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गुरु की फांसी पर विरोध

👤 | Updated on:8 Jun 2010 5:02 PM GMT
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अफजल गुरु को भारतीय संसद पर हमला करने और कई लोगों को हलाक करने के जुर्म में अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। इस पर उसने जहां-जहां अपील हो सकती थी, की। लेकिन किसी ने उसकी न सुनी और अन्त में उसने राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाया। लेकिन वहां भी उसे मायूस ही होना पड़ा। जितनी देर उसकी फांसी पर हो रही थी उससे यही ख्याल पैदा हो रहा था कि कांग्रेसी हाकिम मुसलमानों में अपनी खोई हुई हरदिल अजीजी को बहाल करने की गरज से ऐन मुमकिन है गुरु की फांसी का हुक्म राष्ट्रपति से स्थगित करा दें। बेशक कांग्रेसी इस बात से इनकार करते हैं लेकिन अब जो बातें खुलकर सामने आ रही हैं उससे अन्दाजा यही लगता है कि अन्दर ही अन्दर कुछ हो रहा था और पूर्व गृहमंत्री श्री शिवराज पाटिल इसी कारण गुरु की फांसी में देर करना चाहते थे। ऐसा क्यों हो रहा था यह तो पता नहीं चला। लेकिन इस असना में एक और राज बेनकाब हो रहा है और वो है दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित का एक टेलीविजन मुलाकात के दौरान मानना कि जब श्री शिवराज पाटिल देश के गृहमंत्री थे तो उन्होंने आपको इशारा किया था कि आप गुरु की फाइल को दबाए रखें। जब श्रीमती दीक्षित से पूछा गया कि आप जो कुछ सोच और समझ रही हैं वो दुरुस्त है तो श्रीमती शीला ने कहा कि ऐन मुमकिन है कि आप जो कुछ सोच रहे हैं वह सही हो। यह जवाब आपने उस वक्त दिया जब आपसे पूछा गया कि क्या पाटिल साहब ने आपसे कहा था कि मामले को स्थगित कर दिया जाए। बयान किया जाता है कि 2006 में जब गुरु की फाइल दिल्ली सरकार को मिली तो पाटिल साहब ने स्पष्ट कर दिया था कि गुरु को फांसी लगाने की कोई जल्दी नहीं है। उसके बाद 2007 और 2008 में भी आप यही कहते रहे कि 2008 में जब विधानसभा के चुनाव होने थे तो ऐसा नजर आया कि हालात में कोई तब्दीली नहीं हुई है। नजर यह आता था कि दिल्ली सरकार को किसी की हिदायत हुई है कि उसे चाहे कितने रिमाइंडर भेजे जाएं उस फाइल पर अमल न किया जाए। सूत्रों से पूछा गया कि श्री पाटिल  ऐसा जवाब क्यों देते थे जबकि उनके अपने कार्यालय ने हर तीन महीने बाद दिल्ली के उपराज्यपाल को खत भेजा था तो उसका जवाब मिला कि और तो कोई वजह नजर नहीं आई सिवाय उस इमकान के कि गृहमंत्री साहब अफजल की फाइल से खुद निपटने से घबराते थे। उसका जवाब यह मिला कि और तो कोई वजह नजर आई सिवाय इसके कि गृहमंत्री चाहते नहीं थे कि अफजल के फैसले की तामील की जाए। इस बात के अलावा और कोई वजह नजर नहीं आती। इन तमाम बातों ने कांग्रेसी लीडरों के लिए कुछ परेशानी खड़ी कर दी है। श्रीमती शीला दीक्षित ने यह माना कि श्री शिवराज पाटिल ने जब आप केंद्रीय गृहमंत्री थे तो आपसे कहा था कि सरकार अफजल गुरु की रहम की अपीलों पर जमकर बैठी रहे। इस असना में श्रीमती शीला दीक्षित के रवैये ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या श्री पाटिल जो कांग्रेस हाई कमान के निकटतम समझे जाते थे, अपनी पार्टी के लीडर के इशारे पर यह सारी देरी कर रहे हैं। एक हलका जहां इन हालात का इल्म रखता है उसने कहा कि अगर यह पार्टी का कोई इशारा था तो उसे शुरू में ही स्पष्ट कर देना चाहिए था। याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट के अफजल गुरु की अपील को रद्द करने के बाद गुरु की पत्नी तबस्सुम ने रहम की एक अर्जी दी थी जिस पर दिल्ली सरकार की राय पूछी गई थी लेकिन चार साल तक इसका कोई जवाब नहीं मिला। जब मुख्यमंत्री से पूछा गया कि इतनी देर क्यों लग रही है तो उन्होंने जवाब दिया कि फांसी के सवाल पर एक के  दूसरे दो मुख्य सचिवों अर्थात् नारायण स्वामी और राकेश मेहता के भिन्न नजरियों की वजह से यह सब पुछ हुआ और जब 17 मई के दिन यह फाइल आखिरकार दिल्ली के उपराज्यपाल के पास पहुंची तो आपने उसे अधिक सूचनाएं मुहैया करने की गरज से वापस भेज दिया। 18 मई को यह फाइल आपके सवाल का जवाब लेकर वापस आप तक पहुंच गई। इस तरह यह फाइल 18 मई के दिन उपराज्यपाल साहब को मिल गई और उन्होंने 4 जून के दिन उसे वापस भेज दिया। उस दिन के बाद से आज तक उपराज्यपाल साहब के कार्यालय ने किसी तरह की पुष्टि की आवश्यकता नहीं समझी। इस तरह यह सारा मामला एक मोइमा बनता जा रहा है और इसका नतीजा यह है कि सरकार की नीयत पर लोगों को शक हो रहा है और इस बात के इशारे भी हो रहे हैं कि आने वाले चुनाव से कुछ दिन पहले मुसलमानों को राम करने की गरज से अफजल गुरु की फांसी की निरस्त्राrकरण का माहौल तैयार किया जा रहा है। यह ख्याल कांग्रेसी लीडरों और सरकार की हरदिल अजीजी और एहतराम में बढ़ोतरी नहीं करेगा।  

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