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लाल जेजम पर हुस्न का जलवा

👤 | Updated on:13 Jun 2010 3:33 PM GMT
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केंस पिफल्म फेस्टिवल, मोशन पिक्चर्स अकेडमी अवार्ड और अमरीका के राष्ट्रपति भवन यानी व्हाइट हाउस में होने वाले अमरीकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में क्या समानता है? इन तीनों समारोहों में एक सबसे  बड़ी समानता है, रेड कार्पेट यानी लाल जेजम पर इतराती बल खाती दुनियाभर की तमाम खूबसूरत हस्तियों का चलना। अमरीकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में जहां इन हस्तियें में विश्वपसि( राजनेता, दिग्गज कारोबारी, महान खिलाड़ी, अभिनेता और तमाम दूसरे क्षेत्रााsं के सेलिब्रिटीज शामिल होते हैं। वहीं कोडक थियेटर की लाल जेजम पर कदम रखने वालें में पिफल्म क्षेत्रा की महान हस्तियां होती हैं। केंस पिफल्म पफेस्टिवल में भी कोडक थियेटर में पहुंचने वाले ही विशिष्टजन आमतौर पर होते हैं। हालांकि इन तीनों समारोहों की अपनी-अपनी भिन्नताएं और खूबियां हैंऋ वैसे तो इन तीनों ही समारोहों में मगर खासतौर पर दो समारोहों, ऑस्कर अवार्ड वितरण के लिए कोडक थियेटर में होने वाले आयोजन और पफांस के केंस पिफल्म पफेस्टिवल में पूरी दुनिया की निगाहें लाल जेजम पर कदम रखने वाली उन खूबसूरत बालाओं पर होती हैं जिनकी अदाओं से पफैशन के नए अध्याय शुरू होते हैं। हालांकि यह कोई नियम नहीं है लेकिन आमतौर पर देखा जाता है कि केंस और ऑस्कर अवार्ड समारोह में अपनी खूबसूरती से पूरी दुनिया की नींद चुरा लेने वाली स्वप्न सुंदरियां नजरों को थाम लेने वाले गाउन में ही नजर आती हैं। चाहे मर्लिन मुनरो रही हों, गेबा गार्टो रही हों, एलिजाबेथ टेलर, जूलिया रॉबर्ट्स रही हों या पिफर ऐश्वर्या राय, एंजेलिना जॉली, काइली मेनॉग हों या मल्लिका सहरावत। ये तमाम स्वप्न सुंदरियां लाल जेजम पर बल खाते हुए चलने के लिए आकर्षक गाउन का ही चुनाव करती हैं। इस बार के केंस समारोह में भी जब ऐश्वर्या राय, ईवा लांगोरिया के साथ लाल जेजम पर नमूदार हुईं तो उनकी खूबसूरती कदम रोक देने वाली थी और इस खूबसूरती का सरताज था उनके द्वारा पहना गया गाउन। मल्लिका सहरावत, सलमा हायक और केट ब्लेंकेट भी डिजाइनर गाउनें में ही नजर आईं। दरअसल चाहे बड़े पिफल्म पफेस्टिवल हों, किसी विश्वपसि( सेलिब्रिटीज की शादियां हें, पश्चिमी देशों के राज्याभिषेक समारोह हों, विश्वविद्यालयों और दूसरे शैक्षिक संस्थानों के दीक्षांत समारोह हों, वेटिकन सिटी में साल में एक बार होने वाला पोप का सम्बोध्न समारोह हो या पारंपरिक ईसाई शादियां। इन तमाम विशिष्ट समारोंहों की शान हमेशा अपनी खूबसूरती से नजरों को कैद कर लेने वाले गाउन ही होते हैं। वैसे तो गाउन एक पश्चिमी विशेषकर यूरोपीय संस्कृति का शानदार तोहपफा हैऋ लेकिन अब यह वैश्विक हो चुका है। पारंपरिक हिंदुओं की शादियों में भी कई बार दुल्हन गाउन में दिख जाती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि गाउन सिपर्फ विशिष्ट समारोहों की विशिष्ट पोशाक भर है। यह कई तरह के पेशों, कई किस्म के अवसरों और कई अलग-अलग समय की पतीक पोशाक भी है। गाउन महज महिलाओं की पोशाक भी नहीं है, न कभी पहले थी और न ही अभी भी है। लेकिन यह भी सही है कि इसे अलग-अलग समय में रिसर्च स्कॉलर, पादरी, डॉक्टर, जज और वकील जैसे पुरुष पेशावर भी भले पहने नजर आते हैं। पहले भी राजा-महाराजाओं से लेकर यह सेनापतियों और पुरोहितों जैसे पुरुषों के शरीर में यह पोशाक शोभायमान होती रही है। लेकिन गाउन छलकते हुए सौंदर्यबोध् की पहचान और नशीले आकर्षण का पतीक होने की उपमाएं महिलाओं के बदन पर पहुंचने के बाद ही हासिल करता है। शायद यही कारण है कि विशिष्ट समारोहों में खूबसूरत महिलाएं अपनी खूबसूरती में और चार-चांद लगाने के लिए गाउन पर ही दांव लगाती हैं। चाहे ऐश्वर्या राय हों, काइली मेनॉग या मल्लिका सहरावत, लाल जेजम की हूर बनने के लिए सब गाउन ही चुनती हैं। यह अलग बात है कि दीपिका पादुकोण ने इस सिलसिले को तोड़ते हुए इस बार केंस पिफल्म पफेस्टिवल में 6 गज की पारंपरिक हिंदुस्तानी साड़ी से अपनी खूबसूरती की छटा बिखेरी है। लेकिन इस तरह के इक्के-दुक्के अपवादों को छोड़ दें तो वैश्विक स्तर के बड़े ग्लैमरस समारोहों में हुस्न का जलवा गाउन पर ही सवार नजर आता है। गाउन मध्यवर्ती लैटिन भाषा के गुन्ना शब्द से बना है, जिसका आमतौर पर मतलब होता है एक ऐसी ढीली-ढाली बाहरी पोशाक जो गले से घुटनों तक की हो सकती है और छाती से नख तक भी ढके हो सकते हैं। यह महिलाओं और पुरुषों दोनों की ही पोशाक है तथा यह 17वीं शताब्दी के शुरुआती दौर से ही यूरोप में पहनी जा रही है। अगर भारत में साध्g-संतों  व पफकीरों द्वारा पहने जाने वाले चोगे को देखें तो वह भी एक किस्म का गाउन ही है। यही नहीं अगर हम चोगे को गाउन का ही एक रूप मानें तो यह भी कह सकते हैं कि हमारे यहां गाउन की परंपरा यूरोप से भी ज्यादा पुरानी है मगर एक विशिष्ट समाज व वर्ग तक ही सीमित है। ज्यादातर भगवा वस्त्रा पहनने वाले वो साध्g, जिनके यहां यह मान्यता होती है कि पूरी पोशाक एक ही वस्त्रा की हो, वही इस तरह के चोगे को तरजीह देते हैं। भारत में कई ऐसे भक्त संपदाय हैं जो इस चोगे को भी अपनी अध्कृत पोशाक मानते हैं। चैतन्य महापभु के भक्तिमार्गी, वैष्णव साध्g सपफेद रंग का ऐसा ही चोगा पहनते हैं जो एक किस्म का गाउन होता है। आधुनिक भारत के विवादास्पद दार्शनिक ओशो या रजनीश भी ऐसी ही एकवस्त्रााr पोशाक पहनते थे जो एक किस्म का गाउन होता था। अगर बॉलीवुड में किसी को गाउन क्वीन का खिताब देना हो तो आंख मूंदकर यह खिताब ऐश्वर्या राय को दिया जा सकता है। ऐश्वर्या राय सन 2000 से अब तक लगातार किसी न किसी वजह से केंस पिफल्म पफेस्टिवल से जुड़ी रही हैं और इस पफेंच गाला की लाल जेजम में हर बार वह एक दिलकश गाउन के साथ उतरती रही हैं। कई बार तो उनका यह गाउन इतना भड़काउफ रहा है कि उन्हें पारंपरिक हिंदुस्तानी मीडिया से ही नहीं पश्चिमी मीडिया की भी अपनी उफट-पटांग ड्रेसिंग सेंस के लिए आलोचना सुननी पड़ी है। बहरहाल, भले गाउन आदमी और औरत दोनों की ही पोशाक हो लेकिन वक्त की कुछ ऐसी मेहरबानी हुई है कि आदमियों के लिए तो यह किसी पेशे विशेष की पोशाक तक ही सीमित है। मगर महिलाओं के लिए इसे किसी विशिष्ट पेशे से जुड़ने की जरूरत नहीं रहती, वह इसे कहीं भी और कभी भी पहन सकती हैं। मगर आमतौर पर यह तभी पहना जाता है जब महिलाएं अपने हुस्न का जलवा बिखेरना चाहती हों। इसीलिए इसे हसीनाओं की हसीन ड्रेस भी कहते हैं। गाउन आज की तारीख में महिलाओं की एक लुभावनी और आकर्षक एक्सपोजर सुनिश्चित करने वाली सेक्सी ड्रेस मानी जाती है। यह लम्बा और पिफटेड यानी शरीर के कटावों के मुताबिक पिफट रहने वाली ड्रेस होती है। 18वीं शताब्दी में गाउन एक इंपफोर्मल कोट के रूप में भी पहना जाता था। यूरोप में क्राउन पिंस से लेकर छोटे-छोटे अमीर उमरा और नवाब इसे खासतौर पर अपनी शानो-शौकत का इजहार करने के लिए पहनते थे। आज यह अकादमीशियनों, जजों धर्मगुरुओं, ऑपरेशन करते समय डॉक्टरों और खाना बनाते समय शेपफों का पहनावा है। लेकिन जब इसे पुरुष पहनते हैं तो यह या तो किसी परंपरा का पतीक होता है या एक किस्म की यूनीपफोर्म लेकिन जब महिलाएं पहनती हैं, विशेषकर सामान्य महिलाएं तो यह उनकी खूबसूरती और माहौल की मादकता का पतीक होता है। गाउन कई तरह के होते हैं- अकेडमिक गाउन, बाल गाउन, बेड गाउन, ईवनिंग गाउन, हॉस्पिटल गाउन, टी गाउन और नाइट गाउन। अलग-अलग गाउन, अलग-अलग समय और मौके का पतीक ही नहीं होते बल्कि उनका पूरा समाजशास्त्रा भी अलग होता है। जैसे टी गाउन या हॉस्पिटल गाउन पहनकर आप बिस्तर पर नहीं जा सकते तो नाइट गाउन पहनकर आप टी ब्रेक या लंच ब्रेक में शामिल नहीं हो सकते। गाउन एक सामान्य पोशाक से पफैशन पोशाक बना, 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड में, जब इस इकहरी पोशाक को जेन ऑस्टिन जैसी लेखिकाओं की जादुई कलम का सहारा मिला। जेन ऑस्टिन ने अपने अंग्रेजी उपन्यासों में गाउन को एक खूबसूरत, मादक और सेक्स सिंबल ड्रेस के रूप में दर्ज किया है। एक जमाने में गाउन पेटीकोट की तरह ओवर ड्रेस के रूप में भी पहना जाता था। यह विक्टोरियन युग से पहले की बात है। यहीं से यह धरे-धीरे पुरुषों और महिलाओं, दोनों की ड्रेस रहने की बजाय महज महिलाओं की ड्रेस के रूप में पहचान पाता चला गया। जिस तरह आज अलग-अलग मौकों और पेशेवरों के लिए अलग-अलग तरह के गाउन होते हैं, वैसे ही उन दिनों यह महिलाओं और पुरुषों की ईवनिंग ड्रेस, मॉर्निंग ड्रेस, ट्रेवलिंग ड्रेस और पफुल ड्रेस के रूप में वर्गीकश्त था। 18वीं शताब्दी के मध्य तक गाउन और पफॉक, ये दोनों ही पोशाकें एक-दूसरे का पर्याय थीं और दोनों के लिए एक ही शब्द इस्तेमाल होता था, ड्रेस। तब दोनों के बीच पफर्क के लिए एक सामान्य बंटवारा यह था कि गाउन अकसर पारंपरिक या हैवी कपड़े का होता था और पफॉक हल्के कपड़े की या इंपफोर्मल होती थी। लम्बे समय तक गाउन सभी महिलाओं की एक सामान्य ड्रेस के रूप में ही मान्यता पाया था लेकिन पिछले 60-70 सालों में गाउन का जैसे-जैसे चलन कम हुआ, यह खास मौकों की विशिष्ट पोशाक के रूप में अपनी पहचान बनाता गया आज की तारीख में गाउन सामान्य ड्रेस नहीं है और न ही सबके लिए है। यह विशिष्ट मौकों की खूबसूरत और सेक्सी ड्रेस में परिवर्तित हो चुका हैं शायद इसीलिए सभी लोग इसे सामान्य ड्रेस के रूप में सार्वजनिक रूप से पहनने से कतराते हैं। अब चूंकि हाल के कुछ दशकों में यह कुछ पोपफेशनल्स और कुछ मौकों को छोड़कर पुरुषों की पोशाक नहीं रही। इसलिए यह धरे-धरे महिलाओं की पोशाक के रूप में ही अपनी पहचान बना चुका है। एक जमाना होता था जब यह अभिजात्य नपफासत का भी पतीक होता था। ईवनिंग गाउन और नाइट गाउन पहनने वाले पुरुष खासतौर पर जब इसे पहनकर अपने बागीचे या पार्क में मॉर्निंग वॉल्क के लिए निकलते थे तो वह इसके जरिये अपने स्टेटस को भी पदर्शित करते थे।  इन दिनों पुरानी चीजें कुछ नए कलात्मक पयोगों के साथ नई खूबसूरती और ताजगी हासिल कर चुकी हैं। इस अनू"s पयोग को फ्रयूजन के नाम से जानते हैं गाउन भी फ्रयूजन की इस तकनीक से खूब समश्( हुआ है और अब यह कलात्मक सौंदर्यबोध् के साथ-साथ ज्यामितीय कुशलता के चलते बेहद खूबसूरत व महिलाओं के सौंदर्य व व्यक्तित्व को निखारने वाला बन गया है इसीलिए तमाम खूबसूरत महिलाएं और सेलिब्रिटीज ने खास मौके इसके लिए सुनिश्चित कर दिए हैं। तब भला ऐश्वर्या राय या मल्लिका सहरावत दुनिया की चकाचौंध् भरे केंस पिफल्म पफेस्टिवल की लाल जेजम पर इसे पहनकर क्यों न इतराती हुई चलें। वीना सुखीजा  

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