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यूनियन कार्बाइड हादसे का फैसला

👤 | Updated on:10 Jun 2010 4:21 PM GMT
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आज से 25 वर्ष पहले भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से अनजाने में जहर निकल शुरू हुआ और इसका पता इस तरह लगा कि अच्छे भले लोग चलते-फिरते जमीन पर गिरने लगे और दम तोड़ते गए। हरेक के लिए हैरानी थी कि यह क्या हो रहा है, क्योंकि सड़कों पर चलने वाले लोगों को यह ख्याल न था कि कार्बाइड के कारखाने से जहरीली गैस बाहर निकल रही है। नतीजा यह हुआ कि 15 हजार से अधिक लोग देखते ही देखते लुक्मा-ए-अजल हो गए और छह लाख के करीब प्रभावित हुए। उस दिन के बाद आज तक प्रभावित अपने लिए इंसाफ की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन जो इंसाफ उन्हें मिला है उससे सब के सब लोग मायूस हो गए हैं। जो लोग कार्बाइड कम्पनी चला रहे थे अर्थात् श्री केशु महेन्द्रा और छह अन्य लोग, उन्हें अदालत ने दोषी करार दिया है लेकिन वे जमानत पर रिहा भी हो गए हैं। अदालत ने उन्हें दो-दो साल की सजा सुनाई है और उसके बाद उन्हें आजाद कर दिया है। उन लोगों को एक-एक लाख का जुर्माना हुआ था और उसके बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। जिन सात लोगों को जिम्मेदार ठहराया गया था उनमें पूर्व वाइस चेयरमैन विजय गोखले भी थे। अब अदालत ने जो फैसला सुनाया है उस पर चारों ओर हायतौबा मच गई है। बेशक दोषियों को इंडियन पैनल कोड के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा भी चला। अदालत के फैसले पर फैक्टरी में काम करने वाले लोगों को सख्त शिकायत हो गई है, क्योंकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा दो-दो साल की सजा सुनाई गई है। जिस हादसे में 15 हजार से अधिक लोगों की जानें गईं उसके लिए जिम्मेदार और जवाबदह लोगों को महज दो-दो साल की सजा एक मजाक है। उन्हें एक-एक लाख जुर्माना हुआ था और जुर्माने की अदायगी पर उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। स्पष्ट हो कि यह सातों के सातों यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के अधिकारी थे और उनमें वाइस चेयरमैन विजय गोखले भी थे और जो फैसला अदालत ने सुनाया है उस पर सब सियासी पार्टियां हैरान व परेशान हो रही हैं और उसे इंसाफ का खून कह रही हैं। आरोपियों पर जो आरोप लगे उनमें लापरवाही से मौत और मजदूरों की जिन्दगियों को खतरे में डालना और कइयों को काफी खतरनाक नतीजों से दो-चार होना था। मुकदमे का फैसला श्री पी. मोहन तिवारी की अदालत ने किया और ज्योंहि आपने फैसला सुनाया तो आपकी अदालत को पुलिस ने सील बन्द कर दिया। किसी को उस कमरे में जाने की अनुमति न थी  क्योंकि इस बात का डर था कि भड़कीले लोग जज साहब से किस तरह पेश आते हैं। स्पष्ट हो कि यह मुकदमा एक दिसम्बर 1987 को शुरू हुआ जब सीबीआई ने प्रबंधकों के खिलाफ चार्जशीट अदालत में पेश की। जो चार्जशीट पेश की गई उसमें इस बात का खास जिक्र था कि जो प्रबंधक हैं वो इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि मजदूरों को कितना खतरा हो सकता है, क्योंकि यह काम उन सात लोगों की निगरानी में ही हो रहा था। इसलिए उन्हें सबसे ज्यादा दोषी ठहराया गया। लेकिन अदालत ने उन्हें इतना संगीन दोषी न ठहराया जितना फैक्टरी में काम करने वाले लोग चाहते थे। यह दुर्घटना 2 और 3 दिसम्बर 1984 की रात के दरम्यान हुआ जब एक जहरीली गैस से भरा टैंक लीक करने लगा और यह जहरीली गैस फैक्टरी से बाहर बैठे और सोये लोगों को प्रभावित करने लगी। एक अन्दाजे के मुताबिक 40 किलोग्राम जहरीली गैस फैक्टरी से निकली और जो कोई उसमें सांस लेता वह दम तोड़ता जाता। कई लोग गैस का शिकार होकर अंधे हो गए और कई महिलाओं का गर्भपात हो गया। उनके लंग्स, गुर्दा, लीवर और दिमाग पर असर हुआ। फौरी तौर पर चार हजार के करीब लोग मारे गए और एक लाख के करीब प्रभावित हुए लेकिन बाद में अन्दाजा किया गया तो पता चला कि 16 हजार के करीब लोग दम तोड़ चुके हैं।तहकीकात से पता चला कि लापरवाही के कई वाकयात प्रबंधकों के नोटिस में लाए गए थे, लेकिन प्रबंधकों ने ज्यादा ध्यान न दिया। जिस टैंक में यह जहरीली गैस थी उसमें भी सुराख नजर आए जिससे गैस धीरे-धीरे निकल रही थी। ज्यादा शिकायत इस बात पर हुई कि किसी को वार्निंग नहीं दी गई। इससे पहले जो छोटे-छोटे हादसे इसी फैक्टरी में हुए थे उनसे कोई सबक न लिया गया। कई लोगों का कहना है कि प्रबंधकों ने खर्चा बचाने के लिए कई ऐसे वाकयात को नजरंदाज कर दिया जिन पर फौरी अमल की जरूरत थी।तहकीकात में बताया गया है कि प्रबंधकों ने कई मामलों में लापरवाही बरती है जिसका नतीजा यह हुआ। यह भी कहा जा रहा है कि फैक्टरी का रेफ्रिजरेशन सिस्टम काफी दिनों  से बन्द पड़ा था। गैस को जिन स्रोतों से बाहर निकाला जाता है वो भी काफी दिनों तक बन्द रहा और किसी ने उसे देखने की परवाह न की। इस तरह जिस टैंक में यह गैस थी और उसमें से जिस रास्ते से यह बाहर निकलती थी उन सबकी देखभाल पर कोई ध्यान न दिया गया। मजदूरों को वार्निंग देने का कोई इंतजाम न था। उस हादसे से पहले जो छोटे-छोटे हादसे हुए उनसे कोई सबक हासिल न किया गया। इस तरह यह एक हादसा भारत की तारीख का अफसोसनाक हादसा ही कहा जाएगा और ज्यादा अफसोस इस बात का है कि हमारी सरकार ने प्रभावित और हलाक होने वालों के परिजनों की ज्यादा मदद न की। जो लोग प्रभावित हुए वे दर-दर की ठोकरे खाते रहे और हुक्काम ने शुरू के कई दिन उनसे हमदर्दी जताई और ज्यों-ज्यों वक्त गुजरता गया हुक्काम उन प्रभावित लोगों को भूलते गए और उन लोगों को अपने स्रोतों पर ही भरोसा करना पड़ा। यह भी कहा जा रहा है कि इस सिलसिले में कम्पनी की अमेरिकन ब्रांच ने कुछ रुपये लोगों की मददक के sलिए भेजे। लेकिन उनकी तकसीम में इतनी देर कर दी गई कि कई लोग हादसे के कई दिन बाद दम तोड़ गए और यही वजह है कि अब जबकि अदालत का फैसला हुआ है, लोग उससे सख्त नाराज हैं। जिस फैक्टरी में काम करने वालों में 16 हजार के करीब लोग हलाक हो जाएं उस फैक्टरी के प्रबंधकों को दो-दो साल की सजा एक मजाक से ज्यादा नहीं कही जा सकती।  

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