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पंजाब की हालत पर चिन्ता

👤 | Updated on:18 Jun 2010 3:38 PM GMT
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पाकिस्तानी पंजाब की राजधानी लाहौर से निकले हुए हमें 60 वर्ष से ऊपर हो चुके हैं लेकिन फिर भी उसे दिमाग से नहीं निकाल सके। आज भी उसकी याद आती है और जब कोई नाखुशगवार वाकया होता है तो पढ़कर तकलीफ होती है। शायद यही कारण है कि पंजाब के ताजा हालात पढ़कर दिल और दिमाग पर असर हुआ है। पहले इसके कि पाठक गण यह अन्दाजा करना शुरू हो जाएं कि कौन-सा ऐसा खतरा पंजाब पर आने वाला है जिसने मुझे इतना परेशान किया है। मैं बता देना चाहता हूं कि मेरा इशारा आतंकवादी गतिविधियों की तरफ नहीं है बल्कि इससे भी कहीं ज्यादा नुकसानदेह स्रोतों की तरफ है। फरीदकोट की खबर है कि 149 बच्चों में से 80 प्रतिशत के बाल सफेद हो रहे हैं और उसकी वजह यह है कि यूरेनियम और दूसरी कई ऐसी धातुएं उन बच्चों पर असरंदाज हो रही हैं। बदतरीन इलाके जैसे तिजारा वहीला जो फाजिल्लका के नजदीक है और जहां सबसे ज्यादा बच्चे दिमागी और जिस्मानी तौर पर प्रभावित हो चुके हैं। उनकी हालत का पता करने के लिए इलाके में चक्कर लगाने वाले जर्मन विशेषज्ञों ने एक रिपोर्ट जर्मन प्रयोगशाला में भेजी है। फरीदकोट के विशेषज्ञों ने इस सिलसिले में बताया  है कि जो नतीजे आए हैं उनसे लाजिमी तौर पर जनता तड़प उठेगी। इस सिलसिले में सबसे बड़ी वजह पीने वाले पानी की बताई जाती है। उसमें अफगानिस्तान की जंग में अमेरिकन फौजों में इस्तेमालशुदा बमों से यूरेनियम की किरणें पानी में घुस जाती हैं और यही पानी लोग पीने पर मजबूर हैं। मुश्किल यह है कि पानी पीने से पता नहीं चलता कि लोग किस किस्म का पानी पी रहे हैं। लेकिन उसमें जो यूरेनियम के जरे घुस गए हैं वे लोगों को खासकर बच्चों पर असरंदाज हो रहे हैं। इलाके के जिम्मेदार लोगों का कहना है कि जब तहकीकात की रिपोर्टें आएंगी तो पढ़ने वाले बेहाल हो उठेंगे। इस सारे क्राइसिस की वजह अफगानिस्तान की जंग में उड़ती हुई किरणें पंजाब के पानी में घुस गई हैं और सरकार के पास पानी को साफ करने का कोई इंतजाम नहीं है। बूढ़ा नाला के पानी के कुछ सैम्पल जर्मन भेजे गए थे और जो रिपोर्ट आई है उसमें बताया गया है कि यूरेनियम और दूसरी कई धातुओं का पानी पर असर हो रहा है। कहा जाता है कि जितनी किरणें काबिले बर्दाश्त हैं उनसे डेढ़ गुना ज्यादा उस पानी में मिल चुकी हैं। मामूली तौर पर शायद एक-आध धातु का असर न हो लेकिन जब हैवी मेटल यूरेनियम के साथ मिल जाते हैं तो उनका असर कई गुना ज्यादा होता है। फरीदकोट के बाबा फरीद सेंटर के डाक्टर अमर सिंह आजाद का कहना है कि बूढ़ा नाला और चेइबेन के पानी में सतलुज का पानी आ मिलता है और यही पानी मालवा और राजस्थान के लोग इस्तेमाल करते हैं और उस पानी पर अफगानिस्तान से चलते गोलों की किरणें असरंदाज होती हैं। उस पानी का कुछ हिस्सा जर्मन प्रयोगशाला में भेजा गया और वहां से जो रिपोर्टें आई हैं वो बताती हैं कि अगर 50 प्रतिशत से ज्यादा यूरोनियम पानी में हो तो मुनासिब खतरों से यह कहीं ज्यादा है। इस पानी में आयरन और एल्युमीनियम 20 और 60 प्रतिशत सिलसिलेवार मात्रा से ज्यादा हैं। बूढ़ा नाला के पानी की तहकीकात पर पता चला है कि उसमें सिल्वर मैकनिज निकल और लीड की मात्रा मुनासिब से ज्यादा है। नतीजा रोहिल्ला के इलाके में 100 बच्चे दिमागी और जिस्मानी तौर पर प्रभावित हो गए हैं और उन बच्चों को देखकर उन बच्चें के चेस्ट के जो नतीजे आने वाले हैं वे लाजिमी तौर पर ज्यादा खतरनाक होंगे। बयान किया जाता है कि अगर तीन बच्चे दिमागी तौर पर असरंदाज हो चुके हैं तो उनमें से एक मोट्रीन्यूरान बीमारी का शिकार हो चुका है और दूसरा जिस्म और आंखों का मरीज बन गया है। गांव के हैंडपम्प के पीने वाले पानी को भी तहकीकात के लिए भेजा गया है। इस पर डाक्टर आजाद और प्रीतपाल सिंह ने कहा है कि जो नतीजे सामने आ सकते हैं वो कहीं ज्यादा चिन्ताजनक हैं। उनका कहना है कि जिन 149 बच्चों की तहकीकात की गई उनमें कई बच्चे न केवल पंजाब बल्कि हरियाणा और राजस्थान के भी रहने वाले हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है कि सरकार मामले की तहकीकात शुरू करे। इसी तरह की एक और तहकीकात 2009 में लोगों पर की गई जिससे पता चलता है कि जो खुराक वे खाते हैं उसमें यूरेनियम घुस चुका है और उसकी मात्रा मुनासिब से कहीं ज्यादा हो गई है। इंडियन जर्नल ऑफ फिजिक्स के अगस्त 2009 के अंक में सर्वश्री मुकेश कुमार संगीता पाराशर और सुरेन्द्र सिंह ने बताया है कि यूरेनियम गेहूं, दूध, मस्टर्ड के बीजों में घुस गया है। उपरोक्त जर्नल में जो कुछ प्रकाशित हुआ है उससे पता चलता है कि यूरेनियम 0.38 से बढ़कर 4.60 गेहूं में घुस चुका है जहां तक दूध का ताल्लुक है यूरेनियम 28 से लेकर 213.36 मिलीग्राम तक घुस चुका है। इस तरह कहा जा सकता है कि रोजमर्रा की खुराक में यूरेनियम 0.90 घुस रहा है। कोई जमाना था जब पंजाब के मालवा इलाके को मक्खनों जैसा मीठा मालवा कहा जाता था और यहां की कपास भी काफी उम्दा समझे जाते थे। आज हालात से मुकाबला करने पर लोग मजबूर हो रहे हैं। लोगों के स्वास्थ्य असरंदाज हो रहे हैं। कई बीमारियां उदाहरण के तौर पर कैंसर, गुर्दों की बीमारियां और अन्य बीमारियां ज्यादा ही ज्यादा हो रही हैं। अबोहर सबडिवीजन के खूबां गांव का 12 वर्षीय राज और उसका छोटा भाई पैदाइशी बीमार चल रहे हैं।  एक इंटरनेशनल प्रयोगशाला में टेस्ट पर पाया गया कि उनके जिस्म में काफी रेडियोधर्मिता और धातुओं का असर है जिससे यह खतरा पैदा हो गया है कि उनकी जिन्दगी की मियाद कम हो गई है और वे किसी वक्त भी दम तोड़ सकते हैं। इसी तरह फिरोजपुर के गांव वान के छह वर्षीय बच्चे मीत शेरू के बाल सफेद हो गए हैं जिसका मतलब यह है कि वो वक्त से पहले ही बुढ़ापे की तरफ बढ़ रहा है।  लेकिन ज्यादा परेशानी की बात यह है कि वह अकेला ही नहीं जिसकी जिन्दगी को खतरा हो गया है, 12 के करीब और लड़के भी हैं जो इसी बीमारी का शिकार दिखते हैं। कई देहात जिनमें तिजार वहीला, ढोना नानका, खूबां और वान शामिल हैं। इन जगहों के दौरे के बाद पता चला कि कैंसर के बाद वहां जिस्मानी बीमारियां आर्थोराइट्स, आदि बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं और मालवा के इलाके के लिए एक जबरदस्त खतरा पैदा हो रहा है। इसी तरह तिजार वहीला और ढोना नानका गांव में काफी संख्या में लोगों की उम्र के इजाफे पर असर हो रहा है। उनमें नुमायां तौर पर कद की कमी, जिस्मानी वजन और जिस्म के दूसरे हिस्सों पर असर हो रहा है। मैं यह मानता हूं कि जो कुछ मैंने लिखा है वह हालात के ऐन मुताबिक है। अगरचे बीमारियों से नावाकिफ होने की वजह से मैं सही तौर पर खतरे पेश नहीं कर सका, लेकिन यह कहे बिना नहीं रह सकता कि जिन इलाकों का मैंने जिक्र किया है वहां लोगों की हालत विभिन्न बीमारियों की वजह से चिन्ताजनक हो रही है और पंजाब सरकार को फौरी तवज्जों देनी चाहिए।  

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