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सेहत की जुबानी

👤 | Updated on:13 Jun 2010 3:32 PM GMT
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सेहत में खानपान का कितना महत्व होता है, यह हम सब भली-भांति जानते हैं। स्वस्थ रहने के लिए डाइट का हेल्दी होना भी जरूरी है। खानपान में विटामिन व मिनरल के साथ पफाइबर भी विशेष महत्व रखता है। भोजन में पफाइबर का सही मात्राा में होना बेहद जरूरी है। लकिन उससे पहले यह जान लें कि पफाइबर आखिर है क्या? पफाइबर मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट का एक पकार है जो पौधें की पत्तियों, तनों और जड़ों में पाया जाता हैऋ लेकिन शुगर और स्टार्च भी कार्बोहाइड्रेट के ही पकार हैं। अन्य पोषक तत्वों की तुलना में पफाइबर आपके शरीर में तब तक उपस्थित रहता है जब तक यह पाचन तंत्रा के अंतिम पड़ाव तक नहीं पहुंच जाता। पफाइबर शरीर के लिए लाभदायक तो है लेकिन इसे सही मात्राा में लेना जरूरी है। पफाइबर के बारे में बारीकी से जानने के लिए इसके पकारों से परिचित होना जरूरी है। यह मुख्यतः दो पकार के होते हैं जिनके कार्य भी अलग-अलग हैं। यह दो पकार हैं- इनसोल्यूबल पफाइबर और सोल्यूबल पफाइबर। इनसोल्यूबल पफाइबर मुख्य रूप से गेहूं की बालियों, अखरोट और कई अन्य सब्जियों में पाया जाता है। इसकी संरचना मोटी और खुरदरी है और यह पानी में घुलता नहीं। इस कारण यह पाचन तंत्रा में कुछ खास भूमिका नहीं निभा पाता लेकिन शरीर के लिए लाभदायक होता है। इसके विपरीत सोल्यूबल पफाइबर पानी में घुलनशील होता है और पाचन क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पफाइबर का यह पकार पफलियों और कई पकार के पफलों में मौजूद रहता है। यह पफाइबर शरीर में होने वाले खून के बहाव से शुगर का अवशोषण कम कर देता है। लेकिन इस पफाइबर में एक कमी भी है। इसका रोज सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्राा बढ़ जाती है। कुछ लोगों का मानना है कि पफाइबर में कैलोरी नहीं होती जबकि ऐसा नहीं है। पफाइबर मुख्यतः शुगर मोलिक्यूल की सघन संरचना होता है। यह मोलिक्यूल आपस में रासायनिक तत्वों द्वारा गुथे रहते हैं और शरीर को जरूरत पड़ने पर ही एक-दूसरे से बंध्नमुक्त होते हैं। पफाइबर के दोनों पकारों में से एक का पानी में न घुलने के कारण भी लोग इसे उफर्जा का स्रोत नहीं मानते, पानी में न घुलने के कारण इनसोल्यूबल पफाइबर में कैलोरी नहीं होती है। कम कैलोरी होने से पफाइबर वजन को नियंत्रात रखने में भी कापफी कारगर साबित होता है। न्यूट्रीशन पत्राका में छपे शोध् के आधर पर जो लोग अपनी डाइट में पफाइबर को शामिल करते हैं, वह पफाइबर न शामिल करने वालों की तुलना में कहीं तेजी से वजन कम करते हैं। पफाइबर का शरीर पर सौ पतिशत असर तभी होता है जब इसे अच्छी तरह चबाकर खाया जाए। इन दिनों खाद्य बाजार में सप्लीमेंट पफाइबर भी उपलब्ध् है। सप्लीमेंट पफाइबर यानी पफाइबर का वह स्वरूप जो तमाम पयोगों के आधर पर तैयार किया गया यानी इसमें कई चीजों को एकसाथ मिलाकर इसे पफाइबर के गुण वाला बनाया जाता है। इसमें दही, जूस, ब्रेड और यहां तक कि मैगी नूडल्स में भी पफाइबर होने के दावे किये जाते हैं।  इन दिनों वैज्ञानिक एक नए तरह का पफाइबर बनाने में लगे हुए हैं। इसे पफंक्शनल पफाइबर कहा जा रहा है। यह पफाइबर पोसेस्ड पफूड में मिलाया जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बैक्टीरिया या यीस्ट से पफाइबर का निर्माण किया जा सकता है। अमरीका में वर्ष 2007 में एपफडीए ने तमाम नए पफाइबर खोज निकालने की घोषणा की। इसमें पॉलीडेक्सट्रोज को पफाइबर कहा गया। पॉलीडेक्सट्रोज का निर्माण ग्लूकोज व शुगर अल्कोहल तथा क्रिटिक अम्ल से किया जाता है। इसका पयोग सुबह के नाश्ते में उपयोग किए जाने वाले कैलोग्स में किया जा रहा है। हालांकि यह पफाइबर स्वास्थ्य के लिए उतना पफायदेमंद नहीं जितना पाकृतिक चीजों में पाया जाने वाला पफाइबर है। इस पफाइबर से वजन को नियंत्रात करना संभव नहीं।वर्ष 1960 में पफाइबर से कैंसर होने की बात उ"ाr लेकिन अगले पांच दशकों में यह बात साबित नहीं हो सकी। 1999 में हार्वर्ड के शाधकर्ताओं ने पाया कि पफाइबर और कैंसर का आपस में कोई लेना-देना नहीं। यूरोपियन अध्ययन में यह कहा गया कि जो लोग 40 पतिशत तक अधिक पफाइबर भोजन में लेते हैं उनमें कैंसर होने का खतरा कम रहता है। इस अध्ययन के जवाब में वर्ष 2005 को अमरीकन मेडिकल ऐसोसिएशन ने एक रिव्यू पस्तुत किया जिसमें यह कहा गया कि पफाइबर की अध्कि मात्राा लेने से शरीर को उतना ही पफायदा होता है जितना सामान्य रूप से लेने में होता है। इस कंट्रोवर्सी ने पफाइबर के महत्व को कम नहीं किया बल्कि कई अन्य शोध्कर्ताओं ने यह दावा किया कि भोजन में पफाइबर की मात्राा अध्कि होने से तमाम घातक बीमारियों से दूर रहा जा सकता है। अब सवाल यह उ"ता है कि इस ज्यादा मात्राा का कोई तो आधर होगा। कुछ स्वास्थ्य सलाहकार एक दिन में कम से कम 38 ग्राम पफाइबर लेने की सलाह देते हैं जबकि यह बिल्कुल गलत है। कई मेडिकल इंस्टीट्यूट में काम कर रहे वैज्ञानिक मानते हैं कि 38 ग्राम पफाइबर का अर्थ है एक दिन में 9 सेब खाए जाएं जो मुमकिन नहीं। ज्यादातर लोग एक दिन में 15 ग्राम पफाइबर लेते हैं जो स्वास्थ्य के लिए नियंत्रात डाइट कही जा सकती है। पफाइबर की ज्यादा खपत को लेकर लोग यह दावा करते हैं कि भोजन में इसकी ज्यादा मात्राा हृदय सम्बंध बीमारियों से दूर रखती है जबकि ऐसा नहीं है। 38 ग्राम पफाइबर लें या 50, शरीर को इसकी जितनी जरूरत होगी वह उतना ही अवशोषित करेगा बाकी का पफाइबर बेकार ही साबित होगा। शरीर में ब्लड शुगर का स्तर कम करने के लिए भी पफाइबर जरूरी है। इसलिए अपने भोजन में रोज थोड़ी-बहुत मात्राा पफाइबर की जरूर शामिल करें। इसे लेकर किसी तरह के असमंजस में न रहें। पफाइबर की उचित मात्राा हमें कई बीमारियों से दूर रखती है, इस बात का हमेशा ध्यान रखें। शरीर से अतिरिक्त वसा को खत्म करने में भी पफाइबर विशेष भूमिका निभाता है। पफाइबर में पाया जाने वाला तत्व इन्यूलिन पी बायोटिक के नाम से जाना     जाता है। इसका कार्य होता है शरीर में स्वस्थ बैक्टीरिया बढ़ाना। शरीर में यदि अच्छे बैक्टीरिया होंगे तो यह रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ाएंगे और हम स्वस्थ रहेंगे। क्रमचंद  

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