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मुस्लिम फिरकापरस्ती का शिकार कतर

👤 admin5 | Updated on:19 Jun 2017 3:43 PM GMT
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डॉ.बचन सिंह सिकरवार

खाड़ी मुल्क कतर और दूसरे मुल्कों को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कड़ी चेतावनी देते हुए उन्हें आतंकवाद के लिए धन उपलब्ध कराना बंद करने की जिस तरह हिदायती गई है, वह चौंकाने वाली है। उसके निहितार्थ समझना भी आवश्यक है। अब अमेरिका और मुस्लिम देशों के कतर के पति अपनाए जा रहे रुख-रवैये औ नीतियों से भारत भी पभावित हुए बगैर नहीं रहेगा, जिससे वह बड़ी मात्रा में कच्चे तेल तथा पाकृतिक गैस का सबसे ज्यादा आयात नहीं करता, बल्कि कोई साढ़े छह लाख भारतीय भी विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। इतना ही नहीं, इसके साथ भारत के कई कंपनियों वहां परियोजनाओं को पूरा करने में जुटी हैं।

भारत के सऊदी अरब समेत कई अहम दूसरे मुस्लिम देशो बहरीन, यमन, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से भी बेहतर संबंध हैं, जिन्होंने कतर से गत 5 जून को यह आरोप लगाते हुए अपने राजनयिक और व्यापारिक संबंध तोडने के साथ-साथ लोगों के आने-जाने पर पाबंदी लगाने की पक्रिया शुरू कर दी है कि वह `मुस्लिम ब्रादरहुड', `अल कायदा', `इस्लामिक स्टेट' (आईएस) जैसे दहशतगर्द संग"नों से रिश्ते रखता है और ईरान से साथ तालमेल बढ़ा रहा है। इस मुद्दे पर लीबिया तथा मालदीव भी अरब देशों के साथ हैं। इन आरोपों के जवाब में कतर का कहना है कि फिलीस्तीन के सुन्नी मुसलमानों के संग"न `हमास', हिज्बुल्ला लेबनान और मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे संग"न अपने घरेलू हितों के लिए जंग कर रहे हैं। वैसे कतर पर `हमास' तथा सीरिया में `नुसरा फ्रंट' जैसे सुन्नी आतंकवादी संग"नों पोषित करने के आरोप लगते रहे हैं जो गलत भी नहीं हैं। इस तरह वह इनकी दहशतगर्दी को गलत नहीं मानता। उसका कहना इसलिए भी गलत नही, क्योंकि सऊदी अरब यमन, सीरिया आदि में शिया शासकों से लड़ रहे दहशतगर्दों की खुलकर मदद करता आया है। इसमें अमेरिका भी मददगार रहा है। क्या अमेरिका नहीं जानता कि दुनिया में सुन्नियों को सबसे बड़े दहशतगर्द संग"न अलकायदा, इस्लामिक स्टेट किसकी देने हैं फिर भी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे पहले अपनी विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुना, जबकि वह कई मुस्लिम मुल्कों के नागरिकों के अमेरिका में घुसने को पतिबंधित कर चुके हैं। लेकिन अरब डॉलर के व्यापार के लालच में उन्होंने सऊदी अरब को यात्रा के लिए चुना। यही अमेरिका का दोगला रवैया है। जिस कतर की अमेरिका दहशतगर्दों का मददगार बता कर आलोचना कर रहा है। वह अमेरिका का लंबे समय से निकट सहयोगी रहा है। इस मुल्क में सेंट्रल कमांड है, जहां अमेरिका के दस हजार सैनिक रहते हैं। इस सैन्य अड्डे से ही अमेरिका पहले इराक,अब सीरिया आदि में हवाई हमले कर बम बरसाता है। वैसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के कतर के खिलाफ बयान ऐसे समय पर आया है जब उसके विदेशमंत्री रेक्स टिलरसन ने सऊदी अरब और उसके दूसरे क्षेत्रीय सहयोगियों से कतर के साथ गतिरोध में नरमी लाने का अनुरोध किया है। इससे क्षेत्र में अमेरिकी सेना की गतिविधियो तथा इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में बाधा पैदा हो रही है।

इधर पांच खाड़ी के देशों के उससे संबंध तोड़े जाने के फैसले को कतर ने आधारहीन और न्याय के खिलाफ बताया है। वह कई बार कह चुका है कि वह आतंकवादी संग"नों को धन और सुविधों नहीं देता। उधर ईरान ने आरोप लगाते हुए कि इसकी साजिश राष्ट्रपति ट्रंप के सऊदी अरब के दौरे के दौरान तैयार कर ली गई थी। कुल मिलाकर दुनिया के मुसलमान देशों को शिया-सुन्नी के नाम पर आपस में लड़ाया जा रहा है।

नई परिस्थिति में भारत के लिए इन सभी मुल्कों के साथ कूटनीतिक तालमेल बि"ाना किसी कड़ी चुनौती से कम नही है, क्यों कि ये सभी तेल उत्पादक देश हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से यइ पूरा क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है।

वैसे सच्चाई यह है कि विश्वभर में आतंकवाद को पैदा करने, उसे पनपने, उसका पोषण और आतंकवादियों को पशिक्षण, आधुनिक घातक हथियार तथा बड़ी मात्रा में धन देने के लिए सबसे अधिक अमेरिका और सऊदी अरब तथा उसके सहयोगी देश दोषी हैं, जो अपने राजनीति/व्यापारिक वर्चस्व, शस्त्राsं के व्यापार, वहाबी सलाफी कट्टपरपंथी इस्लामिक विचारधारा फैलाने को यह धतकरम करते आए हैं।

वस्तुतः खाड़ी के मुल्कों में बेहद छोटा-सा मुल्क कतर अपने तेज विकास और बढ़ती सम्पन्नता के कारण पड़ोसी देशों की आंखों की किरकिरी बना हुआ है, जो कभी सबसे गरीब मुल्क हुआ करता था। उसने अपने तेल के आरक्षित भंडार बनाने शुरू कर दिए हैं और कुछ दूसरी वजह हैं, जिससे अमेरिका कुपित है। कतर सिर्प 160 किलोमीटर लंबी जीभ के आकार का भूखंड वाला देश है जिसकी नोक फारस (अरब) की खाड़ी को छूती है। यह तीन ओर से फारस की खाड़ी से घिरा हुआ है। इसके दक्षिण में अरब सागर है। इसका क्षेत्रफल 11,437 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 27 लाख से अधिक है जो राजधानी दोहा और इसके आसपास रहती है। यहां की भाषा अरबी, अंग्रेजी तथा धर्म इस्लाम है। इस देश की मुदा रियाल है। यह देश तीन सितम्बर 1990 में ब्रिटेन के फारस की खाड़ी पर आधिपत्य समाप्त करने के साथ ही उसकी दासता से स्वतंत्रता हुआ। इस देश की राष्ट्रीय आय में 90 पतिशत योगदान तेल उद्योग से पाप्त होता है।

मुस्लिम देशों के कतर से रिश्ते तोड़े जाने से इस मुल्कों के सामने खाद्यान्न संकट से लेकर उसकी अर्थव्यस्था के लिए कई दूसरे गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं, क्योंकि इस मुल्क की 40 पतिशत खाद्यान्न जरूरतें आयात से पूरी की जाती है जिससे हर रोज सैकड़ों वाहनों से सऊदी अरब से लाया जाता था। छह पमुख मुस्लिम देशों द्वारा `कतर एयरवेज' के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर देने से न केवल सिर्प यात्रियों को कहीं जाने में अधिक समय लगेगा, बल्कि ज्यादा किराया भी चुकाना होगा। इससे कतर एयरवेज को भारी घाटा होने की आशंका है, इस देश की आय का पमुख स्रोत है। इससे पर्यटन, निर्माण उद्योग के साथ व्यापार पर भी विपरीत पभाव पड़ेगा।

कतर के इस नए संकट की वजह यहां के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी द्वारा गत 27 मई का ईरान के राष्ट्रपति अयातुल्ला खोमैनी को दोबारा चुनाव जीतने पर बधाई दिया जाना रहा है, जो सऊदी अरब को बेहद नागवार गुजरा। इसका कारण यह है कि जहां सऊदी अरब सुन्नी मुसलमान बहुल मुल्क है, वहीं ईरान मैं 97 फीसदी शिया मुसलमान रहते है जो सदियों एक-दूसरे से दुश्मनी मानते आए हैं। इतना ही नही, कतर के अमीर ने यह आरोप भी लगाया था कि खाड़ी के देश और अमेरिका ईरान के खिलाफ सख्ती दिखा रहे हैं। हालांकि कतर की सरकारी न्यूज एजेंसी द्वारा उक्त विवास्पद बयान जारी करने पर उसे पतिबंधित कर दिया। कतर के विदेशमंत्री शेख मुहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी द्वारा यह सफाई दी गई कि इस न्यूज एजेंसी को किसी ने हैक कर लिया था। इसकी पुष्टि एफबीआई ने भी की है कि न्यूज एजेंसी ने फर्जी खबर डाली थी, लेकिन इससे बात नही बनी। दरअसल इन मुल्कों तथा कतर के बीच तनाव की शुरुआत सन 2013 से हुई है,जब मिस्र में के इस्लामिक राष्ट्रपति मुहम्मद मोर्सी को सेना ने हटा दिया गया, जो कट्टरपंथी मुस्लिम ब्रदरहुड का सदस्य था। इसका कतर भी घोर समर्थक और मददगार है। मोर्सी पर आरोप लगे थे कि उन्होंने अपने मुल्क खुफिया दस्तावेज कतर को सौंप दिए हैं। मोर्सी को कतर के खुलेआम हिमायत की वजह से सन 2014 मैं संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने अपने राजदूतों को वापस बुला लिया था। उस समय कुवैत ने सुलह कराई थी।

फिलहाल खाड़ी देशों को देखते हुए पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरीतानिया ने भी कतर से अपने संबंध तोड़ने की घोषणा की है,जो अरब लीग का सदस्य है। इस बीच जॉर्डन ने भी कतर से अपने संबंधों का स्तर घटाने की बात कही है। तेल निर्यातक देशों के संग"न `ओपेक' के सदस्य गैबन ने आतंकवाद के मुद्दे पर कतर की निन्दा की है,पर नाटो के सदस्य देश तुर्की के राष्ट्रपति तैयप्एर्दोगन ने कतर के खिलाफ कुछ नहीं करने की घोषणा की है। इस विषम परिस्थिति और गंभीर संकट को लेकर परेशान कतर के शासक चाहते है कि इसके के समाधान के लिए कुवैत के शासक सभी पक्षों से मिलकर और बातकर संकट का हल निकालें। वैसे भी कतर के शासक कुवैत के अमीर को अपना अभिभावक के रूप में देखते है। उनके देश के खिलाफ उठाए गए कदमों से उसके नागरिकों तथा खाड़ी के अरब देशों के पारिवारिक रिश्तों पर पतिकूल अभूतपूर्व असर डालेंगे। कतर चाहता है कि विवाद का बातचीत के जरिए हल किया जाए। वह ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा, जिससे विवाद बढ़े। अमेरिका से हमारा राजनीतिक संबंध है। कई ऐसी चीजें हैं जिन पर हम सहमत नहीं है, किन्तु सहयोग के कई ऐसे क्षेत्र है जिनसे विवादित मुद्दे कोई माने नहीं रखते।

अब देखना यह है कि कुवैत के शासक इस मसले को हल करने में कहां तक कामयाब होते हैं? वैसे यह संकट अमेरिका का पैदा किया हुआ है, वही इसका आसानी से हल कर सकता है, पर सवाल यह है कि किस कीमत पर? लेकिन इसकी भारत को क्या कीमत चुकानी होगी, इस पश्न का उत्तर भी भविष्य ही बताएगा?

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