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उच्च शिक्षण संस्थानों में दीक्षांत का महत्व
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डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक अपने संवैधानिक दायित्वों के प्रति सदैव सजग रहते है। संविधान ने राज्यपाल से कतिपय विषयों पर स्वविवेक से निर्णय की अपेक्षा की है। इनमें संबंधित प्रदेश के विश्वविद्यालय भी शामिल है। राम नाईक ने जब उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का पद संभाला था, तब विश्वविद्यालयों के स्तर पर कई बुनियादी समस्याएं थी। सत्र नियमित नहीं थे, नियमित दीक्षांत समारोह के प्रति पर्याप्त सजगता का भाव नहीं था। गुणवत्ता की भी समस्याएं थी। राम नाईक ने इन सब पर गंभीरता से ध्यान दिया। कुलपतियों, शिक्षाविदों से सीधा संवाद कायम किया। कुलपतियों के सम्मेलन नियमित आयोजित करने पर बल दिया। नियमित सत्र और दीक्षांत समारोहों का सीधा संबंध अध्ययन के माहौल के साथ ही खेल, सांस्कृतिक समारोहों से होता है। सत्र नियमित होते है तो विद्यार्थियों का अमूल्य समय बर्बाद नहीं होता। समय पर वह परीक्षा फल, डिग्री लेकर आगे की तैयारी कर सकते है। सत्र नियमित होने से शिक्षकों पर भी समय से कोर्स पूरा करने का दबाब रहता है। राम नाईक ने पहली प्राथमिकता इसी को दी थी। दीक्षांत समारोह का प्रचलन किसी न किसी रूप में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से रहा है। इसके माध्यम से संबंधित गुरुकुल अपनी विशेषताओं को सामने लाते थे। विभिन्न विद्याओं में होनहार विद्यार्थी सम्मानित होते थे। अन्य विद्यार्थियों को इससे प्रेरणा मिलती थी। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का भाव जागृत होता था।
राम नाईक ने दीक्षांत समारोह आयोजित करने का निर्देश विश्वविद्यालयों को दिया। इस प्रकार सत्र नियमित करने और दीक्षांत समारोह के नियमित आयोजन में सफलता मिली। नकलविहीन परीक्षा के प्रति भी उन्होंने कटिबद्धता दिखाई। इसके भी सार्थक परिणाम दिखाई दिए। राज्यपाल का पद दलगत राजनीति से ऊपर होता है। राम नाईक ने इस मर्यादा का बखूबी पालन किया है।
उन्हें दो अलग राजनीतिक विचारधारा वाली पार्टियों की सरकारों के साथ कार्य करने का अवसर मिला। राम नाईक अपनी जगह पर संविधान का पालन करते रहे। लेकिन पिछली सरकार उनके अनेक उचित सुझावों को भी नजरंदाज कर देती थी। जबकि वर्तमान सरकार उनके सुझावों से लाभ लेती है। उनके क्रियान्वयन को सुनिश्चित करती है।
वर्तमान सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी सुधार की दिशा में प्रयत्नशील रहते हैं। इस प्रकार पहले की अपेक्षा अनुकूल स्थिति है। इसका सकारात्मक परिणाम भी दिखाई दे रहा है। इस संदर्भ में पिछले दिनों राज्यपाल ने राजभवन में अपने विचार साझा किए। उन्होंने उच्च शिक्षा में छात्राओं के उत्कृष्ट प्रदर्शन से संबंधित आकड़े प्रस्तुत किए। उत्तर प्रदेश में बालिकाओं की शिक्षा का प्रतिशत इकसठ के करीब पहुंच रहा है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में छात्राओं द्वारा उत्कृष्ट प्रदर्शन किया गया है तथा उपाधि प्राप्त करने वाली छात्राओं की संख्या छात्रों से अधिक है जो महिला सशक्तिकरण का सूचक है।
कृषि विश्वविद्यालयों में कुल विद्यार्थियों की संख्या का मात्र उन्नीस प्रतिशत छात्राएं हैं परन्तु इनके द्वारा चवालीस प्रतिशत पदक अर्जित किए गये हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषकों की आमदनी दोगुनी करने के संकल्प लिया गया है। अद्यतन कृषि तकनीकों को महिला किसानों की बड़ी संख्या के बीच पहुंचाने के लिए महिला कृषि प्रसार कर्ताओं की आवश्यकता के दृष्टिगत कृषि शिक्षा के लिए छात्राओं को प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है। पच्चीस में से तेईस विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह सम्पन्न हो चुके हैं। शेष दो विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह शीघ्र होने हैं। तीन विश्वविद्यालय के छात्र अभी उपाधि स्तर तक नहीं पहुंचे हैं। सभी विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह भारतीय वेशभूषा में गरिमापूर्ण ढंग से सम्पन्न हो रहे हैं, जिससे अपनेपन का बोध होता है। राम नाईक मानते है कि पहले दीक्षांत समारोह में धारण किए जाने वाले गाउन तथा हैट दासता के सूचक थे। पिछले चार वर्षों से विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह नियमित रूप से सम्पन्न कराए जा रहे हैं। प्रदेश के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति के रूप में राम नाईक का प्रयास रहा है कि शैक्षिक सत्र को नियमित हों तथा विद्यार्थियों को उनकी उपाधियां समय से उपलब्ध कराई जाएं। जिससे उन्हें रोजगार या व्यवसाय के अवसर ढूंढने में उपाधि के अभाव के कारण किसी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े। इसके अलावा उच्च शिक्षा की गुणवत्ता एवं अनुसंधान में उत्तरोत्तर वृद्धि हेतु विश्वविद्यालयों में शैक्षिक पदों को भरने, विश्वविद्यालयों की कार्य प्रणाली को पारदर्शी एवं उत्तरदायी बनाने के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया के प्रयोग, विश्वविद्यालयों के नैक मूल्यांकन, शिक्षा को रोजगारपरक बनाने के प्रयासों पर भी राम नाईक ने ध्यान दिया है। जाहिर है कि राम नाईक ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में करीब चार वर्ष पहले जो अलख जगाई थी, उसने सुधार को उल्लेखनीय ढंग से आगे बढ़ाया है।
(लेखक विद्यांत हिन्दू पीजी कॉलेज में राजनीति के एसोसिएट पोफेसर हैं।)
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