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सांसदों को न्यायपालिका को स्पष्ट करना चाहिए कि कानून बनाने का काम संसद का है ः तृणमूल कांग्रेस

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:4 Jan 2018 5:48 PM GMT
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राजनाथ सिंह `सूर्य'

राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहला झटका दिया बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने सांसदों को यह सलाह देकर कि वे कांग्रेस के साथ देते हुए नहीं दिखाई पड़ना चाहिए। गुजरात विधानसभा चुनाव में अच्छी सफलता मिलने के उपरांत कांग्रेसियों का अनुमान था कि भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ संभावित संयुक्त मोर्चे की कमान राहुल गांधी को सौंपने के लिए विपक्ष तैयार हो जाएगा। लेकिन संसद के शीतकालीन सत्र में चाहे मनमोहन के `अपमान' का मामला हो, या अन्य विषय संसद की कार्यवाही "प करने के मामले में कांगेस को पूर्व सत्रों के समान विपक्षी दलों का सहयोग न मिलना इस बात का सबूत है कि उनको स्वीकार कर लिए जाने की कांग्रेसी अपेक्षा परवान नहीं चढ़ने वाली है। जो दल बेघर हो चुके उनमें कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट होने का कोई आकर्षण नहीं दिखाई पड़ रहा है। मार्क्सवादी पार्टी का एक घड़ा उसके यहां सचिव सीताराम येचुरी के नेतृत्व में कांगेस के साथ एकजुटता के पयास में अवश्य है लेकिन केरल का पभावशाली पक्ष उनके ऊपर हावी है। `सांप्रदायिकता और फासिस्टवाद' के पिट गए नारे और सेक्युलरिज्म जैसे निरर्थक शब्दावलि के पयोग से जिस वामपंथ को भाजपा विरोधी माहौल बनाने में असफलत होने के बाद कुछ तत्कालीन इतिहासकारों यथा इरफान हबीब और भ्रश्टाचार के आरोप में फंसी तीस्ता शीतलवाड़ जिन्होंने गुजरात चुनाव में अपनी पूरी क्षमता लगा दिया था, अब नरेंद्र मोदी विरोधी मोर्चे में भाजपाई दलों को एकजुट करने के लिए पयत्नशील है, लेकिन पत्येक राजनीतिक दल मोर्चे जैसे पयोग के लिए वह भी राहुल गांधी के नेतृत्व में तैयार नहीं है। न ममता बनर्जी और न ही नवीन पटनायक यहां तक कि जेल में बै"s लालू यादव ही राहुल गांधी के पति अनुकूल हैं, लालू यादव को अभी तक उनके द्वारा बिहार चुनाव के पूर्व आयोजित एकजुटता सभा में राहुल का आना लग रहा है। देश के सबसे बड़े पदेश उत्तर पदेश जहां विधानसभा चुनाव में सत्ता संभाले समाजवादी पार्टी ने `दो युवाओं' की जोड़ी का आकर्षण पैदा कर सफलता का कामना किया था, बुरी तरह पस्त हो जाने के कारण अब कांग्रेस के सहयोग से स्थानीय निकाय चुनाव में तौबा कर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दिया है। जहां तक बहुजन समाज पार्टी का सवाल है तो उसकी चुनाव के पूर्व अकेला चलने और चुनाव के बाद उसके नेतृत्व को ही स्वीकार करने की नीति में बदलाव का कोई संकेत नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पूर्व अगले वर्ष 2018 में जिन चार महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से एक कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता है शेष तीन छत्तीसगढ़, मध्यपदेश और राजस्थान में भाजपा की सरकार है। कांग्रेस के सामने कर्नाटक को बचाने और शेष तीनों राज्यों को भाजपा से छीनने की चुनौती है। कर्नाटक को जीतने के लिए उसने मुस्लिम परस्ती और हिन्दू मतदाताओं में मजहबी भेदभाव को उभारने की नीति का सहारा लिया है। टीपू सुल्तान की जयंती और लिंगामतों की धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर विचार के लिए ग"ित समिति इसका उदाहरण है। निश्चय ही गुजरात में कांग्रेस को सफलता मिली है उसमें तीनों जातीय संग"न के नेताओं द्वारा उभारे गए असंतोष का मुख्य योगदान है। राजस्थान, मध्यपदेश और छत्तीसगढ़ में वह सत्ता के खिलाफ असंतोष का लाभ उ"ाने का पयास करेगी, लेकिन उसकी अपनी आंतरिक स्थिति गुजरात के समान असंतोष का लाभ उ"ाने में सफलता इसलिए संभव नहीं लगती क्योंकि नेताओं में खींचतान अधिक है और अध्यख बनने के बावजूद राहुल गांधी `पार्ट टाइम' राजनीतिक दायरे से बाहर निकलने की छवि महज बना पा रहे हैं। जिस दिन गुजरात का चुनाव परिणाम आ रहा था, वे सिनेमा हॉल में बै"s थे और जब लोकसभा में तीन तलाक जैसे महत्वपूर्ण विधेयक पर विचार हो रहा था, वे पार्टी को दिशाहीन छोड़कर अनुपस्थित रहे। कांग्रेस पार्टी ने मतदान में भी अनुपस्थित रहना उचित समझा। उसके इस रुख से मुस्लिम मतदाताओं में उग्रतापूर्ण नेतृत्व के लिए ख्याति पाप्त नेताओं जो उसके लिए मददगार साबित हो रहे थे, भारी निराशा हुई थी और उदारवादियों में भी उनकी छवि इसलिए खराब हुई क्योंकि विधेयक का उसने खुलकर समर्थन भी नहीं किया। कांग्रेस विभिन्न मुद्दों पर दुविधा में बने रहने से अभी भी उभर नहीं पाई है। लेकिन एक मुद्दे पर अभी भी वह कायम है, विरोधियों के लिए अपशब्दों का पयोग करने पर। गुजरात के चुनाव में राहुल ने नरेंद्र मोदी के पति अपशब्दों का पयोग न करने का जो सावधानी बरते। वह चुनाव के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली के लिए `जेटलाई' (झू"ा जेटली) शब्द पयोग कर स्पष्ट कर दिया है कि पूछ सीधा होना मुश्किल है।
क्या एक के बाद एक राज्य में भाजपा को मिल रही सफलता के परिपेक्ष्य में विपक्षी दलों में एकजुटता के लिए ललक बढ़ी है? जुबानी भी जमा खर्चा से अधिक नहीं क्योंकि जहां जिस दल का पभाव है वहां वह दूसरों की घुसपै" नहीं होने देना चाहता, जैसा कांग्रेस ने गुजरात में पुराने साथियों को छोड़कर किया है, और जहां उसका पभाव नहीं है, वह किसी तरह घुसपै" करना चाहता है, जैसा कांग्रेस ने उत्तर पदेश और बिहार से किया है। इसलिए कांग्रेस कर्नाटक में जहां उसकी सत्ता है और छत्तीसगढ़, मध्यपदेश व राजस्थान में जहां वह गुजरात के समान ही एकमात्र विपक्षी दल हैं किसी और को घुसपै" करने देगी, इसकी कोई संभावना नहीं है, ऐसे में अन्य राज्यों वे जब दो को छोड़कर जहां उसकी इकाई मार्क्सवादी पार्टी से ग"बंधन करना चाहती है, किसी भी दल के साथ उसका समझौता संभव नहीं है। कांग्रेस की विशेषता रही है उसके कैडर की निष्ठा जो पार्टी को परिवार में सिमटते जाने के कारण क्षीण होता गई है। कैडर के अभाव और साख स्थापित करने में असफल पार्ट टाइम नेतृत्व तथा अनुचर के समान व्यवहार करने वालों की घेरेबंदी में कांग्रेस को अवाम से बहुत दूर कर दिया है। अन्यथा गुजरात जैसी अनुकूलतायुक्त माहौल के बावजूद वह बहुमत से वंचित न रह जाती। क्या राहुल गांधी अध्यक्ष के रूप में उससे कुछ अवश्य कर सकेंगे जो महामंत्री और उपाध्यक्ष के दायित्व को निभाते समय सर्वाधिकार पाप्त होने के बावजूद करते थे। पार्टी का अध्यक्ष बनना तो महज औपचारिकता भर है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद से संभवतः संसद का शीतकालीन पहला सत्र है जिसमें मुख्य विपक्षी दल होने का दायित्व निर्वाहन करने के लिए विपक्षी दलों को एक साथ बै"क करने में भी उसे सफलता नहीं मिली। राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष अवश्य हो गए है लेकिन मोदी विरोधी दलों को जीवंत करने में पहले अवसर का लाभ उ"ाने में असफल रहे हैं जो भविष्य का संकेत देता है। राहुल गांधी को कैडर खड़ा करने और सत्ता संभालने की क्षमता जो नरेंद्र मोदी के पति है, उसका मुकाबला करना है जिसमें वे अभी बहुत पीछे हैं।
(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)

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