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पधानमंत्री की पेस कांपेंस

👤 | Updated on:31 May 2010 3:24 PM GMT
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अपनी दूसरी पारी का एक वर्ष पूरा करने के बाद पधनमंत्रााr डॉ. मनमोहन सिंह ने बीती 24 मई को नई दिल्ली में अपनी पहली मुख्य पेस कांपफेंस को सम्बोध्ति किया। इसमें वे आत्मविश्वास से भरे हुए परिपक्व राजनीतिज्ञ अवश्य पतीत हुए, लेकिन उन्होंने ऐसे कोई संकेत नहीं दिये कि पिफलहाल चिंता के जो पांच पमुख मुद्दे हैं- माओवादी, महंगाई, भ्रष्टाचार, सियासी पबंध्न और आतंकवाद के साये में पड़े हुए भारत-पाक सम्बंध्, उनका निकट भविष्य में सकारात्मक समाधन होगा या नहीं। हालांकि लालू पसाद यादव की शैली में पधनमंत्रााr ने ये आश्वासन दिया है कि साल के अंत तक महंगाई 5 या 6 पतिशत गिर जाएगी, लेकिन सवाल यह है कि जो महंगाई इस समय 15-16 पतिशत के उफपर चल रही है और जिसने मध्यवर्ग व गरीब तबके के घरेलू बजट को बिगाड़ कर रख दिया है वह केवल लफ्रपफाजी से कैसे दुरुस्त हो सकती है। महंगाई की वजह से आज जब गरीब बुरी तरह से पिस रहा है तो पधनमंत्रााr के लिए सपफाई व आश्वासन देना पर्याप्त नहीं है। उनकी सरकार को न केवल कुछ "ाsस कदम उ"ाने चाहिए बल्कि वह पयास करती हुई दिखाई भी देनी चाहिए। लेकिन लगता यह है कि अपनी दूसरी पारी में पधनमंत्रााr केवल इसी बात से संतुष्ट हैं कि उनके ग"बंध्न को संसद के अंदर और बाहर कोई खतरा नहीं है। 2004-2009 के दौरान यूपीए की पहली पारी वामपंथियों के बाहरी समर्थन पर निर्भर थी और इस दबाव के चलते कुछ सकारात्मक कदम उ"ाए गए जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून, वन अध्कार कानून, कर्ज मापफी और सूचना अध्कार, जिन्हें सामाजिक-लोकतांत्राक उपलब्ध्यों में शुमार किया जा सकता है। लेकिन दूसरी पारी में मनमोहन सरकार किसी बाहरी समर्थन पर निर्भर नहीं है, मुख्य विपक्ष भाजपा और वामपंथी भी कापफी हद तक कमजोर हो गए हैं, इससे लगता यह है कि यूपीए-2 लापरवाही की शिकार हो गई है। यह बात विशेष रूप से रोजगार गारंटी योजना जिसे अब महात्मां गांध राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजन का नाम दिया गया है, में दिखाई देती है। लापरवाही की वजह से यह योजना न केवल भ्रष्टाचार का पमुख अड्डा हो गई है बल्कि इसे लागू करने में भी अनगिनत अनियमितताएं दिखाई दे रही हैं। इसके अतिरिक्त जंगलों में रहने वाले और आदिवासी लोग अपनी भूमि और जैविका के स्रोतों को बचाए रखने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं और सरकार है कि उनकी अनदेखी करके खदान व उद्योग लॉबियों को वरीयता दे रही है। किसानों की समस्याओं का भी समाधन नजर नहीं आ रहा है। सूचना अध्कार कानून को लचीला कर दिया गया है ताकि नौकरशाहों, न्यायधशों और जो लोग सत्ता में उनको लाभ मिल सके। लेकिन जैसा कि उफपर कहा गया है यूपीए-2 की सबसे बड़ी नाकामी महंगाई को नियंत्रात न कर पाना है, जिससे आवश्यक चीजों विशेषकर पफूड की कीमतें निरंतर बढ़ती जा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंदी से उभरने की वजह से महंगाई बढ़ी लेकिन सरकार की पतिक्रिया उस पर काबू पाने में अपर्याप्त ही रही। गौरतलब है कि अध्कितर राज्यों में जन वितरण पणाली चरमराई हुई है जिससे गरीबों के पास महंगाई से बचने का कोई रास्ता ही नहीं बचा है। यूपीए-2 की एक अन्य नाकामी कानून व्यवस्था के क्षेत्रा में रही है। माओवादियों को काबू में करने के लिए जो भी योजनाएं बनाई गईं उनका असर उल्टा ही हुआ। माओवादी जब मर्जी आती है बारूदी सुरंगों से विस्पफोट करते हैं और सुरक्षाबलों पर हमले करते हैं। और पधनमंत्रााr सिपर्फ इतना ही कहते हैं कि, `शायद ये लोग हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरा हैं'। ये तथ्य किसी से छुपा हुआ नहीं है कि माओवादी समस्या को लेकर मनमोहन की काबिना दो पफाड़ है। एक धड़ा चाहता है कि माओवादियों के खिलापफ सैन्य कार्रवाई की जाए जबकि दूसरा केवल बयानबाजी को ही पर्याप्त समझता है। लेकिन कोई भी उस सामाजिक-आर्थिक समस्या का समाधन नहीं करना चाहता जिसकी वजह से माओवादी एक समस्या बने हुए हैं। सरकार को यह समझना चाहिए कि विकास का अर्थ यह नहीं है कि पभावी क्षेत्रााsं में खदान के "sके और औद्योगिक पोजेक्ट दिये जायें जिनकी वजह से लोगों को अपनी भूमि से दूर होना पड़ता है। जरूरत इस बात की है कि नक्सल पभावी क्षेत्रााsं में रोजगार व शिक्षा के अवसर मुहाया कराए जाएं। लेकिन यूपीए-2 वही कर रही है जो 1998 और 2000 के बीच भाजपा के नेतश्त्व वाली एनडीए कर रही थी कि अमीरों को गरीबों की कीमत पर और अमीर बनाया जाए। दरअसल यूपीए-2 की मुख्य समस्या ये है कि योजनाओं के मुख्य मुद्दों पर उसमें आम सहमति नहीं है। गश्हमंत्रााr पी. चिदंबरम पहले ही कह चुके हैं कि माओवादियों से निपटने के लिए उनके पास असीमित अध्कार नहीं है। अपनी पेस कांपफेंस मे पधनमंत्रााr ने गोलमोल अंदाज में कहा कि कानूनी व्यवस्था राज्यों का विषय है, लेकिन समस्या की गंभीरता को देखते हुए केंद हर लिहाज से मदद कर रही है और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रायों को चाहिए कि पगति के लिए नक्सलवादियों को नियंत्रात करना आवश्यक है। साथ ही पधनमंत्रााr ने उनसे सामाजिक संग"नों पर पतिबंध् लगाने से इनकार कर दिया जो माओवादियों का समर्थन कर रही हैं। उनके अनुसार लोकतंत्रा में हर किसी को अपने विचार व्यक्त करने का अध्कार है जब तक कि वह हिंसा की वकालत न कर रहा हो। सूचना अध्कार पर भी केंद सरकार में एक राय नहीं है। यह सर्विदित है कि यूपीए पमुख सोनिया गांध और पधनमंत्रााr मनमोहन सिंह इस विषय पर अलग-अलग राय रखते हैं। इसी तरह जातिगत जनगणना पर भी काबिना में मतभेद हैं जिससे कोई स्पष्ट नीति लागू नहीं की जा रही है। काबिना में आपसी मतभेद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पर्यावरण मंत्रााr जयराम रमेश चीन की ध्रती पर गश्हमंत्रााr चिदंबरम की आलोचना करते हैं। इसका सीध सा अर्थ यह है कि सरकार में सियासी पबंध्न का अभाव है। यह सही है कि पेस कांपफेंस के जरिये पधनमंत्रााr को अपनी सरकार का रिपोर्टकार्ड पेश नहीं करना था और न ही कोई नीतिगत बयान देना था। पेस कांपफेंस में मीडिया सवाल करता है और उनका जवाब दिया जाता है।  इस लिहाज से देखा जाए तो पधनमंत्रााr के समक्ष जो पश्न रखे गए उनका जवाब उन्होंने संयम व आत्मविश्वास से दिया। पाकिस्तान से सम्बंध् पर उन्होंने कहा कि अच्छे ताल्लुक होने चाहिए अगर भारत को अपने विकास की पूर्ण क्षमता हासिल करनी है। पधनमंत्रााr ने राहुल गांध के पक्ष में रिटायर होने के सवाल पर स्पष्ट कहा कि उनका काम अभी पूरा नहीं हुआ है लेकिन अगर कांग्रसे चाहेगी तो वे पद छोड़ देंगे। एक परिपक्व राजनीतिज्ञ के तौर पर डॉ. सिंह ने तेलंगाना, जाति आधरित जनगणना, टेली कम्युनिकेशन मेंत्रााr ए राजा पर भ्रष्टाचार के आरोपों जैसे विवादित मुद्दों को खूबसूरती से टाल दिया। कुल मिलाकर अपनी पेस कांपफेंस में पधनमंत्रााr ने कुछ नया नहीं कहा और न ही कुछ नए होने के संकेत दिए। कहने का अर्थ यह है कि एक मंझे हुए सियासत दां की तरह पधनमंत्रााr ने बहुत   कुछ बोला लेकिन कुछ कहा नहीं। शाहिद ए चौध्री

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