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शादियों पर भी शोध किया जाए

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:12 Jan 2018 5:23 PM GMT
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श्याम कुमार

हमारे यहां विश्वविद्यालयों में जो शोध-कार्य होते हैं, वे पायः पिटी-पिटाई लकीर पीटने वाले होते हैं। आमतौर पर नए एवं अनछुए विषयों पर शोध नहीं किया जाता है। इसी पकार का एक विषय शादियों का है। हिन्दुओं में पुराने समय से लेकर अब तक विवाहों की परंपराओं, तौर-तरीकों व स्वरूप में जो-जो परिवर्तन आए हैं, उन पर शोध किया जाना चाहिए। जैसे पुराने समय में विवाहों में निमंत्रण पत्रों का उतना महत्व नहीं होता था, जितना नाऊ द्वारा निमंत्रण भेजे जाने का होता था। नाऊ हल्दी व अक्षत लेकर लोगों के यहां न्योता देने जाता था। अन्य शुभ अवसरों पर भी नाऊ के माध्यम से ही आमंत्रण भेजे जाते थे। विवाहों में नाऊ का महत्वपूर्ण स्थान होता था। जब निमंत्रण पत्रों का पचलन शुरू हुआ, उस समय भी काफी अरसे तक नाऊ द्वारा संदेश मिलना आवश्यक माना जाता था। निमंत्रण पत्रों की भाषा भी बड़ी परंपरागत होती थी। उस समय से लेकर अबतक केवल गणेश जी ही ऐसे रह गए हैं, जिनकी निमंत्रण पत्रों में उपस्थिति कायम है। अन्यथा निमंत्रण पत्रों का स्वरूप बहुत बदल गया है। पहले ये पंक्तियां अवश्य लिखी रहती थींö
भेज रहा हूं नेह-निमंत्रण पियवर
तुम्हें बुलाने को,
हो मानस के राजहंस तुम,
भूल न जाना आने को।
धीरे-धीरे नाऊ द्वारा संदेश भेजे जाने का पचलन बंद हो गया तथा निमंत्रण पत्रों का स्वरूप एवं शब्दावली भी बदल गई। कालांतर में बड़े कीमती निमंत्रण पत्र बनने लगे तथा हिन्दी के निमंत्रण पत्रों में साहित्यिक काव्य-पंक्तियों का समावेश भी होने लगा। अंग्रेजी के मोह से ग्रस्त उच्च अफलातूनी वर्ग अंग्रेजी में ही शादी के निमंत्रण पत्र भेजने लगा। इस वर्ग का अंग्रेजी-मोह अभी भी नहीं छूटा है। निमंत्रण भेजने वाले व पाने वाले, दोनों हिन्दीभाषी होते हैं, फिर भी विवाह जैसे पवित्र अवसरों पर अंग्रेजी की यह मानसिक गुलामी देखकर शर्म आती है। मैं तो कोशिश करता हूं कि जिन शादियों के निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में आते हैं, उनमें न जाऊं।
पुराने समय में जब पंगत में बै"कर पत्तलों में भोजन व कुल्हड़ों में पानी परोसा जाता था, तब क्या-क्या रिवाज थे तथा उसके बाद आज के समय तक उन रिवाजों में जो परिवर्तन हुए हैं, उन पर शोध-कार्य होने चाहिए। उस समय दावतों में पांच पकार की मि"ाइयां अनिवार्य रूप से रखी जाती थीं। दावत के बाद घर ले जाने के लिए मि"ाइयों का बैना अलग से दिया जाता था। पहले बारातें गांवों में एक-एक महीने तक रुका करती थीं। बारातों की यह अवधि धीरे-धीरे घटती गई। अब तो कोशिश होती है कि उसी दिन बारात जाकर रात में ही या भोर में वापस लौट आए। पहले दूल्हा रस्मों के चक्कर में कई दिनों तक घर के भीतर बंद-सा हो जाता था। अब ऐसा भी होता है कि दूल्हे को नौकरी में अधिक छुट्टी नहीं मिली तो वह फेरे के समय पहुंचता है और फेरे के बाद चला जाता है। उस समय बारातों में एक या अनेक नर्तकियों का ले जाना अनिवार्य रहा करता था। जितनी अधिक नर्तकियां होती थीं उतनी शान की बात समझी जाती थी। यदि बारात में नर्तकी शामिल न हो तो घराती पक्ष बुरा मान जाता था। पहले शादियों में जो रस्में हुआ करती थीं, वे तमाम रस्में लगभग खत्म हो गई हैं। लोकगीतों की जगह फिल्मी गानों ने ले ली है। पहले बारात विदा होने के बाद घर की औरतें घर पर `महरूली-महरूला' के रूप में रोचक नाटिकों किया करती थीं। अब औरतें बारात में जाने लगी हैं, इसलिए वह रोचक रस्म खत्म हो गई है। पहले `भात' की रस्म के समय बरातियों के लिए `गाली' गाई जाती थी, जो न गाई जाए तो बाराती बुरा मान जाते थे। अब वह रस्म भी समाप्तपाय है।
विवाहों में पाचीनकाल में जयमाल की पथा हुआ करती थी, जो समाप्त हो गई थी। लेकिन कुछ दशकों से जयमाल की पथा पुनर्जीवित हुई है तथा अब वह विवाहों में अनिवार्य रस्म मानी जाती है। पहले वरपक्ष के यहां तिलक की रस्म बहुत महत्वपूर्ण हुआ करती थी तथा उस अवसर पर वरपक्ष पीतिभोज का आयोजन करता था। अब उसके बजाय बहू के आने पर पीतिभोज का आयोजन होता है। कई बार वरपक्ष यह खर्च बचाने के लिए बारात के लिए लोगों को जो आमंत्रण पत्र भेजता है, वधूपक्ष के यहां हुई दावत को अपनी दावत के रूप में भी ले लेता है। पुराने समय में पालकी शादियों का अविभाज्य हिस्सा हुआ करती थी। अब पालकियां देखने को नहीं मिलतीं। पहले उनकी जगह घोड़े ने ली, जिसके बाद अब अधिकांशतः दूल्हे कारों में बै"ने लगे हैं। पहले शहनाई शादियों का खास अंग हुआ करती थी, किन्तु अब लोकगीतों की तरह शहनाई की जगह भी फिल्मी गानों एवं पाश्चात्य वाद्यों ने ले ली है। दावतों में ऑरकेस्ट्रा-कार्यक्रम का रिवाज चल गया है। विवाह-समारोह ऐसे अवसर होते हैं, जिनमें लोगों को परस्पर भेंट करने का अवसर मिल जाता है। ऐसे समय कई दावतों में जब ऑरकेस्ट्रा जोर-जोर से बजने लगता है तो भोंड़ा तो लगता ही है, लोग उस शोर में आपस में बातें नहीं कर पाते हैं। कई अवसरों पर मैंने ऑरकेस्ट्रा वालों को यह डांटकर आवाज धीमी कराई कि लोग यहां आपस में मिलने-जुलने व बातचीत करने आए हैं, न कि ऑरकेस्ट्रा के गाने सुनने। आमतौर पर सुधीजनों के यहां होने वाली दावतों में ऑरकेस्ट्रा के शोरगुल के बजाय धीमी-धीमी मधुर धुन बजा करती है, जो बहुत अच्छी लगती है।
विवाहों में एक पथा `व्यवहार' देने की है। पुराने समय में इसका आशय सहयोग-भाव का रहा होगा। अर्थात इस बहाने जिसके यहां विवाह सम्पन्न हो रहा है, उसको समाज द्वारा आर्थिक सहयोग दिया जाय। `व्यवहार' का अर्थ यह भी होता था कि जिसके यहां `व्यवहार' में जो धनराशि दी गई है, वह धनराशि देने वाले के यहां विवाह का अवसर होने पर `व्यवहार' के रूप में उतनी धनराशि लौटाएगा। इस संदर्भ में मेरे घर में अनोखा अनुभव हुआ। मैंने बचपन से देखा कि असंख्य बार रिश्तेदारों व परिचितों के यहां मेरे यहां से कीमती उपहार भेंट किए गए। लेकिन हमारे यहां ऐसा अवसर सिर्प एक बार आया। मेरे सबसे बड़े भाई का विवाह पूरी तरह परपरागत रूप में हुआ था। उसके बाद तीनों भाइयों के विवाह बिल्कुल आदर्श रूप में हुए, जिनमें कोई `व्यवहार' आने का पश्न नहीं था। मेरे आर्यसमाजी ढंग से हुए विवाह में तो मात्र दस व्यक्ति शामिल थे। मुझे आज के समय में `व्यवहार' वाली रस्म बिल्कुल अनुचित पतीत होती है। हाल में एक शादी के निमंत्रण पत्र में लिखा हुआ था कि कृपया कोई भेंट न लाएं, फिर भी मैंने देखा कि उनके यहां उपहारों का अंबार लग गया था। आजादी वे पहले युद्धकाल में कड़ी `राशनिंग' के समय दावतों के निमंत्रण पत्रों में यह लिखा जाने लगा था कि कृपया अपने लिए खाद्य सामग्री दावत के एक दिन पहले भेज दें।
पहले शादियों में हलवाई बै"ा करता था, जिसकी देखरेख का जिम्मा दामाद या बहनोई को ही दिया जाता था। यह दामाद व बहनोई का विशेषाधिकार माना जाता था। अकसर ऐसे रिश्तेदार भी होते थे, जिन्हें स्वादिष्ट सब्जी बनाने में विशेष महारत होती थी। उनकी मौजूदगी में पमुख सब्जी हलवाई के बजाय वही सज्जन बनाते थे। अब तो शहरों के विवाहों में पंगत की पणाली लगभग पूरी तरह गायब हो चुकी है और उसका स्थान खड़े होकर खाने वाली `बफे' व्यवस्था ने ले लिया है। इसे एक हास्यकवि ने `कूकुर भोज' नाम दिया है। कुछ मामलों में यह व्यवस्था अच्छी है तो कुछ मामलों में बुरी। प्लेट में विभिन्न व्यंजन एक दूसरे में मिलकर खिचड़ी बन जाते हैं। इसका अत्यंत रोचक विवरण पसिद्ध हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव ने अपने हास्य-आइटम में पस्तुत किया है।

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