सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर है देश की अर्थव्यवस्था
-आदित्य नरेन्द्र
कोरोना वायरस ने दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं को चोट पहुंचाईं है। यह बात अलग है कि वुछ देशों को कम तो वुछ देशों को अकल्पनीय नुकसान पहुंचा है। कईं देशों के वैज्ञानिक इस बीमारी से पार पाने के लिए कोईं टीका विकसित करने में जुटे हैं। उम्मीद है कि अगले साल तक इसका टीका विकसित कर लिया जाएगा। लेकिन जब तक इसका टीका विकसित होगा तब तक दुनियाभर की तो बात छोिड़ए, सिर्प भारत में ही कईं करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे पहुंच जाएंगे। वेंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर इस स्थिति से निपटने का प्रायास कर रही है।
इसी के चलते सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए के भारी-भरकम आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है। दरअसल कोरोना के पैलने के बाद आधी दुनिया में लागू लॉकडाउन ने स्पष्ट कर दिया है कि कोरोना से मिली आर्थिक चोट बेहद गंभीर है। हालांकि एक ओर जहां कोरोना वायरस की चपेट में आए भारत को विश्व बैंक ने कोरोना रोगियों की जांच, सम्पर्व का निरीक्षण और प्रायोगशाला के लिए एक बिलियन अमेरिकी डॉलर अर्थात लगभग 76 अरब रुपए के इमरजैंसी पंड की घोषणा की है तो वहीं दूसरी ओर वेंद्र सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ मिलकर अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने का प्रायास कर रही है। इसी व््राम में वेंद्र सरकार द्वारा पिछले सप्ताह घोषित पैकेज के बाद अब रिजर्व बैंक ने भी एक बार फिर प्रामुख नीतिगत दर रेपो में 0.40 प्रातिशत की अप्रात्याशित कटौती कर दी है। इसके साथ ही कर्जदारों को कर्ज की किस्त चुकाने में तीन महीने की और छूट दे दी है। लेकिन इससे समस्याओं को सुलझाने में पूरी तरह मदद नहीं मिलेगी। सरकार को चाहिए कि वह वोटर आईंडी या अन्य किसी पुख्ता पहचान पत्र के आधार पर प्रात्येक नागरिक को एकमुश्त राशि प्रादान करे। जोकि उसे वापस न करनी पड़े। सरकार द्वारा पहले दिए गए पैकेजों या उनके खातों में जो रकम डाली गईं है उसमें बहुत से नागरिक पात्र होते हुए वंचित रह गए हैं।
पिछले चार दशक से ज्यादा समय में पहली बार मंदी की आशंका को देखते हुए सरकार को अपने प्रायासों में और ज्यादा तेजी लाने की जरूरत है। देश का मध्यम वर्ग सरकार से टैक्सों में राहत तथा लोन पर दिए जाने वाले ब्याज में और कटौती की उम्मीद कर रहा है। यह वर्ग चाहता है कि उसे कमाने के लिए उचित समय दिया जाए और तब तक उस पर लोन की किस्तें वापस लेने का दबाव भी न बनाया जाए। अभी जो हालत है उसमें उसके लिए घर और पैक्टरी दोनों चलाना मुश्किल हो रहा है। इस समय वह खुद को एक चक्रव्यूह में पंसा हुआ महसूस कर रहा है। उसे पैक्टरी के लिए रॉ मैटेरियल का इंतजाम भी करना है और कर्मियों को वेतन देने के साथ-साथ बिजली-पानी, टेलीफोन आदि के बिल भी देने हैं। समय पर किस्तें और ब्याज न चुकाने का मतलब है कि दोबारा उसे आसानी से लोन नहीं मिलेगा।
ऐसी स्थिति न आए इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह लोगों को सक्षम बनाने की दिशा में काम करे ताकि लोग समय पर लोन वापस कर सवें। इसके लिए सरकार को विभिन्न माध्यमों से लोगों के हाथ में ज्यादा से ज्यादा पैसा पहुंचाना होगा। इस समय पूरे देश में बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है। बंद होने से खुद को बचाने के लिए कईं वंपनियां छंटनी का सहारा ले रही हैं। सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए।
वेंद्र और राज्य सरकारें मिलकर ही इस स्थिति से निपट सकती हैं और नागरिकों को राहत प्रादान कर सकती हैं। वुछ महीनों बाद जब कोरोना वायरस का प्राभाव कम होगा और दुनिया में आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी होगी, उस समय हम आर्थिक प्रातियोगिता में मजबूती के साथ टिके रहें इसके लिए अभी से प्रायास करने होंगे। इसमें देरी करने से हम आर्थिक मुसीबतों में पंस सकते हैं और दुनिया की प्रामुख आर्थिक महाशक्ति बनने का हमारा सपना चूर- चूर हो सकता है। वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी ऐसे प्राधानमंत्री हैं जो बड़े पैसले लेने की इच्छाशक्ति रखते हैं। आज पूरे विश्व की नजरें इस संकट की घड़ी में भारत द्वारा दिए जाने वाले मार्गदर्शन की ओर देख रही हैं। डब्ल्यूएचओ के कार्यंकारी बोर्ड के अध्यक्ष पद पर डॉ. हर्षवर्धन की नियुक्ति बताती है कि विश्व का भरोसा भारत पर बढ़ा है।
लॉकडाउन तो 31 मईं के बाद खत्म हो सकता है लेकिन जो वुशल और पेशेवर लोग अपने काम-धंधे के ठिकाने छोड़कर गांव लौट चुके हैं उनके मन से कोरोना का भय वैसे और कब तक जाएगा, यह बड़ा सवाल है। क्योंकि जब तक लोग विश्वास के साथ अपने काम-धंधे या व्यापार पर नहीं लौटेंगे तब तक आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं होगा। इन हालात में सरकार की इच्छाशक्ति ही देश की अर्थव्यवस्था को बचा सकती है।