कितने कश्मीरी पाकिस्तान के पक्ष में
आमतौर पर देखा गया है कि जब भी कोई वाकया होता है तो श्रीनगर के बाजार पाकिस्तानी झण्डों से भरे नजर आते हैं जिससे कोई भी यह अंदाजा कर लेता है कि कश्मीर का एक-एक मुसलमान पाकिस्तान के पक्ष में है। लेकिन दो साल हुए जब कश्मीर की अपनी सरकार बनी और इसके साथ ही संसद के लिए मेम्बर चुने जाने थे उसका जो नतीजा निकला उसने सारी दुनिया को हैरान करके रख दिया, क्योंकि उन चुनावों से पहले पाकिस्तान समर्थकों के जो प्रदर्शन और जुलूस निकल रहे थे उनसे यही अंदाजा किया जाता था कि सिवाय जम्मू के कश्मीर की एक-दो तहसीलों के बाकी सब में पाकिस्तान समर्थक भरे पड़े हैं। लेकिन जब चुनाव के नतीजे निकले जो दुनिया देखकर हैरान रह गई कि पाकिस्तान नवाजों को उम्मीद से कहीं ज्यादा पराजय का मुंह देखना पड़ा। यह पराजय इतनी शर्मनाक थी कि पाकिस्तान नवाजों ने कोई बयान वगैरह देना भी जरूरी न समझा। उस दिन के बाद आज तक जितने प्रदर्शन हुए हैं उनको देखकर तो यही अंदाजा होता है कि कश्मीरी अवाम पाकिस्तान की समर्थक है। लेकिन आप सुनकर हैरान होंगे कि एक रायशुमारी में यह पता चला है कि जम्मू और कश्मीर के केवल दो प्रतिशत लोग हैं जो पाकिस्तान का साथ देना चाहते हैं। बजातौर पर सवाल हो रहा है कि ऐसा अंदाजा क्यों था कि आम कश्मीरी पाकिस्तान में शामिल होना चाहता है। लेकिन तहकीकात से पता चला है कि केवल 2 प्रतिशत कश्मीरी ही पाकिस्तान के हक में हैं। इन्हीं दिनों जम्मू-कश्मीर और गुलाम कश्मीर के लोगों की राय जानने के लिए यह कोशिश की गई। उस वक्त भी उस इलाके के कई लोग यही दावा कर रहे थे कि यहां की जनता पाकिस्तान के पक्ष में है। लेकिन जो रायशुमारी की गई उसने बताया कि केवल 2 प्रतिशत मुसलमान ऐसे हैं जो पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं। पाकिस्तान के ज्यादा समर्थक श्रीनगर और बडगाम में ही नजर आते हैं। इन दो जिलों में पिछले वर्षों जो रायशुमारी की गई तो पता चला कि एक भी पढ़ा-लिखा मुसलमान कश्मीर के पाकिस्तान से इलहाक का समर्थक नहीं है। इसका ताजातरीन सबूत यह है कि इन्हीं दिनों जिस संस्था ने रायशुमारी की है उसका कहना है कि ज्यादा से ज्यादा 2.6 प्रतिशत कश्मीरी पाकिस्तान के समर्थक हैं। बजातौर पर सवाल किया जाएगा कि क्या वजह है कि पाकिस्तान के पक्ष में अपना गला फाड़ने और नारे लगाने में तो हजारों कश्मीरी मुसलमान सड़कों पर उतरने को तैयार हैं। लेकिन वोट देने के लिए उसका 10वां हिस्सा भी नहीं है। लन्दन के एक स्कालर रॉबर्ट ब्रैड रॉक जो लन्दन के किंग्स कॉलेज में पढ़ाता है उसने बताया कि उसने सितम्बर और अक्तूबर 2009 में 3774 लोगों की राय जानने की कोशिश की। यह रायशुमारी कश्मीर के दोनों हिस्सों में थी और अक्तूबर 2009 में हुई थी जिसमें पता चला कि 44 प्रतिशत लोगों ने पाकिस्तान के पक्ष में और 43 प्रतिशत लोगों ने आजाद कश्मीर के पक्ष में वोट दिए। ब्रैड रॉक ने अपनी 37 पृष्ठों पर सम्मिलित रिपोर्ट में बताया है कि यह संख्या हमेशा के लिए कश्मीर के लिए मुसतकविल का फैसला करने वाले आंकड़ें हैं और शायद इन्हीं आंकड़ों की बिना पर कश्मीर की किस्मत का फैसला हो सकता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे हो सकता है कि इलाके के लोग प्रदर्शन तो पाकिस्तान के पक्ष में करें लेकिन वोट के वक्त पाकिस्तान के खिलाफ अपना वोट डालें। इसका जवाब उसने दिया कि पाकिस्तान नवाज प्रोपेगंडा इतना करते हैं कि मामूली हालात में भारत के समर्थक अपनी राय का इजहार करने से डरते हैं। तजुर्बा यह बताता है कि कश्मीर में पाकिस्तान के समर्थक हिंसा पर उतर आए हैं जिसका नतीजा यह है कि कश्मीरी अवाम यह महसूस करने लग गई है कि पाकिस्तानी कश्मीर में उन्हें भारत के मुकाबले में गुलामों की जिन्दगी बसर करनी होगी जो कसर थी वह तालिबान ने पूरी कर दी है। तालिबान और पाकिस्तान की आईएसआई ने मिलकर ऐसा माहौल बना रखा है कि जनता अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने से घबराती है। वरना आजाद कश्मीर और गुलाम कश्मीर की हालतों में जो फर्क है उसे देखकर हर पढ़ा-लिखा कश्मीरी इसी नतीजा पर पहुंचता है कि पाकिस्तान के पक्ष में वोट देकर वह कश्मीरियों के गले में पाकिस्तान की गुलामी का फंदा डाल रहे हैं। स्पष्ट हो कि गुलाम कश्मीर की आबादी 20 प्रतिशत के करीब है लेकिन जब यह 20 प्रतिशत अपना मुकाबला आजाद कश्मीर के लोगों से करते हैं तो उन्हें पता चलता है कि उनके पास कोई अधिकार नहीं जबकि भारतीय कश्मीर के लोग आजादाना तौर पर अपने ख्यालात का इजहार करते हैं और समझते हैं कि भारत का साथ देने में ही उन लोगों का फायदा है। यह बात दूसरी है कि वह कश्मीर के समर्थकों को अपनी भावनाओं का इजहार करने की अनुमति दे देते हैं लेकिन दिल से वह श्रीनगर की सरकार के हक में हैं। जब देखने की बात है कि आने वाले दिनों में कश्मीर के पक्ष में जो लोग हैं वे कहां तक जुर्रत करके गुलाम कश्मीर के समर्थकों का साथ देते हैं। खुलेआम यह सवाल हो रहा है कि इतने वर्षों से पाकिस्तान की सरकार ने अधिकृत इलाके में अपनी हुकूमत कायम कर रखी है। लेकिन इतना समय गुजर जाने के बावजूद वहां इस्लामाबाद की हुकूमत चल रही है जबकि भारतीय कश्मीर में भारतीय विधान के मुताबिक कश्मीरियों को आजादाना तौर पर अमल करने का पूरा हक है। उम्मीद करनी चाहिए कि भविष्य में जब भी कश्मीर की जनता से पूछा जाएगा कि वह भारत के साथ रहना चाहते हैं या पाकिस्तान के साथ तो उनका जवाब स्पष्ट तौर पर बता देगा कि वह पाकिस्तान के मुकाबले में भारत के निजाम को कहीं ज्यादा पसंद करते हैं और इसलिए अपने इलाके को भारत में ही रखना चाहते हैं।