देश को जातियों में बांटो व राज करो
जातियों में बांटो और राज करो की पुरानी धारणा को बल देते हुए नए विचार बन गए हैं, जिसके अनुसार समाज को जातियों में बांट कर उन्हें आरक्षण का लालच देकर सतत् राजनीति करते रहो। जैसी धारणा है कि स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम के मतभेदों का लाभ उठाकर राज किया परन्तु उसी दौरान अंग्रेजों ने दूरदराज के गांवों में रहने वाली जनता को आदिवासी कहकर विशाल हिन्दू समाज से अलग पहचान देनी शुरू कर दी थी। उसी कड़ी में स्वतंत्रता के पश्चात आदिवासी, जनजाति, दलित, अतिदलित, पिछड़े, अतिपिछड़े, आदि में समाज को बांटकर उन्हें आरक्षण का लाभ देकर राजेनताओं ने लोकतंत्र में वोटों की राजनीति का भरपूर लाभ उठाया अर्थात् सत्ता पाने के लिए हिन्दू समाज को जातियों के आधार पर अलग-अलग करके उनकी वोटों का धुर्वीकरण करने के लिए आरक्षण को हथियार बनाया जिसके परिणामस्वरूप आज विभिन्न आरक्षित जातियों के लोग लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण का लाभ लेते हुए सामान्य लोगों से कई गुना अधिक उन्नति कर गए। यह सब स्वतंत्र भारत के संविधान को नजरंदाज करते हुए हो रहा है। हमारा संविधान धर्म, जाति, लिंग, आदि के आधार पर आरक्षण का समर्थन नहीं करता है परन्तु हमारे राजनैतिक दलों ने अपने-अपने वोटों का धुर्वीकरण करने के लिए समय-समय पर जातियों में और अधिक विभाजन करके आरक्षण आधारित राजनीति को बढ़ावा दिया। अगर हम ईमानदारी से कमजोर वर्गों का उत्थान करना चाहते हैं तो हमें आर्थिक रूप से उनकी सहायता करके उनकी प्रगति में योगदान करना होगा। आज हमारे कमजोर समाज को आरक्षण की नहीं आर्थिक संरक्षण की आवश्यकता है जिससे उनका स्वाभिमान व आत्मबल भी बना रहेगा और सारा समाज सुसंगठित होकर राष्ट्रोत्थान में अहम भूमिका निभाएगा। -विनोद कुमार सर्वोदय नयागंज, गाजियाबाद।