समझौता जो कामयाब न हो सका
आज से कुछ दिन पहले जनरल परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के डिक्टेटर थे तो यह सुनने में आता था कि कुछ साल पहले जब आप श्री अटल बिहारी के निमंत्रण पर भारत आए थे तो आप दोनों में भारत और पाकिस्तान के विरोध के बारे में करीब-करीब एक समझौता हो गया था। यह समझौता क्या था, यह इतने वर्षों के बाद भी एक रहस्य बना हुआ है और जिस किसी को उसके किसी हिस्से का पता है वह उसे इस तरह बयान करता है कि जैसे उसकी मौजूदगी में ही यह समझौता हुआ था। यहां तक अटल बिहारी जी का ताल्लुक है, वो यह समझ रहे हैं कि सक्रिय राजनीति से रिटायर होकर उन्होंने देश के किसी मसले पर अपनी राय जाहिर करनी है न किसी समस्या के हल का सुझाव देना है। नतीजा इसका यह है कि आप में और मुशर्रफ साहब में जो बातचीत तय हुई थी जिसे सरकारी रूप न दिया गया था वह इन दोनों लीडरों की खामोशी का शिकार हो गया है। समय-समय पर इसका जिक्र हो जाता है और सवाल उठता है कि अगर दोनों में कोई समझौता हो गया था तो क्या कारण है कि उनके जाननशीनों ने उस समझौते पर अमल करना शुरू न किया। जो भी हो, अब फिर वर्षों बाद उस समझौते का जिक्र हुआ है जिसका मकसद कश्मीर की समस्या का हल है। जिन लोगों को भी उस समझौते का थोड़ा बहुत पता है उनका इशारा इस बात की तरफ है कि दोनों लीडरों में बाहमी ताल्लुकात सुधारने के लिए कश्मीर की समस्या पर सबसे ज्यादा जोर दिया और इस सिलसिले में कई सुझाव भी दिए गए। बेशक समझौते का जिक्र होना बन्द हो गया है, लेकिन जो सुझाव थे उन पर अमल जरूर शुरू हो गया। इस सिलसिले में इस बात का इशारा भी किया जा रहा है कि वर्तमान प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह का कहना है कि दोनों देशों की सीमाओं को छुआ न जाए। जैसी हैं वैसी ही रहने दी जाएं और उम्मीद की जाती है कि वक्त पाकर जब दोनों देशों के अवाम एक-दूसरे की नीयत पर शक करना बन्द कर देंगे तो ऐन मुमकिन है कि सीमाएं भी खत्म कर दी जाएंगी लेकिन इन बातों का जिक्र तभी होगा जब उन पर कुछ अमल नजर आएगा। अब भारत के विदेश विभाग की सचिव श्रीमती निरुपमा राव ने कहा है कि जरूरत इस बात की है कि पसपर्दा डिप्लोमैटिक बातचीत में जो नतीजे बरामद हुए उन पर अमल होना चाहिए। लेकिन श्रीमती ने बताया नहीं कि किन बातों पर समझौते हुए थे। इशारा इस बात पर हो रहा है कि दोनों देशों में आवागमन आसान कर दिया जाएगा। दोनों देशों के बीच तिजारत को फरोग दिया जाएगा और कोशिश यह की जाएगी कि अवाम में एक-दूसरे के खिलाफ जो नजरिये बने हुए हैं उन्हें खत्म किया जाए। बेशक इन मामलों का हल आसान नहीं क्योंकि आज पाकिस्तान में कई ऐसे तबके खड़े हो गए हैं जो किसी हालत में भी भारत से समझौता नहीं चाहते। जनरल परवेज अगर सत्ता में रहते तो महोदय की नीयत पर भी शक होने के कई इशारे हो रहे हैं। बहरहाल कोशिश यह की जा रही है कि जो बातचीत बीच में टूट गई थी उसे दोबारा शुरू किया जाए ताकि यह रोज की बकबक-झकझक खत्म हो और दोनों देशों के अवाम सही तरीके पर अमल करना शुरू हो जाएं। अब इस सिलसिले में अगले महीने पाकिस्तान में कुछ बातचीत होने वाली है। उस बातचीत में पाकिस्तान की तरफ से कश्मीर की समस्या का जिक्र होगा और इसके अलावा दोनों देशें के बीच सद्भावना और ईमानदारी के रास्ते में जो रुकावटें हैं उन पर पूरे खलूस से बातचीत की कोशिश की जाएगी। इस सिलसिले में भारत की विदेश सचिव श्रीमती राव के शब्दों को काफी अहमियत दी जा रही है जिसमें आपने फरमाया है कि बेशक दोनों देशों की सीमाएं फिर से तय नहीं की जा सकतीं लेकिन इस तरफ तो कोशिश हो सकती है कि उन्हें नकारा बना दिया जाए और उसके बाद दोनों देशों के अवाम स्वतंत्रतापूर्वक एक-दूसरे देश में तिजारत कर सकें। इस बात का जिक्र भी किया जा रहा है कि आज से चार वर्ष पहले सुलह समझौते का जो सिलसिला शुरू हुआ था जिसमें यह तय हुआ था कि लाइन ऑफ कंट्रोल पर पांच जगह तय की जाएं जहां से दोनों देशों के अवाम दूसरे देश में जा सकें। इसके अलावा इस बात पर भी विचार हुआ था कि एक-दूसरे देश में जाने के लिए किसी एंट्री परमिट की जरूरत न रहे। इसके अलावा श्रीनगर, मुजफ्फराबाद, पुंछ और रावलकोट के बीच बसों का आवागमन बढ़ाया जाए। दोनों रास्तों के अलावा पुंछ और रावलकोट की बसों की सर्विस को भी बहाल किया जाए ताकि श्रीनगर और मुजफ्फराबाद में पुंछ और रावलकोट के रास्ते से तिजारत को बढ़ावा मिले। श्रीमती ने यह भी कहा कि वह पसपर्दा डिप्लोमैटिक बातों का समर्थन करती हैं। आपने यह इशारा भी किया कि पाकिस्तानी फौज मौजूद चीफ जनरल अशफाक कियानी जिन्होंने पसपर्दा बातचीत और जम्मू-कश्मीर में सुलह व शांति के सिलसिले का विरोध किया है, फिर भी कोशिश यह की जाएंगी कि जनरल कियानी को ही जैसे भी हो संतुष्ट किया जाए क्योंकि यह बात साफ है कि जब तक पाकिस्तान के फौजी भारत के प्रति अपने नजरिये में कोई परिवर्तन नहीं करते, दोनों देशों की कोई बातचीत कामयाब नहीं हो सकती। उपरोक्त शर्तों के अलावा जिन बातों पर विचार किया जाएगा उनमें सीमा के दोनों ओर की अवाम को ज्यादा आजादी की गारंटी दी जाएगी। इस वक्त इन दोनों देशों से बाहर दोनों देशों के प्रतिनिधियों में जो कांफ्रेंसें और मीटिंगें होती रहती हैं उनमें इन सारे मामलों पर विचार-विमर्श हो चुका है। इस सबके अलावा इस बात पर भी विचार हो रहा है कि दोनों देश दोनों देशों की सीमाओं पर अपने फौजें कम करें क्योंकि इस वक्त फौजों का आलम यह है कि दोनों देशों में किसी भी वक्त हाथापाई की नौबत आ सकती है। इस असना में पाकिस्तान की तरफ से अंतर्राष्ट्रीय दरियाओं के पानी की सप्लाई के बारे में जो शिकायत की गई है इसके बारे में भारत सरकार ने जो जवाब दिया है, इससे आपत्ति करने वालों को किसी हद तक खामोश होना पड़ा है। इसलिए कि जिन लोगों ने यह आपत्ति जताई थी उन्होंने जानबूझकर तथ्यों को नजरंदाज कर दिया क्योंकि उनका ख्याल था कि इसी तरह वह अपने अवाम की नजरों में हरदिल अजीज बने रहेंगे। लेकिन जब भारत सरकार की ओर से पानी के बांध की तफ्सील पेश की गई तो पता चला कि पाकिस्तान से निहायत फराख दिली से अमल किया गया है। पाकिस्तान को जितना पानी दिया गया है वह उसे भी इस्तेमाल नहीं कर सकता और उसके खिलाफ पाकिस्तानी समाचार पत्रों में भी इशारे हो चुके हैं और वहां यह सवाल हो रहा है कि भारत की आपत्तियों का जवाब क्या दिया जाना है। काबिलेगौर बात यह है कि जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय दरियाओं के पानी का जिक्र किया था उनकी जुबान भारत की वजाहती बयान के बाद बन्द हो गई है। हक तो यह है कि पाकिस्तान को इस वक्त जितना पानी मिल रहा है वो उसे भी पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर सका। ऐसी हालत में पानी की कमी की शिकायत करना बेमकसद है।बहरहाल यह मामला भी दोनों देशों के लीडरों में जो कांफ्रेंस होती रहती है उनमें तय कर लिया जाएगा और उसके बाद दोनों देशों के प्रतिनिधि गण पूरी ईमानदारी से आपसी ताल्लुकात को सुधारने के लिए कोशिशें शुरू करेंगे।