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महिलाएं क्या चाहें ः सुरक्षित शहर

👤 | Updated on:6 Jun 2010 4:45 PM GMT
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ममता भण्डारी दिल्ली की एक बड़ी गैस एजेंसी, उत्तम नगर के शर्मा गैस में कैशियर का काम करती हैं। वे जनकपुरी में रहती हैं। उनके रोजाना आने जाने का अधिकतर रास्ता तो सुरक्षित ही है, सिवाय उस आधे किलोमीटर की पगडंडी के, जिससे उन्हें बस स्टाप से अपने ऑफिस का सफर तय करना पड़ता है। स्थानीय अवारागर्द शाम को सड़क पर कतार लगाए खड़े रहते हैं और अश्लील फब्तियाँ कसते रहते हैं। कुछ दिन पहले की घटना जिसमें एक लड़के ने लड़की द्वारा मना किए जाने पर उसके चहरे पर एसिड डाल दिया था, ने ममता के विश्वास को इतना हिला दिया कि वे अपनी नौकरी छोड़ने चाहती थीं। लेकिन उनकी एजेंसी सामने आई और उन्हें विश्वास दिलाया कि  हर रोज कोई उनके साथ बस स्टॉप तक जाएगा। ममता की चिंता तो दूर हो गई      लेकिन उन अन्य महिलाओं और लड़कियों का क्या, जिन्हें हर दिन यौनिक उत्पीड़न सहना पड़ता है? महिलाओं के फ्रति अपराध की घटनाओं में बढ़ोतरी - चाहे वे अमीर घरों की हों या बस्तियों में रहने वाली - और महिलाओं में असुरक्षा की बढ़ती भावना के साथ, महिलाएँ अपने लिए सुरक्षित सार्वजनिक स्थलों की माँग करना आरंभ कर रही हैं। बिना डरे सड़कों पर चलने की चाह रखते हुए वे माँग कर रही हैं कि उनकी राज्य सरकारें, कार्यकर्त्ता    नियोक्ता और सार्वजनिक उपयोगिता फ्रदान करने वाले, उनके घरों, कार्यालयों और   पास-पड़ोस को सुरक्षित बनाएं। यूनिफेम, जागोरी और यू.एन. हैबिटेट की सहभागिता में दिल्ली सरकार द्वारा हाल ही में शुरू किए गए `सुरक्षित नगर अभियान', शहर को सुरक्षित बनाने के लिए अनेक एजेंसियों को शामिल कर भलीभाँति सोची समझी रणनीति है। विभिन्न दावेदारों को संवेदनशील बनाने के लिए अध्ययन कमीशन किए जाएंगे, हस्तक्षेप फ्रस्तावित किए गए और फ्रशिक्षण दिए गए। वर्ष 2010 में केरल सरकार की सहभागिता में अभियान को तिरुवनन्ंथापुरम और बाद में अन्य राज्यों में दोहराया जाएगा। स्वास्थ्य मंत्रालय में निदेशक, राजीव काले, दिल्ली में महिलाओं के अस्तित्व को दर्शाने वाली विडम्बनाओं की ओर इंगित करते हैं। वे कहते हैं, ''हालाँकि घर के अंदर महिलाआंs के हितों की रक्षा के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम है और बाहर सुफ्रीम कोर्ट है जो उसे कार्यस्थल पर उत्पीड़न से सुरक्षा    फ्रदान करता है, लेकिन घर और गंतव्य स्थल के बीच के स्थानों - जो कार्यालय, बाज़ार या फिर सार्वजनिक पार्क हो सकता है - उनका क्या? वहाँ उसकी सुरक्षा की गारंटी किसकी जिम्मेदारी है?`` यह फ्रश्न तो भारत के सभी शहरों में महिलाएँ पूछ रही हैं, चूंकि तेज गति से उभरते नए खतरों के बावजूद उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा की चिंता व्यापक रूप से असंबोधित ही है। जागोरी, एक संस्था जो महिला अधिकारों एव जेंडर समता पर कार्य करती है, उसकी एक सदस्य, कल्पना विश्वनाथ बताती हैं कि जागोरी के सुरक्षित नगर अभियान की यात्रा पाँच वर्ष पहले आरंभ हुई थी। उस समय फ्रयास इस तथ्य पर घ्यान आकर्षित करना था कि महिला सुरक्षा केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है। उनका मानना है, ''आज, चार वर्षों बाद, दिल्ली सरकार अभियान को पुनर्जीवित और बड़े पैमाने पर ले जाने में, हाथ मिलाने का महत्व देख पा रही है। इस कारण का एक अंश आने वाले कॉमनवैल्थ खेल भी हैं परंतु वास्तविक कारण महिलाओं की सुरक्षा के बारे में बढ़ती चिंता को संबोधित करना है.`` उन्हें इस फ्रोजेक्ट से दीर्घोपयागी आँकड़ों, अध्ययनों और पुरुष एवं महिलाओं दोनों के सामाजिक व्यवहार के संकेतकों के माध्यम से फ्रमाण-आधारित जाँच परिणाम फ्राप्त करने की आशा है, जिन्हें रचनात्मक महिला-मित्रवत हस्तक्षेपों में शामिल किया जा सकता है। जागोरी द्वारा मदनपुर खादर, दिल्ली की सबसे बड़ी बस्ती जो 600 युवा लड़कियों का घर भी है, सुरक्षा ऑडिट किया गया था, जिसमें 12 वर्षीय, रमा भी एक सािढय फ्रतिभागी थी। उसने स्थान की स्थलाकृति के मूल्यांकन और उन स्थानों एवं विशेष स्थलों को पहचानने में सहायता की जहाँ महिलाएँ असुरक्षित महसूस करती थीं। विडम्बना यह थी कि ये स्थान कोई अंधेरी गलियाँ, कोने और सुनसान अधूरे निर्माण कार्य वाली इमारतें नहीं थीं बल्कि सार्वजनिक शौचालय और पार्क थे - ऐसे स्थान जिन्हें अधिकाँश लोग महिलाओं के लिए सुरक्षित समझते हैं। इसके पश्चात आने वाले सप्ताहों में, इन क्षेत्रों को सुंदर बनाया गया, उनकी मरम्मत हुई और पर्याप्त रोशनी का इंतजाम किया गया। जाँच परिणामों से सामने आया कि सार्वजनिक शौचालय का फ्रबंधकर्ता महिलाओं के लिए एक खतरा था। महिलाओं ने बताया कि वह अक्सर या तो उन्हें शौचालय न इस्तेमाल करने पर मजबूर करके या फिर उन्हें खुले स्थानों पर जाने के लिए मजबूर करके लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार करता था। पार्क और 'नालों' पर पहले महिलाएँ और बच्चे शायद ही जाते थे क्योंकि इनका फ्रयोग अधिकतर जुए, शराब पीने और इसी तरह की अन्य गतिविधियों के लिए किया जाता था। आज, ये हरे भरे स्थानों में तबदील हो गए हैं जहाँ लड़के और लड़कियाँ साथ मिलकर खेलते हैं। वास्तव में, जो लड़कियाँ पहले अकेले घर से बाहर कदम नहीं रखती थीं, अब वे इन स्थानों पर बिना डरे सैर करती हैं और साइकिल पर घूमती हैं। सुरक्षित नगर अभियान के हिस्से के तौर पर, दिल्ली सरकार की मंशा दिल्ली के निवासियों के लिए ``शिष्टता के श्रीगणेश`` की भी है, इसके अलावा स्कूलों व कालजों में संवेदनशीलता पर फ्रशिक्षण देने की योजना भी है। साथ ही, गृहणियों को विशेष बातें बताई जाएंगी जिससे वे अपने बेटें को जेंडर-निष्पक्ष परिफ्र्रेक्ष्य के साथ बड़ा कर सकें। दिल्ली सरकार के भागीदारी दृष्टिकोण के तहत रजिडेंट वेल्फेयर असोसिएशन और मार्केट ट्रेडर असोसिएशन को भी शामिल करने की योजना है। उन रास्तें पर जहाँ यातायात अधिक होता है और दिल्ली परिवहन निगम की बसें चलती हैं, वहाँ क्लोस्ड सर्किट केमरा (सी.सी.टी.वी.) लगाए जाएँगे. बसों, मेट्रो और स्थानीय रेलों में संकेत लगाए जाएँगे जिन पर लिखा होगा 'आप निगरानी में हैं` जो एक अवरोध की तरह काम करेंगे। मिशन कन्वर्जेंस फ्रोग्राम के जेंडर रिर्सोस सेंटर (जी.आर.सी.), जो पहले से ही महिला सशक्तिकरण के मुद्दे को संबोधित कर रहे हैं, अब स्कूलों और समुदाय-आधारित समूहों में लड़कियें और लड़कों दोंनों के साथ, समता, आदर और सशक्तिकरण के मुद्दों पर काम करेंगे। अभियान एक सहभागितापूर्ण फ्रयास होगा, जिसमें सभी फ्रासंगिक पबंधक शामिल होंगे, चाहे वह नगर निगम हो, या शिक्षा एवं विधि मंत्रालय हों। इस वर्ष एशोचेम इंडस्ट्री चैम्बर, द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 53 फ्रतिशत महिलाओं को अपनी सुरक्षा का भय रहता है। अधिकाँश घर से बाहर पैर रखते ही असुरक्षित और डर महसूस करती हैं। अध्ययन में सुझाव दिया गया कि नियोक्ताओं द्वारा महिला कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आंतरिक कोड निर्धारित करने के अलावा, सरकार को चाहिए कि कॉल सेंटरों फ्रयोग की जाने वाली गाड़ियों, बी.पी.ओ., अस्पतालों, मीडिया हाउसों और कोई भी अन्य संस्थान जहाँ महिलाओं को अंधेरा घिरने के बाद कार्य करना पड़ता है, वहाँ ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जी.पी.एस.) लगाना अनिवार्य करे। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि फ्रभावशाली शिकायत सुधार फ्रणाली बनाई जाए और महिलाओं को स्वयं सुरक्षा और कानूनी मामलों में फ्रशिक्षित किया जाए। दिल्ली में सेंटर फॉर इक्विटी एण्ड इन्क्लूजन, द्वारा एक अन्य बेसलाइन अध्ययन में, यह सामने आया कि 97 फ्रतिशत महिला फ्रतिवादियों को लगा कि यौनिक उत्पीड़न शहर में काफी आम है, और यह कि उन्हें कानून लागू करने वाली एजेंसियों में अधिक विश्वास नहीं है। जिन स्थानों को उन्होंने सबसे कम सुरक्षित पाया, उनमें - पार्क और बस स्टॉप, खाली सड़कें, बाजार और पैदल पारपथ - इसी ाढम में शामिल थे। एwन स्टेनहैमर, क्षेत्रीय निदेशक, यूनिफेम  कहती हैं कि यौनिक उत्पीड़न केवल भारत में ही नहीं बल्कि सारे विश्व में फैल रहा है। सुधार फ्रणालियाँ कमजोर और अफ्रभावशाली हैं और महिला की शिकायत को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, या उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता या उससे भी बुरा होता, खुद उसे ही उसके लिए दोष दिया   जाता है। स्टेनहैमर के अनुसार, गरीब और कमजोर वर्गें की महिलाओं को जोखिम अधिक होता है, क्योंकि वे असुरक्षित माहौल में रहती हैं। उन्होंने एक मजबूत सुरक्षित नगर हस्तक्षेप की पेशकश की जिसे राजनीतिक समर्थन फ्राप्त हो।  सुरक्षित दिल्ली हस्तक्षेप स्पष्ट रूप से एक ऐसा विचार है जिसका   समय आ गया है। अब दूसरे भारतीय नगरों की बारी है कि वे इस दिशा में कदम उ"ाएँ ताकि महिलाएँ हर जगह अधिक सुरक्षित जीवन जी सकें। तरु बहल  (विमेनस् फीचर सर्विस)    

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