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सरकारी तंत्र की लापरवाही से हुए हादसों का जिम्मेदार कौन?

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:14 April 2019 5:28 PM GMT
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पिछले दिनों हुए कई हादसों में हुई दर्दनाक मौतों ने देशभर को हिला कर रख दिया। घटनाओं के तह में जाकर देखा जाए तो पुलिस-पशासन की नाकामी और लापरवाही के चलते ये हादसे हुए। इन हादसों में सैकड़ों घर तबाह हो गए, और न जाने कितने ही परिवार सड़क पर आ गए। इन घटनाओं के ाढम में उत्तर पदेश और उत्तराखंड में जहरीली शराब के सेवन से मौत के मुंह में समाये लोगों की खबर से पूरा देश स्तब्ध रह गया। वहीं देश की राजाधानी दिल्ली में एक होटल में आग लगने से 17 लोगों की मौत हो गयी। जहरीली शराब पीने और आग लगने की इन घटनाओं को रोका जा सकता था। हर बार ऐसी घटनाएं घटने के बाद हायतौबा मचाई जाती है, मुआवजा बांटा जाता है, व्यवस्था दुरुस्त करने के आश्वासन दिए जाते है, लेकिन चंद दिनों बाद ही गाड़ी पुराने ट्रैक पर दौड़ने लगती है। पिछले दिनों देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर पदेश और उससे सटे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में जहरीली शराब पीने से सौ से ज्यादा लोग काल के गाल में समा गए। इससे पहले भी उत्तर पदेश में जहरीली शराब से पीने के कई हादसे होते रहे हैं। सूबे में सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो, लेकिन जहरीली शराब के कारोबारी सदा फलते-फूलते रहे हैं। हर बार हादसे के बाद पुलिस-पशासन सख्ती की बात करता है, लेकिन समय बीतते ही दोबारा नशे का काला कारोबार सिर उ"ा लेता है। उत्तर पदेश की तरह पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली के एक होटल में गत दिवस तड़के लगी आग में 17 लोगों की मौत हो गई। जब आग भड़की तब 50 से ज्यादा लोग वहां सो रहे थे जिनमें 35 को बचा लिया गया किन्तु शेष जीते जी आग की भेंट चढ़ गए। भोर के समय चूंकि होटल के कर्मचारी भी गहरी नींद में रहे इसलिए आग को तत्काल रोकने का फ्रयास भी नहीं हो सका। उससे भी बड़ी बात ये रही कि की होटल में आग लगने पर बजने वाले अलार्म की कोई व्यवस्था नहीं थी जिसकी वजह से जब तक लोग संभल पाते तब तक आग ने विकराल रूप ले लिया। जांच होने पर आग के कारणों की जानकारी मिलेगी लेकिन इतना तो साफ हो ही गया कि जिस होटल में कर्मचारियों सहित 70-75 व्यक्तियों के रुकने की व्यवस्था हो वहां फायर अलार्म जैसी अत्यावश्यक व्यवस्था का न होना केवल होटल मालिक और फ्रबंधन की ही नहीं अपितु दिल्ली फ्रशासन के संभंधित विभाग की भी अपराधिक उदासीनता कही जाएगी। राजधानी में कई दशक पहले उपहार सिनेमा अग्निकांड हुआ था। उसके मालिकों को भी लंबी कानूनी फ्रक्रिया के बाद सजा और जुर्माना हुआ लेकिन जो बेशकीमती जिंदगियां उस अग्निकांड की बलि चढ़ गईं उनकी क्षतिपूर्ति केवल पैसे से नहीं हो सकती। गत दिवस हुए हादसे ने डेढ़ दर्जन निर्दोष लोगों को मौत के मुंह में तो धकेला ही इससे भी बढ़कर बात ये हुई कि देश की राजधानी में जब इस तरह की लापरवाही होती है तब छोटे और मझोले किस्म के शहरों में क्या होता होगा इसकी कल्पना सहज रूप से की जा सकती है। बीते साल जून 2018 में लखनऊ के चारबाग इलाके में एक होटल में आग लगने से 6 से ज्यादा लोग जान गंवा बै"s थे और कई लोग हादसे में बुरी तरह हताहत हुए थे। चंद दिनों की सख्ती के बाद आज पशासन का पुराना ढर्रा कायम है। रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भी फ्रतिवर्श बड़े दावे होते हैं लेकिन चाहे जब रेल पटरी से उतर जाती है और अनेक यात्रियों की जिंदगी का सफर हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। होटल, सिनेमा, मॉल आदि के लिए स्थानीय फ्रशासन अनुमति देता है। नगरीय निकाय की जिम्मेदारी बनती है कि वह समय-समय पर ये जांच करे कि उनमें आने वाले लोगों की सुविधाओं और सुरक्षा के फ्रबंध चाकचौबंद हैं कि नहीं? उस आधार पर दिल्ली के उक्त होटल में हुए अग्निकांड के लिए वहां के नगरीय फ्रशासन पर भी अपराधिक फ्रकरण दर्ज होना चाहिए। करौलबाग राजधानी का अत्यंत घना इलाका है जिसमें व्यवसायिक और आवासीय दोनों फ्रकार के परिसर हैं। यही स्थिति पहाडगंज इलाके की है। नई दिल्ली स्टेशन के पास होटलों का जो जाल है वहां भी सुरक्षा इंतजाम अच्छी स्थिति में नहीं हैं। 21 वीं सदी में इस फ्रकार की अव्यवस्था किसी भी दृष्टि से क्षम्य नहीं कही जा सकती। कुछ बलि के बकरों की गर्दन में फंदा डालकर बड़े अपराधियों को बख्श देने की परिपाटी तोड़कर अब उन लोगों को कड़े से कड़ा दंड देने की जरूरत है जो इंसानों को कीड़े मकोड़े समझ्ने की मानसिकता से ग्रसित हैं। 31 मार्च 2016 को जब कोलकाता के बड़ा बजार के पोस्ता इलाके में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर का एक हिस्सा गिर गया था। सरकारी आंकड़ों की मानें तो करीब 26 लोग मारे गए थे। यह जख्म भरा भी नहीं था कि हाल ही में 4 सितम्बर, 2018 को तकरीबन 50 साल पुराना 40 मीटर लंबा कोलकाता माझेरहाट ब्रिज, जो कोलकाता के मुख्य हिस्से को दक्षिण उपनगरीय इलाके से जोड़ता है।

-राजेश सक्सेना,

कांतिनगर, दिल्ली।

मुलायम सिंह यादव ने यह क्या कह दिया?

हाल में 16वीं लोकसभा के अंतिम सत्र में संसद में समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक/संरक्षक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे काढ़ते हुए जिस तरह विपक्ष के आगामी लोकसभा चुनाव के बाद अल्पमत होने के चलते फिर से पधानमंत्री बनने की कामना की, उसकी उम्मीद सपने में भी खुद नरेंद्र मोदी और भाजपा को तो बहुत दूर, उनकी अपनी पार्टी सपा समेत किसी भी विपक्षी दल को नहीं होगी। श्री यादव के इस कथन से उनके बगल में बै"ाR कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी तो एकदम हतपभ और अवाप् रह गईं। फिर एकटक मुलायम को देखने लगीं। तब उनके हावभाव देखने लायक थे। उसके बाद सोनिया गांधी पीछे मुड़कर अपने और विपक्ष के सांसदों के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश करने लगी। शायद वह उनकी भी पतिक्रिया जानना चाहती थीं। लेकिन उनकी तरह दूसरे दलों के सांसदों को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था, ऐसी हालत में वे क्या करें या न करें? इन सबके विपरीत सत्ता पक्ष के सांसद मेजें थपथपा कर पसन्नता व्यक्त कर रहे थे। अब विपक्षी नेता और राजनीति विश्लेषक मुलायम सिंह यादव के इस कथन पर तरह-तरह कयास लगा रहे हैं, पर सही वजह वे भी नहीं समझ पा रहे हैं। आखिर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की सबसे मजबूत पार्टी के मुखिया ने जाने-अनजाने में क्या और क्यों कह दिया? उनके इस कथन के क्या निहितार्थ है? देश की राजनीति का हाल भांप कर पैंतरा बदलने को मशहूर मुलायम सिंह यादव ने यह सब संसदीय परंपरा का निर्वाह करते हुए सौजन्यता वश कहा है या फिर याददशत में गड़बड़ी की वजह से कुछ का कुछ कह बै"s हैं? कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने मोदी की तारीफ कर अखिलेश यादव को अपनी उपेक्षा करने का दंड दिया है, जिन्होंने पहले कांग्रेस और अब उनकी चिरपतिद्वंद्वी बसपा से गठबंधन कर उनका दिल दुखाया है। कुछ का विचार है कि मुलायम सिंह यादव ऐसे ही न कुछ कहते हैं और न करते हैं? यह उनके पुत्र सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव से बेहतर भला कौन जानता है? ये दोनों भी अब तक "ाrक से नहीं जान पों हैं कि आखिर नेताजी असल में चाहते क्या हैं? उनके क्या इरादे हैं? वैसे मुलायम सिंह यादव काफी समय तक अनुज शिवपाल सिंह यादव को यह दिखाते रहे कि वह उनके साथ हैं, किन्तु पहले उन्हें अपनी नई पार्टी के ग"न की घोषणा टलवाई और बाद में उनकी पार्टी पगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया वादी) के मंच से सपा का गुणगान करने लगे। इससे लगा कि वह अब पूरी तरह अपने पुत्र अखिलेश यादव के साथ हैं, पर संसद में मुलायम सिंह यादव ने मोदी का गुणगान कर उनकी पार्टी को ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। निश्चय ही इससे जहां सबसे अधिक लाभ भाजपा मिलेगा, तो वहीं सबसे बड़ा झटका अखिलेश यादव को लगा है, जो ढाई आदमी पर देश को बर्बाद करने का आरोप लगाते फिर रहे हैं, ये ढाई आदमी कोई और नहीं, पधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और वित्तमंत्री अरुण जेटली हैं। अब बेचारे अखिलेश यादव किस मुंह से पधानमंत्री मोदी पर हमलावर बन पाएंगे? अब तो उनके पिता मुलायम सिह यादव उनकी उपलब्धियों की न केवल खुलकर तारीफ कर चुके हैं, बल्कि उन्हें एक फिर पधानमंत्री बनने की मंषा भी जाहिर कर चुके हैं। अखिलेश यादव मोदी सरकार के जिस सबका साथ, सबका विकास नारे की मजाक बनाते आए हैं, उनके पिता ने मोदी की सबको साथ लेकर चलने की भी पशंसा की है। वैसे देश के लोगों को यह भी याद है कि मुलायम सिंह यादव को किसी को भी अपना बनाकर उससे काम निकालने में महारत हासिल है, तभी तो उन्होंने नरेंद्र मोदी के पधानमंत्री बनने के बाद अपने पुत्र और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को उनसे मिलवाते समय उनके कान में कुछ कहा था। क्या कहा था, यह तो वह और मोदी जी ही जानते होंगे, पर तब उनके चेहरे के भाव से यही लग रहा था कि इस भेंट के बाद मोदी जी उनके बेटे पर कृपा बनाये रखें। कुछ लोगों का विचार है कि मुलायम सिंह यादव ने 16वीं लोकसभा चुनाव के समय राजनाथ सिंह की जीत का मार्ग पशस्त करने के लिए लखनऊ लोकसभा सीट पर अपने मजबूत प्रत्याशी डॉ. अशोक वाजपेयी को बदल दिया था जो कई महीने से अपने चुनाव पचार में जुटे थे। इसके बदले में भाजपा ने भी मुलायम सिंह यादव के मुकाबले में न सशक्त प्रत्याशी खड़ा किया और न ही उनके खिलाफ कोई बड़ा नेता पचार करने ही गया था। अब भी मुलायम सिंह यादव ने अपने किसी खास मकसद/काम के लिए संसद में मोदी की तारीफ की हो, तो आश्चर्य नहीं। वैसे यह सच्चाई मुलायम सिंह यादव ने छिपाई भी नहीं है। उन्होंने कहा कि यह सही है कि हम जब-जब मिले किसी काम के लिए मिले। अपने (मोदी) उसी वक्त ऑर्डर दे दिया। याद कीजिए किस तरह मुलायम सिंह यादव ने अचानक सपंग सरकार से अमेरिका से परमाणु संधि के मुद्दे पर अपनी पार्टी का समर्थन वापस ले लिया था। उन्हें चुनावी सफलता के लिए किसी से हाथ मिलने/गले लगने और उसका हाथ झटकने में देर नहीं लगी। सपा के गठबंधन की साथी बसपा पर भी यह समुदाय बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करता।

-सुदेशना जैन,

गांधीनगर, दिल्ली।

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