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आखिर किसके दम पर मुंह नहीं खोल रहा?

👤 | Updated on:13 Jun 2010 3:31 PM GMT
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अमरीका ने अंततः भारत को मुम्बई में हुए 26/11 के पिफदायीन हमले के मास्टर माइंड में से एक डेविड कोलमैन हेडली से भारतीयों को बातचीत करने की इजाजत दे दी है और इस समय हमारी नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी ;एनआईएद्ध के तीन जांच अध्कारी अमरीका में हैं। लेकिन अभी तक जिस तरह के नतीजे देखने को मिले हैं, उससे बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं बंध्तीं कि हेडली हमें वाकई वह सब बताएगा जो हम जानना चाहते हैं या पाकिस्तान को उस जानकारी से घेरने की कोशिश कर सकते हैं। दरअसल हेडली वह शख्स है जिसे कुछ महीनों पहले अमरीका की खुपिफया एजेंसी पफेडरल ब्यूरो ऑपफ इन्वेस्टिगेशन ;एपफबीआईद्ध ने अपने खुपिफया जाल के जरिए पकड़ा था, जिसने इस बात को स्वीकार किया था कि पाकिस्तान स्थित लश्कर ए तायबा से उसके संबंध् हैं और उसने मुम्बई में हुए जबरदस्त आत्मघाती आतंकी हमले की साजिश रचने वालों में शामिल था। यही नहीं बाद में 18 मार्च 2010 को हेडली अमरीका की संघीय अदालत के समक्ष भी इस बात को स्वीकार किया कि वह मुम्बई हमले की साजिश में शामिल था और डेनमार्क के एक अखबार पर हमले की साजिश उसी ने रची थी। इस स्वीकार के बाद वैसे बहुत तकनीकी रूप से कुछ स्वीकार करने के लिए नहीं बचताऋ लेकिन अमरीका के साथ यह एक कमजोरी है कि वह अपने संकट या अपनी समस्या को तो बहुत बढ़ा-चढ़ा कर दिखाता है लेकिन दूसरे की समस्या या संकट के बारे में ज्यादा संवेदनशील नहीं होता। यही कारण है कि जो कोलमैन हेडली अमरीकी अदालत के समक्ष यह स्वीकार कर चुका है, वही हेडली अब भारतीय जांच अध्कारियों से सामान्य बातचीत तक के लिए भी कतरा रहा है और इसके लिए वह जो बहाना बना रहा है, वह कापफी मजबूत साबित हो सकता है। दरअसल हेडली कह रहा है कि वह अमरीका के दंडविधन के पांचवे संशोध्न के तहत इस बात का अध्कार रखता है कि वह चाहे तो किसी के पूछे गए सवालों का जवाब न भी दे यानी कोलमैन हेडली को भारत की जरूरत और चाहत के बावजूद बयान या पूछताछ के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। वह इसे इस तरह से पेश कर रहा है जैसे यह उसकी वैयक्तिक स्वतंत्राता पर आघात हो और अमरीका का संविधन इस तरह की वैयक्तिक स्वंतत्राता की रक्षा का पूरा अध्कार देता है। इसलिए लगातार हेडली भारतीय पूछताछ अध्कारियों के सवालों को यह कहकर टाल रहा है कि वह जो कुछ कहेगा अपने वकील के जरिए कहेगाऋ क्येंकि अमरीकी संविधन के मुताबिक उसको इस बात की आजादी है। जरा कल्पना करें अगर यही कोलमैन हेडली अमरीका की जरूरत होती तो क्या संविधन या दंड विधन की पूंछ पकड़ कर इस तरह उसे बच जाने की छूट मिलती? कभी नहीं। क्योंकि अमरीका के लिए उसकी नजरों में सबसे पहले अपनी सुरक्षा है। विधन और संविधन सब कुछ इसके बाद आते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि जब अमरीका में 9/11 को अंजाम दिया गया तो अमरीका दुनिया के किसी देश या अंतर्राष्ट्रीय कानून की कोई परवाह किये बिना, यहां तक कि राष्ट्र संघ के बुनियादी सि(ांतों की अवहेलना करते हुए अपफगानिस्तान पर हमला बोल दिया। इसके लिए न तो अपफगानिस्तान और न ही पूरी दुनिया उसे कुछ कह सकी। क्येंकि यह अमरीका की निजी सुरक्षा और पतिरक्षा का मामला था। इसलिए अमरीका ने न तो वैश्विक कानूनों, मान्यताओं और पोटोकोल को निबाहाने की जरूरत समझी और न ही उसके लिए किसी दूसरे देश की निजता का कोई अर्थ रहा। महज अनुमान के आधर पर उसने अपफगानिस्तान के उन तमाम इलाकों को रातों-रात खंडहर में बदल दिया जहां भी उसे आशंका थी कि 9/11 के साजिशकर्ता छिपे हो सकते हैं। हिंदूकुश पहाड़ियों में उसने चट्टान भेदने वाले बमों से हमला किया और पूरे इलाके को तहस-नहस कर दिया। यहां तक कि इससे उस क्षेत्रा का पारिस्थितिकी चक्र भी गड़बड़ा गया। लेकिन उसे कोई रोक नहीं सका। अपफगानिस्तान ने ऐसा नहीं है कि इसकी कोशिश नहीं की। दुनिया के तमाम देशों के सामने उसने गुहार लगाई थी कि अमरीका महज आशंका की बिना पर उसे नेस्तनाबूद कर रहा है। लेकिन इस सच को सच मानते हुए भी किसी देश ने अमरीका के विरु( एक शब्द नहीं कहा। तब अमरीका का कोई भी कानूनी पंडित यह दर्शन बघारने के लिए आगे नहीं आया कि अपफगानिस्तान की वैयक्तिक सार्वभौमिकता किसी भी इच्छा या कानून से ज्यादा बड़ी है। इसलिए उसका सम्मान किया जाना चाहिए। जबकि आज उसी अमरीका के तमाम कानूनविद, मानवाध्कार कार्यकर्ता वकालत कर रहे हैं कि अमरीकी कानूनों के मुताबिक अपराधी तक को अपने ढंग से अपनी बात कहने और रखने का अध्कार है। इसलिए उससे जोर जबरदस्ती के जरिये कुछ नहीं पूछा जा सकता। अमरीकी अध्कारी कह रहे हैं कि डेविड कोलमैन हेडली को पूछताछ में सवालों के जवाब देने के लिए बाध्य करना अपने ही विरु( गवाही देने के जैसा है जो अमरीकी न्यायिक कानून के खिलापफ है। अतः अमरीका का पबु( वर्ग या कानूनी जानकारियां रखने वाला तबका कभी भी भारत के साथ इस बात के लिए खड़ा नहीं होगा कि भारत को इस खूंख्वार आतंकी से सीध्s पूछताछ करने का हक मिले। यह कोई पहला मौका नहीं है जब अमरीका ने आतंकवाद से जारी जंग में अपने दोगलेपन का परिचय दिया है। एक तरपफ अमरीका कह रहा है कि आतंकवाद वैश्विक लड़ाई है और इसे दुनिया के तमाम देशों को मिलकर लड़ना होगा। दूसरी तरपफ अमरीका अपने लिए संवेदनशीलता का अर्थ कुछ और रखता है और दूसरे देशों के लिए उसकी नजरों में संवेदनशीलता के कुछ और मायने हैं। यह दोहरा रव्वैया न सिपर्फ आतंकवादियों और आतंकवाद को संरक्षण देने वालों को उत्साहित करता है बल्कि उन तमाम देशों को वाकई हतोत्साहित करता है जो आतंकवाद को एक वैश्विक लड़ाई मानते हुए पूरी दुनिया से इसमें हिस्सेदारी की उम्मीद करते हैं। एक तरपफ पाकिस्तान को अमरीका बेहिचक यह कहता है कि पाकिस्तान आतंकवाद को पश्रय दे रहा है। दूसरी तरपफ वह अपत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की भारत विरोध रणनीतियों में हिमायत करता है। आखिर इस दोहरे रव्वैये से आतंकवाद से कैसे लड़ा जा सकता है? आगामी जुलाई माह में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रााr एक दूसरे के साथ बै"कर विचार विमर्श करेंगे। शाह महमूद कुरैशी के निमंत्राण पर भारत के विदेश मंत्रााr पाकिस्तान जाएंगे और अमरीका को उम्मीद है कि दोनों देशों के विदेश मंत्रायों की बै"क में कश्मीर नहीं, आतंकवाद का मुद्दा छाया रहेगा और ईमानदारी से दोनों देश आतंकवाद के विरु( कमर कसने के लिए तैयार होंगे। दूसरी तरपफ अमरीका खुद `पिफफ्रत अमेंडमेंट' का हवाला देकर भारत की मदद से बचना चाहता है। अगर वाकई आतंकवाद को जड़ से उखाड़ पफेंकना है तो इस दोहरे रव्वैये से बचना होगा। इसलिए अमरीका को यह सुनिश्चित करना वाहिए कि कोलमैन हेडली न सिपर्फ भारत को जरूरी जानकारियां दे बल्कि भारतीय खुपिफया एजेंसियों को इससे वह सब कुछ उगलवाने की छूट होनी चाहिए विध्वंस का जो पफॉर्मूला और वृहत्तर रणनीति इसके खतरनाक दिमाग में थी, तभी दुनिया को आतंकवाद से बचाया जा सकता है वरना आतंकवाद से लड़ने के नाटक कितने भी होते रहें नतीजा सिपफर ही होगा। एन के अरोड़ा    

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