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बीजिंग के 15 वर्षों बाद, भारतीय महिलाएं कहां हैं?

👤 | Updated on:6 Jun 2010 4:39 PM GMT
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महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने हाल ही में ``मानव विकास सूचकांक का जेंडरीकरण ः जेंडर विकास सूची को नया रूप देना और सूची के लिए जेंडर सशक्तिकरण उपाय'' शीर्षक से एक रिपोर्ट फ्रस्तुत की है, जिसमें कहा गया कि भारत के लिए जेंडर सशक्तिकरण उपाय (जी.ई.एम.) जो 1996 में 0.416 थे 2009 में बढ़ कर 0.497 हो गए और 14 राज्यों तथा संघ शासित क्षेत्रों ने 2006 में 0.485 से अधिक जी.ई.एम. फ्राप्त किए। इस जाँच परिणाम को रोजना कि वास्तविकताओं के साथ कैसे मिलाएँ, जो बताता है कि भारत में आज भी महिलाओं के साथ असमानता का व्यवहार होता है और बृहत्-स्तर के विकासों जैसे संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और खाद्य एवं ईंधन संकट और मंदी के परिणामों की सबसे अधिक मार उन्हीं पर पड़ती है? सच यह है कि पिछले 15 वर्षों से, जब से बीजिंग कार्यवाही मंच ने विश्व से ``महिलाओं और लड़कियों को समस्त मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं का लाभ लेना सुनिश्चित करने और इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं के उल्लंघनों के विरुद्ध फ्रभावशाली कार्यवाही`` का आहवाहन किया है, तब से औपचारिक जेंडर समानता की संभावना में बहुत अधिक सुधार आया है, परंतु सारभूत समानता अभी भी भ्रामक है और हमेशा की तरह एक महत्वपूर्ण खोज भर है। पहले, चलिए जल्दी से उन तीन महत्वपूर्ण मोर्चों पर फ्रकाश डालें जिन्होंने भारत में औपचारिक जेंडर समानता को निखारा है ः नीति उच्चारण में महिलाओं और उनके सरोकारों की अधिक दृश्यता; 80वें दशक के बड़ी संख्या में जेंडर विधायी सुधारों के बाद उभरे कुछ उन्नतशील कानून; और ग्रासरूट पर अधिक सशक्तिकरण। पहली बात करें तो, पिछले एक साल में जो नीति निर्धारण हुए हैं उन्हें देखें। वे भारत सरकार की महिला-मित्रवत होने, या कम से कम महिला-मित्रवत नजर आने की इच्छा का संकेत देते हैं। योजना आयोग की महिलाओं के लिए एक उप-योजना है, जिसने आरंभिक फ्रोजेक्ट चलाने के लिए जिलों का चुनाव किया है। रोजगार, शिक्षा और आवास के रूप में तीन मुख्य केंद बिंदुओं के साथ, एक समान अवसर आयोग वास्तविकता से एक कदम करीब है। इसमें उद्देश्य सामाजिक रूप से पिछड़े समूहों जैसे दलितों, पिछड़े समुदायों, और अल्पसंख्यकों और इन समुदायों की महिलाओं के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना है। महिला-केंदित कार्पामों के कार्यान्वयन के लिए एक महिला सशक्तिकरण राष्ट्रीय मिशन का विचार बहस के लिए उ"ाया गया है। संसद ने 6 से 14 वर्ष आयु के सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का विधायक पारित किया है। बजट बड़ी संख्या में महिलाओं पर केंदित हैं। रेलवे ने महिलाओं के लिए विशेष रेलें चलाई हैं। घरेलू कामगारों को यौन हिंसा और महिलाओं को कार्यस्थल पर शोषण से सुरक्षा देने के लिए कानून पहले से ही फ्रारुप के रूप में तैयार है। बलात्कार पीड़ितों को राहत और उनके पुनर्वास के लिए एक योजना तैयार की जा रही है। राजीव आवास योजना के तहत शहरी गरीब के लिए नई योजना के तहत महिलाओं के संपत्ति अधिकार को सुरक्षा दी जाएगी। एक एच.आई.वी. बिल विचाराधीन है जो एच.आई.वी. के साथ जीने वालों और उनके परिवारों को सुरक्षा फ्रदान करेगा। सरकार ने सभी विभागों को भी अधिक महिलाओं की नियुक्त और गाइडलाइनें बनाने के लिए लिखा है, जिसके अंतर्गत केंदीय सरकार के सभी विभागों और नियुक्ति निकायों - संघ लोक सेवा आयोग और कर्मचारी चयन आयोग - को बेहतर फ्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना होगा। महत्वपूर्ण कानून भी बने हैं। उत्तराधिकार को समान बनाने के लिए संपत्ति के कानून में बदलाव किए गए हैं। ऐसा कानून भी है जो निम्न लिंग अनुपात को संबोधित करता है। और, घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम (पी.डब्लयू.डी.वी.ए.), 2005 भी है, जो कई मायनों में ऐतिहासिक है, कम से कम इसलिए, क्योंकि यह नागर समाज और महिला आंदोलन से उस तरह उभरा जिस तरह अधिकाँश कानून नहीं उभरते हैं। अंततः, ग्रासरूट स्तर पर जेंडर फ्रतिनिधित्व अधिक है। सरकार द्वारा ऐसे फ्रतिनिधित्व को 50 फ्रतिशत तक बढ़ाने के कदम के संपूर्ण फ्रभाव के बाद, महिला अध्यक्षों की संख्या वर्तमान में 80,000 से 120,000 होने के साथ, भारत में स्थानीय स्तर पर महिला नेताओं की संख्या अनुमानित 20 लाख है। तो हम यह बात दोहरा सकते हैं कि औपचारिक समानता के तौर पर फ्रभावशाली लाभ हुआ है। हालाँकि, हर लाभ के साथ अनेकों विलंब और कुछ उलटे कदम भी आते हैं। सरकार चाहे महिला-मित्रवत नजर आना चाहती है, परंतु वह फ्राधिकरणों को धारा 498ए के अंतर्गत मामलों पर ``धीरे`` कार्यवाही का निर्देश भी देती है, और अपनी कई सारी ``महिला-मित्रवत`` योजनाओं को बजट में समर्थन देने के बारे में अत्यधिक कंजूस है। जब कानून लागू करने की बात आती है, कहानी अक्सर वही होती है। पी.डब्लयू.डी.वी.ए. को ही लीजिए। घर के अंदर हिंसा को संबोधित करने में फ्रणाली की जड़ता स्पष्ट है। हाल के समीक्षा अभ्यास में पाया गया कि पुलिस - अधिनियम के अंतर्गत न्याय फ्रदानगी फ्रािढया की एक मुख्य कार्य संचालक - की भी ऐसी परिस्थितियों में महिलाओं के फ्रति बहुत ही द्वंदपूर्ण मनोवृत्ति होती है। राजस्थान में अनुमानित 30.4 फ्रतिशत पुलिसकर्मी मानते हैं ``कुछ परिस्थितियों में महिलाएँ मार खाने लायक होती हैं``, जबकि 84.4 फ्रतिशत मानते हैं कि घरेलू हिंसा ``पारिवारिक मामला`` है। जजों को एक-पक्षीय आदेश देने, जिससे फ्रािढया को जल्दी पूरा किया जा सकता है, में हिचकिचाहट के साथ न्याय में विलंब अभी भी एक बड़ी समस्या है। आज, पी.डब्लयू.डी.वी.ए. को अभी भी नगर समाज और उन महिलओं से अनिवार्य समर्थन पाना है जो घर में अपने उत्पीड़को के विरुद्ध जाने का साहस करती है अकेले लड़ाई लड़ रही हैं। इसी तरह, जब आप पंचायती राज सशक्तिकरण के बारे में बात करते हैं, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि पंचायत का फ्रभाव क्षेत्र (ग्राम परिषदें) - विशेषकर जिनमें महिला फ्रमुख होती हैं - को जानबूझ कर संकीर्ण कर दिया गया है। सत्ता का हस्तांतरण अभी तक नहीं हुआ है और पंचायतों को अभी भी ऊपर से बनाई गई और नियंत्रित योजनाआंsं के कार्यान्वयकों के रूप में देखा जाता है। कई मायनों में जो औपचारिक समानताएँ भारतीय महिलाओं के हिस्से में आईं हैं वे व्यापक लक्ष्यों को केवल रेखांकित करती हैं। लक्ष्य जो तब तक वास्तविकता में नहीं बदलेंगे जब तक कि नागर समाज और महिला समूह बढ़ती जड़ता और दण्ड से मुक्ति के विरुद्ध एकत्र नहीं होंगे, दोबारा रणनीति नहीं बनाएंगे और कार्यवाही नहीं करेंगे। भारत में तीन दशकों की महिला सािढयतावाद से लाभं  हुए  हैं इससे बेहतर दृढ़ीकरण और एकत्रीकरण अवश्य होगा। इसके लिए हमें ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र निर्माण के लिए फ्रयास करते रहना होगा जो समाज में महिलाओं की समभागिता को बढ़ाएँ - परिवार से राज्य तक - ताकि परिवार से राज्य तक असशक्तिकरण की निरंतरता को संबोधित किया जा सके। विशिष्ट कमज़ोरियों वाले क्षेत्रों और बृहत् स्तर पर महिलाओं पर खाद्य असुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण में गिरावट, संघर्ष, परिवर्तित खेती का तरीके और आजीविका का नुकसान जैसे विशिष्ट तथा विशेष फ्रभावों को भी फ्रकाश में लाना चाहिए। कार्यवाही के संबंध में, मौजूदा कल्याण उपायों पर नागर समाज नेटवर्कों को फ्रेरित कर और नए नेटवर्क स्थापित करने की ओर कार्य करके महिलाओं की पहुँच को बढ़ाने की आवश्यकता है।

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