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दीपावली पर पटाखों पर रोक

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:17 Oct 2017 4:07 PM GMT
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श्याम कुमार

सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दीपावली पर पटाखे छुड़ाए जाने पर पतिबंध लगा दिया है, जिससे देश में हलचल मची हुई है। ऐसा पहली बार हुआ है कि सर्वोच्च न्यायालय के किसी आदेश को लेकर हिन्दुओं में जबरदस्त आक्रोश दिखाई दे रहा है। लोग यहां तक कह बै"s हैं कि सर्वोच्च न्यायालय का रवैया हिन्दू-विरोधी है। ऐसा मत रखने वालों का कहना है कि न्यायालय कभी महाराष्ट्र में जन्माष्टमी पर `दही हांडी' को लेकर तो कभी गणेश-पूजा को लेकर, कभी दुर्गा पतिमा के विसर्जन को लेकर अथवा हिन्दुओं से संबंधित अन्य किसी मामले में पतिबंध लागू कर देते हैं, जिससे हिन्दुओं के पर्वों का उत्साह फीका हो जाता है। इन लोगों का यह भी आरोप है कि चूंकि मुस्लिम कौम हिंसक कौम है और जरा-जरा-सी बात पर मरने-मारने एवं भयंकर तबाही मचाने पर आमादा हो जाती है, इसलिए उसके विरुद्ध कोई कदम उ"ाने का लोग साहस नहीं करते हैं। इन लोगों का आरोप है कि बकरीद पर देशभर में जिस निर्ममता से बकरे काटे जाते हैं और खून की धार चारों ओर बहती है, उस पर रोक लगाने का साहस किसी में नहीं है। कटे हुए बकरों के अवशेषों से जो बीमारियां फैलाने वाली गंदगी की भरमार होती है, वह किसी को नहीं दिखाई देती है। कोई यह कहने का साहस नहीं करता है कि जब अपने सबसे पिय व्यक्ति की बलि देने के पतीक स्वरूप बलि दी जानी है तो मुस्लिम लोग बकरे के बजाय अपने पुत्र की बलि क्यों नहीं देते हैं? इसके विपरीत हिन्दू एक शांत एवं सहनशील कौम है, इसलिए उसे हर तरह से दबाया जाता है। दीपावली पर पटाखे छुड़ाए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने जो रोक लगाई है, उस पर पटाखा-बिकेताओं ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी, किन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में संशोधन से इंकार कर दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय के पतिबंध के संदर्भ में सबसे सही पतिक्रिया बाबा रामदेव की आई है। वैसे उन्होंने भी इस बात पर आक्रोश व्यक्त किया है कि सत्तर वर्षों से हिन्दुओं के दमन की जो कांग्रेसी नीति देश में चल रही थी, उसी की झलक पटाखों पर पतिबंध के रूप में पतिबिंबित हुई है। लेकिन बाबा रामदेव ने बड़ी तर्पपूर्ण बातें कही हैं। उनका कहना है कि दीपावली पर पटाखों के बारे में उस समय रोक लगाकर "ाrक नहीं किया गया है, जब दीपावली का महापर्व बिल्कुल सिर पर आ गया है। यदि पतिबंध लगाया जाना था तो ऐसा काफी पहले किया जाना चाहिए था।
पटाखों के व्यवसायी बिक्री के लिए काफी पूंजी लगाकर पटाखे जमा कर चुके हैं। अचानक रोक लग जाने से उनके सामने भीषण समस्या उत्पन्न हो गई है कि वे उन पटाखों का क्या करें? दीपावली महापर्व लक्ष्मी के आगमन का महापर्व माना जाता है, किन्तु पटाखा-व्यवसायियों के लिए उनके घर से लक्ष्मी के विदा होने का अवसर बन गया है।
बाबा रामदेव का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई है, किन्तु पटाखे छुड़ाए जाने पर रोक नहीं लगाई है। यह विरोधाभासी बात है। पदूषण पटाखों की बिक्री से नहीं, पटाखे छुड़ाए जाने से फैलता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि जो लोग पटाखे छुड़ाएंगे, यह कैसे पता लगेगा कि वे पटाखे उन्होंने तुरन्त नहीं खरीदे हैं, बल्कि उनके पास पहले से रखे हुए थे। पिछले साल के बचे हुए पटाखे अगले वर्ष इस्तेमाल करने के लिए शायद ही कोई सहेजकर रखता है। कौन एजेंसी घर-घर जाकर यह जांच करेगी कि वे पटाखे कब खरीदे गए थे? बाबा रामदेव ने तीसरी महत्वपूर्ण बात यह कही है कि दीपावली महापर्व पर पटाखे छुड़ाने की बहुत पुरानी परंपरा चली आ रही है, किन्तु यह भी सत्य है कि पटाखों से पदूषण फैलता है। मगर वास्तविकता यह है कि पटाखे तो एक दिन छुड़ाए जाते हैं, पर पदूषण के ऐसे अनगिनत स्थाई स्रोत हैं, जो पटाखों से अधिक पाणघातक हैं। बाबा रामदेव ने कहा है कि ध्वनि-पदूषण फैला रहे तेज आवाज वाले पटाखों पर रोक लगाई जा सकती थी, किन्तु दीपावली की रात फुलझड़ी, अनार जैसे हल्के पटाखों की छूट दी जानी चाहिए थी।
हिन्दू धर्म की विशेषता है कि वह कोई संकीर्ण मजहब न होकर पाचीनकाल से चली आ रही एक व्यापक संस्कृति का रूप है। उसमें बुराइयों का समावेश होता है तो धीरे-धीरे उनका उन्मूलन भी होता रहता है। इसीलिए हिन्दुओं के त्यौहारों में जो बुराइयां या कुपथाएं आ जाती हैं, उन्हें समाप्त करने का अभियान भी समाज-सुधारकों द्वारा चलता रहता है। दीपावली महापर्व पर जुआ खेलने की पथा भी ऐसी ही बुराई है, जिसे कानूनन तो रोका ही गया है, उसके विरुद्ध समाज-सुधारकों ने भी पबल अभियान चलाया। पटाखों का छुड़ाया जाना धीरे-धीरे घातक बुराई का रूप धारण कर गया है। एक से एक शक्तिशाली बम छुड़ाए जाने लगे हैं, जो त्यौहार वाले दिन बहुत बड़ी मुसीबत बन जाते हैं। उससे तमाम लोग घायल होते हैं तथा अस्पतालों में ऐसे घायलों की भीड़ लग जाती है। अतः इस पकार के तेज आवाज वाले घातक पटाखों पर निश्चित रूप से कड़ाई से रोक लगनी चाहिए।
पटाखों के रूप परिवर्तन पर भी विचार किया जाना चाहिए और उसे बढ़ावा देना चाहिए। पटाखों के बजाय तरह-तरह के `लेजर शो' किए जाने चाहिए। अब बड़े आकर्षक `लेजर शो' होने लगे हैं। संभव है कि `लेजर शो' मंहगे पड़ते हों, इसलिए मुहल्लों में सामूहिक रूप से उनके पदर्शन की व्यवस्था होनी चाहिए। उन्हें सस्ता बनाए जाने का पयास भी होना चाहिए। विदेशों में ऐसे पटाखे भी बनने लगे हैं, जो धुआं या पदूषण नहीं फैलाते हैं। अतः उस तरह के पटाखों को हमारे देश में भी पोत्साहन दिया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पटाखों पर जो रोक लगाई गई है, उससे भ्रष्टाचार पनपने की गुंजाइश हो गई है। जो व्यवसायी अपने यहां बिक्री के लिए पटाखों का जखीरा जमा कर चुके हैं, वे येन-केन-पकारेण उस जखीरे को अवैध तरीके से बेचने का पयास करेंगे। इस संदर्भ में फेसबुक पर एक सज्जन ने बड़ी रोचक टिप्पणी की है। उन्होंने सुझाव दिया है कि पटाखा-व्यवसायी लोगों को दीपावली की शुभकामना के रूप में पटाखे भेंट करें तथा लोग शगुन के रूप में उन पटाखों का मूल्य व्यवसायियों को भेंट कर दें। इससे सांप भी मर जाएगा और ला"ाr भी नहीं टूटेगी। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन नहीं होगा तथा पटाखा-व्यवसायी नुकसान से बच जाएंगे। पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीपावली पर मिट्टी के दीयों के पयोग पर बल दिया है, ताकि कुम्हारों की अधिक मदद हो। पधानमंत्री की यह अपील उचित है।

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