गठबंधन की मजबूरियां
इन्दर सिंह नामधारी
भारत में हो रहे संसदीय चुनावों के दौरान एनडीए एवं यूपीए ग"बंधन दोनों ही जबरदस्त मजबूरियों के दौर से गुजर रहे हैं। एनडीए के मुख्य घटक भाजपा के नेता प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जहां अपने भाषणों में यूपीए एवं सपा-बसपा के ग"बंधन को महामिलावटी ग"बंधन कहकर उनका मजाक उड़ा रहे हैं वहीं विपक्ष भी एनडीए की विरोधाभासी गतिविधियों की बखियां उधेड़ रहा है। मोदी जी भूल जाते हैं कि उनका ग"बंधन एनडीए किन-किन विसंगतियों से गुजर रहा है तथा कभी-कभी तो उसकी स्थिति हास्यास्पद भी बन जाती है। संसदीय चुनावों के चार चक्र पूरे हो चुके हैं तथा शेष बचे तीन चक्रों में मतदाताओं को रिझाने के लिए सत्ताधारी दल राष्ट्रवाद की दुहाई देकर जीतने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। संयोग से यूएनओ की सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तान के आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया है। यह ज्ञातव्य है कि वर्ष 2009 से ही मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने का प्रयास जारी था लेकिन चीन की अड़चन के चलते उपरोक्त प्रस्ताव को पारित नहीं किया जा पा रहा था। सुरक्षा परिषद में उपरोक्त प्रस्ताव की संसदीय चुनावों के बीच ही मंजूरी मिल जाने के बाद भाजपा इस मुद्दे का भरपूर चुनावी लाभ उ"ाने की कोशिश कर रही है।
सुरक्षा परिषद के इस निर्णय के बाद मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने का श्रेय
श्री नरेंद्र मोदी लेने का यथासंभव प्रयास कर रहे हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सत्ताधारी दल को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के रास्ते पर चलना ही पड़ेगा। प्रधानमंत्री जी ने विगत दिनों दरभंगा में अपने सार्वजनिक भाषण में जनता को 'भारत माता की जय' एवं 'वंदे मातरम' के उद्घोष को जोर-शोर से दोहराने के लिए प्रेरित किया था।
यह ज्ञातव्य है कि बिहार के दरभंगा में हुई एक जनसभा में प्रधानमंत्री जी 'वंदे मातरम' एवं 'भारत माता की जय' बुलवाने में इतने मगन हो गए कि लगभग एक दर्जन बार जनता से उन्होंने 'वंदे मातरम' की रट लगवा दी। संयोग से उस सार्वजनिक सभा में बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार भी विराजमान थे। दूरदर्शन पर स्पष्ट रूप से यह देखा गया कि प्रधानमंत्री जी जनता द्वारा जब वंदे मातरम की रट लगवा रहे थे तो नीतीश जी चुपचाप मूकदर्शक होकर उस नजारे को देख रहे थे। प्रधानमंत्री जी ने सभा में उपस्थित जनता एवं मंचासीन महानुभावों से भी हाथ खड़ा करके वंदे मातरम कहने का अनुरोध किया तो रामविलास पासवान सहित मंच पर बै"s सभी नेताओं ने दोनों हाथ खड़े करके वंदे मातरम की रट लगानी शुरू की लेकिन नीतीश जी चुपचाप उस दृश्य को देखते रहे। संयोग से प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में जनता को सूचित किया कि कुछ लोग भारत में रहकर भी अपने मुंह से 'भारत माता की जय' एवं 'वंदे मातरम' बोलना पसंद नहीं करते। प्रधानमंत्री जी ने जनता से पूछा कि क्या ऐसे लोगों की चुनावों में जमानत जब्त नहीं करवाई जानी चाहिए?
शायद प्रधानमंत्री जी भूल गए कि उसी मंच पर 'भारत माता की जय' एवं 'वंदे मातरम' को न दोहराने वाले श्री नीतीश कुमार भी बै"s हुए हैं। सभा के उस दृश्य का वर्णन करते हुए बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर तंज कसते हुए कहा है कि 'नीतीश अंकल की मजबूरी देखकर मुझे उन पर तरस आता है'। तेजस्वी यादव का कटाक्ष नीतीश जी को जरूर चुभा होगा क्योंकि नीतीश कुमार जी अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को शायद धूमिल करना नहीं चाहते थे।
चंद दिनों बाद ही प्रधानमंत्री जी की जनसभा जब मुजफ्फरपुर में आहूत की गई तो प्रधानमंत्री जी ने सभा में 'भारत माता की जय' के नारे तो जरूर लगवाए लेकिन 'वंदे मातरम' के उद्घोष को दोहराने से परहेज कर गए। मुजफ्फरपुर की सभा में भी श्री नीतीश कुमार मंच पर विराजमान थे। यक्ष प्रश्न यह उ"ता है कि क्या प्रधानमंत्री जी ने नीतीश जी की उपस्थिति के कारण ही 'वंदे मातरम' के नारे को न बुलंद करने का निर्णय लिया? यदि इस अनुमान में कुछ भी सच्चाई हो तो फिर प्रधानमंत्री जी पर भी उंगली उ"sगी कि क्या वे ग"बंधन को बचाय रखने के लिए 'वंदे मातरम' के उद्घोष को छोड़ देने पर विवश हो गए? दोनों नेताओं की स्थिति दिनांक चार मई 2019 को स्वतः स्पष्ट हो जाएगी जब दोनों ही नेता बिहार के बगहा में एक मंच से भाषण देंगे।
इस आलोक में प्रधानमंत्री जी यदि विपक्ष के ग"बंधन को महामिलावटी ग"बंधन की संज्ञा देते हैं तो एनडीए के ग"बंधन को वे कौन सा नाम देना चाहेंगे? संसदीय चुनावों के दौरान 'भारत माता की जय' एवं 'वंदे मातरम' भाजपा के नेताओं का तकियाकलाम बन गया है लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि बिहार प्रवास के क्रम में प्रधानमंत्री जी के मंच पर विराजमान रहने के बावजूद नीतीश कुमार उपरोक्त उद्घोष को अपने मुंह से नहीं दोहराते जबकि बेगूसराय से खड़े सांसद प्रत्याशी श्री गिरिराज सिंह अपने सार्वजनिक भाषणों में स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि 'वंदे मातरम' न कहने वाले भारतीयों को उनकी कब्र के लिए तीन हाथ जमीन उसी सूरत में नसीब होगी जब वे 'वंदे मातरम' कहेंगे।
इस पृष्ठभूमि में जब प्रधानमंत्री
श्री नरेंद्र मोदी एवं बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार यदि एक ही मंच पर हों तो उपरोक्त उद्घोषों का हश्र क्या होगा? बीच का रास्ता तो एक ही निकलता है कि या तो प्रधानमंत्री जी उपरोक्त शब्दों को दोहराने के लिए जनता को प्रेरित न करें या नीतीश कुमार भी अपने मुंह से 'भारत माता की जय' एवं 'वंदे मातरम' कहना शुरू कर दें।
इस गतिरोध की स्थिति में जनता दल (यू) के महासचिव श्री केसी त्यागी से जब एनडीटीवी के संवाददाता ने पूछा कि 'आपके नेता नीतीश कुमार भारत माता की जय एवं वंदे मातरम कहने में क्यों हिचकिचाते हैं'? त्यागी जी ने उत्तर दिया कि उपरोक्त नारे भाजपा के व्यक्तिगत नारे हो सकते हैं लेकिन एनडीए ग"बंधन के नहीं। त्यागी जी के अनुसार भाजपा के नेताओं को पूरा हक है कि वे अपनी जनसभाओं में 'वंदे मातरम' के उद्घोष को गुंजायमान करे लेकिन एनडीए की सभाओं में इन नारों से परहेज किया जाना चाहिए।
एनडीए एवं यूपीए ग"बंधनों में दोनों तरफ ही अपनी-अपनी मजबूरियां हैं लेकिन जितनी मौलिक मजबूरियां एनडीए के ग"बंधन में है उतने विरोधाभास शायद यूपीए के ग"बंधन में नहीं हैं। इस परिस्थिति में प्रधानमंत्री जी जब यूपीए के ग"बंधन को महामिलावटी ग"बंधन की संज्ञा देकर चिढ़ाते हैं तो उन्हें एक विहंगम दृष्टि एनडीए के ग"बंधन पर भी डालनी चाहिए ताकि पता चल सके कि एनडीए के ग"बंधन में कौन-कौन सी विसंगतियां हैं? मध्यप्रदेश के भोपाल में भाजपा की प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा सिंह "ाकुर भी अपने प्रतिद्वंद्वी दिग्विजय सिंह को मात देने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की पराकाष्ठा तक जा पहुंची हैं। वास्तव में वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव भारत के इतिहास में एक नजीर बनकर उभरेंगे क्योंकि पक्ष और विपक्ष दोनों ही संसदीय मर्यादा की सीमाओं को बेरहमी से लांघ रहे हैं।
(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)