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`की मेरे कत्ल के बाद उसने जफा से तौबा हाय इस जूद पशेमां का पशेमा होना'

👤 | Updated on:1 Jun 2010 8:49 PM GMT
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आज सुबह जब मैंने अखबार देखे तो इस खबर पर नजर पड़ी कि माओवादियों के लीडरों ने ऐलान किया है कि भविष्य में वे रेलगाड़ियों पर हमले नहीं करेंगे। इसकी वजह उन्होंने यह दी कि कई मासूम भी हादसों का शिकार हो जाते हैं और इस तरह उनकी पार्टी बदनाम होती है। ऐसा नजर आता है कि माओवादी पार्टी में कुछ लोगों का ऐसा धड़ा बन गया है जो रेलगाड़ियों की पटरियां और लाइनें उखाड़कर पुराने दिनों के कम्युनिस्टों की तरह बेगुनाहों के खून पर खुश होते थे। उनकी ताजा हरकतों ने सारे देश में खलबली मचा दी। ऐसा नजर आता है कि उनके दिलोदिमाग पर भी इसका असर हुआ है और अब यह लोग हालिया ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के हादसे पर पशेमां हो रहे हैं। रविवार के दिन उन्होंने एक बयान जारी किया जिसमें यह कहा कि जो कुछ हुआ है उस पर उन्हें अफसोस है और सरकार से गुजारिश की है कि उसने एक हफ्ते के लिए रात की गाड़ियां न चलाने का जो फैसला किया है उस पर गौर करे। सीनियर इंटेलीजेंस अधिकारियों का कहना है कि माओवादियों के जो बागी हैं वह गांव के सक्रिय लीडरों का कहीं कत्ल न कर दें, क्योंकि इस तरह वे अवाम को बताना चाहते हैं कि इन्हीं दिनों जो कुछ हुआ है उसकी उन्हें कितनी शर्मिंदगी है। यहां तक कहा जा रहा है कि इस बात पर कोई हैरानी न होगी अगर इन लोगों को ही खत्म कर दिया जाए जिन्होंने पिछले दिनों यह हादसे किए हैं। इस पशेमानी की एक वजह यह दी जा रही है कि पुलिस के हाथों कुछ वो लोग खत्म कर दिए गए हैं जिन्होंने पिछले दिनों एक के बाद दूसरे रेल हादसे किए जिनमें 200 से ज्यादा बेगुनाह शहरी हलाक हो गए। मानना पड़ेगा कि माओवादियों के कुछ लीडरों ने इस कत्लेआम को बुरा महसूस किया है और अब वे शर्मसार हैं कि किस तरह जनता को मुंह दिखाएं। यह सब तो हुआ लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं जो यह मानते हैं कि माजुरत और हमदर्दी का जो इजहार किया है वो एक किस्म का दिखावा है। इसलिए कि जो फ्लास्फी उन लोगों ने अपनाई है इसका आधार ही गुनाहगार और बेगुनाहों का खून है। मुखतसर शब्दों में अगर कहना हो तो यह कहा जाएगा कि यह माओवादी सिवाय हिंसा के और कोई साधन नहीं मानते जिससे बिगड़े हालात सुधर सकें। दिलचस्पी बात यह है कि यह लोग पहले हालात को खराब करते हैं, अवाम को बगावतों पर आमादा करते हैं, कानून की बेहूरमती एक मामूली बात मानते हैं और इस तरह जब पानी सिर से गुजरने लगता है तो यह लोग अवाम से माफी मांगना शुरू हो जाते हैं। बजातौर पर उनसे पूछा जा सकता है कि क्या उन्हें इस बात का कभी ख्याल न आया था कि वह इस तरह आम कत्लोगारद का हुक्म दे रहे हैं। अपनी सफाई में वह चाहें कुछ कहें, अमर वाकया यह है कि आज तक जितने भी बड़े कम्युनिस्ट लीडर हुए हैं उनमें से किसी से दिमाग में यह सवाल नहीं उठा कि वह बेगुनाहों को भी खत्म कर रहे हैं। कॉर्ल मार्क्स जिसने कम्युनिज्म को जन्म दिया, का इरादा क्या था यह तो वह न देख सका, क्योंकि अपनी सारी थ्यौरियों को अमली जामा पहनाने से पहले ही  वे दम तोड़ चुके थे। लेकिन उनके बाद जितने बड़े कम्युनिस्ट लीडर आए, लेनिन स्टालिन और चीन में माउत्से तुंग वगैरह के दिमाग पर रत्तीभर इस बात का बोझ न पड़ा कि वह हजारों बेगुनाह किसानों को मौत के घाट उतार रहे हैं, क्योंकि वह उनकी थयौरियों के समर्थक न थे। उनकी खुशकिस्मती थी या बदकिस्मती, उन्हें अस्थायी तौर पर ही कामयाबी मिली। सबसे पहले लेनिन ने सोवियत रूस पर अपना कब्जा किया लेकिन लेनिन ज्यादा दिनों तक जिन्दा न रह सका। उसके बाद स्टालिन की बारी है। ऐसा कहा जा सकता है कि स्टालिन ने लेनिन की कसर पूरी कर दी। हजारों नहीं लाखों किसानों को अपनी नीति पर अमल न करने की सजा देते हुए मौत के घाट उतार दिया। स्टालिन के बाद रूस में जितने भी कम्युनिस्ट लीडर आए उन्होंने यह देख लिया था कि अगर लेनिन और स्टालिन की नीतियों पर अमल किया गया तो रूस का कम्युनिज्म कुछ ही दिन से ज्यादा न चल सकेगा। इसलिए उन्होंने अपनी नीतियों में कुछ परिवर्तन करना शुरू किया। लेकिन इस असना में चीन में कम्युनिस्ट रूल लागू हो गया था और माउत्से तुंग ने भी उन बड़े लीडरों की नीतियों को अपनाकर हजारों गरीब किसानों के मौत के घाट उतार दिया। माउत्से तुंग ज्यादा दिन तक जिन्दा न रह सका। उसके बाद जितने चीनी लीडर आए वे अपने आपको कहते तो कट्टर कम्युनिस्ट थे, लेकिन उनके दिलोदिमाग में अपने लीडरों के कम्युनिज्म के खिलाफ बगावत शुरू हो गई थी। इसलिए उन्होंने अपनी तरफ से कम्युनिज्म को सरमायादारी का एक अंग बनाना शुरू कर दिया। गरज कि कम्युनिस्ट प्रणाली में सरमायादारी की कई बातें शुरू कर दी गईं। सबसे अहम यह थी कि चीनी लीडर यह कहने लगे कि गरीबी को दूर करने के लिए अमीरी जरूरी है। उनके कहने का मतलब यह था कि जब तक आम लोग मेहनत नहीं करेंगे, देश के विकास का सवाल ही नहीं उठेगा और जिस तरीके पर कम्युनिज्म के दिनों में लीडर रहा करते थे उसने धीरे-धीरे अवाम के दिलों में कम्युनिस्ट लीडरों के खिलाफ शक की भावना पैदा कर दी। इस असना में यूगोस्लाविया में नया तजुर्बा हुआ। मॉर्शल टीटू कम्युनिस्ट नेता थे, लेकिन आपने सरेआम सरमायादारों की तरह जिन्दगी बसर करनी शुरू कर दी थी जिसका नतीजा यह हुआ कि आपकी मौत के साथ ही यूगोस्लाविया में कम्युनिज्म का तजुर्बा खत्म हो गया और यूगोस्लाविया धीरे-धीरे यूरोप के सरमायादारी निजाम का हिस्सा बन गया। यह लम्बी-चौड़ी तारीफ मैंने इसलिए लिखी है कि पाठक यह समझ जाएं कि आज भारत के माओवादियों ने क्यों माफी मांग ली है, क्योंकि वे देख रहे थे कि उन लीडरों ने बेगुनाहों के कत्ल को कोई गलत बात न समझी और इसका नतीजा यह हुआ कि कहीं रेलगाड़ियों में टक्कर कराई जा रही है और कहीं सरमायादारों पर हमले हो रहे हैं। इन हमलों में कोई यह न देख सकता था कि उनका शिकार कोई सरमायादार हो रहा है या मामूली गरीब, दोनों वर्गों के लोग मारे गए। इस तरह गरीब अवाम में जो हिंसा पैदा हो रही थी उसने असर करना शुरू किया और इसका सबूत हमने देखा कि पहली बार माओवादी लीडरों ने यह महसूस किया है कि वे ज्यादती कर रहे हैं और उनके असरात को नकारा करने के लिए उन्होंने ऐलान कर दिया है कि उनसे गलती हो गई है। चर्चा के लिए मान लिया जाए कि उन्हें वाकई अफसोस है कि उन्होंने इतने बेगुनाहों को लुक्मेअजल बना दिया। लेकिन यह इजहारे अफसोस कितना हकीकी है, इसका अन्दाजा इसी बात से लगेगा कि कल को उनका अमल कैसा होता है। अगर आज तक के वाकयात को माओवादी लीडरों ने महज दिखावे के लिए इस्तेमाल किया है तो फिर उन्हें इस बात के लिए तैयार हो जाना चाहिए कि उनका असर जो चीन और रूस में हुआ है, वह भारत में भी होना शुरू हो जाएगा। उन्हें एक बुनियादी बात याद रखनी होगी कि भारत की सारी संस्कृति पहले दिन से ही अहिंसा और विचार-विमर्श पर विश्वास करती है। हक तो यह है कि हमें आजादी भी इसी विश्वास पर बड़ी हद तक अमल करने के बाद मिली है। कोई यह नहीं कह सकता कि भारत में कम्युनिज्म का असर नहीं रहा। लेकिन इस बात से भी इंकार करना मुश्किल है कि असर कुछ दिनों के बाद खत्म हो गया और जनता फिर अपनी पुरानी शांतिमय तरीकों पर विश्वास करने में भी। कौन जाने कि हमारे माओवादी लीडरों ने अपनी हरकतों की जो माफी मांगी है, उसकी वजह उनके दिमाग में रोशनी पैदा हुई है जिसने उन्हें बताया कि वे क्या कर रहे हैं।  

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