सीमा पर बढक्काई जाएगी रेडिएशन सुरक्षा
अरुण माथुर जोधपुर। सीमा पार से दुश्मन देश और आतंकियों की ओर से रेडिएशन के खतरे को देखते हुए देश की सरहद पर रेडिएशन सुरक्षा चाक-चौबंद की जा रही है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) मिलकर रेडियो आइसोटोप की पहचान करने वाली नई तकनीक विकसित करने में जुटे हुए हैं। राष्टाrय प्रौद्योगिकी दिवस के मौके पर डीआरडीओ में नाभिकीय निरीक्षण व्यवस्था विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. दीपक गोपलानी ने रेडिएशन के खतरों के बारे में आगाह करते हुए कहा कि भविष्य में रेडियोएक्टिविटी दुर्घटनाएं होने की आशंका है। ऐसे में रेडियोएक्टिविटी की पहचान करने वाली उन्नत तकनीक खोजी जा रही है। आंतकियों के हाथ में रेडिएशन डिवाइस पडक्कने की आशंका के चलते भी अंतरराष्टाrय मापदण्डों पर ऐसे उपकरण तैयार किए जा रहे हैं जो रेडियोएक्टिव पदार्थ को आसानी से पकडक्क लेगा। देश की सीमा पर वैसे तो रेडियोएक्टिविटी की जांच के लिए कई उपकरण लगे हुए हैं, लेकिन इनके अपर्याफ्त होने की वजह से इनमें इजाफा किया जा रहा है। इसके अलावा रेडियो आइसोटोप की पहचान करने वाली डिवाइस भी बनाई जा रही है। डीआरडीओ ने सेना को रेडियोएक्टिव विकिरणों से बचाने के लिए चालक रहित न्यूक्लिअर सर्विलेंस व्हीकल बनाया है, जो स्वयं आगे चलकर रेडियो एक्टिविटी की पहचान करती है। इस मौके पर डीआरडीओ के सामुदायिक भवन में तकनीकी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसका उद्घाटन डीआरडीओ जोधपुर के निदेशक डॉ. नरेंद कुमार ने किया।