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पेड़ बचाओ, पेड़ बढ़ाओ

👤 | Updated on:31 May 2010 3:25 PM GMT
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सड़क पर चलते हुए अकसर ही हमें `पेड़ लगाओ, ध्रती बचाओ' जैसे स्लोगन देखने को मिलते हैं। इन्हें देखकर शायद ही हममें से किसी के मन में इनकी अहमियत का अंदाजा लगता हो। पेड़ों का हमारे जीवन में जो महत्व है, उससे हम सभी भली-भांति परिचित हैं। यह पेड़ ही हैं जो हमें पाणवायु यानी ऑक्सीजन देते हैं और जहरीली कार्बन डाईऑक्साइड गैस ग्रहण करते हैं। जीवन का पर्याय माने जाने वाले पेड़ न सिपर्फ हमें पाण वायु देते हैं बल्कि हमारी तमाम अन्य जरूरतों को भी पूरा करते हैं। इनके महत्व को जानते हुए भी हम इन्हें अपने पफायदे के लिए इस कदर उपयोग कर रहे हैं कि हम यह भूलते ही जा रहे हैं कि अगर ध्रती से इनका अस्तित्व खत्म हो गया तो हम जीवित कैसे रहेंगे? भोजन के बिना तो हम कुछ दिनों तक जीवित रह सकते हैंऋ लेकिन ऑक्सीजन के बिना कुछ सेकेंड जीवित रहना भी मुश्किल है। जीवन के लिए महत्वपूर्ण मानी जाने वाली ऑक्सीजन हमें पेड़ों से ही मिलती है। इसलिए पेड़ों की घटती संख्या, इस बात का सापफ संकेत है कि हम अभी भी पेड़ों के महत्व को समझ नहीं पाए हैं। कुछ समय पहले वाशिंगटन के एवरग्रीन स्टेट कॉलेज में इकोलॉजी की पोपफेसर नलिनी नदकारनी ने पश्थ्वी पर मौजूद कुल पेड़ों की संख्या के आधर पर पतिव्यक्ति कितने पेड़ हैं, इसका आंकलन किया था। नलिनी के अनुसार इस समय ध्रती पर एक व्यक्ति के हिस्से में 61 पेड़ आ रहे हैं। नलिनी ने यह आंकड़ा नासा के सेटेलाइट द्वारा मैदान, पहाड़ और समुद में मौजूद वनस्पतियों की जानकारी के आधर पर निकाला था। हालांकि नलिनी के इस आंकड़े को पूरी तरह सही नहीं कहा जा सकता। इसकी वजह यह है कि नलिनी कोई पोपफेशनल साइंटिस्ट नहीं हैं। उन्होंने तो नासा द्वारा जारी रिपोर्ट से ध्रती पर मौजूद पेड़ों की संख्या पाप्त की और इस संख्या को विश्व की कुल जनसंख्या से विभाजित कर दिया। इस विभाजन के पफलस्वरूप जो भी संख्या निकली उसे ही उन्होंने एक व्यक्ति के हिस्से में आने वाले पेड़ मान लिये। हालांकि नलिनी का यह तरीका गलत नहीं थाऋ लेकिन उनके इस तथ्य पर किसी वरिष्" वैज्ञानिक ने कोई पतिक्रिया नहीं व्यक्त की इससे यह लगता है कि यह कोई बहुत महत्वपूर्ण आंकलन नहीं है। लेकिन कुछ भी हो इससे इस बात का आंकलन करना तो आसान हो ही जाता है कि एक व्यक्ति को जीवित रहने के लिए कितने पड़े चाहिए और पिफलहाल कितने हैं? नलिनी ने यह आंकड़ा वर्ष 2008 में पस्तुत किया था यानी इस आंकड़े को जारी किये हुए दो वर्ष बीत चुके हैं। भविष्य में पति व्यक्ति के हिसाब से कितने पेड़ बचेंगे इस पर तो अभी से कुछ नहीं कहा जा सकताऋ लेकिन एक व्यक्ति को अपने पूरे जीवनकाल में कितने पेड़ों की आवश्यकता होती है, इसकी जानकारी हम सभी के पास है। पर्यावरणविदों के अनुसार एक व्यक्ति को ताजगी और पदूषण रहित पाणवायु व अन्य चीजें जो उन्हें पेड़ों से मिलती हैं, उसके लिए पूरे जीवनकाल में 400 पेड़ों की जरूरत होती है। ऐसे में अगर एकबारगी नलिनी के आंकड़ों को सही मान लें तो जरा सोचिये कि 61 पेड़ों से एक आदमी क्या-क्या पाप्त कर पाएगा। स्वस्थ व ताजी वायु के लिए तो शहरों में रहने वाले लोग तरसते ही हैंऋ लेकिन अगर पेड़ इसी तरह कटते रहे तो जल्द ही ग्रामीण इलाकों में भी दूर-दूर तक पेड़ दिखायी नहीं देंगे। 61 पेड़ इन दो सालों में घटकर और भी कम हो गए होंगे, इस बात में भी कोई आशंका व्यक्त नहीं है। नासा के सेटेलाइट द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार ध्रती पर इस समय 4,0024,63,00,201 पेड़ हैं। वर्ष 2008 में जारी विश्व जनगणना के अनुसार इस समय विश्व की कुल आबादी 6,69,20,30,277 है। विश्व की आबादी तो तेजी से बढ़ रही है लेकिन पेड़ लगातार कम होते जा रहे हैं। इस कमी को पूरा करने के बारे में जल्द ही अगर ध्रती के हर व्यक्ति ने पयास नहीं किए तो वह दिन दूर नहीं जब पानी की तरह शु( हवा भी पैसों से खरीदनी पड़ेगी। विकास के नाम पर जिस तेजी से दुनिया भर में पेड़ काटे जा रहे हैं उससे यही पतीत होता है कि जल्द ही अगर पेड़ों को बचाने के लिए कुछ "ाsस कदम नहीं उ"ाए गए तो ध्रती के विनाश को रोकना नामुमकिन हो जाएगा। हालांकि इस समय ध्रती पर पेड़ों की जो संख्या मौजूद है, उसके आधर पर इसे 400 पेड़ पति व्यक्ति की संख्या तक पहुंचाना ज्यादा मुश्किल नहीं हैऋ लेकिन मौजूदा दौर में जहां इंसान अपने पफायदे के लिए सिपर्फ पेड़ काटने को तरजीह दे रहा है, लगाने को नहीं, ऐसे में इस आंकड़े को छू पाना भी  कापफी मुश्किल नजर आ रहा है। खैर! उम्मीद पर तो दुनिया कायम है और हम भी इस बात की उम्मीद ही कर सकते हैं कि जल्द ही पेड़ों को बचाने के लिए कवायद तेज हो जाएगी। ध्रती पर पेड़ों के अस्तित्व के बारे में कहा जाता है कि यह 21 करोड़ साल से भी अध्कि समय से ध्रती पर मौजूद हैं। इंसान और अन्य जीव शुरूआत से ही पेड़ों का दोहन कर रहे हैं। आज भले ही पेड़ों के रूप, आकार और पजातियां कापफी बदल गईं हों लेकिन इंसानों द्वारा इनका दोहन अब पहले से हजार गुना ज्यादा तेजी से हो रहा है। इनसे भोजन, वायु, जलाने के लिए लकड़ी तो मिलती ही है, इसके अलावा एक समय तक रहने के लिए मकान भी इन्हीं से बनाए जाते रहे हैं। आधुनिक तकनीक और अन्य माध्यमों के विकसित होने से भले ही पेड़ों का दोहन आधरभूत कामों में कम होने लगा हो लेकिन विकास के नाम पर जमीन खाली कराने और वहां उफंची-उफंची इमारतें बनाने के लिए पेड़ों को लगातार नष्ट किया जाता रहा। यही पक्रिया आज भी चली आ रही है। पूरी दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग के मुद्दे पर हर साल बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई जाती हैं और ग्लोबल वॉर्मिंग कम करने के तमाम उपाय  किए जाने के लिए नियम कानून बनाए जाते हैं लेकिन इन सबके बीच अगर कुछ नहीं होता है तो वह है बचे हुए पेड़ों को सुरक्षित रखने की कोशिश। ध्रती की हालत से भली-भांति परिचित होने के बावजूद पेड़ आज भी काटे जा रहे हैं, भले ही यह काम खुलेआम न होकर चोरी-छिपे किया जा रहा हो। पेड़ों की यह कटाई जरूरत के नाम पर की जा रही है, मसलन पूरी दुनिया में इस समय जितने टीश्यू पेपर पयोग किये जा रहे हैं वह तकरीबन 60 लाख पेड़ो को काटकर बनाए जाते हैं। इसके अलावा अकेले भारत में हर साल सिपर्फ बजट पस्तुत करने के लिए 70 हजार किलो कागज उपयोग किया जाता है। यह कागज 1000 पेड़ों को काटकर बनाया जाता है अर्थात अगर भारत शासन तंत्रा, बजट को कागजी न रखकर इलेक्ट्रॉनिक कर दे तो इससे हर साल 1000 पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है। जरा सोचिए अगर सिपर्फ भारत सरकार द्वारा बजट की पस्तुति में कागज की इतनी बर्बादी हाती है तो पूरे देश में किस स्तर पर कागज उपयोग और बर्बाद किया जाता होगा और इसके लिए कितने पेड़ हर साल काटे जाते होंगे? अब अगर यही आंकड़ा पूरे विश्व में उपयोग होन वाले कागज का निकाला जाए तो हमें खुद ब खुद पता चल जाएगा कि ध्रती के साथ हम कितनी बेहरमी बर्ताव करते हैं। समुदी जल स्तर का लगातार बढ़ना और विविध् मौसम चक्रों खासतौर पर बारिश का चक्र बदलते जाना कहीं न कहीं इन सबके पीछे पेड़ों का लगातार कम होना ही जिम्मेदार है। कैसे, यह भी जान लें। यह तो हम सभी जानते हैं कि पेड़-पौध्s वातावरण के लिए एक ऐसे पिफल्टर का काम करते हैं जो अशु( चीजों को अपने भीतर रख लेते हैं और शु( और सापफ चीजों को हमारे उपयोग के लिए छोड़ देते हैं। इंसान की बढ़ती कार्यक्षमता से भले ही वह विकास की सीढ़िया चढ़ता चला जा रहा होऋ लेकिन इन सबके बीच वह अपने जीवन का मूल माने जाने वाले पेड़ों को दरकिनार करता चला जा रहा है। खैर! अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है। आज भी पति व्यक्ति 61 पेड़ों का आंकड़ा मौजूद है। यह आंकड़ा और भी कम हो और पानी की तरह ताजी हवा भी कीमती हो जाए इससे पहले पेड़ों की अहमियत को हम जानें और आस-पास उपलब्ध् खाली जगहों पर पेड़ लगाना शुरू कर दें। आपके द्वारा लगाए गए पेड़ भले ही आपके किसी काम के न हों लेकिन आपके न रहने पर यह आपके बच्चों को ताजी व "ंडी हवा के अलावा और भी बहुत कुछ देंगे, वह भी बिना कुछ मांगे। अगर अभी भी पेड़ों की अहमियत को लेकर हम नहीं चेते तो वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही भविष्यवाणियों को सच होने से रोक पाना मुश्किल होगा। दुनियाभर के वैज्ञानिक ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते पकोप के चलते यह दावा करते नजर आ रहे हैं कि वर्ष 2100 तक ध्रती के तापमान में 10 डिग्री पफारेनहाइट की बढ़ोत्तरी हो चुकी होगी और समय के साथ यह तापमान बढ़ता ही जाएगा। ऐसा होने के पीछे वैज्ञानिक तमाम कारण बताते हैं- धरती की सतह को सूर्य की घातक किरणों से बचाने में पेड़ ही विशेष भूमिका निभाते हैं। इनके लगातार कम होने से सूर्य की किरणें सीध्s धरती की सतह पर पड़ रही हैं और ध्रती गरमाती जा रही है। इसे गरमाने से रोकने के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे जो ध्रती की सतह को सूरज की हानिकारक किरणें से बचा सकें। सपना बाजपेयी मिश्रा  

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