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साक्षात नर्क और भ्रष्टाचार की अड्डा हैं जेलें

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:12 July 2018 2:30 PM GMT
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डॉ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में बागपत की जिला जेल में पूर्वांचल के माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी उर्फ पेमपकाश सिंह को दुर्दांत अपराधी सुनील रा"ाr द्वारा गोलियों की बौछार कर मार डालने की घटना ने देश की जेलों की उस हकीकत को उजागर कर दिया है जिसे जानकर भी शासन-सत्ता में बै"s सभी लोग अनजान होने का ढोंग करते आए हैं।

इस हत्याकांड से स्पष्ट है कि राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की सरकार के दौर में भी अपराधियों, जेल अधिकारियों-जेल कर्मियों, पुलिस कर्मियों का ग"जोड़ यथावत बना हुआ है। इसकी बदौलत जेलों में जेल अधिकारियों का नहीं, अपराधियों के सरगनाओं का राज चलता आया है। बागपत जेल में पिस्तौल समेत बड़ी संख्या में कारतूसों का पहुंचना उसकी निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल देता है। बागपत में जो कुछ हुआ, वह बगैर जेलकर्मियों की मदद के संभव नहीं था जिसके लिए कोई और नहीं वरन जेलों में व्याप्त अपरिमित भ्रष्टाचार जिम्मेदार है। इसके लिए आजादी के बाद सत्ता में आने वाली सभी राजनीतिक पार्टियों की सरकारें बराबर की दोषी हैं। भ्रष्टाचार के चलते जहां जेलें दुर्दांत और धनी अपराधियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह ही नहीं, एक तरह से पिकनिक स्पॉट भी बने हुई हैं, क्योंकि उन्हें यहां घर या होटलों के मनपसंद स्वादिष्ट खाना स्मार्ट फोन, टीवी मादक पदार्थों, दूसरे भोग-विलास के साथ-साथ चेले-चपाटों से मिलने और चौथ वसूली, खनन, शराब, सड़क, पुल आदि के "sके/पट्टे लेने, अपने विरोधियों से निपटने की साजिश, तिजारत और सियासत करने की पूरी छूट तथा सुविधा है, वहीं घूस न दे पाने वाले गरीब मामूली अपराधों में सजा काट रहे बंदियों के लिए ये जेलें जुल्मगाह/साक्षात नर्प हैं। इन जेलों में अपराधियों को वे सभी वस्तुएं और सुख-सुविधाएं उपलब्ध हैं, जो जेलों में निषिद्ध/पतिबंधित हैं। वहीं भ्रष्टाचार के चलते बंदियों को घटिया खुराक और दूसरी सुविधाएं भी नहीं मिलती, जिसके लिए ये हकदार होते हैं।

इस सच्चाई/जमीन हकीकत से मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और देश के सभी छोटे-बड़े नेता परिचित न हो, ऐसा नहीं है, क्योंकि इनमें से अधिकतर को किसी न किसी का आंदोलनों या दूसरे कारणों से जेल से वास्ता जरूर पड़ा हुआ होगा। ये हालात केवल उत्तर पदेश की जेलों के ही नहीं, कमोबेश रूप में पूरे देश की जेलों के है। अब बागपत जेल में इस गोलीबारी पर सपा के पवक्ता राजेन्द्र चौधरी योगी सरकार पर कानून व्यवस्था ने संभालने का आरोप लगा रहे हैं, जैसे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव की सरकारों के रहते जैसे जेलों में ऐसा कुछ नहीं होता था। जहां तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार का प्रश्न है तो अपने पूर्ववर्तियों की तरह उनकी नियत और नीति में कोई खोट नहीं है।

शासन की ओर से हर जिला अधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी)को निर्देश हैं कि वे एक महीने में जेलों का निरीक्षण जरूर करें इन्हें कुछ जेलों में कुछ आपत्तिजनक सामग्रियां भी मिली थीं। लेकिन जेलों के जैसे भयावह हालात हैं, उनका जिक्र इन अधिकारियों ने पता नहीं, क्यों नहीं किया? ये वे ही बता सकते हैं।

अब जहां तक भारतीय जेलों का सवाल है तो देशभर की जेलें वैसी नहीं है, जैसा कुछ समाजशास्त्राr चाहते हैं यानि सुधारगृह के रूप में। लेकिन असलियत यह है कि ये जेलें अपराधशाला बनी हुई हैं, जहां छोटे-मोटे अपराधी या फर्जी शिकायत पर जेल आए बेकसूर, रिश्वत न दे पाने वाले गरीब बंदियों को कूर और दुर्दांत अपराधियों से अपराध सीखने का पूरा मौका और उनकी शार्गिद हासिल होती है। उन्हें भ्रष्टाचार का पशिक्षण जेलकर्मियों से मिलता है जिन्हें हर काम के लिए घूस चाहिए। जेल में अपने परिजनों/मित्रों से मिलाई के बदले बंदियों को नियत धनराशि घूस के रूप में देनी पड़ती है। परिजनों द्वारा बंदियों के लिए लाए खाने-पीने की वस्तुओं में आध बंटाई के साथ रिश्वत भी देनी पड़ती है। जो बंदी अपनी खराब आर्थिक स्थिति या अन्य किसी कारण से रिश्वत देने में असमर्थता जताते हैं उन्हें न केवल तरह-तरह से अपमानित और पताड़ित किया जाता है, बल्कि उन्हें भयानक यातनाएं दी जाती हैं, जिन्हें बर्दाश्त कर पाना हर किसी के लिए संभव नहीं होता। इसलिए बंदी के परिजन घर, जमीन गिरवी रखकर/बेचकर जेल टैक्स देने को मजबूर होते हैं। बंदियों को मशक्कत कटवाने/अस्पताल में भर्ती होकर आराम करने की अलग रिश्वत देनी पड़ती हैं। बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा, शराब, गांजा, चरस आदि के लिए जेलकर्मी बंदियों से असल कीमत से कई-कई गुना अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। स्मार्ट फोन, टीवी, विदेशी शराब, होटल से खाना मंगा कर लाने के महीनेदारी देनी होती है। जेल के अस्पताल और उससे बाहर आकर अस्पताल में भर्ती होने की अलग फीस चुकानी होती है।

कहना यह है कि जेब में पैसा है तो जेल फिर जेल नहीं है। यहां तक जेल में अपने दुश्मनों से बदला लेने या हमेशा को खत्म करने का मौका भी जेल अधिकारी ही उपलब्ध करा देते हैं। बागपत की वारदात भी कुछ ऐसा ही इशारा कर रही है जहां दुर्दांत अपराधी सुनील रा"ाr मुन्ना बजरंगी को गोली मारने में इस्तेमाल पिस्तौल को उसी की बताते हुए इस घटना को अब आत्मरक्षा में गोली चलाना साबित करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन मुन्ना बजरंगी या फिर सुनील रा"ाr तक हथियार पहुंचना और इस घटना से पहले वीडियो बनाया जाना तथा उसका वायरल होना, जो कुछ बयां कर रहा है, उसे बताने की जरूरत नहीं।

वैसे राज्य सरकार ने जेलों की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के इरादे से इनमें सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश जारी किए थे, किन्तु अभी तक 71 जेलों में से 47 में ही ये कैमरे लग पाए हैं।

इन जेलों में जैमर लगाने के आदेश भी जारी किए गए ताकि बंदी मोबाइल फोन का इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों में न कर पाएं। लेकिन इस आदेश पर भी अमल नहीं हुआ है। लेकिन यहां प्रश्न सुरक्षा व्यवस्था से कहीं ज्यादा जेलों में फैले भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह को तोड़ने का है। शासन-पशासन, राजनीति में बै"s कौरव किसी भी हालत में किसी भी अभिमन्यु को इस चक्रव्यूह को तोड़ने नहीं दे रहे हैं।

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