Home » द्रष्टीकोण » प्रधानमंत्री के विचार!

प्रधानमंत्री के विचार!

👤 | Updated on:26 May 2010 4:46 PM GMT
Share Post

जब से नई सरकार बनी है, प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह साहब ने खुलकर अपने दिल की बात किसी से नहीं कही। इसकी वजह यह हो सकती है कि आपकी मसरुफियत इस कदर ज्यादा है कि आपको देश के सामने जो मसले हैं उनकी गहराई में जाने का समय ही नहीं मिलता। बतौर प्रधानमंत्री आपको देश की तमाम समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है जिसका नतीजा यह है कि कई अहम मामले वक्त की कमी की वजह से बिना विचार किए ही रह जाते हैं। अगर प्रधानमंत्री साहब मुझे माफ करें तो मैं यह कहूंगा कि इसके लिए दोषी आप खुद हैं। अमर वाकया यह है कि प्रधानमंत्री जिस तरह का निजाम चाहते हैं, बना लेते हैं और अगर ऐसा करने में वह नाकाम रहते हैं तो यह उसकी नुमायां नाकामी का सबूत कहा जा सकता है। इसलिए जब प्रधानमंत्री साहब ने देश के सामने इसकी पेचीदा समस्याओं का जिक्र किया और उन्हें हल करने में अपनी मजबूरियों का एतराफ किया तो उतने से बात नहीं बनती। आपकी सरकार डिक्टेट्राना नहीं जहां आपके मुखालिफ अपने विचार आपके सामने न रख सकें। एक जम्हूरी और गैर-जम्हूरी हुकूमत में यही फर्प है। इसलिए जब प्रधानमंत्री साहब अपनी मजबूरियों का जिक्र करते हैं तो एक तरह से इस बात का एतराफ करते हैं कि आप बतौर प्रधानमंत्री इतने कामयाब नहीं हुए जितने आपको कामयाब होना चाहिए था। कतानजर इन सारी बातों के जिस बात पर देश का बुद्धिजीवी वर्ग परेशान हैं, वह यह कि क्या हमारे सामने जो समस्याएं खड़ी हैं हम उनसे निपट सकते हैं। निपटना तो दूर की बात है, मामूली सवाल है कि क्या हम देख भी रहे हैं कि समस्याएं क्या हैं। प्रधानमंत्री ने 6-7 बड़ी बातों की ओर  इशारा किया है। बेशक यह अहम बातें हैं लेकिन देश के सामने मेरे ख्याल में इस्लामी बगावत का भूत खड़ा हो रहा है। तालिबान के लीडरों के दिमाग में क्या है, यह तो वही जानते हैं। लेकिन जिस तरीके पर ओसामा बिन लादेन ने अपने वफादारों को दुनिया में छोड़ रखा है उससे यही साबित होता है कि आप सारी दुनिया को मुसलमान बनाने का ख्वाब देख रहे हैं। जब मैं यह कहता हूं तो कई लोग हैरान हो जाएंगे कि दुनिया के 2-3 देशों में आतंकवादी घटनाएं होती हैं और उनके प्रति यह कह दिया कि ओसामा बिन लादेन सारी दुनिया को मुसलमान बनाना चाहता है, गलत बात है। जो लोग ऐसा सोचते हैं उनसे मैं कहूंगा कि जरा आंखें खोलकर देखें कि यह तालिबान कहां-कहां सक्रिय हैं और कैसे-कैसे। कौन इस बात से इंकार करेगा कि आज भारत में तालिबान के आतंकवादी वाकयात सबसे ज्यादा हो रहे हैं। यह वाकयात संख्या में भी ज्यादा नहीं, अवाम को दुख पहुंचाने में भी किसी से कम नहीं। लेकिन इस सबके साथ एक और भी बात उतनी ही काबिलेगौर है और वो यह कि आज दुनिया में कितने देश हैं जिनमें इस्लाम के नाम पर बेचैनी फैली हुई है। आइए जरा देखें, भारत दुनिया का दूसरा तीसरा मुल्क है। इससे बड़ा चीन ही है। लेकिन भारत में जो कुछ हो रहा है वो सबको मालूम है, लेकिन चीन के सिक्यांग के इलाके में जो कुछ हो रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। सिक्यांग के इलाके में तालिबान की खुली बगावत हो रही है और इसकी शिद्दत इतनी ज्यादा है कि चीनी सरकार भी इससे चिंतित है। यह दौर का एक वाकया है लेकिन कोई यह न समझे कि दुनिया के पूर्वी देशों में केवल उसी जगह पर लादेन के साथी अपनी जौहर दिखा रहे हैं। पूर्वी देशों में मलेशिया अच्छे-खासे नम्बर पर है और वहां भी आए दिन ओसामा के आदमियों के हथकंडे देखने को मिलते हैं। उन इलाकों से ऊपर आ जाएं तो हमें यूरोप और मध्यपूर्व के देशों की तरफ देखना पड़ता है। इस समय पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक और छोटे-छोटे इस्लामिक देशों में जो बेचैनी फैली हुई है और जिनमें इस्लाम और नए जमाने के नजरियों में हमें फर्प नजर आता है। जब हम गौर करते हैं तो कई एक अहम बातें देखने को मिलती हैं। मैं इस समय दूर नहीं जाना चाहता। मेरे सामने पाकिस्तान का सवाल है। मैं इंकार नहीं करता कि पाकिस्तान में धीरे-धीरे ऐसा तबका पैदा हो रहा है जो यह सवाल करने लगा है कि इस्लाम के नाम पर मुसलमान जो कुछ कर रहे हैं वो कहां तक दुरुस्त है। मुसलमानों की इस बेदारी को मैं इस्लाम की सबसे शिकस्त मानता हूं। इसलिए कि इस्लाम के नाम पर आम मुसलमानों की जुबान बन्द थी और वो देख रहे थे कि किस तरह बेगुनाहों का खून किया जा रहा है। ओसामा बिन लादेन   उन मुसलमानों का रहनुमां हैं दूसरा हजरत मोहम्मद बनना चाहता है और इस बात से इंकार करना मुश्किल है कि ओसामा का असर दुनिया के मुसलमानों पर हुआ है और ओसामा की कामयाबी की सबसे बड़ी वजह यह है कि वह कुरान शरीफ का नाम लेकर अपने मजहब को फैलाता जाता है। यह सब तो दूर के देशों की हालत है। आइए जरा देखें कि हमारे अपने देश का क्या हाल है। जो कोई आंखें खोलकर हालात का मुआयना कर रहा है वो मानने पर मजबूर है कि इस्लाम धीरे-धीरे भारत पर हावी होता जा रहा है। बेशक ऐसे लोग हैं जो मेरे इस नजरिये से इतेफाक नहीं करते लेकिन अगर वह लोग जरा ठण्डे दिल व दिमाग से सोचें तो वह मानने पर मजबूर होंगे कि हमारे हाकिम मजहबी तौर पर चाहे मुसलमान न हों, लेकिन मुसलमानों को जो रियायतें मिल रही हैं वो केवल इसी बात पर मिल रही हैं कि वह कहीं बिगड़ न जाएं और बिगड़ने की हालत में उनको सीधे रास्ते पर लाना कोई आसान बात न होगी। हम देखते हैं कि आज जरा-सा कोई वाकया हो जाता है तो मुसलमान इस्लाम का परचम लेकर मौके पर जमा हो जाते हैं और सरकार को परेशान करते हैं। दूर क्यों जाते हो, सरकार से पूछो कि चार साढ़े चार साल हो चुके हैं अफजल गुरु को फांसी क्यों नहीं लगाई जाती है। जब भी यह सवाल खड़ा हुआ है तो यही जवाब मिला है कि जिनको फांसी की सजा हो चुकी है उनकी रहम की अपीलें राष्ट्रपति के पास हैं। हुक्काम का कहना है कि राष्ट्रपति एक तयशुदा तरीके पर उनकी रहम की अपीलों पर विचार करते हैं। मैं यह मानने को तैयार हूं लेकिन मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि चार साढ़े चार साल के बाद भी अफजल गुरु का नम्बर 20-25 से ज्यादा है। कई लोग हैं जो यह कहते हैं कि हमारे कांग्रेसी अफजल गुरु को रिहा कराने के बहाने ढूंढ रहे हैं और जितनी देर हो जाएगी उतना ही अफजल गुरु को रिहा कराना आसान हो जाएगा। डाक्टर मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार का एक साल गुजर चुका है बाकी तीन हैं या कम यह कोई यकीन से नहीं कह सकता। जिस तरह पिछले महीने सरकार क्राइसिस में फंस गई थी उसमें रिश्वत देकर ही बचाई गई है। मुलायम सिंह यादव और मायावती के खिलाफ जितने आरोप हैं उनसे  उन्हें बरी करने की कोशिशें की जा रही हैं। अफजल गुरु चार साढ़े चार साल से फांसी का इंतजार कर रहा है और क्या ताज्जुब होगा अगर इस सरकार का कार्यकाल पूरा हो जाए और ऐन वक्त पर मुसलमानों को खुश करने के लिए इधर-उधर का कोई बहाना तलाश करके अफजल गुरु को माफी मिल जाए। जब मैं इस बात की तरफ इशारा करता हूं तो मेरे सामने कांग्रेसी लीडरों की रविश आन खड़ी होती है। मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि उन्होंने यह शेअर नहीं सुन रखा जिसमें कहा गया हैö `वह वक्त भी देखा है तारीख की घड़ियों ने, लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई' आखिर कोई बताए कि आज भारत में 60 वर्ष की आजादी के बाद मुसलमानों की जो ताकत बन गई है इसके लिए कौन जिम्मेदार है। रियायत दर रियायत मुसलमानों को दी जा रही है। यह वह लोग हैं जिनके बुजुर्गों ने देश के टुकड़े किए और पाकिस्तान बना दिया और कौन न मानेगा कि ऐसे लोगों में आज भी 1947 के नजरिये की हिमायती करने वालों की कमी नहीं। दूर क्यों जाते हो, आजादी के बाद जिस तरीके पर हमारे कांग्रेसी लीडरों ने देश की अखंडता का खून करने वालों को माफ किया उसका नतीजा आज हमारे सामने है। 1947 में मुसलमानों की आबादी दो करोड़ के करीब थी जो आज 14 करोड़ हो गई है और कौन नहीं जानता कि यह 14 करोड़ क्या नहीं कर डालेंगे अगर उन्हें मौका मिले। आखिर कौन नहीं मानता कि आज पाकिस्तान समर्थक आतंकवादी भारत में जो वाकयात कर रहे हैं उनमें भारत के मुसलमान ही उनकी मदद कर रहे हैं। आए दिन ऐसे मुसलमानों की गिरफ्तारियां होती हैं। यहां तक नौबत आ गई कि बटला हाउस की गोलीकांड के वाकयाती हर तरह से कानून के मुताबिक तहकीकात हुई है और उसमें पुलिस के जवान हलाक हुए हैं। लेकिन मुसलमान यह मानने को तैयार ही नहीं हैं। जलसे हो रहे हैं, जुलूस निकल रहे हैं और तरह-तरह की मांगें हो रही हैं। अंग्रेजों के जमाने में जब भी कभी  हिन्दुओं और मुसलमानों में तफरका डालने की व्यवस्थित कोशिश की गई तो उसके खिलाफ बावेला हुआ लेकिन आज जबकि बरतानवी सरकार को भारत से गए हुए 60 साल होने लगे हैं, क्या वजह है कि मुसलमानों के रहनुमां सरकार को आंखें दिखा रहे हैं। कश्मीर के मुसलमान सरे बाजार भारत से आजादी की मांग कर रहे हैं। सिमी जैसी जमातें फल-फूल रही हैं और मैं इन बातों को सोचता और देखता हूं तो मुझे भारत के बेताज बादशाह जवाहर लाल नेहरू के तारीखी शब्द याद आ जाते हैं जिन पर गौर करने से पता चल जाता है कि भारत में हिन्दुओं की दुर्दशा क्यों हो रही है और क्यों उन मुसलमानों को सीने से लगाया जाता है जो आज भी भारत के और टुकड़े चाहते हैं। गुजरे जमाने की याद करूं तो अपने हृदय सम्राट जवाहर लाल जी महाराज के नजरियों की याद आ जाती है। आपने बड़े तमतराक से कहा था कि मैं तालीमी तौर पर एक अंग्रेज हूं विचारों के लिहाज से, अंतर्राष्ट्रीय कल्चर के लिहाज से मुसलमान और इतेफाक से एक हिन्दू हूं। अब कोई बताए कि जिस भारत में हिन्दुओं की आबादी 90 प्रतिशत के करीब थी और दुनियाभर का पुराना मजहब है जिसकी संस्कृति और कल्चर को सारी दुनिया मानती है उसे हमारे पंडित जी इतनी हिकारत से देखते थे कि आपने फरमाने की जुर्रत की कि आप इतेफाक से हिन्दू पैदा हो गए। इसका मतलब दूसरे शब्दों में यह है कि अगर आपके वश में पैदा होना होता तो मोती लाल नेहरू के घर में पैदा न होते बल्कि किसी मियां जी के रौनक अफरोज होते। मैंने इस वाकया का जिक्र इसलिए किया कि भारत में आजकल हिन्दुओं की जितनी कमजोर पोजीशन हो गई है ऐसी पहले कभी नहीं थी और इस सबका जिम्मेदार नेहरू खानदान ही है। जवाहर लाल ने 14 साल हुकूमत की। आपके कुछ देर बाद आपकी बेटी आ गई उसने कई साल तक हुकूमत की, इसके बाद आपका दोहता हुकूमत में आ गया और उसके बाद उसकी धर्मपत्नी आज कांग्रेस की सर्वेसर्वा बनी हुई है। ऐसी हालत में अगर हिन्दुओं की अपने ही देश में दुर्दशा हो तो क्या ताज्जुब है और अब यह कहा जा रहा है कि डाक्टर मनमोहन सिंह हुकूमत करने में नाकाम रहे हैं। इसलिए सोनिया गांधी के बेटे राहुल को देश का प्रधानमंत्री बनाया जाए। राहुल समझदार है और वह जानना चाहता है कि देश की समस्याएं क्या हैं और उसके बाद ही प्रधानमंत्री बने। अमर वाकया यह है कि राहुल की माता सियानी और समझदार निकलीं जिसने देश का प्रधानमंत्री बनना तो मंजूर न किया लेकिन प्रधानमंत्री का हुक्मरान बनना मान लिया। आज श्रीमती सोनिया गांधी का कोई सरकारी अधिकार नहीं लेकिन वह सारे भारत पर हुकूमत कर रही हैं।  

Share it
Top