Home » द्रष्टीकोण » आखिर मांग मनवा कर ही मानीं महबूबा

आखिर मांग मनवा कर ही मानीं महबूबा

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:19 May 2018 3:30 PM GMT
Share Post

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

अंततः केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती रमजान के पाक माह में आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान बंद कराने की मांग मंजूर कर उसने एक बार फिर साबित कर दिया कि सत्ता पाने और उसमें बने रहने के लिए वह कोई भी जोखिम उ"ाने तथा इतिहास से सबक न लेने को हमेशा तैयार है। तभी तो इस मुद्दे पर महबूबा मुफ्ती द्वारा बार-बार पूर्व पधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रमजान माह में संघर्ष विराम किए जाने के याद दिलाए जाने पर जवाब में उन्हें उसके दुष्परिणाम क्यों नहीं बताए? उस समय न केवल आतंकवादियों की हिंसक वारदातें जारी रहीं, बल्कि पहले से कहीं अधिक संख्या में सुरक्षा बलों के जवान भी मारे गए थे। अब जहां केंद्र सरकार के इस फैसले का प्रश्न है तो इसका महबूबा मुफ्ती ही नहीं, उनकी पतिद्वंद्वी नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष तथा पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुला और दूसरे कश्मीरी नेताओं ने भी खैरमखदम (स्वागत) किया है, लेकिन इसी राज्य की पैंथर पार्टी ने इस निर्णय को न केवल गलत बताया है, बल्कि इसका फायदा उ"ाकर आतंकवादियों के फिर से संग"ित और मजबूत होने की आशंका जतायी है। यहां तक की केंद्र सरकार ने अपनी पार्टी के स्थानीय विधायकों की भावनाओं की भी अनदेखी की है, जिन्होंने महबूबा मुफ्ती द्वारा संघर्ष विराम के मुद्दे पर सर्वदलीय बै"क में अपना विरोध जताया था, जबकि इस सूबे की सभी सियासी पार्टियां (पीडीपी, नेकां, कांग्रेस आदि) इसके पक्ष में थीं, क्योंकि इन सभी के कट्टर मजहबी और अलगाववादी रवैये की वजह से तो धरती की इस जन्नत के हालात दोजख सरीखे बने हुए हैं और लाखों की कश्मीरी पंडित जम्मू में तंबुओं और देश दूसरे नगरों में आसरा लेने को मजबूर बने हुए हैं। लेकिन सत्ता भोगने के मोह में भाजपा महबूबा के असल इरादों से अच्छी तरह वाकिफ होने के बाद भी अनजान होने का ढोंग कर रही है। खुले आम अलगावादियों की हिमायत करने वाली पार्टी पीडीपी की मुखिया महबूबा कथित राष्ट्रवादी भाजपा की मदद से सरकार बना कर अपने एजेंडे पर चल रही है, इसके विपरीत भाजपा ने शायद ही अपने समर्थकों से किए वादों में से शायद ही कोई पूरा किया हो। इसी कारण कुछ लोगों का कहना है कि सूबे में सिर्प महबूबा की सरकार है और उन्हीं की चलती है।
यह सच भी है तभी तो भाजपा क"gआ पकरण में अपने दो मंत्रियों की बलि दे चुकी है और पीडीपीके वरिश्" नेता और वित्तमंत्री हसीब द्राबी के हकीकत बयां करने पर कुर्सी छीने जाने पर भी शांत रही। उनका कसूर बस महज इतना था कि उन्होंने एक कार्यक्रम में कश्मीर की समस्या को राजनीतिक नहीं, सामाजिक (मजहबी) बताया था,जो एकदम सही है। वैसे केंद्र सरकार का कश्मीर में अमन-चैन की वापसी की आशा में लिया गया यह निर्णय आतंकवादियों की हिंसक वारदातों पर विराम न लगने की दशा में सुरक्षा बलों पर भारी पड़ सकता है।
दरअसल महबूबा सर्वदलीय बै"क आहूत करने से पहले सूबे की सत्ता में भागीदार भाजपा को अपने एजेंडे की जानकारी ही नहीं दी थी, जबकि इसे निर्दलीय विधायक इंजीनियर रशीद ने रखा था। विडंबना यह है कि महबूबा मुफ्ती ने सर्वदलीय बै"क बुलाकर जिस तरह से केंद्र सरकार से संघर्ष विराम की मांग की, उसी तरह उन्होंने कभी पाकिस्तान, आतंकवादियों, अलगाववादियों, पत्थरबाजों से ऐसी मांग कभी क्यों नहीं की? जिनके कारण कश्मीर घाटी अशांत ही नहीं, जंग का मैदान सरीखा बना हुई है। इससे यहां पर्यटन कारोबार करीब-करीब बंद पड़ा है जिससे बड़ी तादाद में लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है। ऐसी ही अपील महबूबा ने मस्जिदों के मुल्ला-मौलवियों से कभी क्यों नहीं की, जो यहां के लोगों खासतौर पर नौजवानों को हिन्दुस्तान और सुरक्षा बलों के खिलाफ भड़काते हैं। उन्होंने कभी उन युवा छात्र-छात्राओं से ऐसी अपील क्यों नहीं कि पाकिस्तान और दहशतगर्द संग"न आईएस का झंडे लेकर हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे न लगाएं और सुरक्षा बलों पर पत्थर न फेंके। वैसे भी अब केंद्र सरकार ने महबूबा मुफ्ती की तरह संघर्ष विराम शब्द का उपयोग भले ही नहीं किया है, लेकिन वह जो चाहती थीं, उनकी वह मंशा पूरी कर दी है।
क्षोभ की बात यह है कि केंद्र सरकार ने अभियान बंद करने का फैसला लेते समय महबूबा से `संघर्ष विराम' शब्द के मायने पूछने की जहमत नहीं उठाई। संघर्ष विराम/युद्ध विराम दो मुल्क के बीच होता है या दो पक्षों के बीच होता है, यहां तो महबूबा ने अपने देश से ही कैसा संघर्ष विराम की मांग की? फिर यहां तो दूसरे पक्ष ने बंदूक न उ"ाने का कोई वादा ही नहीं किया तो संघर्ष विराम कैसे हुआ? यही कारण है कि केंद्र सरकार द्वारा अपना अभियान रोके जाने की घोशणा के तुरन्त बाद हीरा नगर इलाके में आतंकवादी सुरक्षा बलों पर हमला करने से बाज नहीं आए।
महबूबबा मुफ्ती की पार्टी का इतिहास और उसकी नीतियों को देखते हुए तो यही लगता है कि उन्होंने जानबूझ कर संघर्ष विराम शब्द का इस्तेमाल किया है ताकि आतंकवादियों और अलगाववादियों को यह जता सकें कि वह भी सत्ता में रहकर उन्हीं का काम कर रही हैं। वैसे भी उनके द्वारा संघर्ष विराम शब्द का उपयोग किए जाने से खास मायने हैं इससे दुनिया के दूसरे मुल्कों को यही संदेश गया होगा कि हकीकत में भारतीय फौज राज्य की सरहदों और कश्मीरी जनता की सुरक्षा नहीं, वरन आतंकवादियों के पकड़ने और खत्मे के बहाने पर उन जुल्म और सितम ढहा रही है, बल्कि उनकी आजादी की वाजिब आवाज को भी कुचल रही है। भारतीय सेना कश्मीरी जनता का नरसंहार कर रही है। अब कम से कम वह रमजान माह में संघर्ष विराम कर उसे रोक दे ताकि वे इस माह में अमन-चैन से रोजे, नमाज और दूसरे मजहबी काम पुर सुकून से पूरा कर सकें। दे। महबूबा यह भी दिखाना चाहती हैं कि वह मजबूरी में यह सब होता देख रही हैं।
वैसे महबूबा मुफ्ती से सीधा सवाल यह पूछा जाना चाहिए था कि देश की सेना क्या कश्मीर घाटी के लोगों के खिलाफ जंग लड़ रही है, जिसे उसे एक महीने के लिए बंद कर देना चाहिए या फिर वह इस राज्य और इस राज्य की अवाम की पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों से रक्षा कर रही है? दूसरा सवाल यह किया जाना चाहिए था कि मुख्यमंत्री मुफ्ती को पाकिस्तानी सेना द्वारा भारतीय सैन्य चौकियों और सीमावर्ती रिहायषी इलाकों पर आए दिन गोलीबारी तथा तोपों से गोले दागे जाने पर क्या उन्हें कोई ऐतराज या उससे किसी तरह की तकलीफ नहीं है? इसमें भारतीय सैनिकों के घायल और मारे जाने के अलावा आम लोग भी जान गंवाते रहते हैं। इससे उनकी सम्पत्ति नष्ट होने के साथ पालतू पशु भी घायल और मारते रहते हैं। यहां तक कि वे बिना भय के न तो खेतीबाड़ी कर पाते हैं और न अपने पशु ही चरा पाते हैं। गोलीबारी शुरू होते ही रिहायषी इलाकों से लोगों को घरों से निकल कर अपनी जान बचाने को बंकरों में आसरा लेना पड़ता है। अब तो सरकार भी ऐसे सभी इलाकों में बड़ी संख्या में बंकरों का निर्माण करा रही है। फिर भी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पाकिस्तान से न तो संघर्ष विराम का लगातार उल्लंघन कर गोलीबारी करने और न आतंकवादियों को सीमा में घुसपै" कराने में मदद करने पर उसकी आलोचना या उससे शिकायत ही की है। अब केंद्र सरकार ने महबूबा की मांग के मुताबिक कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के विरुद्ध अभियान पर रोक लगा दी है, तो क्या वह इस बात की गारंटी लेंगी कि कोई आतंकवादी इस दौरान सैन्य कर्मियों के काफिले या उनके शिविरों या अवकाश पर अपने घर आए सैन्य या पुलिसकर्मियों पर हमला नहीं करेगा? इस दौरान एक सच्चे मजहबी मुसलमान की तरह खुद को मारकाट से दूर रखेंगे। यदि आतंकवादी पहले की तरह वारदातें करते हैं तो केंद्र सरकार के एक तरफा अभियान बंद किया जाना फिजूल साबित होगा।
अपने राज्य में पाकिस्तान समर्थक अलगावादियों, आतंकवादियों, इनके हिमायती पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तन मुर्दाबाद समेत मुल्क विरोधी तमाम नारों के साथ पाकिस्तान और दुनिया के सबसे बड़े दहशतगर्द संग"न आईएसके झंडे लहराते हुए सेना, सुरक्षाबलों, पुलिसकर्मियों पर पत्थर बरसाने वालों के साथ दबे-लहजे में हमदर्दी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ही नहीं, कश्मीर घाटी के सभी सियासी दलों के नेताओं समेत कथित सेक्युलर दलों के नेता भी जताते आए हैं। महबूबा सरकार हजारों की संख्या में पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज मुकदमें यह कहकर वापस ले चुकी हैं कि यह उनका पहला अपराध है। इस तरह ये युवा अपराध के रास्ते पर चलने से बच जोंगे। लेकिन महबूबा और कश्मीर घाटी समेत देश के दूसरे नेताओं ने कभी उन सैनिकों के पति कभी हमदर्दी जताने की जरूरत नहीं समझी, जो इन पत्थरबाजों द्वारा तरह-तरह से किए जाने वाले अपमान को सहते हुए अपनी जिम्मेदारी मुस्तैदी से निभाते आ रहे हैं। लेकिन जब कभी सैन्यकर्मियों ने अपनी सुरक्षा के लिए सख्ती दिखाई तो इन सभी ने उन्हें जुल्मी "हराने की कोशिश की है। यहां तक कि मानवाधिकारों की दुहाई देते हुए सैन्यकर्मियों पर मुकदमे दर्ज कराए गए, किन्तु पत्थरबाजों द्वारा स्कूल बसों पर पत्थराव और उसमें छात्रों के घायल होने पर भी उनकी निन्दा/भर्त्सना किए जाने बचने की पूरी कोशिश की गई। अब तक तमाम चेतावनियों के बाद भी सेनाकर्मियों द्वारा आतंकवादियों को पकड़ने की घेराबंदी करने पर पत्थरबाज उन पर पत्थर बरसाने बाज नहीं आ रहे हैं, ऐसे में कई बार सैनिकों को अपने बचाव में गोली चलाने को मजबूर होना पड़ता है, फिर भी मुख्यमंत्री मुफ्ती ने सैनिकों का नहीं, पत्थरबाजों की ही हिमायती करती आई है ताकि उनका वोट बैंक सुरक्षित बचा रहे। अपने देश का दुर्भाग्य है कि हजारों साल की गुलामी के बाद भी लोग आजादी की कीमत नहीं समझ रहे हैं और सत्ता के क्षुद्र स्वार्थ के कारण देशद्रोहियों का असल चेहरा बेनकाब करने से बराबर बचते आ रहे हैं, जिसका ये लोग फायदा उ"ा रहे हैं।

Share it
Top