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बेस्ट कैंसर

👤 | Updated on:13 Jun 2010 3:32 PM GMT
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जैसे ब्रेस्ट कैंसर की चिंता ही कापफी नहीं थी, एक औरत को यह जानने के लिए कि उसके ब्लाउज में सब कुछ "ाrक-"ाक है। उसे इससे बड़ी यातना से गुजरना पड़ता है। सर्जन एक मोटी सुई उसके वक्ष में घुसाकर गोल बॉल जितना टिश्यू निकाल लेता है। पिफर निकाले गये टिश्यू पर परीक्षण होते हैं और उसे एक सप्ताह तक रिजल्ट के आने का इंतजार करना पड़ता है। यह तरीका अकेले अमरीका में ही सप्ताह में 20 हजार बार होता है। इनमें से 85 पतिशत को कैंसर न होने की खुशखबरी मिलती है। शायद गोश्त की एक बोटी देना और पिफर सप्ताह भर अनिश्चितता में नाखून चबाना। महिला और उसके परिवार के लिए काबिलेकबूल कारोबार है। लेकिन अगर विकल्प के तौर पर इससे भी अच्छा तरीका मौजूद हो? एक ऐसा ही तरीका आजकल पयोगों के दौर से गुजर रहा है। राहत का स्रोत बहुत ही अजीब जगह से संभव है। कैलीपफोर्निया के डब्लिन शॉपिंग सेंटर में बायोल्यूमिनेट ने एक छोटी सी जगह किराये पर ले रखी है। वह ही चीजों को बदलने का पयास कर रहा है। इस पफर्म का स्मार्ट पोब अगर कामयाब हो जाता है तो ब्रेस्ट कैंसर के टेस्ट करने में क्रांति आ जाएगी। आप डाक्टर के दफ्रतर में बै"sंगे और तभी टेस्ट पूरा हो जाएगा। स्मार्ट पोब उस तकनीक पर आधारित है जो अमेरिका की तीन पयोगशालाओं में विकसित हुई है। मुख्य पेटेंट नासा के एमिस रिसर्च सेंटर से आया है। यह सेंटर कैलिपफोर्निया में सन्नीवेल के निकट है। बायोल्यूमिनेट की पोब में वही बेसिक तकनीक का इस्तेमाल है जो नासा ने मार्स लैंडर के लिए पयोग की थी। कंपनी पिफर 20 गेज की सुई में जांच करने के कई ऑप्टिकल और इलेक्ट्रिकल यंत्रा जोड़ देती है। ज्ञात रहे कि खून टेस्ट करने के लिए भी इससे बड़ी सुई पयोग में ली जाती है। डाटा एकत्रा करने के लिए इसमें ब्लू लेजर और ओसीडीआर लगाये गये हैं। कैंसर सेलों में फ्रलोरसेंस होता है जिसे ब्लू लेजर जाहिर कर देता है और कैंसर सेलों के बड़े न्यूक्लाई को ऑप्टिकल कोहिरेंस डोमेन रिफ्रलेक्टोमीटर;ओसीडीआरद्ध पकड़ता है। कुल मिलाकर एक साथ सात नमूने लिए जाते हैं। पिफर आपस में उनकी तुलना की जाती है। पूर्व में इन सभी तरीकों को अलग-अलग या साथ मिलाकर कैंसर को टेस्ट करने के लिए इस्तेमाल किया गया है लेकिन टिश्यू मेथड से सटीक कोई साबित नहीं हुआ है। बायोल्यूमिनेट को उम्मीद है कि विभिन्न तरीकों को बतौर क्रॉस चेक मिलाकर वह ऐसा तरीका विकसित कर लेगा जो कम से कम कोर-नीडल बायोप्सी जितना सही होगा। लेकिन कॉमर्शियल होने से पहले स्मार्ट पोब को और होशियार होना पड़ेगा। उसके सेंसर्स एक सेकेंड में 100 डाटा एकत्रा करते हैं और उस जानकारी को सीध्s कम्प्यूटर डिस्क पर लिख देते हैं। ऑप्टिकल और इलेक्ट्रिक सेंसर्स के ज्यादातर डाटा का जल्दी विश्लेषण किया जा सकता है। लेकिन ओसीडीआर से जो जानकारी का भंडार मिलता है उसका विश्लेषण करना क"िन चुनौती है। बायोल्यूमिनेट इस समस्या से निपटने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। डेविस स्थित यूनिवर्सिटी आपफ कैलिपफोर्निया के मेडिकल सेंटर में पारंभिक परीक्षण हो रहे हैं। 17 महिलाओं पर सामान्य बायोप्सी के अलावा बायोल्यूमिनेट तरीके का भी इस्तेमाल किया गया है। बायोल्यूमिनेट की टीम डाटा का विश्लेषण करती है और पिफर उसका मिलान पक्रिया के डिजिटल वीडियो से करती है। अब तक यह जांच सौ पफीसदी सही साबित हुई है। सैन पफांसिसको स्थित यूनिवर्सिटी ऑपफ कैलिपफोर्निया में भी परीक्षण शुरू हो गये हैं। महिलाएं खुले में सांस लेने लगें इसके लिए दो चीजों का होना आवश्यक है। एक, बायोल्यूमिनेट को डाटा हैंडलिंग पफंट पर और अधिक पगति करनी होगी। अगर उसे अमरीका के पफूड एंड ड्रग पशासन से स्मार्ट पोब के लिए स्वीकशति पानी है तो उसे एक हजार रोगियों का परीक्षण करना होगा। इसके लिए पैसा कहां से आये? यह दूसरी समस्या है। लेकिन अगर कंपनी अपने मिशन में कामयाब नहीं भी होती तो भी बुनियादी तकनीक अलमारियों में नहीं सिमटी रहेगी। इस तरीके में सामान्य बायोप्सी से 80 पतिशत कम लागत आती है। इसलिए हेल्थ बीमा वाले इस तरीके को आम कराने का पयास करेंगे। पिफर अमरीका में डाक्टरों पर बहुत मुकदमे इसलिए होते हैं कि वे बेस्ट कैंसर की शिनाख्त नहीं कर पाये। इसलिए इस तकनीक को स्वीकार करने का मेडिकल पोपफेशन से जुड़े लोगों के पास "ाsस कारण हैं और अंत में इस बात की पबल संभावना है कि स्मार्ट पोब या ऐसी ही कोई और चीज पोस्टेट कैंसर, पेफपफड़ों के कैंसर आदि में भी सहायक हो सकती है। यह उन महिलाओं के लिए विकल्प हो सकता है जो बुरे की आशंका से डरी हुई हैं। डॉ. भारत भूषण  

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