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इजरायल और हमसाए अरब

👤 | Updated on:2 Jun 2010 5:30 PM GMT
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जब आप नक्शे पर इजरायल की हालत देखते हैं तो आपको नजर आ जाता है कि उस इलाके में कोई देश नहीं जिसे उसका मददगार कहा जाए। जितने देश हैं वे सब अरब मुसलमान हैं। इसलिए वह यहूदी इजरायल को इस्लाम का बदतरीन दुश्मन मानते हैं और यही कारण है कि फिलस्तीन की समस्या हल होने में नहीं आती। अमर वाकया यह है कि दोनों को एक-दूसरे की नीयत पर शक है। यह कितना है इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इलाके का अरब लीडर यासिर अराफात अपने आखिरी दिनों में इजरायल से दोस्ताना ताल्लुकात पैदा करने का इच्छुक था। लेकिन जिस तरीके पर अराफात की मौत हुई उसने कई लोगों को यह सवाल करने पर आमादा कर दिया कि क्या इजरायल के प्रति उसकी नरम नीति ने उसके अरब साथियों को मुश्ताल तो नहीं कर दिया। इस तरह उन्होंने उसके खत्म होने में मदद की। जो भी हो यह एक पुराना इतिहास है। बरसों गुजर जाने के बावजूद दोनों कौमों के संबंध में कोई बेहतरी नजर नहीं आई। इन्हीं दिनों एक ऐसा वाकया हो गया है जिसने पिछले कुछ दिनों की पैदा हुई हमदर्दी को नेस्तनाबूद करके रख दिया। हुआ यह है कि गाजा के इलाके में महसूर फिलस्तीनियों की मदद के लिए आसपास के अरब देशों ने और फिलस्तीनियों के हमदर्दों ने 10 हजार टन सहायता सामग्री एक बड़े जहाज में डालकर फिलस्तीनियों के लिए भेज दी। ऐसा नजर आता है कि जिन लोगों ने यह सामान इकट्ठा किया था उन्होंने इजरायली हुक्काम को यह बताने की जरूरत न समझी कि वह यह सामान मुसीबत पर पड़े फिलस्तीनियों की मदद के लिए भेज रहे हैं। नतीजा इसका यह हुआ कि इजरायली यही सोचते रहे कि इस बड़े जहाज में फिलस्तीनियों के लिए क्या आ रहा है। जब उन्हें और कुछ न सूझा तो उन्होंने समझ लिया कि उसमें इजरायल के खिलाफ फिलस्तीनियों के लिए खुफिया हथियार हैं और अगर यह फिलस्तीनियों के हाथ आ गए तो इजरायल के लिए एक समस्या खड़ी हो जाएगी। चुनांचे यह तय किया गया कि उस जहाज को ही डुबो दिया जाए। इसलिए उस पर इजरायली हवाई जहाजों ने हमला कर दिया। उस हमले में उस जहाज में बैठे 10 मुसाफिर हलाक हो गए और सारी दुनिया में इस वाकया की निन्दा होने लगी। यह भी न पता चल सका कि हलाक होने वाले कौन लोग हैं। फिर भी एक तुर्की अधिकारी ने बताया कि मरने वालों में अधिकतर तुर्प जवान हैं। इस्तांबुल सरकार के इस जायजे को किसी हद तक दुरुस्त माना जा रहा है, क्योंकि ज्यों ही यह खबर तुर्की पहुंची तो सारे देश में तनाव फैल गया। हर जगह भीड़ इकट्ठी हो गई और इजरायल के खिलाफ भड़कीले भाषण होने लगे। लेकिन नजर यह आता है कि इजरायल पर इन विरोधी प्रदर्शनों का कोई असर नहीं है। तुर्कों के अलावा उत्तरी आयरलैंड का एक शायर भी जख्मी हो गया। तमाम हालात पर इजरायली प्रधानमंत्री वेंजामिन नितिन याहू ने अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा से अपनी मुलाकात स्थगित कर दी। उससे यह अन्दाजा होता है कि इस सारे मामले को इजरायल भी कितनी संजीदगी से ले रहा है। कहा जा रहा है कि इस वाकया के खिलाफ इतने संगीन प्रदर्शन हो रहे हैं कि इजरायल को इनका नोटिस लेना पड़ रहा है। इन तमाम हालात पर अमेरिका का रद्देअमल निहायत दोस्ताना है। एक अमेरिकन प्रवक्ता ने कहा है कि उनकी सरकार को इस बात का सख्त अफसोस है कि इतने आदमी हलाक हो गए और वह इस कोशिश में हैं कि जान सकें कि यह सब क्यों और कैसे हुआ। इजरायल की तरफ से एक बयान में बताया गया है कि उसके जवानों ने अपनी रक्षा के लिए यह इकदाम किए और जब अरब कमांडो ने खुले चाकुओं और खंजरों से उन पर हमले किए तो उस हालत में इजरायलियों के लिए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना कोई आसान बात न थी। दूसरी तरफ एक तुर्की प्रवक्ता ने बताया है कि जब जहाज और बाहर के लोगों का सम्पर्प टूट गया तो भगदड़ मच गई। एक इजरायली हेलीकॉप्टर ने जहाज के आसपास घूमना शुरू कर दिया। इस असना में इजरायली जंगी जहाज भी मौके पर पहुंच गया। इस सारे हादसे में तुर्की की पोजीशन मुश्किल बनी हुई है। उस इलाके के सारे मुस्लिम देशों में तुर्की एक अकेला देश था जो यहूदियों के साथ दोस्ताना ताल्लुक कायम किए हुआ था। यह यहूदियों को मामूली हालात में इस्लाम का दुश्मन मानता था। लेकिन दोनों देशों ने पिछले कुछ वर्षों से अपने ताल्लुक में काफी सुधार पैदा कर लिया था जिसका नतीजा यह हुआ कि तुर्की की सरकार ने वह रवैया न अपनाया जो तुर्की अवाम ने अपना लिया है। तुर्की के प्रधानमंत्री तैयब अरजगान ने कहा है कि इजरायल की हरकत सरकारी आतंकवाद जैसी है। तुर्की की राजधानी इनकराह से यह खबर भी आई है कि तुर्की सरकार इजरायल से अपना राजदूत वापस बुला रही है और इजरायली फौजों के साथ तुर्की फौजों  ने मिलकर जो मशकें करनी थीं उन्हें रद्द कर दिया गया। इस तरह एक निहायत नाजुक सूरतेहाल पैदा हो गई और जब तक इसकी तफ्सीली तहकीकात न हो जाए तब तक दावे से न कहा जाएगा कि हुआ क्या था। कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि इस वाकया ने दोनों देशों और खासकर इलाके के अरब देशों में भयानक विरोध पैदा कर दिया। अमर वाकया यह है कि इन सारे अरब देशों ने कभी भी इजरायल को अपना दोस्त न समझा  था। लेकिन इसके बावजूद तुर्की इजरायल से अपने ताल्लुकात सुधारने की कोशिश कर रहा था। इजरायल के लिए भी बेहतरी इसी में थी जितने ज्यादा अरब देशों से इसके ताल्लुकात सुधर जाएं, वह इसके हक में हैं। लेकिन अचानक इस ताजा वाकया ने सारे हालात को बदलकर रख दिया है। इसलिए जब तक कोई निष्पक्ष तहकीकात से यह पता न चले कि यह सब कैसे हुआ तब तक दानिशमंदी का तकाजा यही है कि इलाके की सरकारें अपनी भावनाओं को काबू में रखें। इजरायलियों और फिलस्तीनियों के लगातार झगड़े ने इजरायल और मुस्लिम देशों में दोस्ताना ताल्लुकात स्थापित करने के रास्ते में मुश्किल पैदा कर रखी थी। लेकिन अब जो कुछ हुआ है उसने जलती पर तेल का काम किया है।  

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