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समलैंगिंग रिश्ते कल भी थे

👤 | Updated on:13 May 2010 1:39 AM GMT
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भारत ही नहीं संभवतः दुनिया के सबसे पुराने एवं सेक्स ग्रंथों में से एक वात्स्यायन रचित कामसूत्रा में समलैंगिकों के बारे में विस्तश्त वर्णन है। दरअसल, वैदिक काल में इन्हें नपुंसक की श्रेणी में रखा जाता था। दरअसल नपुंसक का तब अर्थ था- वे पुरुष, जो तीसरी पकशति के हैं तथा संतानोत्पत्ति में विश्वास नहीं रखते। सिपर्फ इन्हीं लोगों को यानी समलैंगिकों को ही मुखमैथुन की इजाजत थी। ऐसे समलैंगिक पुरुष जो स्त्रिायोचित व्यवहार रखते थे, वे अलग पहचान में आते थे। दोनों ही तरह के समलैंगिक पुरुषों को स्वतंत्रा रूप से अपनी पहचान बनाकर रहने की आजादी थी। पुरुष-पुरुष बिना शादी किये एक साथ रह सकते थे। वे चाहें तो उनके लिए गंर्ध्व विवाह की सुविध भी उपलब्ध् थी। समलैंगिकता को तब माता-पिता सामान्य पाकशतिक घटना मानते थे। वेदों के बाद दूसरे पुराग्रंथों पर आयें तो महाभारत काल में अर्जुन के ब्रहन्नला बनने से लेकर तमाम ऐसी घटनाओं के वर्णन मिलते हैं, जो ट्रांसजेंडर और होमोसेक्सुअल के बारे में इंगित करते हैं। राजा विराट का उदाहरण प"नीय है। ईसाइयों के ओल्ड टेस्टामेंट में कहा गया है कि ऐसे लोगों को दैवीय अग्नि परेशान करेगी। इसका सापफ अर्थ है कि ईसा के जमाने में भी इसका खासा पचलन था। एक र्ध्म विशेष में इंगित है कि सुकर्मों का पफल मिलेगा- जन्नत में सुंदर लड़कों के साथ के रूप में। अतः देखा जाये तो समलैंगिकता आदिकाल, पुराकाल, वर्तमान काल यानी हर कालखंड में मौजूद थी। भारत में जब बौ(ाsं का उदय हुआ तो कम उम्र के मूंछ-दाढ़ी विहीन भिक्षुओं की भरमार हो गयी। चैत्यों, म"ाsं, संघों में स्त्रााr का पवेश वर्जित था सो समलैंगिकता को खूब बढ़ावा मिला। यह सिलसिला गुप्त काल तक निर्बाध् चला। मुगल काल के दौरान भी भारत में समलैंगिकता को खूब बढ़ावा मिला, पर तब वैदिक काल सरीखा समर्पण, विश्वास इन रिश्तों में न होकर आयाशी इसका पमुख कारण बन गया। उत्तर भारत के तमाम राजा, नवाब तथा दूसरे रईस अपने समलैंगिक शौक के लिए चर्चित रहे। लार्ड विलियम वैंटिक के जमाने में तो पशासनिक स्तर पर इसके लिए कार्रवाई करनी पड़ी थी। आजादी के बाद नये संविधन और कानून में इसे अपाकृतिक और जुर्म करार देने के बाद पफर्क इतना आया कि जो व्यवहार तब थोड़ा खुलेआम और जाना-पहचाना था, वह छिप-छिपाकर होने लगा। अस्सी के दशक में तमाम सर्वेक्षणों से पता चला कि भारतीय समाज में भीतर-ही-भीतर एक अनू"ाr यौन क्रांति जन्म ले रही है। यह भी पता चला कि समलैंगिक स्त्रााr-पुरुष कापफी संख्या में हैं, वे सामान्य लोगों की भांति अपने अध्कार चाहते हैं। अस्सी के दशक के अंत में तथा नब्बे के दशक में समलैंगिकों के दो विश्व स्तर के सम्मेलन भारत में हुए। धरा 377 भा.दं.वि. को लेकर तमाम विरोध-पदर्शन किये गये और लेख इत्यादि लिखे गये। तमाम ख्याति पाप्त डिजाइनरों, कलाकारों, बु(जीवियों, कुछ पत्राकारों ने खुलेआम घोषणा की, कि वे समलैंगिक हैं। आज मुंबई समलैंगिक पुरुषों की राजधनी है तो दिल्ली दूसरे नंबर पर है। देश के लगभग सभी छोटे-बड़े शहरों में तमाम समलैंगिक समजुट हैं। इंटरनेट ने देश-विदेश के तमाम समलैंगिकों को विश्वस्तर पर जोड़ दिया है। समलैंगिक रिश्तों में स्त्रिायां भी किसी लिहाज से पीछे नहीं रहीं। अगर एक नजर उनके इतिहास में भी डालें तो पता चलेगा कि चाहे पत्यक्ष हो या अपत्यक्ष लेस्बियन रिश्ते हमारे इतिहास में मौजूद है। देश हो या विदेश इस ध्रती पर इनकी उपस्थिति पत्येक देश, काल, समाज में बनी रही। राजा, महाराजा, व्यापारी, कुलीन वर्ग, निचला तबका, मध्यम और उच्च वर्ग कोई भी श्रेणी इनसे अछूती नहीं है। लेस्बियन का मोटे तौर पर अर्थ है, `वे महिलाएं जो समान लिंग की तरपफ आकर्षित होती है और उनसे शारीरिक या यौनतृप्ति पाप्त करती हैं। अपने देश में ये रिश्ता गुमनाम या अनाम है। भारत में पूर्व वैदिक काल के कुछ उदाहरणों और वेदों में भी इसका उल्लेख मिलता है। )ग्वेद में ऊषा और नक्ता के चरित्रा समलिंगी पणय दर्शाते हैं। देवी ;ईगद्ध की पुत्रााr उर्वशी पुरुरवा द्वारा संभोग तो पाप्त करती है पर उसे सच्चा सुख तो नैरिरती नामक देवी की गोद में ही मिलता है। व्यास लिखित महाभारत में भी ऐसे रिश्तों की ओर संकेत मिलते हैं तो रामायण में भी। मुगलकाल में इस्लामी कानून इस मामले में बड़े सख्त थे। पर पर्दे के पीछे इस तरह के रिश्ते पनपते रहे। ऐसे कई किस्से और ऐतिहासिक उदाहरण बड़ी आसानी से मिलते हैं और शोध् करने पर तमाम पमाण भी। रजिया भले ही याकूत से पेम करती थी पर वह समलिंगी थी सभी जानते हैं। चूंकि सत्ता उसके हाथ थी उसे कोई सजा नहीं दे सका। आजादी के पहले का हिन्दी-उर्दू साहित्य भी इन रिश्तों की गवाही देता है। इस्मत आपा की कहानी लिहापफ तो मशहूर ही है ढेरों किस्से ऐसे रिश्तों का बखान करते हैं। आजादी के बाद पभावशाली और पैसे वालों के घर थोड़ा खुलापन आया, उनके वहां इस तरह के रिश्ते छुपे तौर पर बिना शोर शराबा किये, दंड दिये, स्वीकार लिये गये। समय तेजी से बदला और धरे धरे स्त्रााr-स्त्रााr संबंधें की चर्चा भी खुले तौर पर लोग करने लगे है। आज की तारीख में विदेशों ने ही नहीं बल्कि भारत ने भी इसके पक्ष में पफैसला लिया है। अलग-अलग देश ने अलग-अलग रूप में समलैंगिकों के लिए कानून बनाए। मसलन- t भारत में 2009 के पहले समलैंगिकता अपराध् थी लेकिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 में एक याचिका के तहत संविधन की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध् मानने से इनकार कर दिया।   t इंग्लैंड और वेल्स में पभावी `द सेक्सुअल आपफेंस एक्ट 1967' बना। वहां यह माना गया कि सरकार जो समलैंगिकों के खिलापफ बहुत ही बर्बर थी और समलैंगिकों को तमाम कष्ट झेलने पड़ते थे, उसके अंत की शुरुआत इस कानून से हुई थी। t     सन् 1974 में  अमरीका तथा बाद में विश्व स्वास्थ्य संग"न ने यह मान लिया कि समलैंगिकता कोई शारीरिक या मानसिक बीमारी नहीं, यह सामान्य रूप से यौन चयन है। t     1981 में नार्वे ऐसा पहला देश बना, जिसने समलैंगिकों के साथ हर तरह के भेदभाव हटा लेने वाला कानून बनाया। इसके बाद ऱांस, डेनमार्क, स्वीडन, हालैंड, आयरलैंड ने भी ऐसा ही किया। t     1993 में नार्वे ने एक और महत्वपूर्ण कदम उ"ाया। उसने समलैंगिकों को साथ रहने, शादी करने के लिए रजिस्ट्रेशन की अनुमति दे दी। t     1994 में दक्षिण अऱीका ऐसा पहला देश बना, जिसने लेस्बियन ;स्त्रााr समलैंगिकोंद्ध और गे ;पुरुष समलैंगिकोंद्ध को संविधन सम्मत अधिकार दिये। t     1996 में हंगरी की संसद ने एक कानून पास किया, जिसके तहत समलिंगी शादी वैध् मानी जाने लगी। वीर अर्जुन  

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