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ममता का जायजा

👤 | Updated on:9 Jun 2010 3:58 PM GMT
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जिस तेजी से श्रीमती ममता बनर्जी देश की राजनीति पर छा रही हैं उसको देखते हुए तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। क्या आप अपने आपको बंगाल तक ही सीमित रखेंगी या किसी दिन दिल्ली पर भी आपकी नजर जम जाएगी। अमर वाकया यह है कि इस समय हर तरफ से आपकी तारीफ के पुल बंध रहे हैं। लेकिन इन्हीं दिनों एक गैर जानिबदार विश्लेषक ने आपके बारे में कुछ विभिन्न राय कायम की हैं। यह विश्लेषक श्री मेघनाद देसायी हैं जो लन्दन में रहते हैं और बरतानवी पार्लियामेंट के मेम्बर हैं और भारत के मामलों में काफी से ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। आपने श्रीमती ममता के मुसतकबिल के बारे जो जायजा लिया है वो काबिलेगौर है। इसलिए इसे पाठकों की खिदमत में पेश करता हूं। श्री देसायी कहते हैं कि हालिया कामयाबी के बाद आपका अगले साल कामयाब हो जाना करीब यकीनी ही है। लेकिन असल सवाल यह है कि वह किसी पर हुकूमत कर सकेंगी। आया पश्चिमी बंगाल पर आपकी हुकूमत चलती रहेगी। नजर नहीं आता कि वह बंगाल के बाहर से सरमायेदारों को दावत देगीं या बंगाल का सनातीकरण करेंगी। सवाल यह है कि उसने श्री रत्न टाटा से जो सुलूक किया उसके बाद कोई सनतकार आप पर भरोसा क्यों करे। क्यों कोई गैर बंगाली अपना सरमाया बंगाल में लगाता रहे। चाहे वह उसकी कितनी ही दावत क्यों न देती रहें। यह सारे कयास इसलिए किए जा रहे हैं कि इस बात का ख्याल है कि ज्योंहि आपके तेवर बदले, आपने गैर बंगालियों को हिकारत से ठुकरा देना है। इसलिए हमें कुछ दिनों के लिए श्रीमती ममता की रविश का इंतजार करना होगा। बेशक कांग्रेस आपकी हरदिल अजीजी में बढ़ोतरी और आपके उरुज के लिए बड़ी हद तक जिम्मेदार है। गए गुजरे जमाने के इम्पीरियल फैशन की तरह आज हमारी कांग्रेस तकसीम में विश्वास रखती है। इन्दिरा गांधी को इस नीति की कीमत अदा करनी पड़ी जब उसने पंजाब में अकाली दल को परेशान करने की गरज से इस किस्म की चालें चलीं। बावजूद इसके इस बात को फिर दोहराया गया जब कांग्रेसी लेफ्टिस्टों की रविश से बेजार हो गए थे। ममता का कांग्रेसी मंत्रिमंडल में स्वागत किया गया, लेकिन जैसे भिंडरावाला अपने जाति इरादों पर पुख्ता साबित हुआ उसी तरह श्रीमती ममता भी अगर पुख्ता साबित हुईं तो कांग्रेस को लेने के देने पड़ जाएंगे। कांग्रेस पार्टी के लिए कम्युनिस्टों से आजाद होना निहायत लाजिमी था। जब अमेरिका से उसका समझौता होने वाला था। लेकिन अब इस सवाल पर दो राय नहीं हो सकती क्योंकि जिन्न बोतल से बाहर आ गया है। ममता ने कांग्रेस को हिकारत से ठुकराया है। हो सकता है कि कुछ दिनों में ममता को होश आ जाए, हो सकता है कि वह राष्ट्र के हित पर ज्यादा ध्यान दे बजाय अपने खानदान के मुसबिल के लिए, हो सकता है कि कांग्रेस भी यह सोचने पर मजबूर हो जाए कि उसने ममता को अपनी तरफ करने की गरज से कम्युनिस्टों को ठुकराया और कल को कांग्रेस को ममता को भी ठुकराना पड़ जाए। अगर ऐसा हुआ तो सोचा जा सकता है कि क्या बंगाल नक्सलियों का गढ़ न बन जाएगा। आखिरकार यह वो जगह है जहां आज से 40 वर्ष पहले उन्होंने अपनी सरगर्मियां शुरू की थीं। श्री मेघनाद देसायी के जायजे से ज्यादा इख्तिलाफ नहीं किया जा सकता। इसलिए श्रीमती ममता ने कांग्रेस की नुक्ताचीनी करते हुए उसके साथ सरकार में शामिल होना मान लिया है और शमूलियत भी यह बताती है कि ममता ने अपने निजी राजनीति को दिमाग से निकाला नहीं है। ऐसी हालत में इस बात का इमकान विचार से बाहर नहीं हो सकता कि कल को ममता को कांग्रेस से भी अलग होना पड़े। जिस तरीके पर ममता बनर्जी देश में हरदिल अजीज बनती जा रही हैं उसको ध्यान में रखते हुए इस बात को एकदम से गौर से परे न समझा जाए कि कोई वक्त आ सकता है जब ममता की गाड़ियां आपस में टकरा जाएं। कम से कम ममता की रविश से यह अन्दाजा होता है कि आप इस बात के लिए तैयार हैं अगरचे कांग्रेसियों के बारे आज यह सवाल नहीं किया जा सकता।  

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