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मौला हर शहर को बख्श, ऐसा खुदा बख्श

👤 | Updated on:31 May 2010 3:26 PM GMT
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अगर पटना में हों और वक्त थोड़ा हो तो भले गोलघर देखने न जाएं, पटना साहिब के दर्शन का कार्यक्रम स्थगित कर दें। लेकिन दिल्ली के वोट क्लब सरीखे गांध मैदान से पटना विश्वविद्यालय को जोड़ने वाले अशोक राजपथ में स्थित खुदा बख्श लाइब्रेरी देखना न भूलें। क्योंकि बाकी जगहों में तो जाकर आप उस जगह को ही देखेंगे मगर खुदा बख्श ओरियंटल पब्लिक लाइब्रेरी आपको पूरी दुनिया और कई युगों का सपफर करा देगी। यह हस्तलिखित पाण्डुलिपियों की शायद दुनिया में सबसे समृ( लाइब्रेरी है। जहां आज की तारीख में 21,000 से ज्यादा दुर्लभ पाण्डुलिपियों का संग्रह है। ये पाण्डुलिपियां मुख्यतः अरबी, पफारसी, उर्दू, तुर्किश, पश्तो, संस्कृत, पुरानी हिन्दी और पाली में हैं। यही नहीं यहां 2,50,000 से ज्यादा छपी हुई ऐसी दुलर्भ पुस्तकें हैं जिनमें से सैकड़ों तो एकमात्रा पति हैं और पूरी दुनिया में सिपर्फ यहीं हैं। इस विशिष्ट पाण्डुलिपि लाइब्रेरी की विशालता और विशिष्टता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1904 में इस लाइब्रेरी में मौजूद दुर्लभ पाण्डुलिपियों व किताबों का विस्तृत कैटलॉग बनना शुरू हुआ था जो अभी तक नहीं बन सका। पूरी दुनिया में इस विशिष्ट लाइब्रेरी को कितना महत्वपूर्ण माना जाता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2500 सालों के लिखित इतिहास के स्वामी पटना शहर को इतिहास के हर पन्ने से खारिज कर दिया जाए तो भी यह अकेली लाइब्रेरी उसे दुनिया के बौ(क नक्शे में अहम स्थान दिला देगी। शहर के व्यस्त अशोक राजपथ पर गंगा किनारे स्थित यह लाइब्रेरी अतीत की शानदार विरासत है। यहां मौजूद पाण्डुलिपियां ताम्रपत्रााsं, भोजपत्रााsं, हिरण की खाल, कपड़े, मिट्टी, बलुए पत्थर और कागज में हैं। यहां 2.5 लाख से ज्यादा दुनिया की दुर्लभ किताबों का जो संग्रह है, उसमें अरबी, पफारसी, पश्तो, उर्दू, संस्कृत, पाली, पुरानी हिन्दी के साथ-साथ जर्मन, पफेंच, जापानी, रूसी व पंजाबी भाषा तक की किताबें हैं। यह देश ही नहीं पूरी दुनिया के उन कुछ गिने चुने संस्थानों में से एक है जहां संसार के कोने-कोने से आने वाले सैकड़ों शोधर्थी/स्कॉलर्स मंडराते रहते हैं। खुदा बख्श लाइब्रेरी, पटना शहर का बौ(क गढ़ है। यहां हर समय कोई न कोई सेमिनार, वर्कशाप, लेक्चर साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम चलता ही रहता है। लाइब्रेरी "ाrक सुबह 9ः30 बजे खुल जाती है और शाम 5ः30 बजे तक खुली रहती है। लेकिन लाइब्रेरी का वाचनालय सेक्शन 9 बजे के पहले ही खुल जाता है और देर शाम तक खुला रहता है, जहां आप शहर से निकलने वाले तमाम हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू पत्रा-पत्राकाओं को पढ़ सकते हैं। साथ ही दिल्ली और कोलकाता में छपने वाले कुछ महत्वपूर्ण अखबार भी यहां पढ़ने के लिए उपलब्ध् होते हैं। व्यस्त अशोक राजपथ पटना की वह पमुख सड़क है जिसमें तमाम महत्वपूर्ण कालेज, अस्पताल और विश्वविद्यालय स्थित है। जिस कारण यह सड़क सुबह से लेकर देर शाम तक छात्रााsं, शोधर्थियों और पतियोगिता की तैयारी में जुटे छात्रााsं से अटी रहती है। इस कारण लाइब्रेरी के वाचनालय कक्ष में मुश्किल से जगह मिलती है। इस दुर्लभ लाइब्रेरी की स्थापना मुहम्मद बख्श साहब ने शौकिया तौर पर की थी। उन्हें पाण्डुलिपियों के संग्रह का नशा था। उन्हेंने अपने जीवनकाल में 1400 पाण्डुलिपियां इकट्"ाr कीं। इन पाण्डुलिपियों को सहेजने के लिए मुहम्मद बख्श साहब ने यह लाइब्रेरी कुतुबखानी-ए-मोहम्मदिया के नाम से स्थापित की थी। 1876 में मुहम्मद बख्श साहब खुदा को प्यारे हो गए। मरते समय उन्होंने अपनी पाण्डुलिपियों का संग्रह बेटे खुदा बख्श को सौंप दिया। बेटे को पाण्डुलिपियों का संग्रह सौंपने के साथ ही उन्होंने अपनी ख्वाहिश उजागर की कि इस संग्रह को वह बढ़ाये तथा इसे एक सार्वजनिक लाइब्रेरी का रूप दे। खुदा बख्श साहब ने अपने पिता की यह इक्ष्छा पूरी करने की "ान ली। उन्होंने इस संग्रह में 4000 पाण्डुलिपियों का इजापफा किया और मरहूम वालिद की ख्वाहिश पूरा करने के लिए 1880 में इसे एक बड़ी और व्यवस्थित लाइब्रेरी का रूप दिया। उन्होंने इसके नाम में बदलाव किया। अब यह ओरियंटल लाइब्रेरी हो गयी बाद में, खुदा बख्श ओरियंटल लाइब्रेरी के नाम से जानी गयी। खुदा बख्श साहब ने इस दुर्लभ लाइब्रेरी को एक ट्रस्ट का रूप देकर 14 जनवरी 1891 को पटना शहर के लोगों को समर्पित कर दिया। पुस्तकालय का औपचारिक उद्घाटन बंगाल के तत्कालीन गर्वनर सर चार्ल्स इलिएट ने 5 अक्टूबर 1891 को किया। खुदा बख्श साहब को अंग्रेजों ने खान बहादुर की पदवी से नवाजा था। वह ताउम्र लाइब्रेरी के सेक्रेटरी रहे सिवाय 1895 से 1898 के समय को छोड़करऋ क्योंकि इस दौरान वह निजाम के हाईकोर्ट के चीपफ जस्टिस थे। इस दौरान लाइब्रेरी में उनकी जगह पर उनके परममित्रा डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा रहे। खुदा बख्श साहब की मृत्यु के बाद उनके वारिसों ने लाइब्रेरी का पबंध्न किया। इस दुर्लभ लाइब्रेरी के नाम में खुदा बख्श हमेशा जुड़ा रहा। 1969 में संसद में कानून बनाकर भारत सरकार ने इस `खुदा बख्श ओरियंटल पब्लिक लाइब्रेरी' को राष्ट्रीय महत्व की मानते हुए इसके रखरखाव और विकास की जिम्मेदारी ली। इसके लिए एक पशासनिक बोर्ड का ग"न किया गया जिसके मुखिया बिहार के पदेन राज्यपाल होते हैं।  लाइब्रेरी में उपलब्ध् दुर्लभ पाण्डुलिपियों का 36 खण्डों का एक विस्तश्त कैटलॉग तैयार किया गया है और अभी भी इसमें कई खण्ड जुड़ने शेष हैं। इस इंटरनेट युग में लाइब्रेरी का महत्व दुनिया के कोने-कोने में मौजूद लोग उ"ा सकें इसके लिए इसकी एक वेबसाइट भी है। tttणइसपइतंतलण्दपबण्पद यह दुर्लभ लाइब्रेरी इस्लामिक अध्ययन के शोधर्थियों के लिए बेहद पफायदेमंद है। यहां कितनी दुर्लभ और महत्वपूर्ण किताबें मौजूद हैं। इनके नाम भर से एक पूरी किताब बन जाए। दुर्लभ किताबों के कुछ नाम इस पकार है- मुगल बादशाहों के खानदान का परिचय देने वाली किताब `तारीख-ए-खानदान-ए-तैमूरिया', बादशाहनामा, शहंशाहनामे, पिफरदौसी का शाहनामा, सलमान व अबसाल तथा `यूसुपफ जुलेखा' आदि हैं। इसलिए कहता हूं पटना जाकर भले कुछ और न देखें मगर खुदाबख्श लाइब्रेरी जरूर देखें। घुमक्कड़  

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