ने नेपाल में मकालू बेस कैंप के पास येति के पैरों के निशान देखे हैं। सेना ने ट्विटर हैंडल पर इसकी कुछ तस्वीरें भी जारी की हैं। हिमालय की गोद में हिममानव या येति देखने का ये कोई पहला दावा नहीं है। पिछली एक सदी में कई बार ऐसे दावे किए गए हैं। येति या हिममानव का किस्सा उससे भी पुराना है। वैसे आप ने येति के पांवों के निशान देखे हों या नहीं आप हिममानव की कल्पना बड़ी आसानी से कर सकते हैं। उसे देखें तो पहचान भी सकते हैं। बहुत सी फिल्मों टीवी सिरीज और वीडियो गेम में येति के किरदार देखने को मिले हैं। इनमें डॉक्टर व्हू टिनटिन और मॉन्स्टर इन्क जैसी फिल्में शामिल हैं। किस्से-किंवदंतियों का किरदार येति एक विशालकाय झबरे बालों वाला जीव माना जाता है जो कुछ इंसानों और कुछ विशालकाय बंदरों से मिलता है। इसके बड़े-बड़े पैर होने से लेकर बड़े और डरावने दांत होने तक की कल्पना की गई है। माना जाता है कि येति अक्सर हिमालय के बर्फ से ढंके इलाकों में अकेले घूमता है। ये इंसान के विकास के हिंसक दौर का प्रतीक है। पर सवाल ये है कि अक्सर जिस येति के सबूत होने के दावे किए जाते हैं वो क्या हकीकत में होता भी है? या ये स़िर्फ कोरी कल्पना भर है?

पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिक तजुर्बों के ज़रिए येति की हकीकत को सही साबित करने से लेकर झुठलाने तक की कोशिशें हुई है। पर जिसका यकीन जैसा हो उस हिसाब से वो ऐसे रिसर्च पर भरोसा करता है। वैसे वैज्ञानिकों का मानना है कि येति या हिममानव महज एक खयाल है। हिमालय के येति की ही तरह पश्चिमी देशों में बिग़फूट या सैस्क्वैच जैसे विशालकाय बंदर-मानव के किस्से मशहूर हैं। येति हिमालय की लोककथाओं की उपज है। ये पहाड़ी किस्सों का बहुत पुराना किरदार है। खास तौर से नेपाल के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले शेरपा के जीवन का तो ये अटूट हिस्सा है। नेपाल के शिवा ढकाल ने येति के बारे में 12 लोककथाओं को अपनी किताब फोक टेल्स ऑफ शेरपा ऐंड येति में इकट्ठा किया है। इन सभी कहानियों में येति को ख़तरा बताया गया है। मसलन येति का विनाश नाम के ]िकस्से में एक शेरपा कहर बरपाने वाले येति के झुंड से बदला लेता है। इस किस्से में शेरपा शराब पीकर आपस में झगड़ते हैं। ऐसा कर के वो येति के झुंड को भी अपनी ऩकल करने के लिए उकसाते हैं। कहानी के मुताबिक इंसानों की नकल कर के येति भी शराब पीकर आपस में लड़ने लगते हैं। लेकिन जल्द ही उन्हें ये साज़िश समझ में आ जाती है तो येति लड़ना बंद कर के हिमालय की ऊंची चोटियों में जाकर छिप जाते हैं ताकि एक दिन इंसानों से बदला ले सकें। शेरपाओं में लोकप्रिय एक और कहानी में येति या हिममानव एक लड़की से बलात्कार करता है। जिसके बाद उस लड़की की सेहत बिगड़ जाती है। एक और लोककथा में येति को सूरज चढ़ने के साथ ही और विशाल व बलवान होता बताया गया है। जबकि उसे देखने वाले इंसान अपनी त़ाकत खो बैठते हैं और बेहोश हो जाते हैं। इन पहाड़ी किस्सों से स्थानीय लोग नैतिकता का सबक पढ़ते हैं। जंगली जानवरों से आने वाले खतरे के लिए तैयार होते हैं। शिवा ढकाल कहते हैं कि येति के ]िकस्से लोगों को चेताने के लिए गढ़े गए। उन्हें नैतिकता के रास्ते पर चलाने के ज़रिए के तौर पर इस्तेमाल किए गए। ताकि बच्चे अपने परिजनों से ज्यादा दूर अनजान जगहों की तऱफ न जाएं और सुरक्षित रहें। शिवा ढकाल कहते हैं कि कुछ लोगों का मानना है कि येति महज डराने के लिए गढ़ा गया किरदार है जो पहाड़ों पर रहने वाले लोगों को हर मुश्किल का निडर होकर सामना करने के लिए तैयार करता है। लेकिन जब पश्चिमी देशों के लोग हिमालय की सैर को जाने लगे तो ये लोककथाओं का किरदार येति और भी बड़ा होता गया। और सनसनीख़ेज़ हो गया।

ब्रिटेन के राजनेता और अन्वेषक चार्ल्स होवार्ड-बरी कुछ लोगों को लेकर माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए गए। रास्ते में उन्हें कुछ विशाल पैरों के निशान दिखे। उन्हें बताया गया कि ये मेतोह-कांगमी यानी इंसान और भालू जैसे किसी जीव के पांवों के निशान हैं। जब ये दल लौटा तो एक पत्रकार ने उनसे बातचीत की उसका नाम हेनरी न्यूमैन था। उसने मेतोह शब्द का अनुवाद गंदा और फिर घटिया के तौर पर किया। इसी गलत रिपोर्टिंग से पश्चिमी देशों में येति या हिममानव का किरदार बेहद लोकप्रिय हो गया। 1950 का दशक आते-आते बहुत से पश्चिमी सैलानी हिमालय में येति को देखने के लिए आने लगे थे। हॉलीवुड स्टार जेम्स स्टीवर्ट ने तो येति की एक उंगली पाने का भी दावा कर दिया। हालांकि 2011 में डीएनए टेस्ट में वो उंगली इंसानी निकली। उसके बाद से हम कई बार येति के पैरों के निशान अजीब सी तस्वीरें और यहां तक कि येति देखने वालों के चश्मदीदों के दावों से भी दो-चार हो चुके हैं। कुछ लोगों ने तो येति की खोपड़ी तक पाने का दावा किया है। किसी को येति के बाल मिले तो किसी को हड्डियों के टुकड़े लेकिन जांच में ये सभी किसी और जीव के अंग पाए गए। कभी भालू तो कभी हिरण या बंदर के। किसी ठोस सबूत के बगैर भी येति या हिममानव का किस्सा बार-बार सुनाया जाता रहा है। येति आज ऐसा किरदार बन गया है जिसके धरती पर होने की संभावना न के बराबर है पर लोगों का यकीन है कि बढ़ता ही जा रहा है। अब भारतीय सेना ने कुछ तस्वीरों के हवाले से येति के पांव के निशान होने का दावा किया है। पर ब्रिटिश पर्वतारोही रीनहोल्ड मेसनर को येति देखने का सबसे बड़ा दावेदार कहा जाता है। मेसनर ने कई बार येति देखने का दावा किया है। मेसनर का कहना है कि उन्होंने पहली बार 1980 के दशक में हिमालय की गोद में येति को देखा था। उसके बाद से वो दर्जनों बार हिमालय की ब़र्फीली चोटियों को तलाशने की कोशिश कर सकते हैं। मेसनर का कहना है कि येति और कोई जानवर नहीं असल में एक भालू है। उनके मुताबिक असली भालू और शेरपाओं के किस्सों के काल्पनिक किरदार मिलकर ही येति की किंवदंति तैयार हुई है।

मेसनर का कहना है कि येति के पैरों के जो भी निशान दिखे हैं असल में वो भालू के पैर के निशान हैं। येति एक हकीकत है। वो कोई कल्पना नहीं है। मेसनर का मानना है कि येति को बंदर और इंसान के बीच का कोई जीव समझना नादानी है। मेसनर कहते हैं कि लोग पागलपन से भरी कहानियां पसंद करते हैं। वो हकीकत का सामना नहीं करना चाहते। उन्हें लगता है कि निएंडरथल मानव की तरह ही येति भी मानव का कोई कुदरती रिश्तेदार है। 2014 में मेसनर के दावे को कुछ वैज्ञानिकों ने रिसर्च की बुनियाद पर सही पाया। ऑक्सफोड्र यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ब्रायन साइक्स ने येति के अंगों के कुछ नमूनों की पड़ताल करने की ठानी।

ब्रायन और उनकी टीम ने बालों हड्डियों के डीएनए की पड़ताल कर के उसकी तुलना दूसरे जीवों से की। ब्रायन साइक्स और उनकी टीम ने पाया कि लद्दाख और भूटान से मिले दो सैंपल आज से 40 हजार साल पहले पाये जाने वाले ध्रुवीय भालू से मिलते हैं.इससे एक नयी थ्योरी का जन्म हुआ। माना गया कि हिमालय में भालुओं की ऐसी नस्ल रहती है जो ध्रुवीय भालू से मिलती है जिसके बारे में इंसानों को अब तक पता नहीं लेकिन जल्द ही इस दावे की हवा निकल गई। डेनमार्क की कोपेनहेगेन यूनिवर्सिटी के रॉस बार्नेट ने कहा कि हिमालय में ध्रुवीय भालुओं के होने की बात सोचना पागलपन है।

ऑक्स़फोर्ड यूनिवर्सिटी के ही सीरीड्वेन एडवर्ड्स के साथ मिलकर बार्नेट ने ब्रायन साइक्स की टीम के इकट्ठा किए गए सबूतों की फिर से पड़ताल की। बार्नेट ने पाया कि जो डीएनए ब्रायन की टीम ने जुटाया था। वो 40 हजार साल पहले पाये जाने वाले ध्रुवीय भालू से बिल्कुल नहीं मिलता तो अब बार्नेट और उनकी टीम इस नतीजे पर पहुंची कि जिस डीएनए सैंपल की पड़ताल ब्रायन साइक्स की टीम ने की थी वो असल में टूटा-फूटा था। बाल से डीएनए के नमूने मिल जाते हैं। पर ये बिगड़ भी सकता है। बार्नेट के रिसर्च पर अमरीका के स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट के एलिसर गुटिएरेज और कैंसस यूनिवर्सिटी के रोनाल्ड पाइन की रिसर्च से भी मुहर लगी है। इन दोनों वैज्ञानिकों ने डीएनए के नमूनों की जांच के बाद कहा कि ये असल में पहाड़ों में पाये जाने वाले भूरे भालू के डीएनए हैं।

ब्रायन साइक्स और उनकी टीम ने अपनी ग़लती मानते हुए एक बयान जारी किया था। लेकिन उन्होंने दोहराया कि हिमालय में कोई येति या हिममानव नहीं रहता लेकिन इतने वैज्ञानिक तजुर्बों के बाद भी येति या हिममानव के ]िकस्से पर लोगों का भरोसा ज़रा भी कम नहीं हुआ है। लोगों को लगता है ये कि इंसान की कोई नस्ल है जो छुप कर हिमालय की ग़ुफाओं में रहती है। इंसानों की कुछ नस्लों के हाल में मिले सबूत इस य़कीन पर मुहर लगाते हैं। रूस के साइबेरिया में 2008 में डेनिसोवान्स नाम की मानव प्रजाति के सबूत मिले थे। माना जाता है कि इंसानों की ये नस्ल हज़ारों साल तक इस इल़ाके में आबाद थी। हालांकि वो 40 हज़ार साल पहले ख़त्म हो गए। इसी तरह छोटे क़द के मानव होमो फ्लोरेंसिएनसिस इंडोनेशिया में आज से महज़ 12 हज़ार साल पहले तक रहा करते थे। इसका मतलब ये निकलता है कि दुनिया के किसी कोने में इंसानों की एक नस्ल होने की संभावना को पूरी तरह से ख़ारिज नहीं किया जा सकता। 2004 में विज्ञान पत्रिका नेचर में हेनरी गी ने लिखा था कि इंडोनेशिया में होमो फ्लोरिएंसिस के इतने लंबे वक़्त तक आबाद रहने का एक ही मतलब निकलता है। वो ये कि दुनिया के कुछ हिस्सों में येति जैसे मानव और बंदर के बीच की कड़ी वाले जीव हो सकते हैं पर दिक़्क़त ये है कि अब तक इसके कोई सबूत नहीं मिले। अगर हमारी नस्ल के कुछ जीव कहीं रहते हैं, तो वो किसी को तो दिखते.येति या इंसान जैसे बड़े जीव का लंबे वक़्त तक छुप कर रहना मुमकिन नहीं। बोनबोस या ओरांगउटान की कम आबादी भी दिखाई तो देती ही है। अमरीका के नॉक्सविल स्थित टेनेसी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले व्लादिमिर डाइनेट्स कहते हैं किबहिमालय में कई इल़ाके ऐसे हैं जहां येति जैसे जीव छुप कर रह सकते हैं। लेकिन ऐसे ठिकानों के इर्द-गिर्द इंसान रहते हैं उनकी नज़र से ये जीव ओझल नहीं रह सकते। ऐसे जीवों को खाने-पीने के लिए तो बाहर निकलना ही होगा। वो छुप नहीं सकते. हिमालय में इंसान जैसे जीव के रहने की राह में क़ुदरत भी बड़ी चुनौती है। इतनी ठंड में इंसानों का लंबे वक़्त तक बसर करना मुमकिन नहीं.जापान के मकाक बंदर सबसे ज़्यादा ठंड झेल पाने वाले प्राइमेट्स माने जाते हैं। फिर ब़र्फीले पहाड़ों में छुपकर रहने वालों को भी खाने की तलाश में तो मैदानों में उतरना ही होगा। लेकिन येति का ]िकस्सा यहां भी ख़त्म नहीं होता। 2011 में रूस के पर्वतारोहियों के एक दल ने येति के होने के पक्के सबूत जुटाने का दावा किया था लेकिन व्लादिमिर डाइनेट्स कहते हैं कि ये तो स़िर्फ प्रचार का स्टंट था। रूस के पास येति के कोई सबूत नहीं थे। डाइनेट्स कहते हैं कि क़रीब दो दशकों तक लोग येति की तलाश में हिमालय की सैर को आते रहे। येति के नाम पर ताजिकिस्तान और किर्गीज़िस्तान के गांवों में एक शख़्स को जानकार घोषित कर दिया जाता है। वो आने वाले सैलानियों को येति के गढ़े हुए ]िकस्से सुनाकर दूर पहाड़ियों में ले जाता है। ऐसा करने वाले ख़ूब पैसे कमाते हैं। कुल मिलाकर कहें तो येति या हिममानव के होने के पक्के सबूत अब तक नहीं मिले हैं। लेकिन बहुत से लोगों को लगता है कि हिमालय की गोद में येति छुपा हुआ है। हो सकता है कि लोगों ने भालुओं को देख कर ही येति की कल्पना कर ली हो। बार्नेट मानते हैं कि लोगों ने विशाल भालुओं को देखकर येति की कल्पना की होगी। जब इसमें इंसान के ]िकस्से सुनने की दिलचस्पी जुड़ी तो हिममानव के ]िकस्से को और भी बल मिला। बार्नेट कहते हैं कि लोग येति की तलाश करना नहीं छोड़ेंगे। भले ही कोई सबूत मिलें या नहीं। जब तक लोग परी कथाओं और लोक कहानियों में य़कीन रखेंगे तब तक येति ज़िंदा ही रहेगा।

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