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युवा पीढ़ी से संवादहीनता क्यों?

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:5 Oct 2017 4:19 PM GMT
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राजनाथ सिंह `सूर्य'

महामना मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को 101वें वर्ष में एक महिला प्रॉक्टर पाप्त हुई है नाम है रोयना सिंह। रोयना फांस के एक नगर का नाम है। बकौल रोयना उनका जन्म यूरोप में हुआ है और वे यूरोप कनाडा की पायः यात्राएं करती रहती हैं। पिछले दिनों विश्वविद्यालय परिसर में छात्राओं के आंदोलन और पुलिस के ला"ाrचार्ज को लेकर जो उथल-पुथल शुरू हुई है, उसक एक परिणाम यह भी है। दायित्व संभालने के बाद रोयना सिंह ने जो अभिव्यक्ति की है, वह शायद अधिक चर्चा का विषय न बन सके लेकिन जिस विश्वविद्यालय की स्थापना पाश्चात्य शिक्षा और भारतीय जीवनशैली में सामंजस्य की परिकल्पना के साथ पढ़ाए जाने वाले विषयों का चयन और व्यवस्था में उसकी संबंधित स्थिति की मालवीय जी ने नींव डाली थी, उसके परिपेक्ष्य में रोयना सिंह की अभिव्यक्ति न केवल आश्चर्यजनक है बल्कि चिंतनीय भी है, क्योंकि एक छात्रा के साथ अश्लील हरकत करने के आरोप का विश्वविद्यालय पशासन यहां तक कि कुलपति द्वारा भी सम्यक संज्ञान लेने के कारण धरना-पदर्शन हुआ, उसकी चर्चा के बीच उनकी उक्ति आग में घी डालने का सबब बन सकती है। टाइम्स ऑफ इंडिया के लखनऊ संस्मरण ने 29 सितम्बर को मुख्यतः पृष्" पर मुख समाचार के रूप में उनके वक्तव्य का जो पस्तुति की है। कुछ और कहने से पहले उसका संज्ञान लेना शायद ज्यादा समीचीन होना।
उन्होंने कहा है कि लड़कियों की भेषभूषा या उनके अल्कोहल (शराब) पीने पर पतिबंध लगाने का सवाल ही नहीं उ"ता है। वे 18 वर्ष की आयु पाप्त कर बालिग हो जाती है, उनको स्वतंत्रता है अपने पसंद के खाने-पीने और पहनने की। मैं उन पर कोई रोक नहीं लगाऊंगी। वे छात्रों के समान स्वच्छंद हैं किसी समय कहीं आने-जाने के लिए। जिस यूरोप में जन्म लेने का उन्हें गर्व है और जहां की वे पायः तीर्थ यात्रा करती रहती हैं, शायद उसके भी किसी विश्वविद्यालय के पशासकीय पक्ष द्वारा इस पकार की स्वच्छंदता की पैरवी की गई होगी जहां संज्ञान होने पर लड़की लड़कों को अपने मनमुताबिक साथ-साथ रहने की छूट पाप्त है। लिविंग रिलेशन जिसको अब हमारे यहां कानूनी मान्यता पाप्त हो जाने के बावजूद हेय समझा जाता है।
रोयना सिंह की अनुभूति को यदि शिक्षा जगत स्वीकार करें तो लड़के लड़कियों के लिए अलग छात्रावास बनाने की जहमत से मुक्ति मिल सकती है और शायद छेड़खानी की मुसीबत से छुटकारा भी। क्योंकि लड़कों-बिगड़ैल लड़की के समान लड़कियों को भी स्वच्छंदता पाप्त हो जाती।
लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार में छूटने तक को अपराध मानकर दंड संहिता में जिस देश की संसद ने संशोधन किया है, उस देश में पूज्य महामना द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय में उदंडता को बढ़ावा देने वाले भेषभूषा और शराब सेवन की आजादी के अधिकारी की वकालत व अनुशासन बनाए रखने का दायित्व संभालने वाली महिला ऐसी अभिव्यक्ति करेगी इसकी शायद ही किसी ने कल्पना किया हो। देशभर में लोगबाग पूजास्थलों, स्कूल तथा अस्पतालों आदि के पास शराब एवं अन्य नशे की दुकानों और बिक्री रोकने का अभियान चलाया है। अभियान में बढ़चढ़ कर महिलाओं ने ही भाग लिया है। नैतिक संस्कार का आग्रह बढ़ रहा है। महामना ने जिस परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया क्या वहां अब शराब की दुकानें भी खोलने का रास्ता साफ किया जा रहा है। केंद्रीय सत्ता जिसके नियंत्रण में विश्वविद्यालय का पबंधन है, पिछले वर्षों में अनेक ऐसे काम किए हैं जो मालवीय जी की अवधारा के पतिकूल है और अब जब कि वर्तमान सरकार वहां भारतीयत्व की अनुभूति से विश्व को पभावित करने की नियत से एक व्यापक केंद्र स्थापित कर रहा है, अनुशासक द्वारा लड़कियों में भी स्वच्छंदता बढ़ाने की आधुनिकता का लबादा ओढ़ाकर जो दिशा पकड़ने का जो संकेत रोयना सिंह ने दिया है उसने हर उस पगतिशील को भी पीछे छोड़ दिया है जो भारत में बदलाव के लिए सभी मान्यताओं को बाधक मानते हैं। देश में दूषित मानसिकता से पभावित लोगों द्वारा निर्भया जैसे जघन्य कांड का अंजाम देने की घटनाओं से चिंताजनक समाचारों की भरमार हो गई है। ऐसे भी दरिंदों की दरिंदगी भी सामने आ रही है जो अबोध बालिकाओं का भी अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं। ऐसा करने वाले युवा ही होते हैं चाहे वह छात्र हो या रिक्शाचालक। समाज और सरकार की चिंता है इन दरिंदों से कन्याओं को बचाने की। इसके लिए कानूनी उपबंध करने के साथ-साथ नैतिक भाव बढ़ाने के उपाय भी शिक्षा के अंग बनाने का उपक्रम चल रहा है। ऐसे में संस्कारों के लिए ख्यातिपाप्त विश्वविद्यालय का अनुशासक छात्रों में स्वच्छता को नियंत्रित करने, संस्कार बढ़ाने की चर्चा के बजाय छात्राओं में भी स्वच्छंदता का वातावरण बनाने की पतिबद्धता के साथ किसी विश्वविद्यालय का प्रॉक्टर अपना दायित्व संभाले तो उसे कितने दिन पद पर रहने देना चाहिए। विश्वविद्यालय के कुलपति जो दो महीने में जाने वाले हैं, को तत्कल हटाने की मांग उ"ाने वाले लोगों का इस पकार के बारे में क्या अभिमत है? कुलपति की इस गर्वोक्ति के बाद कि मैं अवकाश पर नहीं जाऊंगा उन्हें अवकाश पर जाने के लिए विवश कर उचित किया है।
पगतिशीलता का मुखौटा उतर जाने से असलियत सामने आने के कारण जहां ऐसे लोगों को सत्ता और उससे सुख भोग रहे लोगों द्वारा युवओं के बीच अभारतीयता को उभारकर अपने लिए पुनः बनाने का पयास पूरे जोर के साथ चल रहा है, वहीं युवाओं की मनोकामना को समझकर व्यवहार करने में राजनीतिक सत्ता नौकरशाही के आंकलन से पभावित है। वह किसी के कारण झंडी दिखाने, धरने और पदर्शन करने वालों पर ला"ाr डंडे से टूट पड़ने, विश्वविद्यालयों को पुलिस छावनी में तब्दील कर उनके बल पर पशासन चलाने में लगे शिक्षा जगत के लोग भयभीत हैं, उनमें युवआाsं की बीच जाने का नैतिक बल का अभाव है। राजनीतिक व्यक्तियों का विरोध को नौकरशाही के नजरिये को त्यागना होगा।
देश के पथम पधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जब भी इलाहाबाद आते थे, समाजवादी उन्हें काले झंडे दिखाते थे, एक बार उनके आगमन पर ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने समाजवादियों को बुलाकर पूछा, क्या भाई मेरी हैसियत कुछ कम हो गई है क्या जो आप लोगों ने इस बार काले झंडे नहीं दिखाए। विरोध को शत्रुता मानने की मानसिकता के पभाव का परिणाम है कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्राओं के धरने का सामयिक संज्ञान नहीं लिया गया और जब वह अनियंत्रित हो गया तो नौकरशाही की शब्दावली में रणनीतिक नेताओं ने शहरी लोगों की साजिश का बयान दे डाला। इस घटनाक्रम में कुलपति का जो आचरण रहा है उसकी सराहना नहीं किया जा सकता। विरोध-पदर्शन के पति लोकतांत्रिक सहृदयता विरोध को जीतने का मौका देता है।
शक्ति से या दमन से विरोध और व्यापक हो जाता है। छात्राओं के बीच जाने का साहस गुंडों ने दिखाने के बजाय नौकरशाही `खतरे' के आंकलन पर भरोसा किया। पधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने युवा भारत अभियान से युवकों में स्वाभिमान जागृत करने का जो बीच बोया था, वह पौधा न बन सके इसके लिए अनेक पकार का भ्रामक पचार वे लोग कर रहे हैं, जो सत्ता बदलाव से आहत हैं। इस पयास को निष्पभावी बनाने के लिए युवा मन को समझाने उनसे संवाद स्थापित करने की आवश्यकता है, न कि पुलिसिया हथियार अपनाने या फिर उनको स्वच्छंदता की घुट्टी पिलाने की। जो लोग वाद-विवाद से परहेज और संवाद के पक्षधर है उन्हें आबादी के 65 पतिशत इस पीढ़ी के बारे में ज्यादा चिंता करने की जरूरत है। आजकल युवाओं विशेषकर छात्रों को उचित अथवा अनुचित कारणों से उत्तेजित करने का अभियान व्यापक हो रहा है। इस माहौल को आंदोलनों के पति नौकरशाही नजरिये से बचना पड़ेगा।
पधानमंत्री और मुख्यमंत्री के वाराणसी में मौजूद रहते छात्राओं का धरना और उससे निपटने का पशासनिक तरीका अपनाकर विश्वविद्यालय के वीसी ने जो अंजाम दिया है उसको नजरंदाज नहीं करना चाहिए। नरेंद्र मोदी के समर्थन में सबसे ज्यादा युवा ही आगे आए थे उनसे संवाद करने की आवश्यकता है। वाद-विवाद में पड़ने से मामला और भी उलझेगा।
(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)

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