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कर्ज से डूबे किसानों को राहत पहुंचाएगा भारत-इजरायल समझौता
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आदित्य नरेन्द्र
जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल की यात्रा पर गए हैं तभी से भारत और इजरायल के बीच बढ़ते रक्षा संबंध मीडिया की सुर्खियों में लगातार बने हुए हैं लेकिन इस दौरान हुए समझौतों में एक समझौता ऐसा भी है जो भविष्य में जल संकट से जूझते किसानों को न केवल राहत पहुंचाएगा बल्कि उन्हें कर्जदार बनने और कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या करने जैसे अतिवादी कदम उठाने से भी रोकेगा।
आज से 70 साल पहले जब इजरायल दुनिया के नक्शे पर अस्तित्व में आया था उस समय इजरायल जल संकट से बुरी तरह जूझ रहा था। देश का लगभग 60 फीसदी हिस्सा रेगिस्तान था। दूसरी ओर समुद्र था जिसका खारा पानी न तो खेती के काम का था और न ही पीने के। देश के शेष हिस्से में भी जरूरत के लायक बारिश नहीं होती थी। लेकिन आज स्थिति बिल्कुल उलट है। इजरायली लोगों और वहां की सरकार ने अपने संकल्प के दम पर स्थिति को बदलकर रख दिया है। आज इजरायल पिछले सात दशकों में अपनी आबादी के कई गुना बढ़ने के बावजूद भी न केवल अपनी जरूरत लायक अन्न का उत्पादन करता है बल्कि कुछ कृषि उत्पादनों का निर्यात भी कर लेता है। इसके लिए इजरायल ने जल शोधन और जल संग्रह की तकनीक तो विकसित की ही है साथ ही समुद्र के खारे पाने को मीठे पानी में बदलने की तकनीक पर काम करके जल संकट से जूझ रहे भारत को भी एक रास्ता दिखाया है।
अब यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि हम भी धीरे-धीरे जल संकट की ओर बढ़ रहे हैं। बुंदेलखंड, राजस्थान का पश्चिमी इलाका और महाराष्ट्र के कई क्षेत्र ऐसे हैं जो पिछले कई दशकों से पानी की कमी से बंजर होते जा रहे हैं। मौसम में परिवर्तन के चलते इसी कड़ी में कुछ और क्षेत्रों के जुड़ने से स्थिति गंभीर हो चली है। दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्थिति को समय रहते ही भांप लिया है। इसी के चलते प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा के दौरान दोनों देश जल और कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं। इस समझौते के तहत जल संरक्षण, जल शोधन और कृषि कार्यों में इसका दोबारा इस्तेमाल, अलवणीकरण, जल उपयोगिता में सुधार और उन्नत जल तकनीक की मदद से गंगा व दूसरी नदियों की सफाई आदि पर खास ध्यान देने की बात कही गई है। देश में जलापूर्ति सिस्टम में सुधार कर जल संकट से निजात दिलाने का प्रयास किया जाएगा।
भारत और इजरायल के बीच होने वाला यह समझौता देश की खाद्य सुरक्षा और कृषि से जुड़े रोजगार के लिए काफी अहम साबित होने जा रहा है। उल्लेखनीय है कि हमारे पास विश्व की कुल ढाई फीसदी जमीन है जिस पर दुनिया के 17 फीसदी लोग रहते हैं। इस तरह देखा जाए तो दुनिया का हर छठा व्यक्ति भारतीय है। कृषि योग्य जमीन पर बढ़ती आबादी का बोझ लगातार बढ़ रहा है। पिछले कई दशकों में जल प्रबंधन सरकारों और आम नागरिकों की उपेक्षा का शिकार रहा है। हमने पानी के साथ मुफ्त में और हमेशा उपलब्ध रहने वाली चीज की तरह व्यवहार किया है जिसके दुष्परिणाम आज हमारे सामने आने शुरू हो गए हैं। सूखे से फटती जमीन और किसानों की कर्जमाफी की मांग के चलते स्थिति ने विकराल रूप धारण कर लिया है। किसानों की आत्महत्या की खबरें इसमें आग में घी डालने जैसा काम कर रही है। यह समस्या छूत की बीमारी की तरह एक से दूसरे राज्यों में तेजी से फैल रही है। उधर सरकार ने किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने का ऐलान कर रखा है। ऐसे में आधे देश में बाढ़ और आधे में सूखे के चलते स्थिति गंभीर बनी हुई है। उम्मीद है कि कृषि और जल को लेकर किया गया भारत-इजरायल समझौता आने वाले वर्षों में सूखे की चपेट में आए क्षेत्रों में भी समृद्धि के नए द्वार खोलेगा और कर्ज के बोझ तले आत्महत्या करने वाली मीडिया की सुर्खियां इतिहास बनकर रह जाएंगी।
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