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करजई को शक है कि अमेरिका तालिबान को शिकस्त दे सकता है

👤 | Updated on:21 Jun 2010 3:54 PM GMT
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काबुल के सियासी हलकों में इस बात की चर्चा है कि दो वरिष्ठ अफगान अधिकारी अपने राष्ट्रपति हामिद करजई को एक अमन काफ्रेंस पर तालिबान के हमले की तफ्सील बता रहे थे। जब करजई ने उन्हें इशारतन कहा कि आप समझते हैं कि इस हमले के लिए तालिबान जिम्मेदार न थे। इस पर राष्ट्रपति महोदय ने जो सबूत पेश किए थे उनमें ज्यादा दिलचस्पी न ली। यह तासुर है पूर्व अफगान इंटेलीजेंस के डायरेक्टर का जो राष्ट्रपति महोदय के साथ आज से कुछ दिन पहले सफर कर रहे थे। एक अफगान अधिकारी ने जिसे उस मीटिंग की तफ्सील का इल्म है, बताया कि करजई साहब ने फरमाया कि ऐन मुमकिन है कि यह कार्यवाही अमेरिकनों ने की हो। इस बातचीत के कुछ समय बाद अफगानिस्तान इंटर सर्विसेज के चीफ अमानुल्लाह सालेह और विभाग के वजीर हनीफ अम्बर ने अपना त्यागपत्र दे दिया। लोगों का कहना था कि आपका त्यागपत्र इसलिए था कि राष्ट्रपति करजई ने स्पष्ट कर दिया कि वह उन्हें ज्यादा देर तक अपना वफादार मानने को तैयार न थे। लेकिन सालेह अफगान और पश्चिमी अधिकारियों के मुताबिक राष्ट्रपति करजई साहब का इशारा कहीं ज्यादा गंभीर था। आमतौर पर यह सोचा जा रहा है कि राष्ट्रपति करजई साहब धीरे-धीरे इस ख्याल के होते जा रहे हैं कि अमेरिकन फौजें गालिबन तालिबान को शिकस्त देने में कामयाब न हों। कई लोगों ने कहा है कि करजई साहब ने अमेरिकनों से अपना विश्वास खो लिया है। कुछ लोगों का कहना है कि अमेरिकनों की ताकत पर शक की वजह से करजई साहब ने तालिबान और पाकिस्तान के हुक्काम से अपना अलग समझौता करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। इस पर सालेह साहब ने कहा कि राष्ट्रपति साहब का अपनी सरकार से विश्वास खत्म हो गया है या इस बात का विश्वास खत्म हो गया कि कुलेशन सरकार इनके लिए ज्यादा कामयाब हो सकती है। बेशक सालेह साहब ने कहा कि राष्ट्रपति करजई ने कभी यह ऐलान नहीं किया कि नॉटो की फौजें हार जाएंगी। लेकिन जिस तरीके पर चल रही मुहिम का वो जिक्र करते हैं उससे इस बात के इशारे होते हैं कि आपके ख्याल में तालिबान के खिलाफ जंग दुरुस्त तरीके पर चल रही है। राष्ट्रपति के नजदीक जो लोग हैं  उनका कहना है कि करजई साहब को पिछली गर्मियों में अमेरिकनों की फतेह पर शक होने लग गया था, उसके बाद अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा के ऐलान कि आप 2011 में अफगानिस्तान से अमेरिकन फौजों को वापस बुला लेंगे, ने भी राष्ट्रपति करजई साहब को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि राष्ट्रपति ओबामा ने इस तरह यह ऐलान कर दिया जबकि अमेरिकन फौजों को वो कामयाबी नहीं मिल रही थी जिसकी उम्मीद की जाती थी। इस बात का इशारा भी है कि पिछले हफ्ते एक प्रेस काफ्रेंस में जब करजई साहब से पूछा गया कि 4 जून के हमले में तालिबान का क्या रोल था और आपका नॉटो की ताकत में कितना विश्वास है तो आपने दोनों में से किसी प्रश्न का उत्तर देना मुनासिब न समझा। आपने केवल यही कहा कि यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका देश की सुरक्षा संस्थाएं बेहतरीन जवाब दे सकती हैं। इसके अलावा भी करजई साहब कई बार ऐसे इशारे कर चुके हैं जिनसे यह नजर आता है कि आपको अमेरिकन फतेह पर पूरा विश्वास नहीं है। आतंकवादी संस्थाओं को खुली पाकिस्तानी मदद पाकिस्तानी असेम्बली में सप्लीमेंट्री बजट में यह दिखाया गया है कि इस्लामाबाद की सरकार ने जमात-उद-दावा और उसकी सहयोगी संस्थाओं को 82 करोड़ रुपये दिए हैं। पंजाब असेम्बली में जो बजट पेश किया गया है उसमें यह दर्ज है कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग की सरकार जब सत्तासीन थी तो उसने लश्कर-ए-तोयबा जिसका हैड ऑफिस लाहौर के नजदीक मुरीदके में है, यह रकम दी। इसके अलावा 30 लाख रुपये जमात-उद-दावा की तरफ से चलाए गए स्कूलों को दिए गए जो पंजाब के विभिन्न जिलों में चल रहे हैं। इन सारी बातों का एतराफ पंजाब के कानून मंत्री राणा सनाउल्लाह ने किया जबकि पाबंदीशुदा सिपाह-ए-सहाबा ने यह एतराफ किया कि उसे यह रुपया जमात-उद-दावा ने दिया है। आपने एक टीवी न्यूज चैनल को बताया कि इन संस्थाओं को यह रुपया उस समय दिया गया जब जमात-उद-दावा को कानून के खिलाफ करार दिया गया था। यह हुक्म 2008 में मुंबई हमले के बाद जारी किया गया था। सनाउल्लाह साहब ने फरमाया कि यह मदद स्कूलों, डिस्पेंसरियों और अस्पतालों को दी गई है। स्पष्ट हो कि संयुक्त राष्ट्र नेशनल काउंसिल ने जमात-उद-दावा पर पाबंदी लगा रखी है। यह जमात लश्कर-ए-तोयबा का एक हिस्सा मानी जाती है और लश्कर पर मुंबई हमले के बाद पाबंदी लगा दी गई थी। इस असना में पंजाब सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि यह सारी मदद अवाम की खिदमित के लिए दी गई है। इस पर यह सवाल उठता है कि किस तरह हमारे हाकिम पाकिस्तान सरकार से बातचीत करने के लिए तैयार हो जाते हैं जबकि उन्हें मालूम है कि पाकिस्तानी सरकार दुनिया से अपने गुनाह छिपाने के लिए कह देती है कि वह अपनी आतंकवादी संस्थाओं के खिलाफ कार्यवाही कर रही है और यह सब जानते भी हमारी सरकार पाकिस्तान से बातचीत के लिए हर समय तैयार रहती है।  

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