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इस्लाम क्यों बदनाम हुआ है?

👤 | Updated on:25 May 2010 6:06 PM GMT
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अजब बात है कि इस्लाम के शैदाई अपने मजहब के नाम पर आए दिन बेगुनाह लोगों का खून कर रहे हैं। कोई समय था जब यह समझा जाता था कि केवल गैर मुस्लिम ही ऐसे लोगों का शिकार हो सकते हैं। लेकिन जो कुछ नजर आ रहा है वह यही बताता है कि इस्लाम के नाम निहाद शैदाई जो अधिकतर अनपढ़ हैं या जिन्हेंने मदरसों में तालीम हासिल की है वह यह समझते हैं कि कुरान शरीफ में गैर मुस्लिम का कत्ल इस्लाम का नाम बुलंद करने की बात है। इस बहस में न पड़ते हुए एक बात जरूर नजर आती है कि अधिक से अधिक जेहादी गैर मुस्लिमों के खून को सवाब का काम समझ रहे हैं। इस बात की ताजातरीन तस्दीक यमन के इंतिहापसंद अनवरुल अलवाती के बयान से साबित होती है। अलवाती ने अमेरिकन फौज में भर्ती ज्यादा से ज्यादा गैर मुस्लिम साथियों को कत्ल करने का इशारा किया। आपने बताया है कि आपने मेजर नेदाल हसन की तरफ इशारा किया जिसके खिलाफ नवम्बर के महीने में अपने 13 साथियों में से 11 को हलाक कर देने का इल्जाम है। इस पर अलवाती ने सवाल किया है कि क्या नेदाल हसन का काम कोई दिलेराना था और मैं अमेरिकन फौजों में काम करने वाले सब मुसलमानों से यही कहूंगा कि वह भी नेदाल हसन के नक्शेकदम पर चलें। स्पष्ट हो कि नेदाल हसन मेरे शागिर्दों में से एक है और मैं उसकी हरकत पर फख्र महसूस करता हूं। स्पष्ट हो कि मेजर नेदाल हसन अमेरिकन फौज में साइकोनिस्ट का काम कर रहा था। उसके खिलाफ आरोप था कि उसने टैक्सास के फोर्टहुड में 13 अमेरिकनों को नवम्बर के महीने में हलाक कर दिया था। क्या शानदार काम उसने किया जब अमेरिकन जवानों को मौत के घाट उतार दिया जब वह अफगानिस्तान और इराक जा रहे थे। कहा जाता है कि मेजर नेदाल हसन जो फिलस्तीनी नस्ल का है, अपने राष्ट्र की रक्षा कर रहा था। अलवाती ने अपना बयान जारी रखते हुए कहा कि उसने फोर्टहुड के वाकया को अपना आशीर्वाद दिया है और यह जो कुछ भी हुआ यह सब इस्लाम की इजाजत से हुआ, क्योंकि यह एक फौजी निशाना था। अलवाती ने उमर फारुक अब्दुल मुतालिव जो एक नाइजीरिया का निवासी है और जिसके खिलाफ एक यात्री विमान में बन्द एक ट्रंक का दरवाजा खोल देने का इल्जाम है। उस ट्रंक में आतिशी मादा भरा हुआ था। उस हादसे में जितने लोग मर जाने थे उनकी संख्या हजारों में बताई जाती है जिसमें मुस्लिम औरतों और बच्चों के मुकाबले में कुछ नहीं है जिनका खून फिलस्तीन, इराक और अफगानिस्तान में हो रहा है। हमें लाजिमी तौर पर उन लोगों से ऐसे पेश आना चाहिए जैसे यह हमसे पेश आते हैं। अमेरिकन अधिकारियों ने कहा कि अप्रैल के महीने में अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस बात की अनुमति दे दी थी कि अलवाती को गिरफ्तार कर लिया जाए या उसे कत्ल कर दिया जाए। यमन के हक्काम का कहना है कि वह अलवाती को कभी अमेरिकनों के हवाले नहीं करेंगे बल्कि उसके खिलाफ अदालत में मुकदमें चलाने के लिए फौरी कार्यवाही करेंगे। स्पष्ट हो कि अलवाती न्यू मैक्सिको में पैदा हुआ और अब एक मस्जिद में बैठकर वह अमेरिकनों के खिलाफ प्रोपेगंडा करता था। यह 2004 में वापस यमन आ गया था जहां उसने एक यूनिवर्सिटी में नौकरी कर ली और 2006 में अलकायदा से उसके संबंध की खबरें आने लगीं। इस असना में तालिबान में नॉटो के हर सिपाही के कत्ल के लिए 2 लाख पाकिस्तानी रुपये अर्थात् 2400 डालर का ऐलान कर दिया है। वह जितने अमेरिकन मारेंगे उन्हें उतने ही 2400 डालर के हिसाब से मिलेंगे। कहा जाता है कि यह रुपये अफीम पैदा करने वाले किसानों से और खारी के इंतिहापसंदों से जो दुबई के रास्ते अपना रुपया पाकिस्तान में बैठे वरिष्ठ तालिबानी लीडरों को पहुंचाते हैं। इस समय तक इस साल नॉटो के 211 जवान अफगानिस्तान में हलाक हुए हैं उनमें 41 बरतानवी जवान हैं। इस तरह इन जवानों की मौत पर उनके  परिजनों को 5 लाख डालर दिए गए हैं। तालिबान के कमांडरों ने बताया कि जिस दिन से यह राशि डबल की गई है, ज्यादा से ज्यादा इस अभियान में शामिल होने के लिए आ रहे हैं। बाकी जो पैदल चलने वाले फौजियों के खिलाफ चलते-चलते वॉर करने में विश्वास रखते हैं और जो इस तरह की सूचनाएं अपने कमांडर को देते हैं उन्हें गैर मामूली मुआवजा दिया जाता है। हम अपने जवानों से कभी झूठ नहीं बोल सकते इसलिए उनसे हम पहले कहते हैं कि क्या उनके खिलाफ किसी हमले की कोशिश हुई है या नहीं। इसके बाद उन्हें हम यह मुआवजा देते हैं। तालिबान कमांडर ने यह भी बताया कि जो कोई किसी अमेरिकन से उसकी बंदूक छीनकर लाएगा उसे एक हजार डालर मिलेगा। इस बात की पुष्टि होती है कि कमांडरों को जो रुपया भेजा जाता है वह हवाला के जरिये उनके परिजनों को मिल जाता है। उसके बाद यह लोग उस रुपये का हिस्सा उन लोगों में बांट देते हैं जिन लोगों ने कभी दुश्मन के खिलाफ कहीं हिस्सा लिया हो। उसने कहा कि यह राशि हमारे लिए बहुत ज्यादा नहीं है। अगर जरूरत हो तो हम एक से ज्यादा दुश्मन के सिपाही को कत्ल करके ज्यादा राशि हासिल कर सकते हैं  जिससे हमारी जरूरतें पूरी हो जाती हैं। इस सिलसिले में यह कहा जा रहा है कि मुआवजे में यह बढ़ोत्तरी ऐन उस वक्त की गई जब अफगानिस्तान की सरकार बगावत को खत्म करने के लिए रुपये का लालच दे रही है। अफगान सरकार की कोशिश बागियों के लीडरों को रुपये का लालच देकर अपनी ओर करने की है और इस तरह अफगान  सरकार ने बेरोजगारों को नौकरी दिलाने के लिए कई पेशों के स्कूलों खोल दिए हैं।  

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