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आपके नाम सड़क पर पफर्जी कार तो नहीं चल रही!

👤 | Updated on:6 Jun 2010 4:46 PM GMT
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आमतौर पर टेली- मार्केटिंग कंपनियों से चिढ़ने वाले बिन्नो शर्मा को जब पिछले हफ्रते ;मई 2010 के अंतिम सप्ताहद्ध जेकेएम मोटर्स पा. लि.की तरपफ से अपनी मारुति कार के इंश्योरेंस के पुनर्नवीनीकरण ;रिन्यूअलद्ध का पस्ताव मिला तो वह चौंक गए। आमतौर पर ऐसे पस्ताव वाले पत्रााsं को पफाड़कर पफेंक देने वाले बिन्नो शर्मा आज इस कंपनी को ध्न्यवाद देते नहीं थकतेऋ क्योंकि इस पस्ताव पत्रा के जरिए उन्हें एक ऐसे षड्यंत्रा का पता चला जो किसी की भी नींद उड़ा दे। दरअसल जेकेएम मोटर्स पा. लि. की तरपफ से बिन्नो शर्मा को उनकी मारुति ओमिनी कार के लिए रियायती दरों पर इंश्योरेंस की पेशकश की गई थी, पिछले सालों का हवाला देते हुए। जबकि हकीकत यह थी कि जिस कार के लिए शर्माजी को यह आकर्षक पस्ताव पेश किया जा रहा था, वह कार उनके पास थी ही नहींऋ लेकिन कागजों में यह कार उनके नाम न सिपर्फ दर्ज थी बल्कि दिल्ली की सड़कों पर लगातार इसकी मौजूदगी भी थी। यह जबरदस्त षड्यंत्रा का नमूना था। सवाल है यह सब हुआ कैसे? श्री शर्मा के मुताबिक उन्होंने जुलाई 2006 में एक ओमिनी एलपीजी कार्गो वैन, मेसर्स कम्पीटेंट ऑटोमोबाइल्स लि. कनॉट प्लेस नई दिल्ली 110001 से बुक कराई थी। इसके लिए उन्होंने कम्पनी को 30 हजार रुपये बतौर पेशगी दिए। यह रकम सेंट्रल बैंक ऑपफ इंडिया, लाजपत नगर शाखा ;दिल्लीद्ध के चैक नम्बर 598438 के जरिए दिए गए जो मेसर्स कम्पीटेंट ऑटोमोबाइल्स लि. के खाते में 17 जुलाई 2006 को क्रेडिट हो गए। कंपनी ने शर्मा जी के नाम एक कार बुक कर दी और उन्हें डिलीवरी लेने के लिए बुलाया। जब शर्मा जी डिलीवरी लेने के लिए पहुंचे तो उन्हें लगा कि कार कंपनी उनके साथ धेखा कर रही हैऋ क्योंकि उनके मुताबिक कार का बुरी तरह से एक्सिडेंट हो रखा था, जिसे बहुत अच्छी तरह से डेंट-पेंट करके कंपनी बिन्नो शर्मा को बेचने की कोशिश कर रही थी। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। शर्मा जी ने कार लेने से सापफ मना कर दिया और बतौर पेशगी दी गई अपनी रकम को वापस मांगा जिसे कंपनी ने चैक नम्बर 443478 से उन्हें वापस कर दिया। यह रकम 10 अगस्त 2006 को शर्मा जी के बैंक खाते में वापस पहुंच गई। इसके बाद वह कार के बाबत सारी कहानी भूल गए। याद रखने की कोई वजह भी नहीं थी। लेकिन जब जेकेएम मोटर्स पा. लि. की तरपफ से उन्हें रियायती दरों पर बीमे के पस्ताव वाला पत्रा मिला तो वह चौक गएऋ क्योंकि भले उन्होंने कार न ली हो और लेन देन का सारा चैप्टर अपनी तरपफ से बंद कर चुके थे मगर उनके नाम से कार बुक थी, साथ ही लगातार दिल्ली की सड़कों में मौजूद थी। यह पहचान चोरी का एक जबरदस्त मामला है। आखिर जब कार लेन-देन का सौदा एक स्टेज पर आकर खत्म हो गया था तो पिफर उनके नाम पर यह कार कैसे रजिस्टर्ड थी और साल दर साल तमाम कानूनी पक्रियाओं को पूरा करते हुए सड़क पर मौजूद थी। हालांकि यह बिन्नो शर्मा का सौभाग्य रहा कि उनके साथ किसी तरह का दुर्भाग्य नहीं घटित हुआ वरना कुछ भी हो सकता था।सवाल है आखिर कार कंपनी उनसे सौदा रद्द होने के बावजूद भी कार को उनके नाम ही क्यों बनाए रखा? आखिर इसके पीछे क्या षड्यंत्रा था? जिस तरह का आतंकवादी दौर चल रहा है, उसके चलते कोई भी इस तरह की स्थिति का दुरुपयोग कर सकता है। यह अकारण नहीं है कि श्री शर्मा ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर वाई एस डडवाल को लिखे गए पत्रा में कुछ जरूरी सवाल किए हैं। इन सवालों का हम यहां जिक्र कर रहे हैं जिससे वाकई यह पता चल सके कि आखिर इस पूरे षड्यंत्रा के पीछे वजह क्या हो सकती है। बिन्नो शर्मा ने पुलिस कमिश्नर को भेजे गए पत्रा में सवाल उ"ाया है कि यह जानने की कोशिश की जाए कि जब उन्होंने कंपनी के साथ एक सौदे को तत्काल ही रद्द कर दिया तो पिफर आखिर क्यों और कैसे उनके नाम कोई वाहन रजिस्टर्ड हुआ? आखिर इस सबके पीछे कौन शख्स था और उस शख्स के दिलो दिमाग में ऐसा कौन सा षड्यंत्रा चल रहा था जिसके चलते बिन्नो शर्मा की आइडेंटिटी चुराई गई। अगर इस वाहन का दुरुपयोग देश के दुश्मनों ने/आतंकवादियों ने किया होता और पुलिस ने इस वाहन को पकड़ा होता तो क्या इसके लिए वह बिन्नो शर्मा को गिरफ्रतार नहीं करती? बाद में भले पुलिस हकीकत तक       पहुंचतीऋ लेकिन उसके पहले तक तो बिन्नो शर्मा की पफजीहत हो चुकी होती?पुलिस के लिए यह वाकई सजगता से पता लगाने का विषय है कि आखिर वह कौन शख्स था जो लगातार किसी दूसरे के नाम पर रजिसटर्ड वाहन के लिए भुगतान कर रहा था। यह भी देखने वाली बात है कि आखिर यह भुगतान किस मोड से हो रहा था। क्या यह भुगतान चैक के जरिए हो रहा था? क्योंकि आरबीआई के एक नियम के मुताबिक रु. 10,000 से ज्यादा की पेमेंट अगर चैक के जरिए नहीं की जाती तो वह आय कर अधिनियम के तहत अमान्य होती है। कृतो आखिर यह भुगतान किस माध्यम से हो रहा था? सबसे बड़ी बात यह है कि एक व्यक्ति किसी दूसरे के नाम पर एक वाहन लगातार साल दर साल रोड पर चला रहा है, यह सब मोटर लाइसेंसिंग विभाग के लिए सहज और संभव कैसे हुआ? आखिर कहीं न कहीं तो इसके लिए संबंध्ति व्यक्ति के दस्तखत होते होंगे? तो क्या वह व्यक्ति जो वास्तव में वाहन को चला रहा था, क्या बिन्नो शर्मा के जाली दस्तखत भी कर रहा था? आखिर इस तमाम षड्यंत्रा के जाल के पीछे वजह क्या हो सकती है? बहुत पहले गुन्नार मिर्डल ने भारत के लिए कहा था कि भारत एक उफंघता हुआ सॉफ्रट स्टेट है। यह तब की बात है जब न तो आतंक का दूर-दूर तक कहीं नामोनिशान था और न ही किसी तरह का अतिवादी उन्माद ही था। लेकिन आज जबकि पूरी दुनिया आतंक की बारूद के ढेर में बै"ाr है और भारत तो खासतौर पर जेहादी आतंकवादियों के निशाने पर है। अगर इस दौर में भी पुलिस और सरकारी महकमे सजग नहीं होते, उफंघते ही रहते हैं तो इस देश का भगवान ही मालिक है। यह तो संयोग से या कहें किस्मत से पता चल गया कि एक साधरण और सज्जन आदमी के नाम षड्यंत्रा करके चलाई जा रही कार का पर्दापफाश हो गया वरना यह एक किस्म से हादसे के इंतजार की कहानी होती। क्या पुलिस और दूसरे सरकारी विभाग इस छोटी सी लगने वाली घटना से कोई छोटा सा सबक लेंगे? जिससे कि बड़ी-बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण वारदातों को छोटे रहते ही निक्रिय किया जा सके और हां, यह आम हिंदुस्तानियों के लिए भी एक सबक भरी सीख हो सकती है कि वह इस कहानी से यह जानने के लिए सजग रहें कि कहीं उनके नाम पर कारों की रेलमपेल वाले शहर दिल्ली में कोई कार तो नहीं चल रही?  लोकमित्रा  

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