महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव में क्या गुल खिलाएंगे दलबदलू
-आदित्य नरेन्द्र
यह तय है कि दल बदलने वाले इन अधिकांश नेताओं की पहली पसंद भाजपा होने के चलते चुनाव में यह दलबदलू नेता फिलहाल भाजपा के लिए जीत का पैगाम लाते दिखाईं दे रहे हैं। चूंकि लोकतंत्र में अंतिम पैसला जनता का होता है इसलिए अंतिम निष्कर्ष निकालने से पहले चुनाव परिणाम का इंतजार करना बेहतर होगा।
आज के दौर में राजनीतिक दलों के लिए चुनाव विचारधारा के आधार पर जीतना महत्वपूर्ण नहीं रहा है। अब तो राजनीतिक दलों का एकमात्र उद्देश्य सत्ता प्राप्ति हो गया है और अब वह 'साम, दाम, दंड, भेद' किसी भी तरह से चुनाव में जीत हासिल करना चाहते हैं। इसी के चलते अब बड़ी संख्या में ऐसे नेता दिखाईं दे रहे हैं जिनके लिए विचारधारा कोईं मायने नहीं रखती और जब उनके लिए कोईं विचारधारा मायने ही नहीं रखती तो पाटा के लिए संघर्ष का सवाल ही पैदा नहीं होता। यही कारण है कि हम अपने आसपास बड़ी संख्या में ऐसे नेताओं को देख रहे हैं जो खुद की सत्ता बचाने के लिए ही संघर्ष कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें उन दलों से भी हाथ मिलाने या उसमें शामिल होने में कोईं हिचक नहीं है जिनका विरोध वह काफी अरसे से करते चले आ रहे थे। पिछले लोकसभा के चुनाव परिणामों से यह तो स्पष्ट हो गया कि देश में भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी का प्रभाव बढ़ा है। अब चूंकि महाराष्ट्र और हरियाणा में आगामी 21 अक्तूबर को विधानसभा चुनाव होने हैं और दोनों ही राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं ऐसे में कईं नेताओं के लिए अपनी वुसा बचाने का एक रास्ता भाजपा की अंगुली पकड़कर अपनी नैया पार लगाने का है। इसी के चलते पिछले वुछ महीनों से इन दोनों राज्यों में अनेक नेता गुपचुप भाजपा नेताओं से सम्पर्व बनाए हुए थे। चुनाव की आहट मिलते ही भाजपा नेतृत्व ने उन्हें अपनी पाटा में शामिल करना शुरू कर दिया ताकि अपने पक्ष में माहौल बनाया जा सके।
महाराष्ट्र और हरियाणा में लगभग तीन दर्जन बड़े नेता अपनी पाटा छोड़ चुके हैं। हरियाणा में उन्हें सुरक्षित ठिकाना भाजपा में दिखाईं दिया है तो महाराष्ट्र में भी इन दल बदलने वाले नेताओं की पहली पसंद भाजपा ही बनी है। दूसरी पसंद के रूप में शिवसेना सामने आईं है। क्योंकि जिन नेताओं को भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद नहीं थी उन्होंने शिवसेना ज्वाइन करना बेहतर समझा ताकि उन्हें टिकट मिलने में दिक्कत न हो। महाराष्ट्र से कांग्रेस, एनसीपी छोड़कर भाजपा-शिवसेना में शामिल होने वाले बड़े नामों में राधावृष्ण विखे पाटिल, शिवेन्द्र राजे भोंसले, संदीप नाइक, वैभव पिचड़, उनके पिता मधुकर पिचड़, कालीदास कोलंबकर, चित्रा बाघ, संग्राम जगताप, राजा जगजीत सिह और मरमू पाटिल जैसे डेढ़ दर्जन से भी ज्यादा बड़े नेता शामिल हैं।
उधर हरियाणा में इनेलो के 10 विधायक इस्तीफा देकर पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इसकी शुरुआत रणवीर गंगवा से हुईं जो कभी इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला के खास थे। उनके अलावा विधायक परमिन्द्र सिह ढुल, जाकिर हुसैन, केहर सिह रावत, बलवान सिह, मक्खन सिगला, रामचन्द्र काम्बोज, प्रो. रविन्द्र वालिया और नगेन्द्र भड़ाना भी भाजपाईं हो चुके हैं। हालांकि वुछेक नेता कांग्रेस व एनसीपी में भी शामिल हुए हैं। इनमें हरियाणा इनेलो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा का नाम प्रमुख है जिन्होंने कांग्रेस में जाना बेहतर समझा है।
कहा जा रहा है कि एनसीपी-कांग्रेस में शामिल होने वाले नेताओं को हवा के विपरीत इसलिए तैरना पड़ा क्योंकि उन्हें भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद नहीं थी। अब सवाल यह है कि महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव में यह दलबदलू क्या गुल खिलाएंगे। इस सवाल के जवाब में इतना तो तय है कि हम जिन नेताओं को दलबदलू करार दे रहे हैं उन्हें भाजपा नेतृत्व जिताऊ उम्मीदवार मानकर चल रहा है। उसका मानना है कि यह नेता अपनी सीट तो निकाल ही लेंगे, साथसाथ अपने आसपास की सीटों पर भी असर डाल सकते हैं। उधर महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस नेतृत्व से नाराज लोगों की संख्या बढ़ रही है।
हरियाणा कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर और मुंबईं कांग्रेस के अध्यक्ष संजय निरूपम का दर्द एक जैसा है। उन्हें शिकायत है कि उनकी सिफारिश पर एक भी टिकट नहीं दिया गया। एनसीपी में भी पाटा नेतृत्व से अजित पवार की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। बेशक ऐसे नेताओं ने अभी पाटा न बदली हो पर ऐसे हालात में वह कब तक पाटा में टिवेंगे यह देखने वाली बात है। फिलहाल तो यह तय है कि दल बदलने वाले इन अधिकांश नेताओं की पहली पसंद भाजपा होने के चलते चुनाव में यह दलबदलू नेता फिलहाल भाजपा के लिए जीत का पैगाम लाते दिखाईं दे रहे हैं। चूंकि लोकतंत्र में अंतिम पैसला जनता का होता है इसलिए अंतिम निष्कर्ष निकालने से पहले चुनाव परिणाम का इंतजार करना बेहतर होगा।