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शराब पीने वालों को मौत दे सकती है लीवर सिरोसिस

👤 | Updated on:30 Sep 2012 12:37 AM GMT
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 यदि आप शराब के शौकीन हैं तो सावधान हो जायें। शराब का सबसे बड़ा इफेप्ट शरीर में लीवर यानी जिगर पर पड़ता है। अत्याधिक शराब पीने से लीवर की कोशिकाएं धीरे-धीरे मरने लगती हैं और ???क्ति को जॉनडिस यानी पीलिया हो जाता है। पीलिया के बाद हेपेटाइटिस और फिर लीवर सिरोसिस। हम यहां बात कर रहे हैं लीवर की सबसे खतरनाक बीमारी लीवर सिरोसिस, जिसे लीवर कैंसर भी कहा जाता है। शरीर की चयापचय प्रािढया में तथा रक्त के प्रवाह से नुकसानदायक तत्वों को अलग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक प्रमुख अंग लीवर में होने वाली सिरोसिस की बीमारी जानलेवा तो नहीं होती लेकिन यह शरीर की विभिन्न प्रणालियों को गहरे तक बाधित कर देती है। सिरोसिस में लीवर के उतक धीरे धीरे नष्ट हो जाते हैं जिससे लीवर की कोशिकाओं में रक्त प्रवाह बाधित होता है और मरीज को कई समस्याएं हो जाती हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बाइलियरी साइंसेज के डॉ पीयूष राजन ने कहा, "एक स्वस्थ व्यक्ति का लीवर कई तरह के कार्य करता है। लीवर में ऐसा ब्लड प्रोटीन बनता है जो रक्त के जमाव में मददगार होता है। अतिरिक्त पोषक तत्व लीवर में ही संग्रहित किए जाते हैं और कुछ को रक्त प्रवाह में भेजा जाता है। इसके अलावा ग्लाइकोजन के रूप में ग्लूकोज का संग्रह लीवर में ही होता है, संतृप्त वसा लीवर में ही घटकों में टूटती है और कोलेस्ट्रॉल का उत्पादन होता है। यह लीवर का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। सर गंगाराम अस्पताल के हैपेटोलॉजिस्ट डॉ संजीव सहगल ने बताया कि सिरोसिस की वजह से जब लीवर के स्वस्थ उतक नष्ट होने लगते हैं तो लीवर अपना कामकाज सामान्य तरीके से नहीं कर पाता। डॉ राजन के अनुसार, क्षतिग्रस्त उतकों के कारण लीवर में रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है जिससे पोषक तत्वों, हार्मोन, दवाओं और सामान्य रूप से उत्पादित विषैले तत्वों का शोधन करने की प्रािढया में रूकावट आती है। इससे कुछ खास तरह के प्रोटीनों का निर्माण भी बाधित होता है। डॉ सहगल ने बताया कि लीवर के सिरोसिस का मुख्य कारण अल्कोहल का सेवन, हैपेटाइटिस बी, सी और डी तथा लीवर के आकार में वृद्धि हैं। पित्त नलिका में अवरोध भी सिरोसिस का कारण बनता है। यह नलिका लीवर में बना हुआ पित्त आंत तक ले जाती है जहां इससे वसा के पाचन में मदद मिलती है। जिन बच्चों को बाइलियरी एट्रेसिया की समस्या होती है उनमें पित्त नलिका या तो नहीं होती या क्षतिग्रस्त होती है। ऐसे बच्चों को भी लीवर में सिरोसिस की समस्या होती है। वयस्कों में कई बार पित्त नलिका बाधित या क्षतिग्रस्त हो जाती है और सिरोसिस की समस्या हो जाती है। कुछ अनुवांशिक कारण भी इस बीमारी की वजह होते हैं। कब्ज और एसिडिटी यानी अम्लीयता इस बीमारी के आम कारण हैं जिन्हें अक्सर उपेक्षित कर दिया जाता है। इस बीमारी के मरीजों में हीमोग्लोबिन, प्लेटलेट्स और अल्बुमिन की मात्रा घट जाती है, उनकी जीभ तथा पेशाब का रंग पीला हो जाता है, उन्हें भूख नहीं लगती, जल्द थकान होने लगती है और पैरों में सूजन आ जाती है। शराबखोरी के कारण अथवा अन्य कारणों से क्षतिग्रस्त हो चुके लीवर को नया जीवन देने के लिए टिप्स पद्धति से एक शंट लगाया जाता है। इस शंट से पेट के खून की नसों में बढ़े हुए तनाव को कम किया जा सकता है। लीवर सिरोसिस नामक बीमारी में लीवर की कोशिकाएँ कड़क हो जाती हैं, उसके परिणामस्वरूप लीवर तक रक्त लाने वाली खून की नली जिसे कि पोर्टल वैन कहते हैं, उसमें प्रेशर बढ़ जाता है। इसे पोर्टल हाईपरटेंशन कहते हैं। लीवर सिरोसिस होने के कई कारण हैं, परंतु प्रमुख रूप से अत्यधिक एवं नियमित शराबखोरी के अलावा हिपेटाइटिस ए, हिपेटाइटिस बी या सी किस्म के पांमण हैं। एक बार लीवर सिरोसिस हो जाए तो उसका एकमात्र उपाय है लीवर ट्रांसप्लांट करना। हेपेटाइटिस बी एक पांमक बीमारी है, जो लीवर को पांमित करती है। लेकिन 90 प्रतिशत पांमित व्यक्ति इससे निजात पा लेते हैं। थोड़ी सावधानी बरतकर कैसे आप इस जानलेवा बीमारी से बच सकते हैं, क्या आपको पता है कि हेपेटाइटिस बी ऐसी बीमारी है, जो दुनिया भर में हर तीन में से एक व्यक्ति को कभी न कभी अपना शिकार जरूर बनाती है? दुनियाभर में यह मौत का 10वां सबसे बड़ा कारण है। बीपी यानी हाइपरटेंशन, डायबिटीज, दिल की बीमारी जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों पर दुनियाभर का फोकस है। एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में यह काफी तेजी से फैल रही है। हर साल पौने तीन लाख नवजात बच्चों में एचबीवी के होने की आशंका रहती है। इस बीमारी से विश्व स्तर पर दो अरब से अधिक लोग पीड़ित हुए हैं। हेपेटाइटिस बी पांमक बीमारी है जो हेपेटाइटिस बी वायरस (एचबीवी) के कारण होती है और यह बीमारी लीवर को पांमित करती है। हालांकि 90 प्रतिशत पांमित युवा निजात पा लेते हैं, लेकिन 10 प्रतिशत लोगों की समस्या बढ़कर पुरानी हेपेटाइटिस बी (सीएचबी) बन जाती है। जिन लोगों में सीएचबी होता है, उनमें से 15 से 40 प्रतिशत लोगों में यह खतरनाक रूप ले लेता है। उनमें सिरोसिस (लीवर की संरचना में क्षति होना जिससे उसके ािढयाकलाप प्रभावित होते हैं), लीवर का काम नहीं करना आदि समस्याएं पैदा हो जाती हैं। सीएचबी के लक्षण कोई व्यक्ति लीवर के पांमण का शिकार होता है और वह 45 दिन से लेकर 160 दिन के अंदर बुखार, जी मिचलाना, भूख की कमी, उल्टी, पीलिया आदि समस्याओं से जूझने लगता है। यह खतरनाक स्थिति एक से लेकर तीन महीनों तक रह सकती है। उसके बाद या तो वह व्यक्ति ठीक हो जाता है या सीएचबी का शिकार हो जाता है। एचबीवी से पांमित सिर्प 30 प्रतिशत लोगों में ही इस तरह के लक्षण दिखते हैं। एक बार मरीज में जब सीएचबी हो जाता है तो काफी समय बाद इसका पता चलता है। तब तक लीवर काफी अधिक क्षतिग्रस्त हो चुका होता है। इस कारण इसे साइलेंट किलर भी कहते हैं। इसके कई कारण हैं। यह यौन ािढया के द्वारा भी फैलता है। रक्त पांमण से भी होता है। रक्त चढ़ाने, बिना सही तरह से स्टरलाइज्ड सुई के जरिए इंजेक्शन देने, रेजर, सर्जरी, नसों में डाली जाने वाली दवा या पानी चढ़ाने के अलावा बच्चों में मां से पांमण के भी इसका कारण है। पुराने हेपेटाइटिस से पांमित होने की आशंका महिलाओं में दोगुना रहती है। गर्भावस्था में इसकी आशंका और बढ़ जाती है। गर्भधारण से शरीर में कॉर्टिकोसटेरॉयड्स का स्तर बढ़ जाता है जिससे शरीर में हेपेटाइटिस बी वायरस बढ़ जाता है। इससे लीवर खराब होने की आशंका बढ़ जाती है। साधारण रक्त परीक्षण के जरिए यह पता लगाया जा सकता है कि आप सीएचबी से पांमित हैं या नहीं। अगर परीक्षण का नतीजा नकारात्मक आता है, तो भी आपको किसी फिजिशियन से मिलकर उससे पूछना चाहिए कि क्या आपको खुद को बचाने के लिए वैक्सीन की जरूरत है? आप 6 महीने से एचबीएसएजी पॉजिटिव हैं तो जान लें कि आप सीएचबी से पीड़ित हैं। अब आपको नियमित अंतराल पर जांच करवाते रहना चाहिए। अगर आप मां बनने की तैयारी में हैं तो वायरस के लिए जांच कराएं। अगर आप इस वायरस की चपेट में नहीं हैं तो भी वेक्सीन ले सकती हैं और आने वाले बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती हैं। हेपेटाइटिस बी गले मिलने, चूमने, खांसने, कफ या किसी पांमित व्यक्ति द्वारा तैयार भोजन करने से नहीं होता है। हां, कुछ लोगों में पांमण की संभावना अधिक जरूर रहती है। डॉक्टर, नर्स और पारामेडिकल कर्मी जैसे स्वास्थ्य सेवा सेक्टर से जुड़े लोगों में इसकी आशंका अधिक रहती है। इसके अलावा नियमित रूप से रक्त दान करने वालों में भी इसके होने की आशंका रहती है।                                 (स्वास्थ्य-टीम)     ��x ���� �� किसी राहगीर या दूसरे वाहन चालक की मौत हो गयी तो ऐसे व्यक्ति के परिजन साल दर साल बीमा कंपनी से मुआवजे के लिए मुकदमा ही लड़ते रहते हैं। उच्चतम न्यायालय ने भी अपने हाल के निर्णय में इस स्थिति को इंगित किया है।   ऐसी स्थिति में बेहतर होगा यदि विधि आयोग की 234वीं रिपोर्ट में की गयी सिफारिशों और उच्चतम न्यायालय के निर्णय में की गयी टिप्पणियों के आलोक में लापरवाही और उपेक्षापूर्ण कृत्य के कारण मृत्यु के मामलों में धारा 304-क के तहत वाहन चालक के लिए निर्धारित दंड में संशोधन करके न्यूनतम सजा का प्रावधान किया जाए। विधि आयोग की सिफारिश के अनुरूप शराब पीकर या किसी अन्य नशे का सेवन करके वाहन चलाने के कारण हुई सड़क दुर्घटना के अपराध के लिए इस धारा के तहत न्यूनतम सजा दो साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान करने के साथ ही अधिकतम सजा दस साल तक करने पर भी विचार किया जा सकता है। इस तरह के कठोर कदम उठाकर ही नशे में तेज रफ्तार से आधुनिक वाहन चलाने वालों पर अंकुश पाना और सड़क दुर्घटनाओं की संख्या पर अंकुश पाना संभव हो सकेगा। इसके अलावा नशे की हालत में गाड़ी चलाने को गैर जमानती अपराध भी बनाना अधिक तर्प संगत हो सकता है।      

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