Home » रविवारीय » बातों में न उलझाओं, नतीजा दिखाओ

बातों में न उलझाओं, नतीजा दिखाओ

👤 | Updated on:6 Jun 2010 4:47 PM GMT
Share Post

देश के सामने जो समस्याएं हैं वह किसी से छुपी हुई नहीं हैं। सब जानते हैं कि महंगाई, माओवादी, आतंक, बेरोजगारी, पुलिस सुधर आदि ऐसी समस्याएं हैं जिनका जल्द समाधन होना चाहिए। लेकिन हो क्या रहा है? केवल ब्यानबाजी। कोई भी मुद्दा जब सामने आता है तो उसका हल तलाश करने की बजाय सरकार की तरपफ से केवल ब्यान जारी होते हैं और ब्यान भी इतने विरोधभासी कि जनता मुद्दे की बजाय उन्हीं ब्यानों में उलझ कर रह जाती है। हैरत की बात यह है कि यह केवल केंद तक सीमित नहीं है बल्कि हर राज्य में यही हो रहा है। कुछ दिन पहले हावड़ा कुर्ला ज्ञानेश्वरी एक्सपेस पटरी से उतर गई थी जिसमें 147 लोग मारे गए थे। यह एक दुखद घटना है। पीड़ित परिवारों की न केवल मदद की जानी चाहिए थी बल्कि सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए था कि आगे इस किस्म का हादसा पिफर न हो। लेकिन हो क्या रहा है? रेल मंत्रााr ममता बनर्जी कह रही हैं कि यह राजनीतिक षड्यंत्रा है और बम विस्पफोट करके रेल को पटरी से उतारा गया। रेल मंत्रााr इशारा अपने राजनीतिक पतिद्वंदी माकपा की ओर थाऋ लेकिन गृह मंत्रााr पी.चिदंबरम का कहना है कि शक माओवादियों की ओर जा रहा है। सही बात तो जांच से ही सामने आएगी, लेकिन क्या यह जरूरी है कि एक ही काबिला के मंत्रााr अलग-अलग स्वरों में बोलें और अपनी जिम्मेदारियां निभाने की बजाय अपनी ब्यानबाजी से जनता को गुमराह करे। बातों में उलझाने का सिलसिला केवल इसी एक घटना तक सीमित नहीं है। कोई भी मुद्दा हो उसे लफ्रपफाजी में इतना अध्कि उलझा दिया जाता है कि असल बात लुप्त हो जाती है और पिफर उसका समाधन भी नजर नहीं आता। बंगलुरु में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के आश्रम में गोली चली। रवि शंकर का कहना है कि उन पर जानलेवा हमला किया गया। लेकिन गृह मंत्रााr पी.चिदंबरम का कहना है कि गोली उस समय चली जब रवि शंकर अपनी कार में बै"कर जा चुके थे और इसलिए यह कहना सही नहीं कि हमला उन पर किया गया था। गृह मंत्रााr के अनुसार ऐसा पतीत होता है कि संपत्ति विवाद को लेकर रवि शंकर के दो अनुयायी आपस में भिड़ गए और एक के गोली लग गई। इस सिलसिले में भी विरोधभासी बातें करके असल मुद्दे से हटा जा रहा है, जो कि यह है कि आध्यात्मिक गुरु को सुरक्षा मिलनी चाहिए और ये सुनिश्चित किया जाए कि उन पर पिफर हमला न हो। जनता को केवल घटनाओं से संबंध्ति मुद्दों में ही नहीं उलझाया जा रहा है। ऐसे बेतुके आंकड़े दिए जाते हैं कि सबको ऑल इज़ वेल का एहसास हो। इसमें शक नहीं है कि आवाम दिन ब दिन आसमान छूती महंगाई से तंग हो रहा हैऋ लेकिन सरकार आपको ये यकीन दिलाना चाहती है कि आर्थिक क्षेत्रा में सब कुछ "ाrक है। अर्थव्यवस्था विकास की पटरी पर आ गई है और इस साल मार्च तक जीडीपी में 8.6„ की दर से विकास हुआ। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च को खत्म हुई वित्तीय वर्ष में उम्मीद से अध्कि 7.4„ की दर से विकास हुआ और वर्तमान वित्तीय वर्ष में यह 8.5„ पर पहुंच सकता है। सवाल यह है कि अगर विकास की यही दर है तो पिफर दिल्ली के लक्ष्मी नगर में बै"ाr हुई जमुना देवी कर्ज़ के बोझ से क्यों जूझ रही है और उड़ीसा के कालाहांडी में भूख से लोग क्यों मर रहे हैं? दरअसल, सरकारी आंकड़े और ज़मीनी सच्चाईयों में जमीन आसमान का अंतर होता है। मुनापफा पूंजीपतियों को होता है और सरकार कागजों में उसे सभी नागरिकों के नाम कर देती है। व्यवहारिक पश्न यह है कि अगर अम्बानी बंध्gओं को 12 हजार करोड़ का लाभ हुआ है तो उससे आवाम को क्या मिला? कुछ नहीं। राहुल गांध की पतीकात्मक कलावति तो अब भी दो जून की रोटी को तरस रही है। श्रीमान पधनमंत्रााr जी, हमें मालूम है कि अंतर्राष्ट्रीय मंदी के कारण विकास दर 2008-09 में 6.7 पतिशत थी, लेकिन इस वर्ष की पहली-चौथाई में यह 8.6 पतिशत हो गई है, यह सुनिश्चित करते हुए कि भारत चीन के बाद आर्थिक विकास करने वाला दूसरे नम्बर का देश है। हम तो आपसे यह मालूम करना चाहते हैं कि जो नींबू अब से तीन महीने पहले 20 रुपये किलो बिक रहा था वह इस समय 100 रुपये किलो क्यों है? जबकि इस दौरान जनता की आमदनी में एक पतिशत का भी इजापफा नहीं हुआ है। हमें आर्थिक विकास के आंकड़े नहीं सब्जी-दाल के वह भाव चाहिए जो हमारे घरेलू बजट के दायरे में हों।कानून व्यवस्था की स्थिति भी बद से बदतर होती जा रही है। इस संदर्भ में एक ही मिसाल कापफी होगी। जिला हिसार के मिर्चपुर गांव में दो दलितों की हत्या कर दी गई और पिफर दलितों पर इतना अध्कि खौपफ बै"ाया कि 150 दलित परिवारों को गांव से पलायन करना पड़ा। इस गम्भीर स्थिति के बावजूद न हरियाणा सरकार ने कुछ किया और न ही दलितों के स्वयंभू हमदर्दों ने आगे बढ़कर हस्तक्षेप किया। मजबूरन सुपीम कोर्ट को एक नोटिस जारी करके हरियाणा सरकार से कहना पड़ा कि वह इन 150 परिवारों के पुनर्वास की योजना तैयार करे। कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। राज्य सरकारों से उम्मीद की जाती है कि वे सभी नागरिकों को न केवल सुरक्षा पदान करे बल्कि यह एहसास भी कराएं कि वे सुरक्षित हैं। लेकिन राज्य सरकारें जबानी जमाखर्च के अलावा कुछ नहीं करतीं। अगर कानून व्यवस्था के संदर्भ में भी अदालतों को ही आदेश देने है तो पिफर सरकारें की आवश्यकता क्या है? दरअसल समस्या का सामाधन करने से पहले यह सोचा जाता है कि क्या कदम उ"ाने पर वोट का गणित क्या बनेगा। इसलिए किसी समस्या का सामधन नहीं होता। ऑनर किलिंग के नाम पर खाप पंचायतें अपनी मनमर्जी कर रही हैं और सरकारें उनके खिलापफ कड़े कदम उ"ाने की बजाय ये सोचती हैं कि कहीं वोट का एक खास वर्ग नाराज न हो जाए। इसलिए ऑनर किलिंग जैसे गम्भीर मुद्दे पर भी सरकार के लोग अलग-अलग स्वर में बोलते नजर आते हैं। यही हाल जातिगत जनगणना को लेकर भी है। जाति और आरक्षण जब समाज का अटूट हिस्सा बना हुआ है तो पिफर जातिगत जनगणना में क्या बुराई है? सही आंकड़े हेंगे तो योजना भी सही बनेगी और जो वास्तव में जरूरत मंद है उन्हें आरक्षण का लाभ मिलेगा। लेकिन इस गम्भीर विषय पर भी सरकार केवल बातों में उलझाना चाहती है। हर चीज की एक सीमा होती है। बातों में भी एक सीमा तक ही जनता उलझ सकती है। वह नतीजे देखना चाहती है। अगर नतीजे बरामद नहीं होंगे तो आरजकता पफैलने की आशंका बनी रहती है जैसा कि नक्सल पभावित क्षेत्रााsं में हो रहा है। इसलिए श्रीमान पधनमंत्रााr जी, आपकी सरकार से विनम्र आग्रह है कि कृपया बातों में न उलझाएं नतीजे दिखाएं। एन. के. अरोड़ा  

Share it
Top