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पाकिस्तान में रहने वाले भारतीयों की वापसी का मामला

👤 | Updated on:14 Jun 2010 5:06 PM GMT
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केंद्रीय सरकार के हलकों से यह इशारे हो रहे हैं कि उसने कुछ पाकिस्तानियों को जो भारत में आए हुए हैं और यहां रहना चाहते हैं उन्हें यहां रहने का लम्बे समय का वीजा दे दिया जाए और जितने दिन वह चाहते हैं उन्हें उतने दिन रहने की अनुमति दे दी जाए। इस किस्म के मामलों पर गृह मंत्रालय विचार कर रहा है। जिन पाकिस्तानी शहरियों की रविश के मामले में विचार होगा वह पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक तबकों के लोग हैं और अस्थायी तौर पर अपने परिजनों से मिलने के लिए भारत आए हैं। इसके अलावा इन पाकिस्तानी महिलाओं के मामले पर भी विचार होगा, जिन्होंने भारतीय शहरियों से शादी कर ली थी और भारत में ही रह रही हैं। जो पाकिस्तानी औरतें भारत में आकर स्थानीय शहरियों की बीवियां बन गईं और अब भारत में रह रही हैं और भारतीय औरतें जो पाकिस्तान में मुसलमानों की बीवियां बन गई थीं और बाद में बेवा हो गईं या तलाकशुदा हो गईं और जिनकी देखभाल करने वाला पाकिस्तान में कोई नहीं, ऐसी महिलाओं को भारत आने की अनुमति आसान कर दी जाएगी। राज्य सरकारों को गृह मंत्रालय  ने जो पत्र भेजा है उसमें कहा गया है कि कई पाकिस्तानी नागरिक मुसतकिल तौर पर भारत में रहने की गरज से आए हैं उनके मामलों पर भी हमदर्दी के साथ गौर किया जाएगा और पासपोर्टों में जिन शर्तों पर उन्हें भारत आने की अनुमति दी गई थी उन पर भी हमदर्दी से गौर किया जाएगा। गरज यह है कि सारी नीति पर दोबारा गौर हो रहा है और जो लोग पूरी ईमानदारी से वापस भारत आना चाहते हैं उनके रास्ते में जितनी रुकावटें हैं उन सब को दूर कर दिया जाएगा। इस सिलसिले में यह कहा जा रहा है कि केवल वही पाकिस्तानी इस छूट का फायदा उठा सकते हैं जो पिछले वर्ष 31 दिसम्बर तक भारत में आ चुके हैं और यह न समझा जाए कि जो पाकिस्तानी जब चाहे भारत आया हो वह एक दफा भारत में कदम रखने के बाद भारत का शहरी बनने का हक रखेगा। जेहालत की इंतिहा क्या आप यह मान सकते हैं कि हमारे बीच ऐसे लोग भी हैं जो दिल्ली  की तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाने वाले तख्ते का एक मामूली-सा टुकड़ा हासिल करना चाहते हैं क्योंकि वो यह समझते हैं कि उस लकड़ी में कोई बात मुकद्स होती है और ज्योंहि वह उन्हें मिल जाती है वे उसे चूमना शुरू कर देते हैं और खुशी से पागल हो जाते हैं। इस बात का नतीजा यह हुआ है कि तिहाड़ जेल में जहां फांसी का तख्ता है वहां आम कैदियों को जाने से पूर्ण तौर पर रोक दिया गया है। बताया गया है कि कई लोग उस तख्ते के पास पहुंच जाते हैं और चाकू से उसका एक टुकड़ा काटकर ले आते हैं और जब उसे ख्वाहिशमंद को पेश करते हैं तो वे खुशी से झूम उठता है। इसे कोई दिमागी जेहालत कहना चाहे तो कह ले लेकिन ऐसे लोग हैं जो यह समझते हैं कि फांसी के तख्ते का एक टुकड़ा भी उनके लिए खुशकिस्मती का पैगाम ला सकता है। इसलिए वह इंतिहाई कोशिश करते हैं कि जैसे भी हो सके उस तख्ते का एक मामूली-सा टुकड़ा उन्हें मिल जाए। जेल के हुक्काम का कहना है कि अब जबकि मोहम्मद अफजल गुरु की फांसी के सवाल पर विचार हो रहा है तो ज्यादा से ज्यादा लोग उस फांसी के तख्ते का एक हकीर-सा टुकड़ा भी लेने को तड़प रहे हैं। उनके दिमागों में यह बात बैठ गई है कि जिस किसी के पास उस फांसी के तख्ते का हकीर-सा टुकड़ा भी होगा उसके लिए भी यह खुशकिस्मती का जामिन होगा। जेल के हुक्काम का कहना है कि तख्ते के ऊपर का हिस्सा धीरे-धीरे ऊंचा-नीचा होता जा रहा था और तहकीकात से पता चला कि फांसी की कोठरियों के नजदीक की कोठरियों में रहने वाले कैदी मौका पाकर चाकुओं से तख्ते का कुछ हिस्सा काटकर ले आते थे और उसको उन लोगों को देते थे जो यह विश्वास करते हैं कि एक लकड़ी के टुकड़े में उनकी खुशकिस्मती छिपी है। आप चाहें जितनी कोशिश करें उनके दिमागों की जेहालत दूर नहीं हो सकती। इस सिलसिले में यहां तक पता चला है कि कई जज, राजनीतिज्ञ, सरकारी अधिकारी गण और जेल के अधिकारी और मुलजिम भी उस तख्ते के टुकड़े को खुशकिस्मती का सबूत मानकर हासिल करना चाहते हैं।    

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