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एक ऐसा संन्यासी जो ईश्वर के साक्षात्कार का भी अनुभव सार्वजनिक करता है

👤 admin5 | Updated on:14 Jun 2017 3:34 PM GMT
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विश्वभूषण मिश्र

स्वामी विवेकानंद सनातन की संन्यास परंपरा में एक ऐसा नाम है जो युवाओं को सर्वाधिक आकर्षित करता है। यह आकर्षण विचारशीलता से लेकर महत लक्ष्य साधना के पाप्य होने की मनोदशा तक ले जाने का आलंब भी है और दुरूह परिस्थितियों के सम्मुख डटकर खड़े हे जाने का साहस भी है। नरेंद्र नाथ से स्वामी विवेकानंद होने की जीवन यात्रा हो अथवा स्वामी विवेकानंद के भाषणों में व्यक्त विचार, सब कुछ चमत्कृत करने वाला है। यह एक ऐसे संन्यासी का दृष्टांत है जिसके उपदेश वचनों तक सीमित नहीं है। और न ही संन्यासी जीवन के रहस्यवाद की ओट में छुपा हुआ मानवीय चरित्र ही पेरणा में कोई बाधा उत्पन्न करता है।

नरेंद्र नाथ के आर्थिक पारिवारिक संघर्ष हों या फिर आध्यात्मिक मार्ग पर चलते विवेकानंद की ईश्वर के अस्तित्व के पति शंका, कुछ भी असामान्य महिमामंडित नहीं है। स्वाभाविक मानव जीवन की समस्त दुविधाएं नरेंद्र के सम्मुख वैसे ही मुंह फैलाए खड़ी दिखती हैं जैसे संघर्षशील किसी भी युवा को परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ता है। पायः संन्यास मार्गी के व्यक्तिगत जीवन की रहस्यमयता जन सामान्य के धार्मिक रूझान को तो तुष्ट करती है परंतु व्यावहारिक जीवन में कोई व्यक्ति को कोई मार्ग नहीं सुझा पाती और इसीलिए सनातन परंपराओं को आत्मसात कर महत लक्ष्यों को जीना दैनन्दिन आवश्यकताओं से जूझते व्यक्ति के लिए विलासिता के पार की मनःस्थिति पतीत होती है। आध्यात्म धर्म से कहीं आगे और कहीं बलवती धारणा है।

आध्यात्मिक जन सामान्य के लिए साधु-वैरागी या फिर आर्थिक सामाजिक संघर्षों से मुक्त समृद्ध व्यक्ति के लिए बनी हुयी अवधारणा के रूप में ही ग्राह्य पतीत होती है। परंतु स्वामी विवेकानंद एक ऐसे संन्यासी का जीवन वृत्त जी कर पस्तुत करते हैं जो युवा आयु के आर्थिक सामाजिक संघर्ष भी जीता है और आध्यात्म के परम स्थान को भी पाप्त करता है।

एक ऐसा संन्यासी जो ईश्वर के साक्षात्कार का भी अनुभव सार्वजनिक करता है और दरिद्र नारायण की अवधारणा का उद्घोष कर तत्कालीन भारत की जनसंख्या के तैंतीस करोड़ भारतवासियों में ही ईश्वर दर्शन का उद्घोष भी करता है। एक ऐसा संन्यासी जो वसुधैव कुटुम्बकम का शंखनाद तो करता है परंतु राष्ट्रीय स्वाभिमान और देशपेम के व्यावहारिक पक्ष को लेकर भी उतना ही पखर है। एक ऐसा संन्यासी जो भारत की आध्यात्मिक श्रेष्"ता के केवल दावे नहीं करता अपितु विश्व धर्म महासभा में श्रेष्"ता सिद्ध भी कर देता है। एक ऐसा संन्यासी जो आध्यात्मिक श्रेष्"ता के बाद भी भारत की भौतिक दीनता और राजनैतिक पराभव को स्वीकार करता है और उस पराभव का कारण भी चिन्हांकित करता है। एक ऐसा संन्यासी जो भारत के आध्यात्म और पश्चिम के विज्ञान के सम्मिलन से ही मानवता के भविष्य को सुखकर मार्ग पर ले जाने का उपदेश देता है। एक ऐसा संन्यासी जो आध्यात्मिक मार्ग के अनुसरण के लिए वृद्धावस्था की पतीक्षा करने की बजाए युवा आयु में ही मन और चित्त की दृढ़ता के लिए आध्यात्मिक होने और भौतिक जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ आदर्श विश्व के निर्माण का मार्ग दिखाता है।

विवेकानंद का जीवन साहस को केवल ईश्वर पदत्त जन्मजात गुण नहीं, पाप्य लक्ष्य सिद्ध करता है। जो मानवीय दुर्बलताओं को शर्म और संकोच का पर्याय नहीं अपितु स्वाभाविक रूप में स्वीकार करता है और उनसे पार जाने का व्यावहारिक मार्ग भी दिखाता है। राह चलते विवेकानंद का बंदरों से डर कर भागना भी हम जानते हैं और यह घटना स्वयं अपने संस्मरण से बताने में उन्हें संकोच नहीं है। डर स्वाभाविक है। और फिर एक बार तन कर खड़े हो जाने के बाद बंदरों का भाग जाना विवेकानंद को यह विचार देता है कि जीवन की कोई भी दुरूह स्थिति ऐसी ही है, भागना निदान नहीं है। सामना करने का साहस जब कर लिया समस्याएं उलटे पांव भागती है। भय और साहस के बीच यहीं संघर्ष की मनोदशा है। संघर्ष मार्ग चुन लेना ही दुर्बलताओं का अंत है।

दुर्बलता चाहे विपन्नता की हो या पराधीनता की, व्यक्तिगत हो अथवा सामूहिक राष्ट्रीय अस्मिता की और इसीलिए भारत के स्वाधीनता संग्राम के कर्णधारों से लेकर इक्कीसवीं सदी के भारतीय युवाओं तक, स्वामी विवेकानंद के विचार और व्यक्तित्व की पेरणा एक सी है। बीसवीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रवाद का पखर आंदोलन स्वामी विवेकानंद के विराट व्यक्तित्व से पाण वायु पाकर पल्लवित हुआ यह इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है तो आधुनिक भारत में इक्कीसवीं शताब्दी में उभरे नव राष्ट्रवार की पेरणा भी स्वामी विवेकानंद हैं। पधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार अपने आदर्श के रूप में स्वामी विवेकानंद का नाम सार्वजनिक रूप से ले चुके हैं। नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा था कि वह खाली समय में स्वामी विवेकानंद के विचार पढ़ते हैं और उन विचारों ने इतनी ऊर्जा दी कि रेलवे स्टेशन की छोटी-सी दुकान पर चाय बेचने वाला बालक नरेंद्र भारत का पधानमंत्री बन राष्ट्र उन्नति में महती भूमिका निभाने की स्थिति में पहुंच जाता है।

पगति और उन्नति के साथ मनःस्थिति और मनोभाव उन्नति की दिशा तय करते हैं। पकांड विद्वान रावण आध्यात्म विहीन होकर पाप का पतीक बन जाता है तो वशिष्" और विश्वामित्र जैसे सद्गुरुओं के मार्गदर्शन से अयोध्या का राजकुमार ईश्वरत्व तक को पाप्त कर लेता है। युवा मेधा को आध्यात्मिक अनुशासन ही सदमार्ग पर ले जाता है और अनुशासन के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता अनिवार्य है। मार्गदर्शन सदैव सद्विचार से ही पाप्त होता है और स्वामी विवेकानंद का विचार ऐसा आवश्यक और उचित मार्गदर्शक बन हमें उपलब्ध है। उद्यमशीलता, निर्भीकता और पर कल्याण की भावना से कर्म करने का व्यावहारिक दृष्टांत स्वयं जी कर स्वामी विवेकानंद ने पस्तुत किया है।

उपदेश का व्यवहार में पयोग कर देना दुर्लभ है। भगवान राम और कृष्ण इसीलिए अवतारी पुरुष माने जाते हैं कि उन्होंने यह जीवन जी कर दिखाया। स्वामी विवेकानंद भी ऐसा ही जीवन दृष्टांत आधुनिक युग में पस्तुत करते हैं। स्वामी विवेकानंद का पसिद्ध आह्वान, `मुझे मात्र सौ ऐसे युवा चाहिए जो राष्ट्रहित के लक्ष्य संधान में पूर्णतः समर्पित हों। साहस, साहस और साहस से भरे हुए मात्र सौ युवा जो पूर्ण विश्वास से स्वयं को लक्ष्य के पति समर्पित कर सकते हों। और मैं भारतवर्ष का भविष्य परम गौरवशाली बना दूंगा।'

आज ऐसे सौ नहीं लाखों युवा स्वामी जी से पेरणा ले साहस और विश्वास के साथ मानवीय दुर्बलताओं से संघर्ष करते और जीतते हुए भारत का वर्तमान गढ़ रहे हैं। भारत माता का गौरव विश्व को चमत्कृत कर रहा है। 1893 की विश्व धर्म-संसद में `सपेरों और मदारियों के देश' के आध्यात्मिक पतिनिधि का जय घोष आज फलीभूत होता दिख रहा है। अंतरिक्ष से लेकर समुद्र तक भारत की उपलब्धियां विश्व को चकित कर रही हैं। भारत की आर्थिक शक्ति से लेकर सैन्य बल तक का लोहा आज दुनिया मान रही है। स्वामी विवेकानंद से पेरणा लेने वाले पधानमंत्री से लेकर विवेकानंद के आह्वान से स्पंदित साहस और विश्वास के सद्गुणों से युक्त अनेकानेक भारतीय यह गौरव गाथा लिख रहे हैं। अभी और महानता पाप्त करनी है, गौरव गान को और भी भव्य करना है भारत माता के वैभव को और समृद्ध करना है, पत्येक भारतवासी को सुखी बनाना है, दरिद्र नारायण को समृद्ध नारायण तक ले जाना है। स्वामी विवेकानंद के वचन, कर्म और जीवन की पेरणा शक्ति से ऊर्जावान भारत का युवा यह लक्ष्य भी पाप्त करेगा ऐसा मुझे सहज विश्वास है।

(लेखक उप्र में प्रशासनिक अधिकारी हैं।)

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